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पिछले साल की तुलना में पहाड़ों में तेजी से फैला कोरोना संक्रमण, जानें वजह

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Published : May 14, 2021, 4:03 PM IST

Updated : May 14, 2021, 6:04 PM IST

पहाड़ों में सबसे ज्यादा प्रभावित टिहरी, पौड़ी और उत्तरकाशी है. जबकि पिथौरागढ़, बागेश्वर और रुद्रप्रयाग में मामले तुलनात्मक रूप से कम हैं. स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि पर्वतीय जनपदों में जांच की रफ्तार बेहद सुस्त है और संक्रमण दर बढ़ रही है.

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देहरादून: कोरोना की दूसरी लहर उत्तराखंड के लिए घातक साबित हुई है. प्रदेश में रोज सात से आठ हजार कोरोना के नए मामले सामने आ रहे है. प्रदेश में सैंपल पॉजिटिव दर भी 6.25% है. वहीं इस बार सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि उत्तराखंड में कोरोना ने मैदानी जिलों के साथ पहाड़ी जनपदों में भी कहर ढाया है. शुरुआती चरण में मैदानी जिलों में ही ज्यादा संक्रमित मिल रहे थे. लेकिन, अब पहाड़ों में भी तेजी से मामले बढ़ रहे हैं. एक से दस मई के बीच की स्थिति देखें तो प्रदेश में 27.6 फीसद मामले नौ पर्वतीय जनपदों में आए हैं. ऐसे में पहाड़ पर पहले से ही चौपट स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना के आगे दम तोड़ दिया है, जिससे सरकार की मुश्किलें और बढ़ गई है. इसी पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

पहाड़ों में तेजी से फैला कोरोना संक्रमण.

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पहले से ही चरमराई हुई स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना आगे घुटने टेक दिए है. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहले ही पहाड़ों के गांव वीरान हो चुके है. ऊपर से कोरोना की मार ने उन्हें बुरी तरह से तोड़ दिया है. ऐसे में पहाड़ों पर रफ्तार पकड़ते कोरोना ने चिंता बढ़ा दी है. क्योंकि मैदान के मुकाबले वहां न तो स्वास्थ्य सुविधाएं और न ही कोरोना से लड़ने के कोई खास इंतजाम. इन परिस्थितियों में पहाड़ों के दुरस्थ गांव में न तो टेस्ट हो पा रहे है और न ही मरीजों को इलाज मिल पा रहा है. यदि कोरोना इसी रफ्तार से पहाड़ पर चढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में स्थिति और विकट हो जाएगी.

पढ़ें- उत्तराखंड में भी ब्लैक फंगस की दस्तक, राजधानी में एक मरीज में हुई पुष्टि, दो संदिग्ध

प्रवासियों के लौटने से प्रदेश में बढ़े संक्रमण के मामले

कोरोना की पहली लहर साल 2020 में बड़ी संख्या में प्रवासी लॉकडाउन लगने के बाद अपने घरों से लौटे थे. उस दौरान प्रदेश में कोरोना के मामले एकाएक बढ़े थे.इस बार भी कोरोना के रफ्तार पकड़ने के बाद कई राज्यों ने अपने यहां कोरोना कर्फ्यू और लॉकडाउन लगाया. ऐसे में प्रवासियों ने दोबारा अपने गांव का रूख किया है. पहाड़ों में बड़ी संख्या में प्रवासी लौटे, लेकिन इसी बार प्रदेश में स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो गई.

एक मई के बाद प्रवासियों के उत्तराखंड वापस आने का सिलसिला शुरू हुआ. जिसके बाद से ही प्रदेश में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई. आंकड़े भी इसकी तस्दीक कर रहे हैं. 1 मई से पहले प्रदेश में रोज चार हजार के कम मामले सामने आ रहे थे. वहीं एक मई के बाद ये संख्या 5000 से 8000 के बीच हो गई. यहां गौर करने वाली बात ये है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार प्रदेश में प्रवासी काफी कम संख्या में आए हैं. कोरोना की पहली लहर में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब तीन लाख प्रवासी वापस आए थे. लेकिन ये आंकड़ा पहले 30 प्रतिशत कम है.

