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देवभूमि में सुरक्षित नहीं 'देवियां', अपराधों में निशाने पर दलित महिलाएं - news uttarakhand

उत्तराखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2016 में 9 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था. जबकि, साल 2017 में 16 दलित महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुई.

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Published : May 9, 2019, 11:48 PM IST

Updated : May 10, 2019, 12:28 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में दलित युवक की हत्या के बाद से सूबे की सियायत गरमा गई है. लेकिन इस हत्या से जन्मा प्रश्न जितना दिखता है ये मसला उससे ज्यादा गंभीर है. ये बात हम नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े बयां कर रहे हैं कि दलित विरोधी अपराधों में आज भी निशाने पर दलित महिलाएं ही हैं. इतना ही नहीं महिलाओं से हो रहे अपराधों में भी दलित महिलाओं के शोषण का तुलनात्मक ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. दलितों को लेकर बढ़ रहे अपराधों पर देखिए ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट.

दलित महिलाओं से अपराध में हुई बढ़ोतरी

बता दें कि उत्तराखंड में कुल आबादी का करीब 18 प्रतिशत दलित समाज का है. इस लिहाज से अनुसूचित जाति की कुल आबादी 18,92,516 है. आंकड़ों पर हम इतना जोर इसलिए दे रहे है क्योंकि हाल ही में दलित युवक जितेंद्र की हत्या के बाद इसी 18 प्रतिशत आबादी की सुरक्षा और बराबरी का दर्जा देने को लेकर एक बहस शुरू हो गई है. लेकिन यह मसला केवल जितेंद्र की हत्या का नहीं है. बल्कि बहस इस बात को लेकर है कि क्या दलित समाज खुद को सवर्णों के बीच महफूज समझ रहा है.

पढ़ें- ब्रिटिश कालीन इस कॉलेज का रहा है समृद्ध इतिहास, आज झेल रहा उपेक्षा का दंश

इस बात तस्दीक भी आंकड़े ही कर रहे हैं जो दलितों के खिलाफ अपराधों को लेकर रिकॉर्ड किए गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि खुद को सुशिक्षित बताने वाले समाज में भी दलितों के खिलाफ अपराध के मामले दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं और सबसे ज्यादा चिंता की बात तो ये है कि आज भी दलित महिलाएं इन अपराधों में सबसे ज्यादा निशाने पर हैं.

उत्तराखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2016 में 9 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था. जबकि साल 2017 में 16 दलित महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुई. वहीं, साल 2018 में भी 13 दलित महिलाओं की आबरू लूटी गई. जबकि, अनुसूचित जाति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में कुल 10 मामले समाने आए हैं. जिसमें दलित महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए थे.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में भी पिछले एक दशक के दौरान रिकॉर्ड आंकड़ों में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ती हुई दिखाई दी है. देशभर में जहां साल 2006 में 03 मामले हर दिन दुष्कर्म के सामने आते थे, तो वहीं साल 2017 आते-आते ये आंकड़ा दोगना हो गया और हर दिन 6 दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले रिकॉर्ड किये जाने लगे.

पढ़ें- कुपोषण की गिरफ्त में देवभूमि के नौनिहाल, पोषाहार की योजनाओं पर खड़े हुए सवाल

खास बात यह है कि उत्तराखंड में कुल दलित विरोधी अपराधों में भी कुछ खास कमी नहीं आ पा रही है. साल 2016 में कुल 114 मामले आए, तो साल 2017 में 126 मामले दलित विरोधी अपराध रिकॉर्ड किए गए. इसी तरह साल 2018 में कुल 96 मामले ऐसे थे. जो दलित अपराध से जुड़े थे. हालांकि, अपराधों को लेकर पुलिस विभाग का मानना है कि ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की जाती है और फौरन मुकदमा पंजीकृत कर मामले की जांच होती है.

