देहरादून: शहर के ऐतिहासिक घंटाघर की तस्वीर जल्द ही बदलने वाली है. सन 1948 से लेकर 1952 के बीच निर्माण हुए इस घंटाघर के 6 मुखों पर लगी 6 ऐतिहासिक घड़ियों को हटाकर इनकी जगह डिजिटल घड़ियां लगायी जा रही हैं. लोहे और पीतल से बनी भारी भरकम इन 6 घड़ियों को उस समय स्विजरलैंड से लाया गया था. इतना ही नहीं इन सभी 6 घड़ियों को चलाने के लिए बकायदा एक बड़ी मशीन को घंटाघर के टॉप फ्लोर पर जोड़ा गया था. जो हर एक घंटे में तेज ध्वनि के साथ अलार्म देकर समय बताती थी.
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान स्विट्जरलैंड में निर्मित यह वह ऐतिहासिक 6 घड़ियां है, जो दुनिया के कम ही घंटाघरों में लगी हुई हैं. हालांकि, रखरखाव में कमी आने और इसके कल पुर्जों के बाजार में न मिलने की वजह से यह घड़ियां देहरादून के घंटाघर में बंद पड़ी हैं. ऐसे में आखिरकार इन घड़ियों को रिटायर्ड कर हटाया जा रहा है. इनकी जगह अब जीपीएस से चलने वाली आधुनिक डिजिटल 6 घड़ियों को देहरादून के घंटाघर में लगाने का कार्य तेजी से चल रहा है.
देहरादून के घंटाघर को एशिया का सबसे विरला क्लॉक टावर माना जाता है. बताया जाता है कि दुनियाभर में अंग्रेजों द्वारा निर्माण किये ज्यादातर घंटाघरों में दो या चार घड़ियाx हैं. लेकिन दून का यह घंटाघर 6 मुखों वाला अनोखा घंटाघर है. जिसके हर मुख के ऊपर 1948 में स्विजरलैंड से लाई गई एक-एक घड़ी लगायी गयी है. लोहे और पीतल धातु से निर्मित हर एक घड़ी का वजन 2 क्विंटल से अधिक बताया जा रहा है.
देहरादून के घंटाघर में लगी इन 6 घड़ियों को उतारने के लिए मद्रास की एक घड़ी कंपनी को ठेका दिया गया है. कंपनी के इंजीनियर सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि यह घड़ियां ब्रिटिश काल के दौरान स्विजरलैंड में बनी थी. लेकिन बदलते समय के मुताबिक इन घड़ियों को निर्माण करने वाली कम्पनी काफी समय पहले बन्द हो चुकी है. ऐसे में इन घड़ियों के कल पुर्जे बाजार में मिलना बंद हो चुके हैं. जिससे यह घड़ियां पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं.
बताया जा रहा है कि सभी घड़ियों के साथ एक-एक लाउडस्पीकर भी लगाया जाएगा. जो पुरानी घड़ियों की तरह हर 1 घंटे में अलार्म बजाएंगी. जिसकी आवाज लगभग तीन किमी. तक जाएगी.
लाला बलवीर सिंह रईस की याद में बनाया गया घंटाघर
बता दें कि देहरादून के ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण 1948 में लाला आनंद सिंह, हरि सिंह और अमर सिंह ने अपने स्वर्गीय पिता लाला बलबीर सिंह रईस की याद में बनाया था. उस समय इसकी लागत सवा लाख रुपए आंकी गई थी. आजादी के एक साल बाद 2 जुलाई 1948 में तत्कालीन गवर्नर सरोजनी नायडू ने इसकी नींव रखी थी. जिसके बाद साल 1952 में यह घंटाघर देहरादून सिटी बोर्ड के सौजन्य से बनकर तैयार हुआ था. उस समय तत्कालीन रक्षामंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस घंटाघर का उद्घाटन किया था.