सुधार की जरूरत

चिंता इस इस बात को लेकर है कि पहाड़ में स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा भी उतना सुदृढ़ नहीं है. ऐसे में हालात बिगड़े तो जनहानि काफी ज्यादा होगी. पहाड़ों में जांच अब भी बेहद कम की जा रही है. कई जिलों में तो यह हजार सैंपल प्रतिदिन भी नहीं है. ऐसे में जांच में तेजी लाने की आवश्यकता है. पहाड़ में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, उसे रोकने के लिए एक ठोस रणनीति की जरूरत है. हालांकि सरकार ने अपने स्तर कुछ कदम भी उठाए हैं.

पढ़ें- उत्तराखंड में 50% कोविड मरीजों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के अंदर : ऑडिट कमेटी

मोबाइल टेस्टिंग वैन भेजी जाएगी

उत्तराखंड के मुख्य सचिव ओम प्रकाश की माने तो पहाड़ों के दुरुस्थ ग्रामीण इलाकों में टेस्टिंग वैन चलाने का फैसला लिया है, जिसके लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल भी तैयार कर दिया है. जल्द ही प्रदेश के दूरस्थ और सीमांत इलाकों में मोबाइल टेस्टिंग वैन पहुंच जाएगी. इसके बाद उन्हें कोविड -19 टेस्ट के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा.

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इसको लेकर अपनी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि जिस तरह की रिपोर्ट मिल रही है, उसके देखकर यहीं लगाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी संक्रमण पहुंच गया है. कुछ प्रवासी वापस लौटे हैं, हालांकि इस बार उनकी संख्या काफी कम है. इसके साथ ही शादी विवाह में शामिल होने आए लोगों की वजह से भी संक्रमण का फैला हुआ है. शहरी क्षेत्रों में तो किसी न किसी तरह से बंदिश लगाई जा सकती है, लेकिन पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी रखना और बंदिश लगाना बहुत मुश्किल है. जिस वजह से भी इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का काफी अधिक फैलाव हुआ है, जो राज्य के लिए चिंता का विषय है.

देहरादून: कोरोना की दूसरी लहर उत्तराखंड के लिए घातक साबित हुई है. प्रदेश में रोज सात से आठ हजार कोरोना के नए मामले सामने आ रहे है. प्रदेश में सैंपल पॉजिटिव दर भी 6.25% है. वहीं इस बार सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि उत्तराखंड में कोरोना ने मैदानी जिलों के साथ पहाड़ी जनपदों में भी कहर ढाया है. शुरुआती चरण में मैदानी जिलों में ही ज्यादा संक्रमित मिल रहे थे. लेकिन, अब पहाड़ों में भी तेजी से मामले बढ़ रहे हैं. एक से दस मई के बीच की स्थिति देखें तो प्रदेश में 27.6 फीसद मामले नौ पर्वतीय जनपदों में आए हैं. ऐसे में पहाड़ पर पहले से ही चौपट स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना के आगे दम तोड़ दिया है, जिससे सरकार की मुश्किलें और बढ़ गई है. इसी पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

पहाड़ों में तेजी से फैला कोरोना संक्रमण.

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पहले से ही चरमराई हुई स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना आगे घुटने टेक दिए है. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहले ही पहाड़ों के गांव वीरान हो चुके है. ऊपर से कोरोना की मार ने उन्हें बुरी तरह से तोड़ दिया है. ऐसे में पहाड़ों पर रफ्तार पकड़ते कोरोना ने चिंता बढ़ा दी है. क्योंकि मैदान के मुकाबले वहां न तो स्वास्थ्य सुविधाएं और न ही कोरोना से लड़ने के कोई खास इंतजाम. इन परिस्थितियों में पहाड़ों के दुरस्थ गांव में न तो टेस्ट हो पा रहे है और न ही मरीजों को इलाज मिल पा रहा है. यदि कोरोना इसी रफ्तार से पहाड़ पर चढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में स्थिति और विकट हो जाएगी.

