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आजादी के 72 साल बाद भी जातिवाद का दंश झेल रहा उत्तराखंड, पढ़िये खास रिपोर्ट - उत्तराखंड जाति

उत्तराखंड जैसा राज्य भी जाति विवाद का दंश झेल रहा है. कई जगहों से आज भी दलित उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं जबकि, यहां कुल आबादी की 18 फीसदी जनसंख्या दलित है.

दलितों के कार्यक्रम में खाना खाते सीएम त्रिवेंद्र
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Published : Aug 13, 2019, 4:00 PM IST

Updated : Aug 13, 2019, 8:00 PM IST

देहरादून: यूं तो देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरत वादियों और धामों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन देश की आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी राज्य जातिवाद का दंश झेल रहा है जबकि यहां कुल आबादी की 18 फीसदी जनसंख्या दलित है. वहीं राजनीतिक दल लगातार जातिवाद को खत्म करने की बात कहते आए हैं.

उत्तराखंड में जातिवाद.

उत्तराखंड एक छोटा राज्य है, बावजूद इसके यहां कुछ क्षेत्रों से दलित उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं. शिलगुर मंदिर देहरादून से करीब 150 किलोमीटर दूर जौनसार बावर इलाके की चकराता तहसील में है. यहां करीब 340 मंदिर हैं, जिनमें ज्यादातर में दलितों के प्रवेश पर रोक है. जबकि, राज्य की कुल आबादी का 18 प्रतिशत दलित है. वहीं, कुछ महीने पहले एक विवाद को लेकर ऊंची जाति के कुछ लोगों ने एक दलित को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि आखिर कब तक देवभूमि को जातिवाद का दंश झेलना पड़ेगा.

कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि आजादी के 72 वर्षों के बाद उत्तराखंड में जातिवाद बहुत कम है. अगर देश के अन्य राज्यों के अनुपात में देखें तो राज्य में जाति के नाम पर भेदभाव, हिंसा, उत्पीड़न, क्राइम आदि कम है. आज जिन लोगों के पास सत्ता आ गयी है. वो इस जातिवाद को खाद पानी देने का काम कर रहे हैं.

पढे़ं- 'टाइगर के घर' में सतपाल महाराज देंगे दखल, कॉर्बेट में मोदी ट्रेल खोलने की तैयारी

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जब से बीजेपी सरकार आयी है, तब से जातीय हिंसा बढ़ी है. जातीय आधार पर लोगों पर उत्पीड़नात्मक कार्रवाई भी हुई है. उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी समेत राज्य के अनेक हिस्सों में जाति और धर्म के आधार पर जो हिंसा हुई है, वो पिछले सात दशकों में नहीं हुई. हालांकि, उन्होंने कहा कि इसके लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. सामाजिक आंदोलनो को तेज और प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि यह बीमारी खत्म हो सके. भाजपा विधायक खजान दास ने बताया कि अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड बहुत बेहतरीन राज्य है. यहां पर जातीय हिंसा पर अंकुश लगाने के लिए सरकार लगातार काम रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि कुछ क्षेत्रों में जातीय हिंसा होती है, वहां सरकार का पूरा ध्यान है.

वहीं, नैनीताल सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने बताया कि बीजेपी की सरकारें जहां भी हैं, वहां कुरीतियों को दूर करने की कोशिश हो रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि अगर ऐसी कोई भी बात सरकार के संज्ञान में आएगी तो सरकार उस पर तुरंत कार्रवाई कर उसे दूर करेगी.

देहरादून: यूं तो देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरत वादियों और धामों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन देश की आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी राज्य जातिवाद का दंश झेल रहा है जबकि यहां कुल आबादी की 18 फीसदी जनसंख्या दलित है. वहीं राजनीतिक दल लगातार जातिवाद को खत्म करने की बात कहते आए हैं.

उत्तराखंड में जातिवाद.

उत्तराखंड एक छोटा राज्य है, बावजूद इसके यहां कुछ क्षेत्रों से दलित उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं. शिलगुर मंदिर देहरादून से करीब 150 किलोमीटर दूर जौनसार बावर इलाके की चकराता तहसील में है. यहां करीब 340 मंदिर हैं, जिनमें ज्यादातर में दलितों के प्रवेश पर रोक है. जबकि, राज्य की कुल आबादी का 18 प्रतिशत दलित है. वहीं, कुछ महीने पहले एक विवाद को लेकर ऊंची जाति के कुछ लोगों ने एक दलित को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि आखिर कब तक देवभूमि को जातिवाद का दंश झेलना पड़ेगा.

कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि आजादी के 72 वर्षों के बाद उत्तराखंड में जातिवाद बहुत कम है. अगर देश के अन्य राज्यों के अनुपात में देखें तो राज्य में जाति के नाम पर भेदभाव, हिंसा, उत्पीड़न, क्राइम आदि कम है. आज जिन लोगों के पास सत्ता आ गयी है. वो इस जातिवाद को खाद पानी देने का काम कर रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जब से बीजेपी सरकार आयी है, तब से जातीय हिंसा बढ़ी है. जातीय आधार पर लोगों पर उत्पीड़नात्मक कार्रवाई भी हुई है. उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी समेत राज्य के अनेक हिस्सों में जाति और धर्म के आधार पर जो हिंसा हुई है, वो पिछले सात दशकों में नहीं हुई. हालांकि, उन्होंने कहा कि इसके लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. सामाजिक आंदोलनो को तेज और प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि यह बीमारी खत्म हो सके. भाजपा विधायक खजान दास ने बताया कि अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड बहुत बेहतरीन राज्य है. यहां पर जातीय हिंसा पर अंकुश लगाने के लिए सरकार लगातार काम रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि कुछ क्षेत्रों में जातीय हिंसा होती है, वहां सरकार का पूरा ध्यान है.

वहीं, नैनीताल सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने बताया कि बीजेपी की सरकारें जहां भी हैं, वहां कुरीतियों को दूर करने की कोशिश हो रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि अगर ऐसी कोई भी बात सरकार के संज्ञान में आएगी तो सरकार उस पर तुरंत कार्रवाई कर उसे दूर करेगी.

Intro:15 अगस्त 2019 को देश की आजादी को 72 साल पूरे हो जाएंगे। इन 72 सालों में देश के भीतर कई बड़े बदलाव आए, यही नही देश के विकास के साथ ही नई टेक्नोलॉजी, गांव गांव तक बिजली, गांव गांव तक शिक्षा समेत तमाम गावो का विकास तो हो गया है लेकिन अभी भी देश मे तमाम ऐसे क्षेत्र है जहाँ के लोगो की मानसिकता जातिवाद से नही निकल पायी है। और आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी अभी तक देश के तमाम क्षेत्र जातिवाद का दंश झेल रहे है। इसी तरह कुछ उत्तराखंड राज्य का भी हाल है जहा के कुछ क्षेत्र ऐसे है जो आज भी जातिवाद का दंश झेल रहे है। ऐसे में इन क्षेत्रों को कब तक जातिवाद के दंश से देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.......



Body:यू तो देवभूमि उत्तराखंड राज्य, धार्मिक और पर्यटन बाहुल्य क्षेत्र है जहाँ हर साल, साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा सैलानी उत्तराखंड की इन खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने आते है, यही नही उत्तराखंड राज्य में धर्मनगरी हरिद्वार समेत चारधाम भी है। जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु चारधाम के दर्शन करने आते है। हालांकि इस छोटे से प्रदेश में तो तमाम व्यवस्थाएं है और राज्य सरकार भी हर संभव प्रयास कर रही है बावजूद इसके अभी भी उत्तराखंड के खूबसूरत वादियों में बसे कुछ क्षेत्र ऐसे भी है जो देश के आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी जातिवाद का दंश झेल रही हैं। हालांकि अगर राज्य के भीतर दलितों की कुल आबादी की बात करे प्रदेश के कुल आबादी का 18 फीसदी जनसंख्या दलित का हैं।


.......राज्य के कई क्षेत्रों से दलित उत्पीड़न के आये है मामले सामने....

जी हाँ यू तो कहने को उत्तराखंड राज्य एक छोटा राज्य है बावजूद इसके कुछ क्षेत्रो से दलित उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते है। तो कही दलितों को मंदिर में जाने पर प्रतिबंध है। जी हा कुछ साल पहले शिलगुर मंदिर जो देहरादून से क़रीब 150 किलोमीटर दूर जौनसार बावर इलाक़े में है। जहा क़रीब 340 मंदिर हैं, जिनमें से ज़्यादातर मंदिरों में दलितों के घुसने पर रोक है। यही नही तमाम ऐसे क्षेत्र में बने मंदिर है जहा दलितों के जाने पर प्रतिबंध है। इसी तरह कुछ महीने पहले का ही मामला है जब छोटे से विवाद को लेकर ऊंची जाति के कुछ लोगो ने पिट पिटकर दलित युवक को मौत के घाट उतार दिया था। ऐसे में एक बड़ा सवाल ये उठता है कि किस तरह और कब तक जातिवाद का दंश झेल रहे इन क्षेत्रों को जातिवाद समस्या से आजादी मिल पाएगी। 


....अन्य राज्यो की अपेक्षा उत्तराखंड में कम है जातीय हिंसा....

