देहरादून: केदारनाथ पुनर्निर्माण के बाद अब राज्य सरकार ने बदरीनाथ आध्यात्मिक टाउनशिप को लेकर ब्लू प्रिंट जारी कर दिया है. सोमवार को कैबिनेट बैठक में बदरीनाथ टाउनशिप निर्माण के पहले चरण में 7 सरकारी कार्यालयों को तोड़ने के निर्देश दिए गए. वहीं, हिमालय क्षेत्र में हो रहे निर्माणों को लेकर सरकार शोधकर्ताओं, पर्यावरणविद् और विपक्ष के निशाने पर पहले से ही है.
पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल केदारनाथ पुनर्निर्माण के बाद अब बदरीनाथ को आध्यात्मिक हिल टाउन बनाने को लेकर ब्लू प्रिंट जारी हो चुका है. इसे अगले 100 सालों की जरूरतों और क्षमता को ध्यान में रखते हुए धरातल पर उतारा जाएगा. केंद्र सरकार द्वारा बदरीनाथ को एक आध्यात्मिक हिल टाउन के रूप में विकसित करने के लिए करीब 85 हेक्टेयर भूमि को अलग-अलग फेस में स्मार्ट प्लान के साथ तैयार करने की रणनीति बनाई गई है.
पीएम करते हैं प्रोजेक्ट का रिव्यू: समय-समय पर पीएम मोदी अपने सुपरविजन में इस प्रोजेक्ट का रिव्यू भी करते हैं. इस निर्माण कार्य के लिए केदारनाथ पुनर्निर्माण के लिए नियुक्त की गई कार्यालय एजेंसी आईएनआई डिजाइन एजेंसी को ही बदरीनाथ मास्टर प्लान तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया है. पहले चरण में 7 सरकारी कार्यालयों को गिराने की मंजूरी भी कैबिनेट में दी जा चुकी है.
बदरीनाथ टाउनशिप की खासियत: वहीं, इसके अलावा बदरीनाथ टाउनशिप की खासियत की बात करें तो इसमें रिवरफ्रंट डेवलपमेंट बदरी झील, शेषनेत्र झील, कमांड कंट्रोल, आपदा प्रबंधन सेंटर, आईएसबीटी भवन का निर्माण इत्यादि शामिल होंगे.
विपक्ष का सरकार पर निशाना: वहीं, विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार चारों धाम की अस्मिता के साथ खेलने का काम कर रहे हैं. पहले केदारनाथ के छोटे से क्षेत्र को आधुनिक कंक्रीट निर्माण के साथ टाउनशिप में तब्दील किया गया. लगातार बदरीनाथ-केदारनाथ घाटी में विस्फोट किए जा रहे हैं, जिससे उच्च हिमालय संवेदनशील क्षेत्र में लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है.
कांग्रेस ने कार्यशैली पर उठाए सवाल: कांग्रेस प्रवक्ता सुजाता पाल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केदारघाटी में लगातार विस्फोट किए जा रहे हैं. अब बदरीनाथ टाउनशिप की स्थापना कर प्रधानमंत्री एक टूरिस्ट स्पॉट बनाना चाहते हैं. 2013 के भीषण तबाही के बाद भी इस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं, जो सरकार की गैर संवेदनशील कार्यशैली को दर्शाते हैं.
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उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर रिसर्च: 2013 की त्रासदी के बाद से ही लगातार शोधकर्ताओं द्वारा उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर रिसर्च की जा रही है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लंबे समय से काम करने वाले डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि वाडिया में रहते हुए उन्होंने तकरीबन 30 सालों तक हिमालयी क्षेत्रों में गहन अध्ययन किया. उन्होंने बताया कि यहां पर बेहद संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है और छोटे-छोटे बदलाव भी यहां के क्लाइमेंट पर बेहद गहरा असर डालते हैं. अगर हम केदारनाथ और बदरीनाथ में भी मुंबई जैसे फाइव स्टार होटल बनाएंगे तो बदरीनाथ और मुंबई में कोई अंतर नहीं रह जाएगा. साथ ही इसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक होंगे.