वहीं, दलितों के खिलाफ अपराध के मामले पुलिस तक तो पहुंचते है. लेकिन दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा न मिलना और भेदभाव करने जैसी शिकायतें लगातार अनुसूचित जाति आयोग के पास आती रहती है. आंकड़ों के अनुसार दलित महिलाओं ने आयोग में पिछले साल कुल 10 मामले दर्ज करवाए हैं. जबकि, कुल शिकायतों की संख्या 311 है. इन शिकायतों में पदोन्नति और नियुक्ति न मिलना, तबादले में सही न्याय ना मिलना, जमीनों की शिकायतें और महिलाओं पर अत्याचार संबंधी शिकायतें शामिल है. अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल बताते हैं कि आयोग में कई शिकायतें आती है, जिनके निस्तारण को लेकर आयोग त्वरित कार्रवाई करता है और उनके निस्तारण के सभी प्रयास किए जाते हैं.

बहरहाल, जौनपुर के श्रीकोट गांव में हुए दलित युवक के हत्याकांड मामले के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से लेकर प्रदेश सरकार और पुलिस मामले को सुलझाने में जुट गई है. लेकिन हकीकत ये भी है कि ऐसे मामलों के उजागर होने से पहले न तो सरकार, न पुलिस और न ही कोई दूसरी एजेंसी इन्हें प्राथमिकता देती है. शायद यही कारण है कि देश की आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी दलित समाज को बराबरी का दर्जा नहीं मिल पा रहा है. ये हालात तब है जब देश के संविधान में अनुसूचित जाति वर्ग के खासतौर पर अलग कानून बनाए गए हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में दलित युवक की हत्या के बाद से सूबे की सियायत गरमा गई है. लेकिन इस हत्या से जन्मा प्रश्न जितना दिखता है ये मसला उससे ज्यादा गंभीर है. ये बात हम नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े बयां कर रहे हैं कि दलित विरोधी अपराधों में आज भी निशाने पर दलित महिलाएं ही हैं. इतना ही नहीं महिलाओं से हो रहे अपराधों में भी दलित महिलाओं के शोषण का तुलनात्मक ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. दलितों को लेकर बढ़ रहे अपराधों पर देखिए ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट.

दलित महिलाओं से अपराध में हुई बढ़ोतरी

बता दें कि उत्तराखंड में कुल आबादी का करीब 18 प्रतिशत दलित समाज का है. इस लिहाज से अनुसूचित जाति की कुल आबादी 18,92,516 है. आंकड़ों पर हम इतना जोर इसलिए दे रहे है क्योंकि हाल ही में दलित युवक जितेंद्र की हत्या के बाद इसी 18 प्रतिशत आबादी की सुरक्षा और बराबरी का दर्जा देने को लेकर एक बहस शुरू हो गई है. लेकिन यह मसला केवल जितेंद्र की हत्या का नहीं है. बल्कि बहस इस बात को लेकर है कि क्या दलित समाज खुद को सवर्णों के बीच महफूज समझ रहा है.

पढ़ें- ब्रिटिश कालीन इस कॉलेज का रहा है समृद्ध इतिहास, आज झेल रहा उपेक्षा का दंश

इस बात तस्दीक भी आंकड़े ही कर रहे हैं जो दलितों के खिलाफ अपराधों को लेकर रिकॉर्ड किए गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि खुद को सुशिक्षित बताने वाले समाज में भी दलितों के खिलाफ अपराध के मामले दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं और सबसे ज्यादा चिंता की बात तो ये है कि आज भी दलित महिलाएं इन अपराधों में सबसे ज्यादा निशाने पर हैं.

