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अब दून के 'दिल' में लगाई जाएंगी डिजिटल घड़ियां, नहीं सुनाई देगी टिक-टिक

दुनियाभर में अंग्रेजों द्वारा निर्माण किये ज्यादातर घंटाघरों में दो या चार घड़िया हैं. लेकिन दून का यह घंटाघर 6 घड़ियों वाला अनोखा घंटाघर है. जिसमें हर और 1948 में स्विजरलैंड से लाई गई एक-एक घड़ी लगायी गयी है.

देहरादून का घंटाघर
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Published : Aug 1, 2019, 12:02 AM IST

Updated : Aug 1, 2019, 7:00 AM IST

देहरादून: शहर के ऐतिहासिक घंटाघर की तस्वीर जल्द ही बदलने वाली है. सन 1948 से लेकर 1952 के बीच निर्माण हुए इस घंटाघर के 6 मुखों पर लगी 6 ऐतिहासिक घड़ियों को हटाकर इनकी जगह डिजिटल घड़ियां लगायी जा रही हैं. लोहे और पीतल से बनी भारी भरकम इन 6 घड़ियों को उस समय स्विजरलैंड से लाया गया था. इतना ही नहीं इन सभी 6 घड़ियों को चलाने के लिए बकायदा एक बड़ी मशीन को घंटाघर के टॉप फ्लोर पर जोड़ा गया था. जो हर एक घंटे में तेज ध्वनि के साथ अलार्म देकर समय बताती थी.

घंटाघर के 6 मुखों पर लगी 6 ऐतिहासिक घड़ियों को हटाकर इनकी जगह डिजिटल घड़ियां लगायी जा रही हैं.

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान स्विट्जरलैंड में निर्मित यह वह ऐतिहासिक 6 घड़ियां है, जो दुनिया के कम ही घंटाघरों में लगी हुई हैं. हालांकि, रखरखाव में कमी आने और इसके कल पुर्जों के बाजार में न मिलने की वजह से यह घड़ियां देहरादून के घंटाघर में बंद पड़ी हैं. ऐसे में आखिरकार इन घड़ियों को रिटायर्ड कर हटाया जा रहा है. इनकी जगह अब जीपीएस से चलने वाली आधुनिक डिजिटल 6 घड़ियों को देहरादून के घंटाघर में लगाने का कार्य तेजी से चल रहा है.

देहरादून के घंटाघर को एशिया का सबसे विरला क्लॉक टावर माना जाता है. बताया जाता है कि दुनियाभर में अंग्रेजों द्वारा निर्माण किये ज्यादातर घंटाघरों में दो या चार घड़ियाx हैं. लेकिन दून का यह घंटाघर 6 मुखों वाला अनोखा घंटाघर है. जिसके हर मुख के ऊपर 1948 में स्विजरलैंड से लाई गई एक-एक घड़ी लगायी गयी है. लोहे और पीतल धातु से निर्मित हर एक घड़ी का वजन 2 क्विंटल से अधिक बताया जा रहा है.

देहरादून के घंटाघर में लगी इन 6 घड़ियों को उतारने के लिए मद्रास की एक घड़ी कंपनी को ठेका दिया गया है. कंपनी के इंजीनियर सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि यह घड़ियां ब्रिटिश काल के दौरान स्विजरलैंड में बनी थी. लेकिन बदलते समय के मुताबिक इन घड़ियों को निर्माण करने वाली कम्पनी काफी समय पहले बन्द हो चुकी है. ऐसे में इन घड़ियों के कल पुर्जे बाजार में मिलना बंद हो चुके हैं. जिससे यह घड़ियां पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं.

बताया जा रहा है कि सभी घड़ियों के साथ एक-एक लाउडस्पीकर भी लगाया जाएगा. जो पुरानी घड़ियों की तरह हर 1 घंटे में अलार्म बजाएंगी. जिसकी आवाज लगभग तीन किमी. तक जाएगी.

