देहरादून: पिछले साल देहरादून के सरखेत गांव में आई भीषण त्रासदी के डेढ़ साल बाद आज भी गांव दोबारा फिर से नहीं बस पाया है. पिछले डेढ़ साल में सैकड़ों लोगों ने पलायन कर लिया है और आज यहां केवल आपदा के दंश के निशान बाकी रह गए हैं.
डेढ़ साल पहले सरखेत में आई थी आपदा: 19 अगस्त 2022 को देहरादून के मालदेवता और रायपुर क्षेत्र के ऊपरी इलाके मसूरी विधानसभा क्षेत्र के सरखेत गांव में दैवीय आपदा के चलते पांच लोगों की मलबे में दबकर मौत हो गई थी. इस आपदा की वजह से पूरा गांव उजड़ गया था. 800 लोगों के इस गांव में तकरीबन 13 परिवारों के साथ ज्यादा लोग सीधे-सीधे आपदा से प्रभावित हो गए थे. कई लोगों के घर उजड़ गए थे. कई लोग चोटिल हो गए थे. इस दौरान पांच लोगों की मलबे में दबकर मौत भी हो गई थी. इस भीषण त्रासदी के बाद तत्काल ही मौके पर युद्ध स्तर पर रेस्क्यू अभियान चलाया गया था. मंत्री, मुख्यमंत्री के तमाम दौरे सरखेत में लगे. इस गांव के हालात को वापस बहाल करने को लेकर के पुरजोर तरीके से काम करने के दावे किए गए. लेकिन आज डेढ़ साल बाद जब हमने एक बार फिर इस गांव का रुख किया तो जमीनी हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं.
डेढ़ साल बाद सरखेत की ग्राउंड रिपोर्ट: आपदा के तकरीबन डेढ़ साल बाद ईटीवी भारत ने जब मौके पर जाकर ग्राउंड रिपोर्टिंग की तो पाया कि सरखेत गांव का एक बड़ा तबका वहां से पलायन कर चुका है. सरखेत गांव में रह गए लोग बताते हैं कि उनके गांव से बड़ी संख्या में लोगों ने पलायन कर लिया है. आपदा आने के बाद घर उजड़ गए तो कई लोगों को आपदा के उस मंजर के बाद डर सताने लगा. लोगों ने गांव से पलायन कर निचले इलाकों में मालदेवता या फिर अन्य जगहों पर पलायन कर लिया और वहां पर रहने लगे. कुछ लोग किसी दूसरी जगह अपने पैतृक स्थान पर चले गए.
आपदाग्रस्त सरखेत में नहीं बदले हालात: सरखेत में बाकी बचे लोगों में से एक बलबीर सिंह नेगी से हमने बातचीत की. उनसे आपदा के बाद के हालातों के बारे में जानकारी ली. उनके हाल-चाल भी जानने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि आपदा आने के बाद डेढ़ साल बीत चुका है, लेकिन वह आज भी ठीक उसी मुहाने पर हैं जहां से जलजला आया था. वहीं पर अपने कच्चे मकान में रह रहे हैं. उन्होंने अपना कच्चा मकान दिखाने के साथ-साथ आसपास में क्षतिग्रस्त हुए मकानों के बारे में भी जानकारी दी. हालांकि अब वहां पर कोई नहीं रहता है, लेकिन वह और उनका परिवार वहीं कच्चे मकान में डटे हुए हैं. हमने उनसे पूछा कि क्या सरकार द्वारा या फिर आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा उन्हें पक्का मकान या फिर किसी सुरक्षित जगह पर विस्थापित किया गया. उन्होंने कहा कि ना तो उन्हें कोई पक्का मकान मिला है. ना उन्हें किसी जगह पर विस्थापित किया गया है.
रामकिशन ने ये बताया: इसी तरह सरखेत में रह गए रामकिशन से हमने उनके हालात और उनके बाकी गांव वालों के हालात के बारे में जानकारी ली. उन्होंने भी यही बताया कि उनके गांव के सभी लोग इधर-उधर चले गए हैं. गांव में ज्यादातर लोगों ने पलायन कर लिया है. गांव में किसी तरह की कोई खास सुविधा मौजूद नहीं है. उन्होंने बताया कि लोग यहां से अपनी जमीन छोड़कर चले गए हैं. स्कूल और कई सरकारी भवन भी टूट गए थे, जिनका अभी तक कुछ नहीं हो पाया है. उन्होंने बताया कि वह दूसरी जगह पर पलायन नहीं कर सकते हैं. उनके पास इतना पैसा नहीं है. इसलिए वह एक छोटा चाय का स्टाल लगते हैं और आते-जाते लोगों को चाय पिलाने से होने वाली आमदनी के भरोसे हैं.
ग्राम प्रधान ने ये कहा: सरखेत की ग्राम प्रधान नीलम कोटवाल और उनके पति संजय कोटवाल बताते हैं कि उनके गांव की आबादी तकरीबन 800 लोगों की थी. पिछले साल दैवीय आपदा में तेरह परिवारों के 60 से ज्यादा लोग सीधे-सीधे इससे प्रभावित हुए थे. इन्हीं में से पांच लोगों की मौके पर ही मौत भी हो गई थी. ग्राम प्रधान बताती हैं कि आपदा में प्रभावित हुए ज्यादातर परिवारों ने यहां से पलायन कर लिया है. उन्होंने बताया कि कुछ लोग माल देवता में और कुछ लोग इधर-उधर अपनी व्यवस्थाओं पर या फिर किराए पर रह रहे हैं. ग्राम प्रधान ने बताया है कि वह खुद अपने पैतृक घर बाउठा में रह रही हैं. साथ ही उनके भाई लोग भी माल देवता में किराए पर रह रहे हैं.
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