उत्तराखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2016 में 9 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था. जबकि साल 2017 में 16 दलित महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुई. वहीं, साल 2018 में भी 13 दलित महिलाओं की आबरू लूटी गई. जबकि, अनुसूचित जाति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में कुल 10 मामले समाने आए हैं. जिसमें दलित महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए थे.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में भी पिछले एक दशक के दौरान रिकॉर्ड आंकड़ों में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ती हुई दिखाई दी है. देशभर में जहां साल 2006 में 03 मामले हर दिन दुष्कर्म के सामने आते थे, तो वहीं साल 2017 आते-आते ये आंकड़ा दोगना हो गया और हर दिन 6 दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले रिकॉर्ड किये जाने लगे.

पढ़ें- कुपोषण की गिरफ्त में देवभूमि के नौनिहाल, पोषाहार की योजनाओं पर खड़े हुए सवाल

खास बात यह है कि उत्तराखंड में कुल दलित विरोधी अपराधों में भी कुछ खास कमी नहीं आ पा रही है. साल 2016 में कुल 114 मामले आए, तो साल 2017 में 126 मामले दलित विरोधी अपराध रिकॉर्ड किए गए. इसी तरह साल 2018 में कुल 96 मामले ऐसे थे. जो दलित अपराध से जुड़े थे. हालांकि, अपराधों को लेकर पुलिस विभाग का मानना है कि ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की जाती है और फौरन मुकदमा पंजीकृत कर मामले की जांच होती है.

वहीं, दलितों के खिलाफ अपराध के मामले पुलिस तक तो पहुंचते है. लेकिन दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा न मिलना और भेदभाव करने जैसी शिकायतें लगातार अनुसूचित जाति आयोग के पास आती रहती है. आंकड़ों के अनुसार दलित महिलाओं ने आयोग में पिछले साल कुल 10 मामले दर्ज करवाए हैं. जबकि, कुल शिकायतों की संख्या 311 है. इन शिकायतों में पदोन्नति और नियुक्ति न मिलना, तबादले में सही न्याय ना मिलना, जमीनों की शिकायतें और महिलाओं पर अत्याचार संबंधी शिकायतें शामिल है. अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल बताते हैं कि आयोग में कई शिकायतें आती है, जिनके निस्तारण को लेकर आयोग त्वरित कार्रवाई करता है और उनके निस्तारण के सभी प्रयास किए जाते हैं.

बहरहाल, जौनपुर के श्रीकोट गांव में हुए दलित युवक के हत्याकांड मामले के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से लेकर प्रदेश सरकार और पुलिस मामले को सुलझाने में जुट गई है. लेकिन हकीकत ये भी है कि ऐसे मामलों के उजागर होने से पहले न तो सरकार, न पुलिस और न ही कोई दूसरी एजेंसी इन्हें प्राथमिकता देती है. शायद यही कारण है कि देश की आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी दलित समाज को बराबरी का दर्जा नहीं मिल पा रहा है. ये हालात तब है जब देश के संविधान में अनुसूचित जाति वर्ग के खासतौर पर अलग कानून बनाए गए हैं.

Intro:Special Report.....

उत्तराखंड में दलित युवक की हत्या से जन्मा दलित सुरक्षा का प्रश्न जितना दिखता है उससे कहीं ज्यादा गंभीर है... चिंता इस बात की है कि दलित विरोधी अपराधों में आज भी निशाना सबसे ज्यादा दलित महिलायें ही हैं। आंकड़े बताते हैं कि दलितों के खिलाफ हो रहे अपराधों में कैसे दलित महिलाओं के शोषण का ग्राफ तुलनात्मक बाकी अपराधों से ज्यादा है... दलितों को लेकर बढ़ रहे अपराधों पर ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट....