लाला बलवीर सिंह रईस की याद में बनाया गया घंटाघर
बता दें कि देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण 1948 में लाला आनंद सिंह, हरि सिंह और अमर सिंह ने अपने स्वर्गीय पिता लाला बलबीर सिंह रईस की याद में बनाया था. उस समय इसकी लागत सवा लाख रुपए आंकी गई थी. आजादी के एक साल बाद 2 जुलाई 1948 में तत्कालीन गवर्नर सरोजनी नायडू ने इसकी नींव रखी थी. जिसके बाद साल 1952 में यह घंटाघर देहरादून सिटी बोर्ड के सौजन्य से बनकर तैयार हुआ था. उस समय तत्कालीन रक्षामंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस घंटाघर का उद्घाटन किया था.

देहरादून: शहर के ऐतिहासिक घंटाघर की तस्वीर जल्द ही बदलने वाली है. सन 1948 से लेकर 1952 के बीच निर्माण हुए इस घंटाघर के 6 मुखों पर लगी 6 ऐतिहासिक घड़ियों को हटाकर इनकी जगह डिजिटल घड़ियां लगायी जा रही हैं. लोहे और पीतल से बनी भारी भरकम इन 6 घड़ियों को उस समय स्विजरलैंड से लाया गया था. इतना ही नहीं इन सभी 6 घड़ियों को चलाने के लिए बकायदा एक बड़ी मशीन को घंटाघर के टॉप फ्लोर पर जोड़ा गया था. जो हर एक घंटे में तेज ध्वनि के साथ अलार्म देकर समय बताती थी.

घंटाघर के 6 मुखों पर लगी 6 ऐतिहासिक घड़ियों को हटाकर इनकी जगह डिजिटल घड़ियां लगायी जा रही हैं.

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान स्विट्जरलैंड में निर्मित यह वह ऐतिहासिक 6 घड़ियां है, जो दुनिया के कम ही घंटाघरों में लगी हुई हैं. हालांकि, रखरखाव में कमी आने और इसके कल पुर्जों के बाजार में न मिलने की वजह से यह घड़ियां देहरादून के घंटाघर में बंद पड़ी हैं. ऐसे में आखिरकार इन घड़ियों को रिटायर्ड कर हटाया जा रहा है. इनकी जगह अब जीपीएस से चलने वाली आधुनिक डिजिटल 6 घड़ियों को देहरादून के घंटाघर में लगाने का कार्य तेजी से चल रहा है.

देहरादून के घंटाघर को एशिया का सबसे विरला क्लॉक टावर माना जाता है. बताया जाता है कि दुनियाभर में अंग्रेजों द्वारा निर्माण किये ज्यादातर घंटाघरों में दो या चार घड़ियाx हैं. लेकिन दून का यह घंटाघर 6 मुखों वाला अनोखा घंटाघर है. जिसके हर मुख के ऊपर 1948 में स्विजरलैंड से लाई गई एक-एक घड़ी लगायी गयी है. लोहे और पीतल धातु से निर्मित हर एक घड़ी का वजन 2 क्विंटल से अधिक बताया जा रहा है.

देहरादून के घंटाघर में लगी इन 6 घड़ियों को उतारने के लिए मद्रास की एक घड़ी कंपनी को ठेका दिया गया है. कंपनी के इंजीनियर सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि यह घड़ियां ब्रिटिश काल के दौरान स्विजरलैंड में बनी थी. लेकिन बदलते समय के मुताबिक इन घड़ियों को निर्माण करने वाली कम्पनी काफी समय पहले बन्द हो चुकी है. ऐसे में इन घड़ियों के कल पुर्जे बाजार में मिलना बंद हो चुके हैं. जिससे यह घड़ियां पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं.

बताया जा रहा है कि सभी घड़ियों के साथ एक-एक लाउडस्पीकर भी लगाया जाएगा. जो पुरानी घड़ियों की तरह हर 1 घंटे में अलार्म बजाएंगी. जिसकी आवाज लगभग तीन किमी. तक जाएगी.