बदरीनाथ में आध्यात्मिक टाउनशिप चिंताजनक: चारधाम विकास कार्यों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा का कहना है कि सरकार द्वारा बदरीनाथ में आध्यात्मिक टाउनशिप की स्थापना करना बेहद चिंताजनक है. आज से हजारों करोड़ों साल पहले आदि गुरु शंकराचार्य ने ही हरिद्वार की स्थापना की थी. उन्होंने बदरीनाथ की स्थापना की थी, लेकिन हरिद्वार शहर को बड़ा बनाया और यहां पर बड़े-बड़े मंदिर बनाए, लेकिन बदरीनाथ में कुछ एक धर्मशाला हैं और एक छोटा सा मंदिर बनाया. क्या वह हरिद्वार जैसा भव्य शहर बदरीनाथ में नहीं बना सकते थे.
प्रकृति बड़े निर्माणों की अनुमति नहीं देती: राजीव नयन बहुगुणा का कहना है कि अगर बदरीनाथ और केदारनाथ में बड़े निर्माण किए जाएंगे तो वहां के लोग इसके शिकार हो जाएंगे. वहां पर आदि काल से ही छोटे और अस्थायी निर्माण किए जाते हैं. ऐसा नहीं है कि हिमालय में रहने वाले लोगों के पास धन की कमी है और वह बड़े मकान नहीं बना सकते हैं. बल्कि वहां की प्रकृति इसकी अनुमति नहीं देती है. वहां के लोग इसे बखूबी समझते हैं, लेकिन सत्ता और आधुनिकीरण के चलते अंधी हो चुकी सरकारों को यह समझ नहीं आ रहा है.
100 सालों की जरूरतों के अनुसार निर्माण: भाजपा प्रवक्ता राजेश कुमार का कहना है कि केदारनाथ में ब्लास्टिंग का विषय आया था, जिसे सरकार ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. बात जहां तक बदरीनाथ को आध्यात्मिक टाउनशिप बनाने की है तो वहां पर केंद्र सरकार के निर्देश पर अत्याधुनिक और सभी पहलुओं को देखते हुए सुनियोजित ढंग से निर्माण कार्य किया जा रहा है. यह निर्माण आगामी 100 सालों की जरूरतों को देखते हुए किया जा रहा है.
नाजुक हैं हिमालय के पहाड़: लंबे समय से हिमालय क्षेत्र में काम करने वाले शोधकर्ताओं का मानना है कि बद्रीनाथ और केदारनाथ उच्च हिमालई बेल्ट में मौजूद हैं. यहां पर मौजूद पहाड़ बेहद नाजुक हैं. यह सीस्मिक जोन 5 में मौजूद है. यहां पर छोटी सी भी हलचल एक बड़ी तबाही की वजह बन सकती है. यही नहीं पुनर्निर्माण या फिर नए निर्माणों से उसे कई अलग-अलग पहलुओं पर आपदा की संभावनाएं बढ़ सकती है.
निर्माण और ध्वस्तीकरण हो सकता है खतरनाक: शोधकर्ताओं का कहना है कि जब भी ऐसी संवेदनशील जगह पर कोई नया निर्माण किया जाता है, या फिर किसी तरह का कोई ध्वस्तीकरण किया जाता है, तो निश्चित तौर से उसका मलबा आसपास कहीं डंप किया जाता है. भारी वर्षा वाले क्षेत्र में वह मलबा पानी के साथ बहकर नदियों में आता है और जब भी कोई बादल फटने या फिर भूस्खलन जैसी कोई स्थिति होती है, तो यह निचले इलाकों में तबाही मचाते हुए आगे निकलता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण केदारनाथ में आई 2013 की आपदा है.
मानव निर्मित निर्माण से ज्यादा खतरा: शोधकर्ताओं का मानना है कि उच्च हिमालई क्षेत्र में आपदाएं आती रहती हैं. लेकिन जान और माल का नुकसान सबसे ज्यादा मानव निर्मित निर्माणों की वजह से होता है. पौराणिक समय से यहां रहने वाले लोग प्रकृति के इस स्वरूप के साथ बेहद तालमेल के साथ रहते रहे हैं. यही वजह है कि इन क्षेत्रों में छोटे और कम वजन वाले घर बनाए जाते हैं. ताकि अगर कोई आपदा आती भी है, तो उसके नीचे जोखिम कम से कम हो और यहां के लोग जानते हैं कि अगर वह बेहद बड़ा मकान बनाएंगे तो एक न एक दिन वह उन्हीं की तबाही का कारण बनेगा.
वहीं दूसरी तरफ केदारनाथ में लगातार हो रहे पुनर्निर्माण और ब्लास्टिंग के चलते लगातार वहां के कमजोर पहाड़ों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील जोन में मौजूद इस क्षेत्र में लगातार जोखिम को बुलावा दिया जा रहा है.