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उत्तराखंड की मिट्टी से जुड़ी थी CDS बिपिन रावत की जड़ें, थाती-माटी से था खास लगाव

कुन्नूर में सेना के हेलिकॉप्टर क्रैश (Army helicopter crashes in Coonoor) में CDS बिपिन रावत (CDS Bipin Rawat) की मौत हो गई है. CDS बिपिन रावत की मौत के बाद से ही देशभर में शोक की लहर है. हर कोई CDS बिपिन रावत को अपनी-अपनी तरह से याद कर रहा है. बिपिन रावत की जड़ें अपने गांव की मिट्टी से जुड़ी थी. उन्हें अपनी थाती-माटी से विशेष लगाव था.

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उत्तराखंड के मिट्टी से जुड़ी हैं CDS बिपिन रावत की जड़ें
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Published : Dec 8, 2021, 6:46 PM IST

Updated : Dec 9, 2021, 6:30 AM IST

देहरादून: CDS बिपिन रावत की आज तमिलनाडु में विमान दुर्घटना में मौत हो गई है. ये हादसा तमिलनाडु के कोयंबटूर और सुलूर के बीच कुन्नूर में हुआ. दुर्घटनाग्रस्त वायुसेना के एमआई17-वी5 हेलिकॉप्टर में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और उनके साथी सवार थे. इस हादसे से देश को एक बड़ा झटका लगा है. CDS बिपिन रावत देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ थे. 1 जनवरी 2020 को इस पद पर उनकी नियुक्ति हुई थी. इससे पहले रावत 27वें थल सेनाध्यक्ष (Chief of Army Staff) थे. 2016 में वो आर्मी चीफ बने थे. आइए बिपिन रावत के बारे में कुछ बड़ी बातें जानते हैं.

दीक्षांत समारोह में उत्तराखंड से जुड़ाव की कही बात: CDS बिपिन रावत का उत्तराखंड के बहुत लगाव था. उनके जड़ें उत्तराखंड की मिट्टी से जुड़ी हुई थी. CDS बिपिन रावत धाती-माटी के लाल थे, यही कारण था कि वे उत्तराखंड को प्राथमिकता देते थे. वे गांव में पूजा हो या फिर कोई अन्य कार्यक्रम लगभग सभी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे. CDS बिपिन रावत को जब भी उत्तराखंड आने का मौका मिलता था वे इसे छोड़ते नहीं थे. पिछली एक दिसंबर को CDS बिपिन रावत गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के नौंवे दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे.

उत्तराखंड के मिट्टी से जुड़ी हैं CDS बिपिन रावत की जड़ें

यहां CDS बिपिन रावत ने अपने संबोधन की शुरुआत ही उत्तराखंड के लगाव से जुड़ी बातों से शुरू की. इसके साथ ही वे उत्तराखंड में पलायन और मेडिकल सुविधाओं को लेकर भी मुखर रहते थे. वे सैन्य माध्यमों के जरिये दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा पहुंचाना चाहते थे. उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में खाली होते गांवों को लेकर भी वे खासे चिंतित दिखाई दिखाई देते थे. हाल ही में उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्रों में सुविधाएं और संसाधन जुटाकर आबादी बसाने की बात कही थी.

उत्तराखंड से ताल्लुक रखते थे बिपिन रावत: CDS बिपिन रावत उत्तराखंड के रहने वाले थे. उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. सीडीएस बिपिन रावत पौड़ी, द्वारीखाल ब्लाक के सैंण गांव के मूल निवासी थे. जनरल रावत के घर तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना पड़ता है. जनरल बिपिन रावत का परिवार दशकों पहले देहरादून शिफ्ट हो गया था, लेकिन उन्हें अपने पैतृक गांव सैंण से इतना लगाव था कि वह यहां आते-जाते रहते थे. गांव में उनके चाचा भरत सिंह रावत और उनका परिवार रहता है.

गोरखा राइफल्स हुए नियुक्त: जनरल रावत की पढ़ाई देहरादून से शुरू हुई. उन्होंने कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी स्कूल से दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की है जो लड़कियों का स्कूल है. इसके बाद जरनल बिपिन रावत, सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकसला के पूर्व छात्र रहे. उन्हें दिसंबर 1978 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से ग्यारह गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में नियुक्त किया गया था, जहां उन्हें 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर 'से सम्मानित किया गया. उनके पास आतंकवाद रोधी अभियानों में काम करने का 10 वर्षों का अनुभव था.

