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उत्तराखंड: लॉकडाउन में ढील के बाद भी नहीं मिली राहत, उद्योगों पर संकट बरकरार

उत्तराखंड में सरकार द्वारा उद्योग-धंधों में ढील दे दी गई है. इसके बावजूद स्किल्ड लेबर के राज्य से जाने के कारण उद्योगों के सामने भविष्य की चिंता खड़ी हो गई है.

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Published : Jun 20, 2020, 6:33 PM IST

Updated : Jun 20, 2020, 11:02 PM IST

उद्योगों पर छाया संकट
उद्योगों पर छाया संकट

देहरादून: उत्तराखंड में उद्योग-धंधे लॉकडाउन की ढील के बावजूद परेशानियों से नहीं उबर पाए हैं. कुछ हद तक उद्योगों में प्रोडक्शन तो शुरू हो गया है. लेकिन, स्किल्ड लेबर के राज्य से जाने के कारण उद्योगों के सामने भविष्य की बड़ी चिंता खड़ी हो गई है. देखिए खास रिपोर्ट.

उद्योगों के लिए स्किल्ड लेबर उसकी रीढ़ की हड्डी होती है. लेबर की कुशलता पर उद्योग की गुणवत्ता और क्षमता दोनों ही निर्भर करती है. स्किल्ड लेबर की इसी खासियत के चलते उद्योग संचालक इन दिनों चिंता में हैं. चिंता इसलिए भी क्योंकि लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड के सिडकुल क्षेत्र से करीब 60 फीसदी लेबर अपने-अपने राज्यों की तरफ रुख कर चुके हैं. इसमें 25 से 30 प्रतिशत तक स्किल्ड लेबर भी हैं.

उद्योगों पर छाया संकट.

पीएचडी चेम्बर ऑफ कॉमर्स के रीजनल डायरेक्टर अनिल तनेजा बताते हैं कि फिलहाल, सिडकुल क्षेत्र में 40 प्रतिशत तक स्थानीय लेबर ही मौजूद है. हालांकि, अभी उद्योगों में प्रोडक्शन भी 30 से 50 प्रतिशत के बीच ही है. ऐसे में फिलहाल दिक्कत नहीं है लेकिन, जैसे ही प्रोडक्शन बढ़ाने पर विचार होगा तो उद्योगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

पढ़ें- सर्वदलीय बैठक के बाद बोले प्रधानमंत्री - हमारी पोस्ट पर किसी का कब्जा नहीं

बता दें कि प्रदेश में सबसे ज्यादा MSME यानी लघु, माध्यम और सूक्ष्म केटेगरी के उद्योग स्थापित है. इसमें फार्मा, फूड प्रोसेसिंग, टैक्सटाइल, मेन्युफैक्चरिंग, आटोमोबाइल सेक्टर के उद्योग शामिल हैं. राज्य में कुल 55 हजार MSME उद्योग हैं. जो कि देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर, नैनीताल, अल्मोड़ा और पौड़ी में मुख्य रूप से हैं. एक अनुमान के अनुसार, राज्य में करीब 3 लाख लेबर जिसमें स्किल्ड लेबर भी शामिल है, काम करते थे. इसमें देहरादून में 60 हजार, उधम सिंह नगर में 80 हजार, हरिद्वार में करीब 80 हजार, पहाड़ी जिलों में 15 हजार और नैनीताल में 20 हजार लेबर काम करते थे. जिसमें बड़ी संख्या में श्रमिक अपने राज्यों के लिए जा चुके हैं.

पढ़ें- विश्व शरणार्थी दिवस: एक-एक व्यक्ति का योगदान मायने रखता है

स्किल्ड लेबर की जरूरत को लेकर फूड प्रोसेसिंग प्लांट संचालक अनिल मारवाह बताते हैं कि कोई भी उद्योग बिना स्किल्ड लेबर के नहीं चल सकता. अनिल मारवाह इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएसन के अध्यक्ष भी है. ऐसे में वो स्किल्ड लेबर की कमी को लेकर खासे चिंतित है. अनिल मारवाह कहते हैं कि फूड, फार्मा जैसी जरूरी उत्पाद से जुड़े उद्योगों को लॉकडाउन के दौरान काफी रियायत दे दी गई थी. लेकिन, बाकी सेक्टर्स में स्किल्ड लेबर की कमी बड़ी समस्या बन सकती है.

