देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से न सिर्फ देश की आर्थिकी पर गहरा असर पड़ा है, बल्कि इस महामारी के चलते छात्रों की शिक्षा अधर में लटकी है. क्योंकि नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत होनी है, लेकिन इस महामारी के चलते देश के सभी कॉलेज पूर्ण रूप से बंद हैं. ऐसे में अब केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लाने की कवायद में जुट गई है, ताकि छात्रों की शिक्षा पर कोरोना संक्रमण का बुरा प्रभाव न पड़े. आखिर नई शिक्षा नीति में क्या कुछ हो सकता है बदलाव ? क्या सफल हो पाएगा नीति में बदलाव ? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...
22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया था, तब से लॉकडाउन जारी है. लॉकडाउन 3.0 के बाद केंद्र सरकार ने छोटे व्यापारियों समेत तमाम अन्य चीजों के जरिये जनता को बड़ी राहत दी, लेकिन स्कूल कॉलेज खोलने की अभी भी मनाही है. ऐसे में अब छात्रों की शिक्षा पर कोई असर ना पड़े. इसको लेकर केंद्र सरकार नई रणनीति बनाने में जुट गई है, ताकि बच्चों को शिक्षा मिलती रहे.
जल्द जारी हो सकती है नई शिक्षा नीति
उच्च शिक्षा राज्य मंत्री धन सिंह रावत ने बताया कि केंद्र सरकार जल्द ही एक नई शिक्षा नीति जारी करने जा रही है, जिसकी लंबे समय से कवायद चल रही थी. यही नहीं, इस नई शिक्षा नीति में बदलाव को लेकर करीब एक लाख लोगों ने अपने सुझाव दिए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि लॉकडाउन कार्यकाल के बाद क्या ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को बढ़ाया जा सकता है ? इस पर निर्णय लिया जाना बाकी है. इसके लिए शिक्षाविदों, मीडिया, प्राचार्य, कुलपतियों और छात्रों से चर्चा की जाएगी. इसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा की शिक्षा नीति में क्या-क्या बदलाव किया जाना है ?
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ऑनलाइन पद्दति पर दिया जा सकता है जोर
धन सिंह रावत ने बताया कि अगर यह महामारी लंबे समय तक चलती है तो ऐसे में कॉलेज खोलना बहुत मुश्किल है. लिहाजा नई शिक्षा नीति में बदलाव जरूर किया जाएगा और ऑनलाइन पढ़ाई पद्धति पर जाया जा सकता है. साथ ही बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई पद्धति में एक फायदा यह है कि जहां सामान्य दिनों में कॉलेजों में छात्रों का अटेंडेंस करीब 72 फीसदी तक रहती थी, वहीं अब लॉकडाउन के दौरान चल रहे ऑनलाइन क्लास से 90 फीसदी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. जिससे साफ जाहिर है कि कॉलेजों में छात्र कम आते थे, लेकिन ऑनलाइन माध्यम से छात्र ज्यादा पढ़ाई कर रहे हैं जो इसका एक पॉजिटिव तथ्य है.
कोरोना काल के लिए ऑनलाइन शिक्षा पद्धति है ठीक
वहीं, प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र सिन्हा ने बताया की ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को बढ़ाया जाना केंद्र सरकार की अच्छी पहल है, जिसका दूरगामी परिणाम देखने को मिलेगा. लेकिन वर्तमान समय में इसे देखा जाए तो यह अच्छा कदम नहीं है. क्योंकि, उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से राज्य के तमाम पर्वतीय इलाकों में इंटरनेट की समस्या अमूमन बनी रहती है. इसके साथ ही गरीब तबके के लोग इंटरनेट के खर्चे को वहन नहीं कर सकेंगे. साथ ही कॉलेज में जाने से छात्रों को संस्कार के साथ ही व्यवहार आदि सीखने को मिलता है. लेकिन ऑनलाइन के बाद वो इससे दूर हो जाएंगे. हालांकि करोना काल के लिए सरकार का यह कदम ठीक है.
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साइंस सब्जेक्ट के लिए नहीं है ऑनलाइन शिक्षा पद्धति
वहीं, डीबीएस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. केपी सिंह ने बताया कि ऑनलाइन शिक्षा पद्धति आर्ट साइड सब्जेक्ट के लिए तो ठीक है, लेकिन साइंस सब्जेक्ट के लिए ऑनलाइन पद्धति कारागार नहीं है. क्योंकि साइंस में प्रैक्टिकल होते हैं. जिन्हें ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के माध्यम से नहीं समझा जा सकता और ना ही किया जा सकता है. इसके साथ ही ऑनलाइन शिक्षा पद्धति में स्मार्टफोन और नेट होना बहुत जरूरी है. तभी ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के जरिए छात्र पढ़ाई कर पाएंगे, लेकिन उत्तराखंड राज्य के तमाम क्षेत्र ऐसे हैं जहां स्थिति और थोड़ी भिन्न है. ऐसे में वहां के छात्र ऑनलाइन शिक्षा पद्धति से पढ़ सकें ऐसा बहुत मुश्किल है.