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भगवान भरोसे दून मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य, अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

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Published : Feb 9, 2020, 5:18 PM IST

राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज में निर्माण कार्य भगवान भरोसे चल रहा है. पिछले 6 सालों से भवनों का निर्माण नहीं हो पाया है. आश्चर्य की बात तो यह है कि शासन द्वारा निर्माण एजेंसी पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उल्टा एजेंसी ने शासन को करोड़ों का बढ़ा हुआ रिवाइज रेट दिए जाने की मांग की है.

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दून मेडिकल कॉलेज

देहरादून: करोड़ों की लागत से दून मेडिकल कॉलेज के विभिन्न भवनों का निर्माण चल रहा है. इसमें ओपीडी, ऑपरेशन थिएटर और आवास भवन शामिल है. खास बात यह है कि 6 साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बावजूद भी निर्माण को पूरा नहीं किया जा सका है. उल्टा यूपीआरएनएन ने शासन से करोड़ों रुपए का बढ़ा हुआ रिवाइज रेट दिए जाने की मांग उठा दी है.

दून मेडिकल कॉलेज.

सूत्रों की मानें तो निर्माण के दौरान इसकी डीपीआर करीब 45 करोड़ की तैयार की गई थी, लेकिन अब एजेंसी करोड़ों रुपये ज्यादा का बजट रिवाइज रेट में मांग रही है. चिंता की बात यह है कि करीब 8 महीने पहले एजेंसी द्वारा रिवाइज रेट का प्रस्ताव दिया गया था. जिस पर अब तक फैसला नहीं हो पाया है. उधर, रिवाइज रेट के बिना एजेंसी काम को पूरा नहीं कर रही है. बावजूद इसके शासन में बैठे आईएएस ना तो रिवाइज रेट को लेकर फैसला कर रहे हैं और ना ही एजेंसी पर काम पूरा करने का दबाव बनाया जा रहा है.

ये भी पढ़े: थराली: पुल निर्माण में हो रही देरी पर ग्रामीणों ने जताया आक्रोश

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस विभाग में एजेंसी की कार्यप्रणाली तो सवालों के घेरे में है. वहीं, शासन में बैठे आईएएस अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं. सवाल इस बात का कि निर्माण एजेंसी का पेमेंट पूरी तरह से क्यों नहीं रोका गया. साथ ही लेटलतीफी पर एजेंसी से रिकवरी कर कार्य किसी दूसरी एजेंसी को नहीं दिया गया.

देहरादून: करोड़ों की लागत से दून मेडिकल कॉलेज के विभिन्न भवनों का निर्माण चल रहा है. इसमें ओपीडी, ऑपरेशन थिएटर और आवास भवन शामिल है. खास बात यह है कि 6 साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बावजूद भी निर्माण को पूरा नहीं किया जा सका है. उल्टा यूपीआरएनएन ने शासन से करोड़ों रुपए का बढ़ा हुआ रिवाइज रेट दिए जाने की मांग उठा दी है.

दून मेडिकल कॉलेज.

सूत्रों की मानें तो निर्माण के दौरान इसकी डीपीआर करीब 45 करोड़ की तैयार की गई थी, लेकिन अब एजेंसी करोड़ों रुपये ज्यादा का बजट रिवाइज रेट में मांग रही है. चिंता की बात यह है कि करीब 8 महीने पहले एजेंसी द्वारा रिवाइज रेट का प्रस्ताव दिया गया था. जिस पर अब तक फैसला नहीं हो पाया है. उधर, रिवाइज रेट के बिना एजेंसी काम को पूरा नहीं कर रही है. बावजूद इसके शासन में बैठे आईएएस ना तो रिवाइज रेट को लेकर फैसला कर रहे हैं और ना ही एजेंसी पर काम पूरा करने का दबाव बनाया जा रहा है.

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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस विभाग में एजेंसी की कार्यप्रणाली तो सवालों के घेरे में है. वहीं, शासन में बैठे आईएएस अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं. सवाल इस बात का कि निर्माण एजेंसी का पेमेंट पूरी तरह से क्यों नहीं रोका गया. साथ ही लेटलतीफी पर एजेंसी से रिकवरी कर कार्य किसी दूसरी एजेंसी को नहीं दिया गया.

Intro:ready to air

exclusive report....


Summary- दून मेडिकल कॉलेज के निर्माण पर शासन आंखों पर पट्टी बांधे हुए हैं.. न जाने ऐसी क्या बात है कि ना तो निर्माण एजेंसी को लेटलतीफी पर सजा दी गयी है और न ही एजेंसी की रिवाइज्ड रेट की दरख्वास्त पर कोई विचार हो रहा है...लगता है कि शासन में बैठे आईएएस अधिकारी दून मेडिकल कॉलेज के भवन निर्माण को तवज्जो ही नही देना चाहते....



Body:देहरादून में करोड़ों की लागत से दून मेडिकल कॉलेज के विभिन्न भवनों का निर्माण चल रहा है... इसमें ओपीडी, ऑपरेशन थिएटर, और आवास भवन तक शामिल है... खास बात यह है कि 6 साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बावजूद भी कॉलेज के निर्माण को पूरा नहीं किया जा सका है... उल्टा यूपीआरएनएन ने शासन से करोड़ों रुपए का बढ़ा हुआ रिवाइज रेट दिए जाने की मांग उठा दी है.. सूत्रों के अनुसार निर्माण के दौरान इसकी डीपीआर करीब 45 करोड की तैयार की गई थी लेकिन अब एजेंसी करोड़ों रुपये ज्यादा का बजट रिवाइज रेट में मांग रही है... चिंता की बात यह है कि करीब 8 महीने पहले एजेंसी द्वारा रिवाइज रेट का प्रस्ताव दिया गया था जिस पर अब तक फैसला नहीं हो पाया है... उधर रिवाइज रेट के बिना एजेंसी काम को पूरा नहीं कर रही है... लेकिन इसके बावजूद भी शासन में बैठे आईएएस ना तो रिवाइज रेट को लेकर फैसला कर रहे हैं और ना ही एजेंसी पर काम पूरा करने का दबाव बनाया जा रहा है....


वाइट आशुतोष सयाना प्राचार्य दून मेडिकल कॉलेज


मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस विभाग में एजेंसी की कार्यप्रणाली तो सवालों के घेरे में है ही साथ ही शासन में बैठे आईएएस अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं... सवाल इस बात का कि निर्माण एजेंसी का पेमेंट पूरी तरह से क्यों नही रोका गया...और अब लेटलतीफी पर एजेंसी से रिकवरी कर इसे दूसरी एजेंसी को क्यों नही दिया जा रहा...




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