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कुपोषण से मुक्ति के लिए त्रिवेंद्र का 'फार्मूला', हरदा ने बताया चुनावी नारा

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Published : Sep 8, 2019, 9:51 PM IST

बच्चों के पोषण के लिए त्रिवेंद्र सरकार द्वारा अभियान चलाया जा रहा है. वहीं, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने दाल को उबालकर और उसे पीसकर खाने की सलाह दी है. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने त्रिवेंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए इसे सिर्फ एक नारा बताया है.

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत

देहरादून: उत्तराखंड राज्य के बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने के लिए राज्य सरकार ने बड़ी पहल शुरू की है. 3 सितंबर से 30 सितंबर तक चलने वाले 'कुपोषण मुक्ति हेतु गोद अभियान' के तहत प्रदेश के मुखिया समेत कई जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने अतिकुपोषित बच्चों को गोद लिया है. वहीं, पूर्व सीएम हरीश रावत ने बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए अपने शासनकाल की योजनाओं को गिनाया है.

कुपोषण से मुक्ति के लिए त्रिवेंद्र का 'फार्मूला'.

वहीं, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि जागरूकता से ही कुपोषण को दूर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जो दाल हम खाते हैं, उसको उबालकर, साबुत खाने से फायदा होगा या फिर पीसकर खाने से ज्यादा फायदा होगा. इन छोटी-छोटी चीजों पर अगर ध्यान दिय जाए तो खाने की चीजों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है. साथ ही उन्होंने बताया कि बच्चों को गोद लेने का कार्यक्रम शुरू किया गया है.

पढ़ें- हरिद्वार: 21 सालों बाद गंगा मंदिर को मिलेगा 'जीवन', पुराने स्वरूप में होगा निर्माण

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने त्रिवेंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ सरकार कुपोषण के खिलाफ अभियान चलाने की बात करती है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस शासनकाल में चलाई गई योजनाओं को खत्म करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासनकाल में कुपोषण के खिलाफ 500 योजनाएं शुरू की गई थी, जिसमें प्रदर रोग के खिलाफ अभियान, वृद्ध महिला पोषण अभियान , दूध पिलाने वाली मां को दुग्ध आहार पोषण योजना, गर्भवती महिलाओं को मंडवा और नमक देने की योजना और बच्चों के लिए पौस्टिक आहार देने की योजना बनाई गई थी. लेकिन राज्य सरकार ने इन सारी योजनाओं को कूड़ेदान में डाल दिया है.

हरीश रावत ने कहा कि बीजेपी के पास नारे बनाने की मशीन है. जब एक नारे का कचुंबर निकल जाता है, तो वे दूसरे नारे को लेकर आ जाते हैं. वहीं, जनता बीजेपी के नारों में ही उलझ कर रह जाती है.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य के बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने के लिए राज्य सरकार ने बड़ी पहल शुरू की है. 3 सितंबर से 30 सितंबर तक चलने वाले 'कुपोषण मुक्ति हेतु गोद अभियान' के तहत प्रदेश के मुखिया समेत कई जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने अतिकुपोषित बच्चों को गोद लिया है. वहीं, पूर्व सीएम हरीश रावत ने बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए अपने शासनकाल की योजनाओं को गिनाया है.

कुपोषण से मुक्ति के लिए त्रिवेंद्र का 'फार्मूला'.

वहीं, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि जागरूकता से ही कुपोषण को दूर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जो दाल हम खाते हैं, उसको उबालकर, साबुत खाने से फायदा होगा या फिर पीसकर खाने से ज्यादा फायदा होगा. इन छोटी-छोटी चीजों पर अगर ध्यान दिय जाए तो खाने की चीजों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है. साथ ही उन्होंने बताया कि बच्चों को गोद लेने का कार्यक्रम शुरू किया गया है.

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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने त्रिवेंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ सरकार कुपोषण के खिलाफ अभियान चलाने की बात करती है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस शासनकाल में चलाई गई योजनाओं को खत्म करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासनकाल में कुपोषण के खिलाफ 500 योजनाएं शुरू की गई थी, जिसमें प्रदर रोग के खिलाफ अभियान, वृद्ध महिला पोषण अभियान , दूध पिलाने वाली मां को दुग्ध आहार पोषण योजना, गर्भवती महिलाओं को मंडवा और नमक देने की योजना और बच्चों के लिए पौस्टिक आहार देने की योजना बनाई गई थी. लेकिन राज्य सरकार ने इन सारी योजनाओं को कूड़ेदान में डाल दिया है.

