देहरादून: जिन हाथों में किताबें और खिलौने होने चाहिए, वो हाथ अक्सर सड़कों पर भीख मांगते दिखाई देते हैं. सरकार और संस्थाओं की कार्रवाई व चिंतन के बाद भी मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. वहीं बाल भिक्षावृत्ति के मामले दिन प्रति- प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. जहां एक ओर बाल संरक्षण आयोग बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए तमाम कवायद कर रहा है, बावजूद इसके बाल भिक्षावृत्ति को रोकना आयोग के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. क्योंकि बाल संरक्षण आयोग की ओर से किए जा रहे प्रयासों के बावजूद सड़कों और धार्मिक स्थलों के बाहर बच्चे भीख मांगते नजर आ रहे हैं.
जिसकी मुख्य वजह यही है कि परिजन खुद सीमित संसाधनों और आर्थिक अभाव के चलते अपने बच्चों से भी मंगवा रहे हैं. बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष गीता खन्ना ने कहा कि सड़कों पर भीख मांग रहे बच्चों का जब रेस्क्यू किया जाता है और उनसे बातचीत की जाती है तो पता चलता है कि वह बच्चे स्कूलों में पढ़ाई करते हैं. यानी, बच्चों से बातचीत में जानकारी मिली कि वो बच्चे दिन में स्कूल जाते हैं और उनके परिजन शाम को उन्हें एक्स्ट्रा इनकम के लिए भीख मंगवाते हैं. साथ ही कहा कि रेस्क्यू किए गए बच्चों के परिजनों से भी इस बाबत बातचीत की जाती है कि यह उम्र उनके पढ़ने-लिखने की है ना कि भीख मांगने की.
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हालांकि, परिजनों को समझाया ही जा सकता है, क्योंकि अगर कोई कार्रवाई की जाती है तो उससे उन परिवारों के लिए और अधिक आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा. ऐसे में बच्चों के भविष्य के लिए भी यह काफी खतरनाक हो सकता है. लिहाजा आयोग की ओर से भीख मांग रहे बच्चों को समझाया और बताया जाता है कि वह जो कर रहे हैं वह गलत है. साथ ही कहा कि ऐसे परिजनों को जागरूक किए जाने को लेकर डिस्ट्रिक्ट टास्क फोर्स द्वारा लगातार काम किया जा रहा है.