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उत्तराखंड में बाहरी लोगों के खरीदी जमीनों की मैपिंग करना कितना आसान? जानिए पेचीदगियां - Uttarakhand Land Law

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 3 hours ago

Updated : 1 hours ago

Uttarakhand Land Law उत्तराखंड में लंबे समय से हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून लागू किए जाने की मांग चली आ रही है. जिसको देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में एक बड़ा निर्णय लिया है. जिसके तहत नियमों को ताक पर रखकर बाहरी लोगों की ओर से प्रदेश में खरीदी गई जमीनों की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी. ऐसे में प्रावधानों के विपरीत जो जमीन पाई जाएगी, उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाएगा. भले ही राज्य सरकार ने एक बड़ा निर्णय लिया हो, लेकिन प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां और डाटाबेस बड़ी चुनौती बन सकती है? पढ़िए खास खबर.

Uttarakhand Land Law
उत्तराखंड में जमीन मैपिंग (फोटो- ETV Bharat GFX)

देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही सख्त भू कानून लागू किए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है. इसको लेकर लोग आवाज मुखर कर आंदोलन करते भी दिख जाते हैं. उत्तराखंड में भू कानून या जमीन को लेकर बात की जाए तो समय-समय पर कुछ बदलाव किए गए, लेकिन हिमाचल की तर्ज पर सख्त कानून नहीं लाया सका. ऐसे में सीएम धामी ने मजबूत भू कानून लाने की बात कहकर इस पर जोर दे दिया है.

उत्तराखंड में साल 2003 में लागू किया गया था भू कानून अधिनियम: उत्तराखंड राज्य बनने के बाद साल 2003 में तात्कालिक मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने बड़ा कदम उठाते हुए भू कानून अधिनियम को लागू किया था. उस दौरान नगर निगम क्षेत्र से बाहर कृषि भूमि की खरीद के लिए एक लिमिट निर्धारित की थी.

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पहाड़ों में जमीन (फोटो सोर्स- ETV Bharat)

साल 2007 में किया गया बदलाव: जिसके तहत कोई भी व्यक्ति 500 वर्ग मीटर भूमि तक जमीन खरीद सकती थी, लेकिन समय के साथ इस भू कानून को और सख्त करने की मांग चलती आ रही है. जिसके चलते साल 2007 में इसे और सख्त करते हुए कृषि भूमि खरीदने की लिमिट को 250 वर्ग मीटर कर दिया गया.

साल 2018 में हुआ संशोधन: वहीं, साल 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस भू कानून में संशोधन कर दिया. साथ ही उस दौरान एक अध्यादेश लाया गया. जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन कर दो और धाराएं जोड़ दी गईं. इन दोनों धाराओं 143 और 154 के तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया.

लिहाजा, कोई भी व्यक्ति कभी भी कितनी भी जमीनें खरीद सकता है, लेकिन आवास बनाने के लिए अभी भी कृषि भूमि के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की ही सीमा है. ऐसे में अब धामी सरकार ने प्रदेश में सख्त भू कानून लागू करने का दावा किया है.

सीएम धामी ने किया ये दावा: हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रेस वार्ता कर इस बात को कहा है कि आगामी विधानसभा बजट सत्र के दौरान धामी सरकार सख्त भू कानून लाने जा रही है. उससे पहले, नगर निगम क्षेत्र से बाहर नियमों को ताक पर रखकर 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदा है, उन सभी का विवरण तैयार किया जाएगा.

इसके साथ ही जो लोग जिन वजहों से कृषि भूमि को खरीदा था, उसके इतर अगर कोई काम कर रहे हैं, उन लोगों का भी विवरण तैयार किया जाएगा. विवरण तैयार होने के बाद जितने भी ऐसे मामले सामने आएंगे, उन सभी मामलों से संबंधित जमीनों को राज्य सरकार में निहित कर दिया जाएगा.

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सीएम धामी का बयान (फोटो- ETV Bharat GFX)

इन जमीनों का विवरण तैयार करना टेढ़ी खीर: उत्तराखंड सरकार ने भले ही 250 वर्ग मीटर भूमि खरीद का जो प्रावधान है, उन प्रावधानों से इतर खरीदी गई जमीनों का विवरण तैयार करने की बात कही हो, लेकिन ऐसी जमीनों का विवरण तैयार करना राज्य सरकार के लिए एक टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. क्योंकि, ऐसी जमीनों को चिन्हित करना राज्य सरकार के लिए आसान नहीं होगा.

