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अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए थे 24 साल के वीर केसरी चंद, जयंती पर सीएम धामी ने किया याद

CM Pushkar Singh Dhami paid tribute to freedom fighter Kesari Chand 24 साल की उम्र में भारत की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने वाले वीर सपूत केसरी चंद की आज जयंती है. केसरी चंद उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र के रहने वाले थे. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मौके पर केसरी चंद को याद किया.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 1, 2023, 1:52 PM IST

देहरादून: भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए कई वीर सपूतों ने अपनी जान न्यौछावर की थी, तब कहीं जाकर भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी. देवभूमि उत्तराखंड के भी कई ऐसे वीर स्वतत्रंता सेनानी थे, जो आजादी के लिए शहीद हुए हैं. उन्हीं में से एक थे आजाद हिंद फौज के जांबाज सिपाही केसरी चंद, जिन्हें तीन मई 1945 को ब्रिटिश हुकूमत ने दिल्ली में फांसी दी थी. आज वीर केसरी चंद की जयंती है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केसरी चंद को उनकी जयंती पर नमन करते हुए उनके बलिदान को याद किया.

  • महान स्वतंत्रता सेनानी, उत्तराखंड के वीर सपूत, आजाद हिंद फौज के सिपाही, अमर शहीद केसरी चंद जी की जयंती पर शत्-शत् नमन। देश की स्वतंत्रता हेतु दिया गया आपका सर्वोच्च बलिदान हम सभी को सदैव प्रेरित करता रहेगा। pic.twitter.com/YMhtpBrOy3

    — Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) November 1, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

जौनसार बावर के वीर सपूत केसरी चंद: महान स्वतंत्रता सेनानी, उत्तराखंड के वीर सपूत और आजाद हिंद फौज के जांबाज सिपाही केसरी चंद का जन्म एक नंवबर 1920 को उत्तराखंड के जौनसार बाबर क्षेत्र के क्यावा गांव में हुआ था. केसरी चंद के पिता का नाम पंडित शिव दत्त था. केसरी चंद की प्राथमिक शिक्षा देहरादून जिले के विकासनगर में ही हुई थी. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए केसरी चंद देहरादून आ गए थे. देहरादून के डीएवी इंटर कॉलेज से केसरी चंद ने हाईस्कूल किया और फिर यहां पर इंटर यानी 12वीं की पढ़ाई जारी रखी.
पढ़ें- वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के आश्रितों को भूमिधरी अधिकार दिलाने की मांग, कांग्रेस ने CM योगी से मांगा समय

बीच में छोड़ दी थी पढ़ाई: बताया जाता है कि जिस दौरान केसरी चंद इंटर की पढ़ाई कर रहे थे, तभी 12वीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने साल 1941 में रॉयल इंडियन आर्मी सर्विस कोर ज्वाइन करने का मन बनाया. वहां वो नायब सूबेदार के तौर पर भर्ती हो गए थे. तब केसरी चंद ने रॉयल इंडियन आर्मी सर्विस कोर की तरफ से द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया. केसरी चंद मलाया में तैनात थे. इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने युद्ध बंदी बना लिया था. हालांकि उसी दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिंद फौज का गठन हुआ था. तभी केसरी चंद के मन में भी देश भक्ति की भावना जागी और वो देश को आजाद कराने का सपना लिए आजादी के दीवानों की टोली में शामिल हो गए.

इम्फाल में ब्रिटिश हुकूमत से भिड़ गए केसरी चंद: बताया जाता है कि आजाद हिंद फौज के जवान साल 1944 में बर्मा से भारत की सीमा में घुसे थे और मणिपुर की राजधानी इम्फाल तक पहुंचे थे. इम्फाल में ही आजाद हिंद फौज के जवानों का सामना ब्रिटिश हुकूमत के सैनिकों से हुआ था. इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने केसरी चंद समेत आजाद हिंद फौज के कई स्वतंत्रता सेनानियों को बंदी बना लिया था.
पढ़ें- मसूरी में पहले स्वतंत्रता दिवस पर सार्वजनिक तौर पर नहीं फहराया गया था तिरंगा, जानिए वजह

आजादी के लिए हंसते हुए फांसी चढ़ गया था 24 साल का युवा: ब्रिटिश हुकूमत केसरी चंद समेत सभी स्वतंत्रता सेनानियों को बंधक बनाकर दिल्ली ले आई थी. केसरी चंद को दिल्ली की एक जेल में बंद किया था. साथ ही ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया, जिसमें उन्हें फांसी की सजा दी गई थी. इसके बाद भी 24 साल के केसरी चंद ब्रिटिश हुकूमत के सामने झुके नहीं और हंसते-हंसते उन्होंने फांसी का फंदा चूम लिया था. केसरी चंद को तीन मई 1945 को फांसी दी गई थी. केसरी चंद ने देश के लिए जो बलिदान दिया उससे हर उत्तराखंडवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. केसरी चंद जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत ही 1947 में हमें ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी.