हरीश रावत ने कहा कि बीजेपी के पास नारे बनाने की मशीन है. जब एक नारे का कचुंबर निकल जाता है, तो वे दूसरे नारे को लेकर आ जाते हैं. वहीं, जनता बीजेपी के नारों में ही उलझ कर रह जाती है.

Intro:उत्तराखंड राज्य के अतिकुपोषित बच्चों को कुपोषण के शिकार से निजात दिलाने को लेकर प्रदेश के भीतर राज्य सरकार ने बड़ी पहल शुरू की है। 3 सितंबर से 30 सितंबर तक चलने वाले "कुपोषण मुक्ति हेतु गोद अभियान" के तहत प्रदेश के मुखिया, जनप्रतिनिधियों समेत कई जिम्मेदार अधिकारियों ने अतिकुपोषित बच्चों को गोद लिया है। जहाँ एक ओर राज्य सरकार इस अभियान के तहत अतिकुपोषित बच्चों को स्वास्थ्य करने की बात कह रही है तो वही पूर्व सीएम हरीश रावत, बच्चों को कुपोषण के शिकार से बचाने के लिए अपने शासनकाल में चलायी गयी तमाम योजनाओं को गिना रहे है। 


Body:बीते मंगलवार यानी 3 सितंबर को सीएम आवास में आयोजित "कुपोषण मुक्ति हेतु गोद अभियान" कार्यक्रम के तहत प्रदेश में चिन्हित 1600 अतिकुपोषित बच्चों को मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, मंत्री रेखा आर्य, देहरादून मेयर, समेत प्रदेश के कई जिम्मेदार अधिकारीयो ने करीब 20 बच्चों को गोद लिया था। इसके साथ ही मसूरी विधायक गणेश जोशी भी अपने क्षेत्र के कुपोषित कई बच्चों को और समाजसेवी व उद्योगपति राकेश आॅबेराय ने भी अपनी संस्थाओं के माध्यम से 100 कुपोषित बच्चों को गोद ले चुके है। 


वही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की माने तो उनके अनुसार अगर कुपोषण के लिए जागरूकता हो जाए तो जागरूकता से ही कुपोषण को दूर किया जा सकता है। क्योकि जो दाल हम खाते हैं उसको उबालकर, साबुत खाने से फायदा होगा या फिर पीसकर खाने से ज्यादा फायदा होगा। इन छोटी-छोटी चीजों पर अगर थोड़ा सा ध्यान दे दिया जाए, तो खाने की चीजों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, जो शरीर की काम आती है। और इससे पाचन तंत्र पर भी इसका कम दबाव पड़ता है। साथ ही उन्होंने बताया कि बच्चों को गोद लेने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। ताकि हर माह उन बच्चों की रिपोर्ट मिल सके, कि बच्चे में किस महीने कितनी ग्रोथ हुई है। 

बाइट - त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड 


तो ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए बताया कि एक तरफ तो भाजपा सरकार कुपोषण के खिलाफ अभियान चलाने की बात कर रही है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस शासनकाल में चलाई गई योजनाओं को खत्म कर दिया। साथ ही बताया कि कांग्रेस शासनकाल में कुपोषण के खिलाफ 500 योजनाएं शुरू की गई थी, जिसमें प्रदर रोग के खिलाफ अभियान, वृद्ध महिला पोषण अभियान योजना, दूध पिलाने वाली मां को दुग्ध आहार पोषण योजना, गर्भवती महिलाओं को मडवा और नमक खाने के रूप में देने की योजना और बच्चों के लिए पोस्टिक आहार देने की योजना बनाई गई थी। लेकिन राज्य सरकार ने इन सारी योजनाओं को गड्ढे में डाल दिया।


साथ ही भाजपा सरकार पर हमला करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बताया कि भाजपा के पास नारे बनाने की मशीन है और इन नारों को भाजपा जनता में इस्तेमाल करती रहती हैं। और जब एक नारे का कचुंबर निकल जाता है तब तक दूसरे नारे को ले आते हैं, और लोग भाजपा के नारों में उलझ कर रह जाते है। 

बाइट - हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड


Conclusion:
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