हालांकि, अगर सरकार इस तरह की जमीनों का विवरण तैयार करने के लिए सरकारी अमलों को जुटाती है तो उसमें भी तमाम समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. जैसे कि इन जमीनों का विवरण तैयार करने में सरकारी अमले को काफी ज्यादा समय लग सकता है. इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के नाम से जमीन खरीदा होगा तो ये भी हो सकता है कि उसकी पत्नी केयर ऑफ में अपने पिता का नाम लिखवाया हो.

एडवोकेट एनके सरीन ने बताई चुनौतियां: इस पूरे मामले पर एडवोकेट एनके सरीन का कहना है कि जमीनों का विवरण तैयार करना या फिर जांच करना राज्य सरकार के लिए आसान नहीं होगा. हालांकि, भू कानून लागू होने के बाद से ही तमाम जमीनों के विवरण ऑनलाइन किए जा चुके हैं, लेकिन समस्या एक बड़ी यही है कि किस व्यक्ति ने अपने परिवार के नाम से कितनी जमीन खरीदी है? इसका पता लगाना काफी मुश्किल काम है.

ऐसा भी हो सकता है कि किसी व्यक्ति ने जमीन खरीदी हो और फिर उसकी पत्नी ने भी जमीन खरीदी, लेकिन उसके केयर ऑफ में उसके पिता का नाम हो. ऐसे में उसका पता लगाना काफी मुश्किल हो सकता है. ये भी हो सकता है कि किसी ने जमीन परिवार के नाम से खरीदी हो, लेकिन वो जमीन किसी और को बेच दी गई हो.

एडवोकेट सरीन ने बताया कि इन सभी का विवरण तैयार करने के लिए न सिर्फ काफी समय लगेगा बल्कि, सरकार का काफी व्यय भी इसमें होगा, लेकिन राज्य सरकार ऐसा करके क्या करना चाह रही है, ये अभी राज्य सरकार को खुद ही नहीं पता है. क्योंकि, अगर सरकार ने तमाम लोगों की जानकारियां भी एकत्र कर लेती है, लेकिन अगर उस जमीन का अब कोई और मालिक बन गया है तो फिर करवाई किस पर की जाएगी?

इससे पता लगाना सरकार के लिए होगा आसान: एडवोकेट एनके सरीन ने बताया कि किसी भी जमीन को जिस उद्देश्य के लिए खरीदा गया था, अगर उसके इतर उस जमीन का मिसयूज किया जा रहा है तो उसको ढूंढना राज्य सरकार के लिए काफी आसान होगा. ऐसे में उद्देश्य के इतर जमीन का इस्तेमाल करने वाले शिकंजे में आ सकते हैं.

क्या बोले वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत? वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि राज्य सरकार 250 वर्ग मीटर कृषि भूमि के प्रावधान के इधर खरीदी गई जमीनों का विवरण तैयार करने की बात कह रही है, लेकिन जिन लोगों ने भू कानून बनने के बाद जमीनों को खरीद लिया, लेकिन अब वो जमीन या वो क्षेत्र नगर निकाय क्षेत्र में आ गए हैं.

ऐसे में उन जमीनों पर भू कानून काम नहीं करेगा. क्योंकि, भू कानून में यह प्रावधान है कि नगर निकाय क्षेत्र से बाहर की सभी भूमि पर ही अन्य लोगों की ओर से 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने का प्रावधान है. ऐसे में सरकार के लिए ये भी बड़ी चुनौती होगी कि जिन लोगों ने खुद और अपने परिवार के नाम पर पहले जमीन खरीदी और अब वो जमीन है. नगर निकाय क्षेत्र में आ गई है तो फिर उन पर सरकार का क्या स्टैंड रहेगा?

जमीन खरीदने के बाद वक्त लैंड यूज की जानकारी नहीं बदली जा सकती: वहीं, कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि कई बार सरकार जनहित और जन सरोकारों को देखते हुए अपने ही बनाए हुए कानून में संशोधन करती है. लिहाजा, उत्तराखंड सरकार भू कानून में एक बड़ा संशोधन करने जा रही है. साथ ही कहा कि भू कानून में ये प्रावधान है कि जिस यूज के लिए जमीन खरीदी गई है, उसके दो साल के भीतर उससे संबंधित निर्माण कार्य हो जाना चाहिए.