लाला बलवीर सिंह रईस की याद में बनाया गया घंटाघर
बता दें कि देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण 1948 में लाला आनंद सिंह, हरि सिंह और अमर सिंह ने अपने स्वर्गीय पिता लाला बलबीर सिंह रईस की याद में बनाया था. उस समय इसकी लागत सवा लाख रुपए आंकी गई थी. आजादी के एक साल बाद 2 जुलाई 1948 में तत्कालीन गवर्नर सरोजनी नायडू ने इसकी नींव रखी थी. जिसके बाद साल 1952 में यह घंटाघर देहरादून सिटी बोर्ड के सौजन्य से बनकर तैयार हुआ था. उस समय तत्कालीन रक्षामंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस घंटाघर का उद्घाटन किया था.

Intro:pls नोट डेस्क- महोदय यह Etv भारत की एक्सक्लूसिव और स्पेशल स्टोरी हैं। इसकी फीड FTP से भेजी गई हैं। फोल्डर- "Dehradun Clock Tower Spl story"



summary-देहरादून के 6 घड़ियों वाले ऐतिहासिक घंटाघर से ब्रिटिश काल में स्विजरलैंड की निर्मित सभी घड़ियों को हटाया गया, नई डिजिटल घड़ियों से अब घंटाघर का दिखेगा नया स्वरूप, छः मुखों वाले घंटाघर में वर्ष 1948 में लगायी गई थी मशीन से चलने वाली 6 ऐतिहासिक घड़ियां, रखरखाव की कमी के चलते जर्जर हो चुकी घड़ियों की जगह लेगी आधुनिक जीपीएस से चलने वाली डिजिटल घड़ियां।


देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर का स्वरूप जल्दी बदलने वाला है सन 1948 से लेकर 1952 के बीच निर्माण हुए इस घंटाघर के छः मुखों में लगी 6 ऐतिहासिक घड़ियों को हटाकर इनकी जगह डिजिटल घड़ियां लगायी जा रही हैं। देश आज़ादी के ठीक बाद निर्माण हुए इस घंटाघर में लगी लोहे और पीतल से बनी भारी भरकम 6 घड़ियों को उस समय स्विजरलैंड से लाया गया था। इतना ही नहीं इन सभी 6 घड़ियों को चलाने के लिए बकायदा एक बड़ी मशीन को घंटाघर के टॉप फ्लोर पर जोड़ा गया था जो हर एक घँटे में तेज़ ध्वनि के साथ अलार्म देकर समय बताती थी।

रखरखाव की कमी और घड़ियों के कल पुर्जे ना मिलने की वजह से घड़ियां हटायी जा रही है

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान स्विट्जरलैंड में निर्मित यह वह ऐतिहासिक 6 घड़ियां है जो दुनिया के कम ही घंटाघरों में लगी है। हालांकि समय दर समय इसके रखरखाव में कमी आने और इसके कल पुर्जों के बाजार में ना मिलने की वजह से यह काफी समय देहरादून के घंटाघर में जर्जर हालत में आकर बंद पड़ी है। ऐसे में आखिरकार इन घड़ियों को रिटायर्ड कर हटाया जा रहा है और इनकी जगह अब जीपीएस से चलने वाली आधुनिक डिजिटल 6 घड़ियों को देहरादून के घंटा घर में लगाने की कार्य तेजी से चल रहा है।