पढ़ें- उत्तराखंड में भी ब्लैक फंगस की दस्तक, राजधानी में एक मरीज में हुई पुष्टि, दो संदिग्ध

प्रवासियों के लौटने से प्रदेश में बढ़े संक्रमण के मामले

कोरोना की पहली लहर साल 2020 में बड़ी संख्या में प्रवासी लॉकडाउन लगने के बाद अपने घरों से लौटे थे. उस दौरान प्रदेश में कोरोना के मामले एकाएक बढ़े थे.इस बार भी कोरोना के रफ्तार पकड़ने के बाद कई राज्यों ने अपने यहां कोरोना कर्फ्यू और लॉकडाउन लगाया. ऐसे में प्रवासियों ने दोबारा अपने गांव का रूख किया है. पहाड़ों में बड़ी संख्या में प्रवासी लौटे, लेकिन इसी बार प्रदेश में स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो गई.

एक मई के बाद प्रवासियों के उत्तराखंड वापस आने का सिलसिला शुरू हुआ. जिसके बाद से ही प्रदेश में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई. आंकड़े भी इसकी तस्दीक कर रहे हैं. 1 मई से पहले प्रदेश में रोज चार हजार के कम मामले सामने आ रहे थे. वहीं एक मई के बाद ये संख्या 5000 से 8000 के बीच हो गई. यहां गौर करने वाली बात ये है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार प्रदेश में प्रवासी काफी कम संख्या में आए हैं. कोरोना की पहली लहर में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब तीन लाख प्रवासी वापस आए थे. लेकिन ये आंकड़ा पहले 30 प्रतिशत कम है.

सुधार की जरूरत

चिंता इस इस बात को लेकर है कि पहाड़ में स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा भी उतना सुदृढ़ नहीं है. ऐसे में हालात बिगड़े तो जनहानि काफी ज्यादा होगी. पहाड़ों में जांच अब भी बेहद कम की जा रही है. कई जिलों में तो यह हजार सैंपल प्रतिदिन भी नहीं है. ऐसे में जांच में तेजी लाने की आवश्यकता है. पहाड़ में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, उसे रोकने के लिए एक ठोस रणनीति की जरूरत है. हालांकि सरकार ने अपने स्तर कुछ कदम भी उठाए हैं.

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मोबाइल टेस्टिंग वैन भेजी जाएगी

उत्तराखंड के मुख्य सचिव ओम प्रकाश की माने तो पहाड़ों के दुरुस्थ ग्रामीण इलाकों में टेस्टिंग वैन चलाने का फैसला लिया है, जिसके लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल भी तैयार कर दिया है. जल्द ही प्रदेश के दूरस्थ और सीमांत इलाकों में मोबाइल टेस्टिंग वैन पहुंच जाएगी. इसके बाद उन्हें कोविड -19 टेस्ट के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा.

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इसको लेकर अपनी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि जिस तरह की रिपोर्ट मिल रही है, उसके देखकर यहीं लगाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी संक्रमण पहुंच गया है. कुछ प्रवासी वापस लौटे हैं, हालांकि इस बार उनकी संख्या काफी कम है. इसके साथ ही शादी विवाह में शामिल होने आए लोगों की वजह से भी संक्रमण का फैला हुआ है. शहरी क्षेत्रों में तो किसी न किसी तरह से बंदिश लगाई जा सकती है, लेकिन पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी रखना और बंदिश लगाना बहुत मुश्किल है. जिस वजह से भी इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का काफी अधिक फैलाव हुआ है, जो राज्य के लिए चिंता का विषय है.

Last Updated : May 14, 2021, 6:04 PM IST
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