साथ ही जमीन खरीदते वक्त जो लैंड यूज बताया गया था, उसको कभी भी नहीं बदला जा सकता है, लेकिन अगर कोई बताए गए लैंड यूज के इतर लैंड का इस्तेमाल कर रहा है तो उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाएगा. इसी तरह 250 वर्ग मीटर की भूमि एक ही नाम से कई बार या फिर फैमिली के नाम से ली गई है तो उन जमीनों को भी सरकार में निहित किया जाएगा.

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देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही सख्त भू कानून लागू किए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है. इसको लेकर लोग आवाज मुखर कर आंदोलन करते भी दिख जाते हैं. उत्तराखंड में भू कानून या जमीन को लेकर बात की जाए तो समय-समय पर कुछ बदलाव किए गए, लेकिन हिमाचल की तर्ज पर सख्त कानून नहीं लाया सका. ऐसे में सीएम धामी ने मजबूत भू कानून लाने की बात कहकर इस पर जोर दे दिया है.

उत्तराखंड में साल 2003 में लागू किया गया था भू कानून अधिनियम: उत्तराखंड राज्य बनने के बाद साल 2003 में तात्कालिक मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने बड़ा कदम उठाते हुए भू कानून अधिनियम को लागू किया था. उस दौरान नगर निगम क्षेत्र से बाहर कृषि भूमि की खरीद के लिए एक लिमिट निर्धारित की थी.

Uttarakhand Land Law
पहाड़ों में जमीन (फोटो सोर्स- ETV Bharat)

साल 2007 में किया गया बदलाव: जिसके तहत कोई भी व्यक्ति 500 वर्ग मीटर भूमि तक जमीन खरीद सकती थी, लेकिन समय के साथ इस भू कानून को और सख्त करने की मांग चलती आ रही है. जिसके चलते साल 2007 में इसे और सख्त करते हुए कृषि भूमि खरीदने की लिमिट को 250 वर्ग मीटर कर दिया गया.

साल 2018 में हुआ संशोधन: वहीं, साल 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस भू कानून में संशोधन कर दिया. साथ ही उस दौरान एक अध्यादेश लाया गया. जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन कर दो और धाराएं जोड़ दी गईं. इन दोनों धाराओं 143 और 154 के तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया.

लिहाजा, कोई भी व्यक्ति कभी भी कितनी भी जमीनें खरीद सकता है, लेकिन आवास बनाने के लिए अभी भी कृषि भूमि के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की ही सीमा है. ऐसे में अब धामी सरकार ने प्रदेश में सख्त भू कानून लागू करने का दावा किया है.

सीएम धामी ने किया ये दावा: हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रेस वार्ता कर इस बात को कहा है कि आगामी विधानसभा बजट सत्र के दौरान धामी सरकार सख्त भू कानून लाने जा रही है. उससे पहले, नगर निगम क्षेत्र से बाहर नियमों को ताक पर रखकर 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदा है, उन सभी का विवरण तैयार किया जाएगा.

इसके साथ ही जो लोग जिन वजहों से कृषि भूमि को खरीदा था, उसके इतर अगर कोई काम कर रहे हैं, उन लोगों का भी विवरण तैयार किया जाएगा. विवरण तैयार होने के बाद जितने भी ऐसे मामले सामने आएंगे, उन सभी मामलों से संबंधित जमीनों को राज्य सरकार में निहित कर दिया जाएगा.

Uttarakhand Land Law
सीएम धामी का बयान (फोटो- ETV Bharat GFX)

इन जमीनों का विवरण तैयार करना टेढ़ी खीर: उत्तराखंड सरकार ने भले ही 250 वर्ग मीटर भूमि खरीद का जो प्रावधान है, उन प्रावधानों से इतर खरीदी गई जमीनों का विवरण तैयार करने की बात कही हो, लेकिन ऐसी जमीनों का विवरण तैयार करना राज्य सरकार के लिए एक टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. क्योंकि, ऐसी जमीनों को चिन्हित करना राज्य सरकार के लिए आसान नहीं होगा.

हालांकि, अगर सरकार इस तरह की जमीनों का विवरण तैयार करने के लिए सरकारी अमलों को जुटाती है तो उसमें भी तमाम समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. जैसे कि इन जमीनों का विवरण तैयार करने में सरकारी अमले को काफी ज्यादा समय लग सकता है. इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के नाम से जमीन खरीदा होगा तो ये भी हो सकता है कि उसकी पत्नी केयर ऑफ में अपने पिता का नाम लिखवाया हो.

