देहरादून: बसंत ऋतु के स्वागत का त्योहार 'फूलदेई' सूबे में बड़े धूमधाम से मनाया गया. इस त्योहार की धूम राजधानी देहरादून में भी देखने को मिली. जहां छोटे-छोटे बच्चों ने मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर लोक-पारंपरिक तरीके से फूलदेई का त्योहार मनाया. इस मौके पर मुख्यमंत्री ने बच्चों को उपहार देने के साथ ही लोगों को लोक संस्कृति से जुड़े इस पर्व की शुभकामनाएं दीं.
।।फूलदेई, छम्मा देई, छम्मा देई, देणि द्वार, भर भकार, ते देलि स बारम्बार नमस्कार।।
— Trivendra Singh Rawat त्रिवेंद्र सिंह रावत (@tsrawatbjp) March 14, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। pic.twitter.com/fGpO4scvaM
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— Trivendra Singh Rawat त्रिवेंद्र सिंह रावत (@tsrawatbjp) March 14, 2019
उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। pic.twitter.com/fGpO4scvaM।।फूलदेई, छम्मा देई, छम्मा देई, देणि द्वार, भर भकार, ते देलि स बारम्बार नमस्कार।।
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उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। pic.twitter.com/fGpO4scvaM
गुरुवार को छोटे-छोटे बच्चे मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के आवास पर फूलों की टोकरी लेकर पहुंचे. जहां उन्होंने सीएम आवास की देहरी की पूजा कर पुष्प अर्पित किए. मुख्यमंत्री ने भी सभी बच्चों को प्रकृति के इस त्योहार शुभकामनाएं दी. उन्होंने कहा कि यह पर्व उत्तराखण्ड की संस्कृति को उजागर करता है. इसलिए हमें अपनी लोक संस्कृति को संजोकर रखने की जरूरत है. मुख्यमंत्री ने ट्वीट करके भी सभी प्रदेश वासियों को फूलदेई पर्व की शुभकामनाएं दी है.
बसंत ऋतु के स्वागत का त्योहार है फूलदेई
फूलदेई उत्तरांखड की संस्कृति और प्रकृति से जुड़ा सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक त्योहार है. यह त्योहार चैत्र संक्रांति यानी चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होता है और अष्टमी तक चलता है. फूलदेई त्योहार का संबंध भी प्रकृति के साथ जुडा है. यह बसंत ऋतु के स्वागत का प्रतीक है. क्योंकि बसंत ऋतु में आगमन से साथ ही चारों और रंग बिरंगे फूल खिल जाते है.
बच्चे रंगे-बिरंगे फूलों से सजाते हैं घर की चौखट
फूलदेई त्योहार को गढ़वाल में घोघा कहा जाता है. पहाड़ के लोगों का जीवन प्रकृति पर निर्भर होता है. इसलिये यहां मनाए जाने वाले अधिकतर त्योहार किसी न किसी रूप में प्रकृति से जुड़े होते हैं. चैत्र महीने के पहले दिन छोटे-छोटे बच्चे खासकर लड़कियां सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चलीजातीहैं और वहां से फ्यूंली, बुरांस, आडू, खुबानी व पुलम आदि के फूलों को तोड़कर रिंगाल से बनीटोकरी में रखते हैं. इसके बाद बच्चे गांव के प्रत्येक घर की दहलीज पर फूलों को चावल के साथ रखते हैं. इसके बदले घर के मुखिया बच्चों को गुड़ और दक्षिणा देता है. इस दौरान बच्चे ‘फूल देई छम्मा देई, देणी द्वार भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार’ आदि लोकगीत गाते हैं.