देहरादून: उत्तराखंड में सरकार का आखरी विधानसभा सत्र कहां होगा यह बात लंबी जद्दोजहद के बाद भी तय नहीं हो पा रही है. यूं तो सरकार चुनाव से पहले सत्र को गैरसैंण में करवाकर इसका एडवांटेज लेने के मूड में थी, लेकिन पहाड़ पर ठंड के डर ने सरकार को इस कदम पर पीछे ला खड़ा किया है. वैसे ताजा खबर यह है कि सरकार ही नहीं विपक्ष भी सत्र को गैरसैंण में नहीं कराना चाहता है. जाहिर है कि अब प्रदेश में गैरसैंण केवल चुनावी मुद्दा ही रह गया है. विधानसभा के अध्यक्ष के सामने नेता प्रतिपक्ष ने अपनी जो राय रखी है, उसके बाद सरकार भी पशोपेश में है कि आखिरकार विधानसभा का सत्र गैरसैंण में आहुत किया जाए या फिर देहरादून में ही इसका आयोजन करा कर इतिश्री कर दी जाए.
आपको बता दें कि भाजपा की धामी सरकार का यह आखिरी सत्र होगा और इस सत्र को गैंरसैंण में कराकर बीजेपी सरकार राजनीतिक नफा पाने की कोशिश करेगी, लेकिन राज्य कर्मचारियों की चिंता कहें या ठंड का डर कि इस सत्र के स्थान को लेकर फिलहाल कुछ भी तय नहीं किया जा सका है. नेता प्रतिपक्ष पीतम सिंह कहते हैं कि उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को साफ कर दिया है कि पुलिसकर्मियों और बाकी कर्मचारियों के लिए गैरसैंण में ठंड को लेकर रहने की उचित व्यवस्था नहीं है, लिहाजा देहरादून में ही सत्र को आहुत किए जाने पर विचार किया जाए.
नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का यह बयान यह बताने के लिए काफी है कि विपक्ष सरकार पर गैरसैंण में सत्र नहीं कराने का जो आरोप लगा रही है वह एक तरफा नहीं है, बल्कि विपक्ष के नेता भी गैरसैंण में सत्र करवाने से बच रहे हैं और वो देहरादून में ही सत्र करवाना चाहते हैं.
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सरकार को कोस रहा विपक्ष: इस मामले पर हरीश रावत समेत कांग्रेस के तमाम नेता भाजपा को कोस रहे हैं, जबकि अब नेता प्रतिपक्ष के बयान सामने आने के बाद भाजपा ने भी पलटवार करते हुए साफ किया है कि नेता प्रतिपक्ष की तरफ से ही देहरादून में विधानसभा सत्र कराने का सुझाव दिया गया था और फिलहाल इस पर विचार होना बाकी है.
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गैरसैंण बना सिर्फ चुनावी मुद्दा: गैरसैंण एक ऐसा विषय है, जिसे न केवल भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में जगह देते हैं बल्कि भाजपा सरकार ने ही इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी भी घोषित किया है. ऐसे में शीतकाल में यहां सत्र आहूत करना नेताओं को पसंद नहीं आ रहा. जाहिर है कि राजनेताओं के लिए यह बस चुनावी मुद्दा ही बनकर रह गया है.
अगर ऐसा नहीं होता तो गैरसैंण में सत्र को लेकर बहस शुरू ही क्यों होती? आखिरकार गैरसैंण में सत्र कराने को लेकर सरकार को इतना क्यों सोचना पड़ता है? वैसे इसका जवाब चमोली जिले के इस क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं का ना होना है और देहरादून जैसी वीवीआइपी सुविधाएं मिलना यहां पर नामुमकिन है. लिहाजा, देहरादून से इतनी दूर जाने का मन नेता नहीं बनाना चाहते, भले ही उनके एजेंडे में गैरसैंण सबसे ऊपर क्यों न हो?