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दुर्मी ताल का CM त्रिवेंद्र करेंगे निरीक्षण, 1971 में भूस्खलन से पहुंचा था नुकसान

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Published : Feb 2, 2021, 10:09 PM IST

Updated : Feb 2, 2021, 10:25 PM IST

चमोली के आधे हिस्से को तहस-नहस करने के बाद बिखरे पडे़ दुर्मी ताल को संवारने की कवायद शुरू हो गई है. सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत 4 फरवरी को दुर्मी ताल का निरीक्षण करेंगे.

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दुर्मी ताल का CM त्रिवेंद्र करेंगे निरीक्षण

देहरादून: चमोली जनपद की निजमुला घाटी में मौजूद विशाल दुर्मी ताल के पुनर्निर्माण को लेकर पिछले साल कवायद शुरू की गई थी, इस ताल के पुनर्निर्माण के बाद न सिर्फ चमोली में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. बल्कि रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे. वहीं, गुरुवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद इसका निरीक्षण करने चमोली जा रहे हैं. विशाल दुर्मी ताल वर्ष 1971 में भारी भूस्खलन और बारिश की वजह से तहस-नहस हो गया था. जिसके बाद से ही इस ताल की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

दुर्मी ताल का CM त्रिवेंद्र करेंगे निरीक्षण.

बता दें कि पिछले साल सितंबर महीने में दुर्मी ताल पुनर्निर्माण संरक्षण समिति ने ताल के नए स्वरूप की एनीमेशन इमेज जारी की थी. जिसमें ताल का स्वरूप दुर्मी गांव से पगना गांव तक किए जाने के लिए समिति के सदस्य पिछले साल मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की थी. साथ ही समिति ने मास्टर प्लान के तहत ताल के संरक्षण की मांग उठाते हुए कहा था कि इस ताल के स्वरूप से कोई छेड़छाड़ ना की जाए.

दुर्मी ताल से जुड़ी है पौराणिक मान्यता

निजमुला घाटी की सुरम्य वादियों के मध्य स्थित दुर्मी ताल का धार्मिक महत्व भी है. मान्यता है कि जब मां पार्वती ने भगवान शिव से इस स्थान पर थोड़ी देर विश्राम करने की इच्छा जताई, तो भगवान शिव ने मां पार्वती के आग्रह पर यहां कुछ पल बिताया था. इसी दौरान प्यास बुझाने और स्नान के लिए भोले नाथ ने अपनी त्रिशूल से एक तालाब उत्पन्न कर दिया. जिसे दुर्मी ताल नाम से जाना जाता है.

ये भी पढ़ें: महाकुंभ 2021 के लिए तैयार हरिद्वार, भव्य और दिव्य होगा मेला इस बार

हिला दिया था दुर्मी ताल ने

वर्ष 1971 में भारी बारिश और बादल फटने से दुर्मी ताल फट गया. तब चमोली में जिला मुख्यालय था. ताल का मलबा जिला मुख्यालय के भवनों को अपने साथ बहा ले गया. बिरही में लोगों के खेत-खलियान बह गए थे. इसके बाद जिला मुख्यालय को गोपेश्वर में शिफ्ट कर दिया गया. तब से दुर्मी ताल बिखरा पड़ा है.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि चमोली जिले में बहुत पहले दुर्मी ताल हुआ करता था, लेकिन आपदा के चलते यह ताल ढक गया है. हालांकि, अंग्रेजों के समय में यहां पर बोटिंग होती थी और एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन होने के साथ ही यहां पर टेलीफोन बूथ भी था.

लेकिन साल 1971 में हुई भारी भूस्खलन के चलते यह टूरिस्ट डेस्टिनेशन तहस-नहस हो गया. जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री को पिछले साल मिली थी. ऐसे में सीएम खुद चमोली जा रहे हैं और दुर्मी ताल की स्थिति से भी रूबरू होंगे. इस ताल के जीर्णोद्धार के लिए प्लान तैयार करने के लिए अधिकारियों को कहा गया है. ताकि जल संरक्षण मुहिम के तहत यहां लोगों का ध्यान आकर्षित हो सके.

देहरादून: चमोली जनपद की निजमुला घाटी में मौजूद विशाल दुर्मी ताल के पुनर्निर्माण को लेकर पिछले साल कवायद शुरू की गई थी, इस ताल के पुनर्निर्माण के बाद न सिर्फ चमोली में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. बल्कि रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे. वहीं, गुरुवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद इसका निरीक्षण करने चमोली जा रहे हैं. विशाल दुर्मी ताल वर्ष 1971 में भारी भूस्खलन और बारिश की वजह से तहस-नहस हो गया था. जिसके बाद से ही इस ताल की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

दुर्मी ताल का CM त्रिवेंद्र करेंगे निरीक्षण.

बता दें कि पिछले साल सितंबर महीने में दुर्मी ताल पुनर्निर्माण संरक्षण समिति ने ताल के नए स्वरूप की एनीमेशन इमेज जारी की थी. जिसमें ताल का स्वरूप दुर्मी गांव से पगना गांव तक किए जाने के लिए समिति के सदस्य पिछले साल मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की थी. साथ ही समिति ने मास्टर प्लान के तहत ताल के संरक्षण की मांग उठाते हुए कहा था कि इस ताल के स्वरूप से कोई छेड़छाड़ ना की जाए.

दुर्मी ताल से जुड़ी है पौराणिक मान्यता

निजमुला घाटी की सुरम्य वादियों के मध्य स्थित दुर्मी ताल का धार्मिक महत्व भी है. मान्यता है कि जब मां पार्वती ने भगवान शिव से इस स्थान पर थोड़ी देर विश्राम करने की इच्छा जताई, तो भगवान शिव ने मां पार्वती के आग्रह पर यहां कुछ पल बिताया था. इसी दौरान प्यास बुझाने और स्नान के लिए भोले नाथ ने अपनी त्रिशूल से एक तालाब उत्पन्न कर दिया. जिसे दुर्मी ताल नाम से जाना जाता है.

ये भी पढ़ें: महाकुंभ 2021 के लिए तैयार हरिद्वार, भव्य और दिव्य होगा मेला इस बार

हिला दिया था दुर्मी ताल ने

वर्ष 1971 में भारी बारिश और बादल फटने से दुर्मी ताल फट गया. तब चमोली में जिला मुख्यालय था. ताल का मलबा जिला मुख्यालय के भवनों को अपने साथ बहा ले गया. बिरही में लोगों के खेत-खलियान बह गए थे. इसके बाद जिला मुख्यालय को गोपेश्वर में शिफ्ट कर दिया गया. तब से दुर्मी ताल बिखरा पड़ा है.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि चमोली जिले में बहुत पहले दुर्मी ताल हुआ करता था, लेकिन आपदा के चलते यह ताल ढक गया है. हालांकि, अंग्रेजों के समय में यहां पर बोटिंग होती थी और एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन होने के साथ ही यहां पर टेलीफोन बूथ भी था.

लेकिन साल 1971 में हुई भारी भूस्खलन के चलते यह टूरिस्ट डेस्टिनेशन तहस-नहस हो गया. जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री को पिछले साल मिली थी. ऐसे में सीएम खुद चमोली जा रहे हैं और दुर्मी ताल की स्थिति से भी रूबरू होंगे. इस ताल के जीर्णोद्धार के लिए प्लान तैयार करने के लिए अधिकारियों को कहा गया है. ताकि जल संरक्षण मुहिम के तहत यहां लोगों का ध्यान आकर्षित हो सके.

Last Updated : Feb 2, 2021, 10:25 PM IST

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