देहरादून: उत्तराखंड में उद्योग-धंधे लॉकडाउन की ढील के बावजूद परेशानियों से नहीं उबर पाए हैं. कुछ हद तक उद्योगों में प्रोडक्शन तो शुरू हो गया है. लेकिन, स्किल्ड लेबर के राज्य से जाने के कारण उद्योगों के सामने भविष्य की बड़ी चिंता खड़ी हो गई है. देखिए खास रिपोर्ट.

उद्योगों के लिए स्किल्ड लेबर उसकी रीढ़ की हड्डी होती है. लेबर की कुशलता पर उद्योग की गुणवत्ता और क्षमता दोनों ही निर्भर करती है. स्किल्ड लेबर की इसी खासियत के चलते उद्योग संचालक इन दिनों चिंता में हैं. चिंता इसलिए भी क्योंकि लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड के सिडकुल क्षेत्र से करीब 60 फीसदी लेबर अपने-अपने राज्यों की तरफ रुख कर चुके हैं. इसमें 25 से 30 प्रतिशत तक स्किल्ड लेबर भी हैं.

उद्योगों पर छाया संकट.

पीएचडी चेम्बर ऑफ कॉमर्स के रीजनल डायरेक्टर अनिल तनेजा बताते हैं कि फिलहाल, सिडकुल क्षेत्र में 40 प्रतिशत तक स्थानीय लेबर ही मौजूद है. हालांकि, अभी उद्योगों में प्रोडक्शन भी 30 से 50 प्रतिशत के बीच ही है. ऐसे में फिलहाल दिक्कत नहीं है लेकिन, जैसे ही प्रोडक्शन बढ़ाने पर विचार होगा तो उद्योगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

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बता दें कि प्रदेश में सबसे ज्यादा MSME यानी लघु, माध्यम और सूक्ष्म केटेगरी के उद्योग स्थापित है. इसमें फार्मा, फूड प्रोसेसिंग, टैक्सटाइल, मेन्युफैक्चरिंग, आटोमोबाइल सेक्टर के उद्योग शामिल हैं. राज्य में कुल 55 हजार MSME उद्योग हैं. जो कि देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर, नैनीताल, अल्मोड़ा और पौड़ी में मुख्य रूप से हैं. एक अनुमान के अनुसार, राज्य में करीब 3 लाख लेबर जिसमें स्किल्ड लेबर भी शामिल है, काम करते थे. इसमें देहरादून में 60 हजार, उधम सिंह नगर में 80 हजार, हरिद्वार में करीब 80 हजार, पहाड़ी जिलों में 15 हजार और नैनीताल में 20 हजार लेबर काम करते थे. जिसमें बड़ी संख्या में श्रमिक अपने राज्यों के लिए जा चुके हैं.

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स्किल्ड लेबर की जरूरत को लेकर फूड प्रोसेसिंग प्लांट संचालक अनिल मारवाह बताते हैं कि कोई भी उद्योग बिना स्किल्ड लेबर के नहीं चल सकता. अनिल मारवाह इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएसन के अध्यक्ष भी है. ऐसे में वो स्किल्ड लेबर की कमी को लेकर खासे चिंतित है. अनिल मारवाह कहते हैं कि फूड, फार्मा जैसी जरूरी उत्पाद से जुड़े उद्योगों को लॉकडाउन के दौरान काफी रियायत दे दी गई थी. लेकिन, बाकी सेक्टर्स में स्किल्ड लेबर की कमी बड़ी समस्या बन सकती है.

Last Updated : Jun 20, 2020, 11:02 PM IST
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