वही कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि आजादी के 72 वर्षों के बाद उत्तराखंड में जातिवाद की बीमारी बहुत कम है, लेकिन अगर देश के अन्य राज्यो के अनुपात में उत्तराखंड राज्य पर नज़र डालें तो राज्य में जातीय विद्वेष, जातीय अहिंसा, जाति के नाम पर उत्पीड़न, जाति के नाम पर क्राइम आदि ये बीमारी बहुत कम है। साथ ही बताया कि समय जैसे जैसे बीत रहा है, उस अनुसार ये बीमारी पूरे देश से खत्म होना चाहिए लेकिन जिन लोगो के पास आज ताकत है या जिन लोगो के पास आज सत्ता आ गयी है। वो जातीय बीमारी को सबसे ज्यादा पालने पोषण का काम करते है। 


.........भाजपा सरकार आने के बाद बढ़ी है जातीय हिंसा......

साथ ही भाजपा पर हमला करते हुए बताया कि जब से उत्तराखंड में भाजपा की सरकार आयी है तब से जातीय हिंसा बढ़ी है, जातीय आधार पर लोगो पर उत्पीड़नात्मक कार्यवाही बढ़ी है। उत्तरकाशी समेत राज्य के अनेक हिस्सो में जाति और धर्म के आधार पर जो हिंसा हुई है वो पिछले सात दशकों में नही हुई है। साथ ही बताया कि उत्तराखंड में रिश्ते है, दलित वर्ग के लोगो से उनके रिश्ते है। और उत्तराखंड कोई जातीय बड़ी घटना नही सुनाई देगी जो अन्य राज्यो में होता है। लेकिन इस बीमारी को धीरे-धीरे सामाजिक तौर पर समाप्त करना पड़ता है। 


..........सामाजिक आंदोलन तेज करने की है जरूरत.....

साथ ही धस्माना ने बताया कि कानून से जातीय बीमारी समाप्त नही होती। इसलिए लोगो को जागरूक करने की जरूरत है। और जातीय बीमारी को दूर करने के लिए जो सामाजिक आंदोलन चलते थे, वो धीमा पड़ गया है। क्योकि राजनैतिक दल वोट के लिए, सत्ता के लिए और बाटने के लिए जातीय बीमारियों को बढ़ाती है। इसलिए सामाजिक आंदोलनो को तेज और प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि यह बीमारी खत्म हो सके।


........जातीय हिंसा पर अंकुश लगाने को सरकार कर रही है काम.....

वही भाजपा विधायक खजान दास ने बताया कि अन्य राज्यो की तुलना में उत्तराखंड बहुत बेहतरीन राज्य है और यहाँ पर जातीय हिंसा पर अंकुश लगाने का काम सरकार भी कर रही है। और स्वयं भी लोग उभर सामने आये है। जो जातिवाद का जहर फैला रहे उसका निस्तारण कर रहे है। साथ ही बताया कि जो कुछ क्षेत्र ऐसे जहा जातीय हिंसा होता है वहा सरकार ध्यान दे रही है। और वहा के सामाजिक जो प्रतिष्ठान है वो भी इसपर ध्यान दे रहे है। 

वही नैनीताल-उधमसिंह नगर से सांसद एवं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने बताया कि भाजपा और उसकी सरकारें जहाँ भी है वो जाति, धर्म, पंत, क्षेत्र और वर्ग इस पर विश्वास नही करती है। और जहा भी ऐसी बाते होती है उन कुरीतियों को दूर करने की कोशिश करती है। साथ ही बताया कि अगर कोई ऐसी बात आयी होगी और सरकार के संज्ञान में आएगी तो सरकार उसे दूर करेगी। और जो दलित का उत्पीड़न करता है उसके खिलाफ तुरंत कार्यवाही होती है। और हमेशा हुई भी है।


Conclusion:
Last Updated : Aug 13, 2019, 8:00 PM IST
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