देहरादून: 19 साल पहले जिस सपनों के साथ उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया था, आज उत्तराखंडवासियों का वो सपने पूरा होता दिख रहा है. त्रिवेंद्र सरकार ने बुधवार को इतिहास रचते हुए गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की है.
19 साल से उत्तराखंडवासी अपने उस सपने के साकार होने का इंताजर कर रहे थे जिसके लिए उन्होंने सालों तक लंबी लड़ाई लड़ी. पहाड़ की राजधानी पहाड़ में हो इसी सपने का साथ पृथक उत्तराखंड की मांग उठी थी. राज्य आंदोलन से शुरुआत में ही उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण में बनाने का निर्णय लिया था. लेकिन इस पर आज तक निर्णय नहीं हो पाया था.
90 के दशक में जब पृथक राज्य की मांग विधिवत रूप से आगे बढ़ी तब से ही इस प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में गैरसैंण को देखा जाने लगा था. इसके बाद पृथक उत्तराखंड के लिए कई छोटे-बड़े आंदोलन हुए. आखिरकार तत्कालीन अटल सरकार ने 9 नवंबर 2000 को यूपी से अलग करके उत्तराखंड का 28वें राज्य के रूप में गठन किया. इसके बाद शुरू हुई स्थाई राजधानी की लड़ाई.
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एक सदस्यीय दीक्षित आयोग का गठन
राज्य गठन के बाद बीजेपी के नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने, लेकिन स्थाई राजधानी की समस्या जस की तस रही. नित्यानंद स्वामी के बाद भगत सिंह कोश्यारी प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने लेकिन वे भी स्थाई राजधानी को लेकर कोई निर्णय नहीं ले पाए. इसके बाद सत्ता बदली और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई. एनडी तिवारी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद तत्कालीन सीएम तिवारी ने स्थाई राजधानी के लिए 11 जनवरी 2001 को एक सदस्यी दीक्षित आयोग का गठन किया.
80 पन्नो की रिपोर्ट
इस आयोग का काम उत्तराखंड के विभिन्न नगरों का अध्ययन कर प्रदेश की राजधानी के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थल का चुनाव करना था. दीक्षित आयोग ने राजधानी के लिए पांच शहरों को (देहरादून, काशीपुर, रामनगर, ऋषिकेश तथा गैरसैंण) चिन्हित किया. इन पर व्यापक शोध के बाद अपनी 80 पन्नों की रिपोर्ट 17 अगस्त 2008 को उत्तराखंड विधानसभा में पेश की. इस रिपोर्ट में दीक्षित आयोग ने देहरादून और काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था. विषम भौगोलिक दशाओं, भूकंपीय आंकड़ों और अन्य कारकों पर विचार करते हुए कहा था कि गैरसैंण स्थायी राजधानी के लिये सही स्थान नहीं है.
पूर्व सीएम विजय बहुगुणा का योगदान
इसके बाद से लोग यह मानने लगे थे कि अब स्थायी राजधानी देहरादून ही रहेगी. इसी बीच 2012 में विजय बहुगुणा के हाथ में राज्य के सत्ता की चाबी आयी और उन्होंने अस्थायी राजधानी से बाहर गैरसैंण में अपनी कैबिनेट बैठक की. इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि सरकार 2013 में गैरसैंण में विधानसभा और विधायक निवास बनाएगी.
इसके बाद लोगों में एक बार फिर गैरसैंण को लेकर आस जगी. इसके बाद हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री बने उन्होंने भी वहां विधानसभा सत्र का आयोजन कराया है. लेकिन स्थाई राजधानी के मुद्दे पर मौन रहे. 2017 में एक बार बीजेपी सत्ता में आई और इस बार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सरकार ने इतिहास रचते हुए गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया.