नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा निकाय व पंचायत चुनाव कराने के लिए 2024 की आरक्षण नियमावली को चुनौती देती अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई की. न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने राज्य सरकार व याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद सुनवाई कल भी जारी रखी है.
आज सोमवार 6 जनवरी को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा कि राज्य सरकार ने नियमों को ताक पर रख कर आरक्षण की अधिसूचना जारी की. जिस दिन आरक्षण की अधिसूचना जारी की, उसी दिन शाम को चुनाव प्रोग्राम भी घोषित कर दिया गया. उनको इस पर आपत्ति जाहिर करने का मौका तक नहीं दिया.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नियमों के तहत आरक्षण घोषित होने के बाद आपत्ति जाहिर करने का प्रावधान है, जिसका अनुपालन राज्य सरकार व चुनाव आयोग ने नहीं किया. जिन निकायों और निगमों में आरक्षण तय किया वह भी गलत किया है. जिन निकायों व निगमों में दस हजार से कम ओबीसी, एसटी व अन्य की जनसख्या कम थी, उनमें आरक्षण नहीं होना था, जबकि जिनमे इनकी संख्या अधिक थी. उनमें आरक्षण होना था. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के समक्ष कई उदाहरण भी रखे.
वहीं राज्य सरकार की तरफ से भी कोर्ट में जवाब दिया गया. राज्य सरकार ने कहा कि नियमों के तहत ही निकायों के आरक्षण तय किया गया है. इसको चुनाव याचिका के रूप में चुनौती दी जानी चाहिए, अन्य याचिका में नहीं. इसका भी विरोध करते हुए याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि अभी चुनाव हुए नहीं हैं. उन्होंने आरक्षण की अधिसूचना को चुनौती दी है न कि किसी जीते हुए उम्मीदवार को मिले वोट व अन्य आधार पर.
बता दें कि निकाय व पंचायत चुनाव आरक्षण नियमावली 2024 के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थी. याचिकाओं में कहा गया है कि राज्य सरकार की ओर से निकायों के अध्यक्ष पदों के लिए आरक्षण की जो प्रक्रिया अपनायी गयी, वह असवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के विपरीत है. राज्य सरकार ने आरक्षण जनसंख्या और रोटेशन के आधार पर सुनिश्चित नहीं किया. आरक्षण सभी नगर पालिकाओं को आधार बनाकर आरक्षण तय किया जाना चाहिए था. इसलिए निकायों का फिर से आरक्षण तय हो. रोटेशन व जनसंख्या के आधार पर हल्द्वानी व देहरादून इस समय आरक्षित होनी थी.
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