पीढ़ियों से सेना में सेवाएं दे रहा परिवार: CDS बिपिन रावत की परिवार की कई पीढ़ियां सेना में सेवा दे चुकी हैं. उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत थे, वे कई सालों तक भारतीय सेना का हिस्सा रहे. जनरल बिपिन रावत इंडियन मिलिट्री एकेडमी और डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में पढ़ चुके हैं. इन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से डिफेंस सर्विसेज में एमफिल की है.

अपने ही पिता की यूनिट में बने अधिकारी: उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे रावत 16 दिसंबर 1978 में गोरखा राइफल्स की फिफ्थ बटालियन में शामिल हुए. यही उनके पिता की यूनिट भी थी. दिसंबर 2016 में भारत सरकार ने जनरल बिपिन रावत को भारतीय सेना प्रमुख बनाया.

जोश से लबरेज और अनुभवी थे रावत: रावत के पास अशांत इलाकों में लंबे समय तक काम करने का अनुभव था. भारतीय सेना में रहते उभरती चुनौतियों से निपटने, नॉर्थ में मिलिटरी फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी फ्रंट पर लगातार जारी आतंकवाद व प्रॉक्सी वॉर और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष के लिहाज से उन्हें सबसे सही विकल्प माना जाता था. सर्जिकल स्ट्राइक और एलएसी पर भारत के रुख में भी रावत का बड़ा योगदान था.

आईएमए की पासिंग आउट परेड में होना था शामिल: बता दें सीडीएस बिपिन रावत को आईएमए की पासिंग आउट परेड में शामिल होने के लिए देहरादून आना था. चॉपर क्रैश की घटना के बाद आईएमए प्रशासन हर अपडेट पर पूरी नजर रखे हुए है. आगामी शनिवार को आईएमए की पासिंग आउट परेड होनी है, जिसके लिए तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. और बताया जा रहा है कि इस बार यह कार्यक्रम बेहद खास होने वाला है.

उत्तराखंड के युवाओं के लिए हैं प्रेरणा स्रोत: परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल से सम्मानित जनरल बिपिन रावत का जिक्र होते ही जैसे उत्तराखंड के लोगों में एक ऊर्जा का संचार हो जाता है. यह नाम अब युवाओं के लिए प्रेरणा, आदर्श के साथ ही पहाड़ की पहचान बन चुका है. जनरल रावत जिस कौशल से सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बनाते थे, उसी कुशलता से अफसर और जवान तथा सेना और सिविलियंस के बीच की दूरियां मिटाने के फैसले लेकर मानवीय भावना का परिचय देते थे.

देहरादून: CDS बिपिन रावत की आज तमिलनाडु में विमान दुर्घटना में मौत हो गई है. ये हादसा तमिलनाडु के कोयंबटूर और सुलूर के बीच कुन्नूर में हुआ. दुर्घटनाग्रस्त वायुसेना के एमआई17-वी5 हेलिकॉप्टर में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और उनके साथी सवार थे. इस हादसे से देश को एक बड़ा झटका लगा है. CDS बिपिन रावत देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ थे. 1 जनवरी 2020 को इस पद पर उनकी नियुक्ति हुई थी. इससे पहले रावत 27वें थल सेनाध्यक्ष (Chief of Army Staff) थे. 2016 में वो आर्मी चीफ बने थे. आइए बिपिन रावत के बारे में कुछ बड़ी बातें जानते हैं.

दीक्षांत समारोह में उत्तराखंड से जुड़ाव की कही बात: CDS बिपिन रावत का उत्तराखंड के बहुत लगाव था. उनके जड़ें उत्तराखंड की मिट्टी से जुड़ी हुई थी. CDS बिपिन रावत धाती-माटी के लाल थे, यही कारण था कि वे उत्तराखंड को प्राथमिकता देते थे. वे गांव में पूजा हो या फिर कोई अन्य कार्यक्रम लगभग सभी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे. CDS बिपिन रावत को जब भी उत्तराखंड आने का मौका मिलता था वे इसे छोड़ते नहीं थे. पिछली एक दिसंबर को CDS बिपिन रावत गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के नौंवे दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे.

