देहरादून: आपको यह जानकर हैरानी होगी कि तनाव भरी शिक्षा व्यवस्था और अन्य कई कारणों के चलते अब स्कूली बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार होने लगे हैं. इस बात का खुलासा खुद मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट में किया है.
गौर हो कि मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 11 से 17 साल की आयु वर्ग के स्कूली बच्चे आज उच्च तनाव का शिकार हो रहे हैं. जिसकी वजह से कई छात्र-छात्राओं को डिप्रेशन भी पाया गया हैं. इस पूरी रिपोर्ट को तैयार करने के लिए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका तंत्र संस्थान (NIMHANS)बेंगलुरु की ओर से देश के 12 राज्यों में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया गया था.
जिसमें 34802 एडल्ट और 1191 किशोर किशोरियों से बात की गई, जिसके बाद यह बात सामने आई कि देश के 13 से 17 साल के लगभग 8 फीसदी बच्चें पढ़ाई के प्रेशर के चलते तनाव का शिकार हो रहे हैं. वहीं, इस पूरी सर्वे रिपोर्ट में गौर करने वाली बात यह भी है कि इस रिपोर्ट के अनुसार गांव के मुकाबले शहरी क्षेत्रों के स्कूली बच्चों में मानसिक तनाव ज्यादा पाया गया है.
जहां गांव के 6.9 फ़ीसदी बच्चे मानसिक तनाव या मानसिक बीमारी का शिकार पाए गए तो वहीं शहरी क्षेत्रों में लगभग दोगुना यानी 13.5 फीसदी बच्चे मानसिक बीमारी के शिकार पाए गए हैं.वहीं साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर मुकुल शर्मा का कहना है कि जिस तरह से आजकल स्कूली बच्चों को होमवर्क के बोझ से लादा जा रहा है, यह तनाव का एक सबसे बड़ा कारण है.
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वहीं, दूसरी तरफ जो बच्चे डिप्रेशन में जा रहे हैं उसका एक कारण यह भी है कि आजकल मां बाप बच्चों को इतना टाइम नहीं दे पा रहे हैं जितना एक बच्चे को दिया जाना चाहिए. यही कारण है कि बच्चा अकेलेपन का शिकार हो रहा है और डिप्रेशन में जा रहा है.
डिप्रेशन के विषय में जब ईटीवी संवाददाता प्रगति पचौली ने कुछ स्कूली बच्चों से बात की तो उनका यह कहना था कि स्कूल से मिलने वाले होमवर्क और एग्जाम प्रेशर की वजह से कई बार वह तनाव में चले जाते हैं. साथ ही अधिकांश बच्चों की यही राय है.