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उत्तराखंड-यूपी संपत्ति बंटवारे मामले को कोर्ट ले जाएगा लोकतांत्रिक मोर्चा, UKD ने मोर्चे को किया प्राधिकृत

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Published : Jan 9, 2022, 10:00 AM IST

यूपी-उत्तराखंड के परिसंपत्ति बंटवारे को लेकर उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा कार्ट जाने की तैयारी कर रहा है. मोर्चा के संरक्षक एसएस पांगती ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि यूकेडी ने मोर्चे को अधिकृत किया है. इसलिए राज्य के जल व राज्य के अधिकार प्राप्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की तैयारी की जा रही है.

उत्तराखंड-यूपी संपत्ति बंटवारा
उत्तराखंड-यूपी संपत्ति बंटवारा

देहरादून: यूपी-उत्तराखंड के परिसंपत्ति बंटवारे को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में अब उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा राज्य के अधिकारों को पुनर्स्थापित करने के संबंध में कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है. यूकेडी (Uttarakhand Kranti Dal) के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी और उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के संरक्षक पूर्व आईएएस एसएस पांगती ने संयुक्त रूप से कहा कि उत्तराखंड की घोर उपेक्षा व शोषण के कारण राजा आंदोलन का जन्म हुआ. लेकिन अफसोस है कि अपने ही राजनेता उत्तराखंड की उपेक्षा और शोषण में भागीदारी करते रहे है. इसलिए राज्य के अधिकारों के लिए उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा ने राज्य के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए कोर्ट जाने का फैसला लिया है.

मोर्चा के संरक्षक एसएस पांगती ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि यूकेडी ने मोर्चे को अधिकृत किया है. इसलिए राज्य के जल व राज्य के अधिकार प्राप्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की तैयारी की जा रही है. दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी का कहना है कि जनता दल के 1996 के विधेयक में उत्तराखंड के जल का अलग से उल्लेख नहीं किया गया था. लेकिन भाजपा के 1998 के विधेयक में उत्तराखंड के जल के बारे में कलश यात्रा के जल का अधिकार गंगा यमुना और शारदा प्रबंधन परिषद में निहित करने का प्रस्ताव रखा गया. परिषद में हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 1-1 और केंद्र के 5 सदस्य रखने का प्रावधान किया गया.

पढ़ें: 'PM आधे घंटे रुक जाते...' पर हरदा की सफाई, 'गलत पेश हुआ बयान, देश से माफी मांगने को तैयार'

उत्तराखंड के जल पर केंद्र के अतिरिक्त पांच अन्य राज्यों को अधिकार देने का प्रस्ताव किया गया. जबकि उत्तराखंड को उन राज्यों के जल पर अधिकार देने का कोई उल्लेख नहीं किया गया. ऐसे में कुछ स्वैच्छिक संगठनों द्वारा इसका विरोध किए जाने पर पुनर्गठन अधिनियम के अध्याय 9 में प्रस्तावित परिषद के स्थान पर गंगा प्रबंधन परिषद का प्रावधान किया गया.

साथ ही 6 राज्यों के स्थान पर दो राज्य उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा केंद्र को सदस्यता दी गई. उन्होंने कहा कि झारखंड में छत्तीसगढ़ राज्य के जल या अन्य संसाधन पर राज्य के अधिकार पर हस्तक्षेप नहीं किया गया. किसी अन्य राज्य के जल पर उनके अधिकार को नहीं छीना गया है. जबकि उत्तराखंड के साथ ऐसा भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 का खुला उल्लंघन है. इसकी लड़ाई अब उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा लड़ने जा रहा है. दरअसल, उत्तराखंड क्रांति दल और उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा ने राज्य की घोर उपेक्षा और शोषण का जिम्मेदार प्रदेश के राजनेताओं को बताया है.

देहरादून: यूपी-उत्तराखंड के परिसंपत्ति बंटवारे को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में अब उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा राज्य के अधिकारों को पुनर्स्थापित करने के संबंध में कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है. यूकेडी (Uttarakhand Kranti Dal) के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी और उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के संरक्षक पूर्व आईएएस एसएस पांगती ने संयुक्त रूप से कहा कि उत्तराखंड की घोर उपेक्षा व शोषण के कारण राजा आंदोलन का जन्म हुआ. लेकिन अफसोस है कि अपने ही राजनेता उत्तराखंड की उपेक्षा और शोषण में भागीदारी करते रहे है. इसलिए राज्य के अधिकारों के लिए उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा ने राज्य के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए कोर्ट जाने का फैसला लिया है.

मोर्चा के संरक्षक एसएस पांगती ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि यूकेडी ने मोर्चे को अधिकृत किया है. इसलिए राज्य के जल व राज्य के अधिकार प्राप्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की तैयारी की जा रही है. दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी का कहना है कि जनता दल के 1996 के विधेयक में उत्तराखंड के जल का अलग से उल्लेख नहीं किया गया था. लेकिन भाजपा के 1998 के विधेयक में उत्तराखंड के जल के बारे में कलश यात्रा के जल का अधिकार गंगा यमुना और शारदा प्रबंधन परिषद में निहित करने का प्रस्ताव रखा गया. परिषद में हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 1-1 और केंद्र के 5 सदस्य रखने का प्रावधान किया गया.

पढ़ें: 'PM आधे घंटे रुक जाते...' पर हरदा की सफाई, 'गलत पेश हुआ बयान, देश से माफी मांगने को तैयार'

उत्तराखंड के जल पर केंद्र के अतिरिक्त पांच अन्य राज्यों को अधिकार देने का प्रस्ताव किया गया. जबकि उत्तराखंड को उन राज्यों के जल पर अधिकार देने का कोई उल्लेख नहीं किया गया. ऐसे में कुछ स्वैच्छिक संगठनों द्वारा इसका विरोध किए जाने पर पुनर्गठन अधिनियम के अध्याय 9 में प्रस्तावित परिषद के स्थान पर गंगा प्रबंधन परिषद का प्रावधान किया गया.

साथ ही 6 राज्यों के स्थान पर दो राज्य उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा केंद्र को सदस्यता दी गई. उन्होंने कहा कि झारखंड में छत्तीसगढ़ राज्य के जल या अन्य संसाधन पर राज्य के अधिकार पर हस्तक्षेप नहीं किया गया. किसी अन्य राज्य के जल पर उनके अधिकार को नहीं छीना गया है. जबकि उत्तराखंड के साथ ऐसा भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 का खुला उल्लंघन है. इसकी लड़ाई अब उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा लड़ने जा रहा है. दरअसल, उत्तराखंड क्रांति दल और उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा ने राज्य की घोर उपेक्षा और शोषण का जिम्मेदार प्रदेश के राजनेताओं को बताया है.

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