उत्तराखंड के मिट्टी से जुड़ी हैं CDS बिपिन रावत की जड़ें

यहां CDS बिपिन रावत ने अपने संबोधन की शुरुआत ही उत्तराखंड के लगाव से जुड़ी बातों से शुरू की. इसके साथ ही वे उत्तराखंड में पलायन और मेडिकल सुविधाओं को लेकर भी मुखर रहते थे. वे सैन्य माध्यमों के जरिये दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा पहुंचाना चाहते थे. उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में खाली होते गांवों को लेकर भी वे खासे चिंतित दिखाई दिखाई देते थे. हाल ही में उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्रों में सुविधाएं और संसाधन जुटाकर आबादी बसाने की बात कही थी.

उत्तराखंड से ताल्लुक रखते थे बिपिन रावत: CDS बिपिन रावत उत्तराखंड के रहने वाले थे. उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. सीडीएस बिपिन रावत पौड़ी, द्वारीखाल ब्लाक के सैंण गांव के मूल निवासी थे. जनरल रावत के घर तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना पड़ता है. जनरल बिपिन रावत का परिवार दशकों पहले देहरादून शिफ्ट हो गया था, लेकिन उन्हें अपने पैतृक गांव सैंण से इतना लगाव था कि वह यहां आते-जाते रहते थे. गांव में उनके चाचा भरत सिंह रावत और उनका परिवार रहता है.

गोरखा राइफल्स हुए नियुक्त: जनरल रावत की पढ़ाई देहरादून से शुरू हुई. उन्होंने कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी स्कूल से दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की है जो लड़कियों का स्कूल है. इसके बाद जरनल बिपिन रावत, सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकसला के पूर्व छात्र रहे. उन्हें दिसंबर 1978 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से ग्यारह गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में नियुक्त किया गया था, जहां उन्हें 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर 'से सम्मानित किया गया. उनके पास आतंकवाद रोधी अभियानों में काम करने का 10 वर्षों का अनुभव था.

पीढ़ियों से सेना में सेवाएं दे रहा परिवार: CDS बिपिन रावत की परिवार की कई पीढ़ियां सेना में सेवा दे चुकी हैं. उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत थे, वे कई सालों तक भारतीय सेना का हिस्सा रहे. जनरल बिपिन रावत इंडियन मिलिट्री एकेडमी और डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में पढ़ चुके हैं. इन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से डिफेंस सर्विसेज में एमफिल की है.

अपने ही पिता की यूनिट में बने अधिकारी: उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे रावत 16 दिसंबर 1978 में गोरखा राइफल्स की फिफ्थ बटालियन में शामिल हुए. यही उनके पिता की यूनिट भी थी. दिसंबर 2016 में भारत सरकार ने जनरल बिपिन रावत को भारतीय सेना प्रमुख बनाया.

जोश से लबरेज और अनुभवी थे रावत: रावत के पास अशांत इलाकों में लंबे समय तक काम करने का अनुभव था. भारतीय सेना में रहते उभरती चुनौतियों से निपटने, नॉर्थ में मिलिटरी फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी फ्रंट पर लगातार जारी आतंकवाद व प्रॉक्सी वॉर और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष के लिहाज से उन्हें सबसे सही विकल्प माना जाता था. सर्जिकल स्ट्राइक और एलएसी पर भारत के रुख में भी रावत का बड़ा योगदान था.

आईएमए की पासिंग आउट परेड में होना था शामिल: बता दें सीडीएस बिपिन रावत को आईएमए की पासिंग आउट परेड में शामिल होने के लिए देहरादून आना था. चॉपर क्रैश की घटना के बाद आईएमए प्रशासन हर अपडेट पर पूरी नजर रखे हुए है. आगामी शनिवार को आईएमए की पासिंग आउट परेड होनी है, जिसके लिए तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. और बताया जा रहा है कि इस बार यह कार्यक्रम बेहद खास होने वाला है.

उत्तराखंड के युवाओं के लिए हैं प्रेरणा स्रोत: परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल से सम्मानित जनरल बिपिन रावत का जिक्र होते ही जैसे उत्तराखंड के लोगों में एक ऊर्जा का संचार हो जाता है. यह नाम अब युवाओं के लिए प्रेरणा, आदर्श के साथ ही पहाड़ की पहचान बन चुका है. जनरल रावत जिस कौशल से सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बनाते थे, उसी कुशलता से अफसर और जवान तथा सेना और सिविलियंस के बीच की दूरियां मिटाने के फैसले लेकर मानवीय भावना का परिचय देते थे.

Last Updated : Dec 9, 2021, 6:30 AM IST
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