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इस वजह से पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे भगवान शिव, जानें- केदारनाथ और पशुपतिनाथ का रिश्ता

बाबा केदारनाथ की महिमा अपने आप में काफी रोचक है. यहां प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है. मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन मात्र से ही लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

केदारनाथ धाम में देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु.
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Published : May 9, 2019, 3:26 PM IST

देहरादून: देवों के देव कहे जाने वाले महादेव की महिमा अपरंपार है. शिव वो हैं जो भक्तों की थोड़ी सी श्रद्धा से भी खुश हो जाते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है. कहीं पत्थर के शिवलिंग तो कहीं बर्फानी बाबा के रूप में पूजे जाते हैं शिव. शिव की महिमा की कई कहानियां प्रचलित हैं, ऐसी ही कहानी 12 ज्योतिर्लिंग में एक केदारनाथ धाम की भी है.

इस वजह से पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे भगवान शिव.

पौराणिक मान्यता

बाबा केदारनाथ की महिमा अपने आप में काफी रोचक है. यहां प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है. मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन मात्र से ही लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर की शरण में जाने का निर्णय लिया. लेकिन भगवान शिव पांडवों से काफी नाराज थे इसलिए वो उन्हें अपने दर्शन नहीं देना चाहते थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए पर भगवान शिव पांडवों को वहां नहीं मिले. आखिरकार पांडव उन्हें खोजते हुए हिमालय पहुंचे. बाबा भोलेनाथ पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे. पांडव भी उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए.

भगवान शिव के पृष्ठ भाग की होती है पूजा

पांडवों को देख भगवान शिव भैंस का रूप धारण कर अदृश्य होने लगे. उसी समय भीम ने उनका पृष्ठ भाग पकड़ लिया. पांडवों की आस्था देख भगवान शिव ने दिव्य दर्शन देते हुए पांडवों को गोत्र हत्या से मुक्त किया था. इसी के बाद पांडवों ने इस स्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया, जहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है. इस बीच भैंसा बने भगवान शिव का सिर नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ में पहुंच गया, जहां भगवान शिव की पशुपतिनाथ के रूप में पूजा होती है. गौर हो कि उत्तराखंड में साल 2019 की चारधाम यात्रा का आगाज हो चुका है. बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश ही नहीं विदेशों से भी पहुंच रहे हैं.

देहरादून: देवों के देव कहे जाने वाले महादेव की महिमा अपरंपार है. शिव वो हैं जो भक्तों की थोड़ी सी श्रद्धा से भी खुश हो जाते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है. कहीं पत्थर के शिवलिंग तो कहीं बर्फानी बाबा के रूप में पूजे जाते हैं शिव. शिव की महिमा की कई कहानियां प्रचलित हैं, ऐसी ही कहानी 12 ज्योतिर्लिंग में एक केदारनाथ धाम की भी है.

इस वजह से पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे भगवान शिव.

पौराणिक मान्यता

बाबा केदारनाथ की महिमा अपने आप में काफी रोचक है. यहां प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है. मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन मात्र से ही लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर की शरण में जाने का निर्णय लिया. लेकिन भगवान शिव पांडवों से काफी नाराज थे इसलिए वो उन्हें अपने दर्शन नहीं देना चाहते थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए पर भगवान शिव पांडवों को वहां नहीं मिले. आखिरकार पांडव उन्हें खोजते हुए हिमालय पहुंचे. बाबा भोलेनाथ पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे. पांडव भी उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए.

भगवान शिव के पृष्ठ भाग की होती है पूजा

पांडवों को देख भगवान शिव भैंस का रूप धारण कर अदृश्य होने लगे. उसी समय भीम ने उनका पृष्ठ भाग पकड़ लिया. पांडवों की आस्था देख भगवान शिव ने दिव्य दर्शन देते हुए पांडवों को गोत्र हत्या से मुक्त किया था. इसी के बाद पांडवों ने इस स्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया, जहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है. इस बीच भैंसा बने भगवान शिव का सिर नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ में पहुंच गया, जहां भगवान शिव की पशुपतिनाथ के रूप में पूजा होती है. गौर हो कि उत्तराखंड में साल 2019 की चारधाम यात्रा का आगाज हो चुका है. बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश ही नहीं विदेशों से भी पहुंच रहे हैं.

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इस वजह से पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे भगवान शिव, जानें- केदारनाथ और पशुपतिनाथ का रिश्ता

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देहरादून: देवों के देव कहे जाने वाले महादेव की महिमा अपरंपार है. शिव वो हैं जो भक्तों की थोड़ी सी श्रद्धा से भी खुश हो जाते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है. कहीं पत्थर के शिवलिंग तो कहीं बर्फानी बाबा के रूप में पूजे जाते हैं शिव. शिव की महिमा की कई कहानियां प्रचलित हैं, ऐसी ही कहानी 12 ज्योतिर्लिंग में एक केदारनाथ धाम की भी है. 

बाबा केदारनाथ की महिमा अपने आप में काफी रोचक है. यहां प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है. मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन मात्र से ही लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर की शरण में जाने का निर्णय लिया. लेकिन भगवान शिव पांडवों से काफी नाराज थे इसलिए वो उन्हें अपने दर्शन नहीं देना चाहते थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए पर भगवान शिव पांडवों को वहां नहीं मिले. 

आखिरकार पांडव उन्हें खोजते हुए हिमालय पहुंचे. बाबा भोलेनाथ पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे. पांडव भी उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए. पांडवों को देख भगवान शिव भैंस का रूप धारण कर अदृश्य होने लगे. उसी समय भीम ने उनका पृष्ठ भाग पकड़ लिया.

पांडवों की आस्था देख भगवान शिव ने दिव्य दर्शन देते हुए पांडवों को गोत्र हत्या से मुक्त किया था. इसी के बाद पांडवों ने इस स्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया, जहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है. इस बीच भैंसा बने भगवान शिव का सिर नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ में पहुंच गया, जहां भगवान शिव की पशुपतिनाथ के रूप में पूजा होती है. गौर हो कि उत्तराखंड में साल 2019 की चारधाम यात्रा का आगाज हो चुका है. बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश ही नहीं विदेशों से भी पहुंच रहे हैं. 





 


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