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IFS ट्रांसफर मामले में कांग्रेस ने सरकार को घेरा, कहा- प्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स हावी - जानबूझकर कर रही काम

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और वन मंत्री हरक सिंह रावत ने 26 IFS अफसरों के तबादलों को मंजूरी दी थी, लेकिन 26 की जगह 37 IFS के तबादले किए गए. जिसके बाद कांग्रेस ने राज्य सरकार पर निशाना साधा.

suryakant dhasmana
सूर्यकांत धस्माना
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Published : Jul 10, 2020, 8:42 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारियों का तबादला मामला अब विवादों के घेरे में आ गया है. इससे पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और वन मंत्री हरक सिंह रावत की ओर से 26 अधिकारियों के तबादले की अनुमति दी गई थी, लेकिन 37 अधिकारियों के ट्रांसफर कर दिए गए. कांग्रेस ने त्रिवेंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधि और मंत्रियों को हैसियत बताने के लिए अधिकारी जानबूझकर ऐसा काम कर रहे हैं.

बता दें कि मुख्यमंत्री और वन मंत्री ने 26 अफसरों के तबादलों को मंजूरी दी थी, लेकिन उसकी 26 की जगह 37 IFS के तबादले किए गए. हालांकि, इसके बाद सीएम और वन मंत्री ने दोबारा समीक्षा कर तबादले निरस्त करवाए. बीते रोज तबादले निरस्त होने के आदेश भी जारी कर दिए गए. पूरे मामले में कांग्रेस ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार में ब्यूरोक्रेट्स हावी हैं और वह जानबूझकर ऐसा काम कर रहे हैं. लेकिन राज्य में सरकार की हैसियत और हिम्मत नहीं है कि सरकार किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई भी कर दे.

IFS ट्रांसफर मामले में कांग्रेस ने सरकार पर साधा निशाना.

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कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों को हैसियत बताने के लिए अधिकारी जानबूझ कर ऐसी गलतियां करते हैं. अधिकारी यह काम इसलिए करते हैं कि राज्य में सरकार की हैसियत और हिम्मत नहीं है कि सरकार किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जा सके. उन्होंने अमनमणि त्रिपाठी और एनएच-74 का जिक्र करते हुए कहा कि अब आईएफएस के तबादलों का विवाद सामने आ गया है. आखिर यह कैसे संभव है कि 26 अधिकारियों का नाम तबादला सूची में है, जबकि 37 अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया गया. ऐसे में यह जानबूझकर किया गया काम है.

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मामले में शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने भी सफाई देते हुए कहा कि विभागीय मंत्री ने भी इस मामले का संज्ञान लेते हुए तबादले निरस्त कर दिए हैं. उन्होंने कहा कि सीएम त्रिवेंद्र रावत का भी कहना है कि सामान्य शिष्टाचार का पालन सभी को करना चाहिए. राज्य में बीजेपी सरकार आने के बाद उन्होंने सभी विषयों को आम लोगों से जोड़ा है. ऐसे में यह सवाल नहीं उठता है कि प्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स हावी हैं, बल्कि प्रदेश में सरकार हावी है और वह अपना काम करेगी.

देहरादूनः उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारियों का तबादला मामला अब विवादों के घेरे में आ गया है. इससे पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और वन मंत्री हरक सिंह रावत की ओर से 26 अधिकारियों के तबादले की अनुमति दी गई थी, लेकिन 37 अधिकारियों के ट्रांसफर कर दिए गए. कांग्रेस ने त्रिवेंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधि और मंत्रियों को हैसियत बताने के लिए अधिकारी जानबूझकर ऐसा काम कर रहे हैं.

बता दें कि मुख्यमंत्री और वन मंत्री ने 26 अफसरों के तबादलों को मंजूरी दी थी, लेकिन उसकी 26 की जगह 37 IFS के तबादले किए गए. हालांकि, इसके बाद सीएम और वन मंत्री ने दोबारा समीक्षा कर तबादले निरस्त करवाए. बीते रोज तबादले निरस्त होने के आदेश भी जारी कर दिए गए. पूरे मामले में कांग्रेस ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार में ब्यूरोक्रेट्स हावी हैं और वह जानबूझकर ऐसा काम कर रहे हैं. लेकिन राज्य में सरकार की हैसियत और हिम्मत नहीं है कि सरकार किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई भी कर दे.

IFS ट्रांसफर मामले में कांग्रेस ने सरकार पर साधा निशाना.

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कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों को हैसियत बताने के लिए अधिकारी जानबूझ कर ऐसी गलतियां करते हैं. अधिकारी यह काम इसलिए करते हैं कि राज्य में सरकार की हैसियत और हिम्मत नहीं है कि सरकार किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जा सके. उन्होंने अमनमणि त्रिपाठी और एनएच-74 का जिक्र करते हुए कहा कि अब आईएफएस के तबादलों का विवाद सामने आ गया है. आखिर यह कैसे संभव है कि 26 अधिकारियों का नाम तबादला सूची में है, जबकि 37 अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया गया. ऐसे में यह जानबूझकर किया गया काम है.

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मामले में शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने भी सफाई देते हुए कहा कि विभागीय मंत्री ने भी इस मामले का संज्ञान लेते हुए तबादले निरस्त कर दिए हैं. उन्होंने कहा कि सीएम त्रिवेंद्र रावत का भी कहना है कि सामान्य शिष्टाचार का पालन सभी को करना चाहिए. राज्य में बीजेपी सरकार आने के बाद उन्होंने सभी विषयों को आम लोगों से जोड़ा है. ऐसे में यह सवाल नहीं उठता है कि प्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स हावी हैं, बल्कि प्रदेश में सरकार हावी है और वह अपना काम करेगी.

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