देहरादून: भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए कई वीर सपूतों ने अपनी जान न्यौछावर की थी, तब कहीं जाकर भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी. देवभूमि उत्तराखंड के भी कई ऐसे वीर स्वतत्रंता सेनानी थे, जो आजादी के लिए शहीद हुए हैं. उन्हीं में से एक थे आजाद हिंद फौज के जांबाज सिपाही केसरी चंद, जिन्हें तीन मई 1945 को ब्रिटिश हुकूमत ने दिल्ली में फांसी दी थी. आज वीर केसरी चंद की जयंती है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केसरी चंद को उनकी जयंती पर नमन करते हुए उनके बलिदान को याद किया.

  • महान स्वतंत्रता सेनानी, उत्तराखंड के वीर सपूत, आजाद हिंद फौज के सिपाही, अमर शहीद केसरी चंद जी की जयंती पर शत्-शत् नमन। देश की स्वतंत्रता हेतु दिया गया आपका सर्वोच्च बलिदान हम सभी को सदैव प्रेरित करता रहेगा। pic.twitter.com/YMhtpBrOy3

    — Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) November 1, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

जौनसार बावर के वीर सपूत केसरी चंद: महान स्वतंत्रता सेनानी, उत्तराखंड के वीर सपूत और आजाद हिंद फौज के जांबाज सिपाही केसरी चंद का जन्म एक नंवबर 1920 को उत्तराखंड के जौनसार बाबर क्षेत्र के क्यावा गांव में हुआ था. केसरी चंद के पिता का नाम पंडित शिव दत्त था. केसरी चंद की प्राथमिक शिक्षा देहरादून जिले के विकासनगर में ही हुई थी. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए केसरी चंद देहरादून आ गए थे. देहरादून के डीएवी इंटर कॉलेज से केसरी चंद ने हाईस्कूल किया और फिर यहां पर इंटर यानी 12वीं की पढ़ाई जारी रखी.
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बीच में छोड़ दी थी पढ़ाई: बताया जाता है कि जिस दौरान केसरी चंद इंटर की पढ़ाई कर रहे थे, तभी 12वीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने साल 1941 में रॉयल इंडियन आर्मी सर्विस कोर ज्वाइन करने का मन बनाया. वहां वो नायब सूबेदार के तौर पर भर्ती हो गए थे. तब केसरी चंद ने रॉयल इंडियन आर्मी सर्विस कोर की तरफ से द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया. केसरी चंद मलाया में तैनात थे. इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने युद्ध बंदी बना लिया था. हालांकि उसी दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिंद फौज का गठन हुआ था. तभी केसरी चंद के मन में भी देश भक्ति की भावना जागी और वो देश को आजाद कराने का सपना लिए आजादी के दीवानों की टोली में शामिल हो गए.

इम्फाल में ब्रिटिश हुकूमत से भिड़ गए केसरी चंद: बताया जाता है कि आजाद हिंद फौज के जवान साल 1944 में बर्मा से भारत की सीमा में घुसे थे और मणिपुर की राजधानी इम्फाल तक पहुंचे थे. इम्फाल में ही आजाद हिंद फौज के जवानों का सामना ब्रिटिश हुकूमत के सैनिकों से हुआ था. इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने केसरी चंद समेत आजाद हिंद फौज के कई स्वतंत्रता सेनानियों को बंदी बना लिया था.
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आजादी के लिए हंसते हुए फांसी चढ़ गया था 24 साल का युवा: ब्रिटिश हुकूमत केसरी चंद समेत सभी स्वतंत्रता सेनानियों को बंधक बनाकर दिल्ली ले आई थी. केसरी चंद को दिल्ली की एक जेल में बंद किया था. साथ ही ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया, जिसमें उन्हें फांसी की सजा दी गई थी. इसके बाद भी 24 साल के केसरी चंद ब्रिटिश हुकूमत के सामने झुके नहीं और हंसते-हंसते उन्होंने फांसी का फंदा चूम लिया था. केसरी चंद को तीन मई 1945 को फांसी दी गई थी. केसरी चंद ने देश के लिए जो बलिदान दिया उससे हर उत्तराखंडवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. केसरी चंद जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत ही 1947 में हमें ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी.

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