6 घड़ियों वाला अनोखा दून का यह ऐतिहासिक घंटाघर

देहरादून के घंटाघर को एशिया का सबसे विरला क्लॉक टावर माना जाता है। बताया जाता है कि दुनिया भर में अंग्रेजों द्वारा निर्माण किये ज्यादातर घंटाघर में दो या चार घड़ियों वाले हैं लेकिन दून का यह घंटाघर 6 घड़ियों वाला अनोखा घंटाघर है। यह षटकोणीय आकार या यानी मुखो वाला घंटा घर है जिसके हर मुख के ऊपर 1948 में स्विजरलैंड से लाकर एक-एक घड़ी लगायी गयी थी। लोहे और पीतल धातु से निर्मित हर एक घड़ी का वजन 2 कुंटल से अधिक बताया जा रहा है।

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supervisor Bridkul



Body:स्विजरलैंड निर्मित भारी भरकम 6 घड़ियों को क्रेन के सहारे नीचे उतारा गया

देश दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखने वाला देहरादून के घंटाघर के ऊपर लगी ऐतिहासिक लोहे की 6 घड़ियों को एक सप्ताह के समय में उतारने वाली मद्रास की कंपनी के इंजीनियर सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि यह घड़ियां ब्रिटिश काल के दौरान स्विजरलैंड से निर्मित हुई थी लेकिन बदलते समय के मुताबिक इन घड़ियों को निर्माण करने वाली कम्पनी काफी समय पहले बन्द हो चुकी हैं। ऐसे में इन घड़ियों के कल पुर्जे बाजार में मिलना बंद हो चुके हैं जिसके चलते यह घड़ियां पूर्ण रूप से खराब हो चुकी है ऐसे में इनकी जगह अब जीपीएस से चलने वाले 6 डिजिटल घड़ियों को पुरानी घड़ियों की स्थान पर लगाया जाएगा।


मद्रास की नामी घड़ी कंपनी को दिया गया देहरादून घंटाघर की ऐतिहासिक घड़ियों को हटाने की जिम्मेदारी

देहरादून के घंटाघर में लगी इन 6 घड़ियों को उतारने के लिए मद्रास की एक घड़ी कंपनी को ठेका दिया गया जिनके द्वारा बमुश्किल कई दिनों की भारी मशक्कत से इन 6 घड़ियों को एक-एक कर क्रेन और रस्सी के सहारे नीचे उतारा गया है। इसी कंपनी द्वारा अब इन पुरानी गाड़ियों की जगह जीपीएस से चलने वाली आधुनिक डिजिटल घड़ियों को लगाने का कार्य शुरू किया जा रहा है। देहरादून के नगर निगम में 6 डिजिटल घड़ियों को तैयार कर रखा गया है बताया जा रहा है कि सभी घड़ियों के साथ एक-एक लाउडस्पीकर भी लगेगा जो पुरानी घड़ियों की तरह हर 1 घंटे में अलार्म की आवाज कर 3 किलोमीटर तक समय को बताएगा।

2nd -one to one
on Clock Engineer


Conclusion:1948 में स्व लाला बलवीर सिंह रईस की याद में बनाया गया देहरादून घंटाघर

आपको बता दें कि देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण 1948 में लाला आनंद सिंह ,हरि सिंह और अमर सिंह ने अपने स्वर्गीय पिता लाला बलबीर सिंह रईस की याद में बनाया था उस समय इसकी लागत सवा लाख रुपए आंकी थी.. देश आज़ादी के एक साल बाद 2 जुलाई 1948 में तत्कालीन गवर्नर सरोजनी नायडू ने सुबह 9:00 बजकर 10 मिनट इसकी नींव रखी थी जबकि वर्ष 1952 में यह घंटाघर देहरादून सिटी बोर्ड के सौजन्य से बनकर तैयार हुआ था उस समय तत्कालीन रक्षामंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस घंटाघर का उद्घाटन किया था। देश दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले षटकोणीय का आकार वाले देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर के 6 कोने हैं सभी पर मुख्य द्वार बना हैं। घंटाघर के सभी कोनों के ऊपरी हिस्से पर 1948 में स्विजरलैंड से 6 भव्य घड़ियों को लाकर लगाया गया था।
Last Updated : Aug 1, 2019, 7:00 AM IST
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