देहरादून: 2021 हरिद्वार में होने जा रहे कुंभ की भव्य तैयारियों में त्रिवेंद्र सरकार जुटी हुई है. इन तैयारियों के बीच कुंभ से पहले एक बड़ा विवाद खड़ा हो सकता है. हरीश रावत सरकार द्वारा जारी हुए शासनादेश को लेकर एक बड़ा विवाद छिड़ सकता है. दरअसल, हरीश रावत सरकार ने साल 2016 में शासनादेश जारी कर हरकी पैड़ी के ब्रह्मकुंड से गुजरने वालीं गंगा नदी को स्कैप चैनल (नहर) का दर्जा दिया था. ETV BHARAT से खास बातचीत में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पूरे विवाद पर अपनी राय रखी.
सीएम रावत के मुताबिक किसी नदी का नाम या किसी जगह का नाम बदलने से उसका महत्व कम नहीं हो जाता. अगर लोगों को ऐसा लगता है कि हरिद्वार की हरकी पैड़ी का नाम बदलकर नहर करना हिंदू धर्म और आस्था के खिलाफ है तो, वह इस पर एक बार फिर से विचार करेंगे. सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कुंभ मेले को किसी भी विवाद में नहीं आने देंगे, लिहाजा जल्द ही उसको लेकर कोई निर्णय लिया जाएगा. सभी साधु-संतों, तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय लोगों की भावनाओं का ख्याल भी रखा जाएगा.
मुख्यमंत्री रावत की बातों से साफ है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी नहीं चाहते कि कुंभ मेले से पहले किसी भी तरह का कोई विवाद खड़ा हो. ऐसे में उम्मीद यही जताई जा रही है कि सीएम त्रिवेंद्र इस पर जल्द ही कोई फैसला लेकर इस विवाद का पटाक्षेप जल्दी कर देंगे.
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क्या है हरीश सरकार का शासनादेश?
हरीश रावत सरकार ने साल 2016 में एक शासनादेश जारी किया था. इस शासनादेश में कहा गया था कि हरिद्वार के भीमगौड़ा से निकलने वाली नदी गंगा नहीं बल्कि स्कैप चैनल (नहर) है. हरीश रावत सरकार के शासनादेश ने हरिद्वार के ब्रह्मकुंड का पूरा इतिहास और भूगोल ही बदल कर रख दिया था. यह शासनादेश राज्य सरकार को इसलिए जारी करना पड़ा था क्योंकि एनजीटी ने साफ कह दिया था कि गंगा से 200 किलोमीटर की दूरी पर किसी तरह का कोई भी नया निर्माण नहीं हो सकता.
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लिहाजा ऐसे में हरीश रावत को लगता था कि मौजूदा समय में व्यापारी और दूसरे कई तबके इस बात से नाराज हो सकते थे, क्योंकि न केवल अखाड़ों बल्कि व्यापारियों के भी बड़े-बड़े होटल और सरकारी भवनों का काम भी गंगा के नजदीक चल रहा था. लिहाजा हरीश रावत सरकार ने एनजीटी को गच्चा देने के लिए भीमगौड़ा से निकलने वाली गंगा नदी को स्कैप चैनल (नहर) का दर्जा दे दिया था.
धर्मनगरी हरिद्वार में हरकी पैड़ी के स्थान को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के फैसले का पुरजोर विरोध हुआ था. उस वक्त हरिद्वार के गंगा घाटों पर गंगा सभा का कार्य संभाल रहे तीर्थ पुरोहितों ने भी इसका पुरजोर विरोध किया था. इतना ही नहीं, हरिद्वार के हर दौरे पर हरीश रावत का जमकर विरोध हुआ था.