एडवोकेट एनके सरीन ने बताई चुनौतियां: इस पूरे मामले पर एडवोकेट एनके सरीन का कहना है कि जमीनों का विवरण तैयार करना या फिर जांच करना राज्य सरकार के लिए आसान नहीं होगा. हालांकि, भू कानून लागू होने के बाद से ही तमाम जमीनों के विवरण ऑनलाइन किए जा चुके हैं, लेकिन समस्या एक बड़ी यही है कि किस व्यक्ति ने अपने परिवार के नाम से कितनी जमीन खरीदी है? इसका पता लगाना काफी मुश्किल काम है.

ऐसा भी हो सकता है कि किसी व्यक्ति ने जमीन खरीदी हो और फिर उसकी पत्नी ने भी जमीन खरीदी, लेकिन उसके केयर ऑफ में उसके पिता का नाम हो. ऐसे में उसका पता लगाना काफी मुश्किल हो सकता है. ये भी हो सकता है कि किसी ने जमीन परिवार के नाम से खरीदी हो, लेकिन वो जमीन किसी और को बेच दी गई हो.

एडवोकेट सरीन ने बताया कि इन सभी का विवरण तैयार करने के लिए न सिर्फ काफी समय लगेगा बल्कि, सरकार का काफी व्यय भी इसमें होगा, लेकिन राज्य सरकार ऐसा करके क्या करना चाह रही है, ये अभी राज्य सरकार को खुद ही नहीं पता है. क्योंकि, अगर सरकार ने तमाम लोगों की जानकारियां भी एकत्र कर लेती है, लेकिन अगर उस जमीन का अब कोई और मालिक बन गया है तो फिर करवाई किस पर की जाएगी?

इससे पता लगाना सरकार के लिए होगा आसान: एडवोकेट एनके सरीन ने बताया कि किसी भी जमीन को जिस उद्देश्य के लिए खरीदा गया था, अगर उसके इतर उस जमीन का मिसयूज किया जा रहा है तो उसको ढूंढना राज्य सरकार के लिए काफी आसान होगा. ऐसे में उद्देश्य के इतर जमीन का इस्तेमाल करने वाले शिकंजे में आ सकते हैं.

क्या बोले वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत? वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि राज्य सरकार 250 वर्ग मीटर कृषि भूमि के प्रावधान के इधर खरीदी गई जमीनों का विवरण तैयार करने की बात कह रही है, लेकिन जिन लोगों ने भू कानून बनने के बाद जमीनों को खरीद लिया, लेकिन अब वो जमीन या वो क्षेत्र नगर निकाय क्षेत्र में आ गए हैं.

ऐसे में उन जमीनों पर भू कानून काम नहीं करेगा. क्योंकि, भू कानून में यह प्रावधान है कि नगर निकाय क्षेत्र से बाहर की सभी भूमि पर ही अन्य लोगों की ओर से 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने का प्रावधान है. ऐसे में सरकार के लिए ये भी बड़ी चुनौती होगी कि जिन लोगों ने खुद और अपने परिवार के नाम पर पहले जमीन खरीदी और अब वो जमीन है. नगर निकाय क्षेत्र में आ गई है तो फिर उन पर सरकार का क्या स्टैंड रहेगा?

जमीन खरीदने के बाद वक्त लैंड यूज की जानकारी नहीं बदली जा सकती: वहीं, कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि कई बार सरकार जनहित और जन सरोकारों को देखते हुए अपने ही बनाए हुए कानून में संशोधन करती है. लिहाजा, उत्तराखंड सरकार भू कानून में एक बड़ा संशोधन करने जा रही है. साथ ही कहा कि भू कानून में ये प्रावधान है कि जिस यूज के लिए जमीन खरीदी गई है, उसके दो साल के भीतर उससे संबंधित निर्माण कार्य हो जाना चाहिए.

साथ ही जमीन खरीदते वक्त जो लैंड यूज बताया गया था, उसको कभी भी नहीं बदला जा सकता है, लेकिन अगर कोई बताए गए लैंड यूज के इतर लैंड का इस्तेमाल कर रहा है तो उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाएगा. इसी तरह 250 वर्ग मीटर की भूमि एक ही नाम से कई बार या फिर फैमिली के नाम से ली गई है तो उन जमीनों को भी सरकार में निहित किया जाएगा.

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