Body:उत्तराखंड में कुल आबादी का करीब 18% दलित समाज निवास करता है..इस लिहाज से अनुसूचित जाति की कुल आबादी 1892516 है..ये बात हम आपको इसलिए याद दिला रहे हैं क्योंकि हाल ही में दलित युवक जितेंद्र की हत्या के बाद इसी 18% आबादी की सुरक्षा और बराबरी का दर्जा देने को लेकर सामाजिक सोच पर बहस शुरू हो गई है। सच यह है कि मामला केवल जितेंद्र की हत्या का नहीं है बल्कि इस बात को लेकर है कि क्या दलित समाज खुद को सवर्णों के बीच महफूज समझ रहा है... इस बात का जवाब भी वह आंकड़े ही है जो दलितों के खिलाफ अपराधों को लेकर रिकॉर्ड किए गए हैं.. आंकड़े बताते हैं कि पढ़े लिखे समाज में भी दलितों के खिलाफ अपराध के मामले कम नहीं हो रहे हैं और सबसे ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि आज भी दलित महिलाएं ही अपराधों के लिहाज से सबसे ज्यादा निशाने पर है।

उत्तराखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2016 में 9 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले सामने आए। जबकि 2017 में 16 दलित महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुई। 2018 में भी 13 दलित महिलाओं को वहशियों का निशाना बनना पड़ा। उधर अनुसूचित जाति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2017 18 में कुल 10 मामले ऐसे आए जिस में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए थे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो मे भी पिछले एक दशक के दौरान रिकॉर्ड आंकड़ों में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ती हुई दिखाई दी है। देशभर में जहां 2006 में 03 मामले हर दिन दुष्कर्म के सामने आते थे तो वहीं 2017 आते आते ये आंकड़ा दुगना हो गया और हर दिन 6 दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले रिकॉर्ड किये जाने लगे।

खास बात यह है कि उत्तराखंड में कुल दलित विरोधी अपराधों में भी कुछ खास कमी नहीं आ पा रही है। साल 2016 में कुल 114 मामले आए तो साल 2017 में 126 मामले दलित विरोधी अपराध के रिकॉर्ड किए गए। इसी तरह साल 2018 में कुल 96 मामले ऐसे थे जो दलितों के साथ अपराध से जुड़े थे। हालांकि अपराधों को लेकर पुलिस विभाग का मानना है कि ऐसे मामले में त्वरित कार्यवाही की जाती है और फौरन मुकदमा पंजीकृत कर मामले की जांच पूरी की जाती है।

बाईट अशोक कुमार पुलिस महानिदेशक कानून-व्यवस्था

दलितों के खिलाफ अपराध के मामले तो पुलिस में पहुंचते हैं लेकिन दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा ना मिलना और भेदभाव करने जैसी शिकायतें अनुसूचित जाति आयोग में भी की जाती है। आंकड़ों के अनुसार महिलाओं ने आयोग में पिछले साल कुल 10 मामले दर्ज करवाए हैं जबकि कुल शिकायतों की संख्या 311 है। इन शिकायतों में पदोन्नति और नियुक्ति ना मिलना तबादले में सही न्याय ना मिलना जमीनों की शिकायतें और महिलाओं पर अत्याचार संबंधी शिकायतें शामिल है। अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल बताते हैं कि आयोग में कई शिकायतें आती है जिन के निस्तारण को लेकर आयोग त्वरित कार्यवाही करता है और उनके निस्तारण के सभी प्रयास किए जाते हैं।

बाइट जी आर नौटियाल सचिव अनुसूचित जाति आयोग


Conclusion:जौनपुर के श्रीकोट गांव में हुए दलित युवक के हत्याकांड मामले के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से लेकर प्रदेश सरकार और पुलिस मामले को सुलझाने में जुट गई है लेकिन हकीकत यह भी है कि ऐसे मामलों के उजागर होने से पहले ना तो सरकार ना पुलिस और ना ही कोई दूसरी एजेंसी इन्हें प्राथमिकता देती है और शायद यही कारण है कि दलित समाज को देश की आजादी के इतने साल बाद भी बराबरी का दर्जा नहीं मिल पा रहा है। यह हाल तब है जबकि देश में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए खासतौर पर संविधान में अलग से कानून बनाए गए हैं।
Last Updated : May 10, 2019, 12:28 PM IST
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