देहरादून: उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा चुनाव के नतीजे आने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही राष्ट्रीय दलों में कई ऐसे दिग्गज नेता हैं. जिन्होंने किसी भी विधानसभा चुनाव में हार का मुंह नहीं देखा. प्रदेश की राजनीति में इन राजनेताओं का इतना दबदबा है कि जनता ने इन्हें हर विधानसभा चुनाव में सिर आंखों पर बैठाया. इसे पार्टी कैडर के इतर इन नेताओं का जनाधार भी कह सकते हैं कि वह अबतक हर चुनाव में 'अजेय' रहे. तो आइए जानते है इस रिपोर्ट में उत्तराखंड की राजनीति के इन अजेय योद्धाओं के बारे में.
बिशन सिंह चुफाल: इसमें सबसे पहला नाम आता है बीजेपी के वरिष्ठ नेता बिशन सिंह चुफाल का. चुफाल पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट विधानसभा से चुनाव लड़ते आए हैं. डीडीहाट सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का गृह क्षेत्र भी है. उत्तराखंड के गठन के बाद से ही इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है और बीजेपी उम्मीदवार बिशन सिंंह चुफाल राज्य बनने के बाद हुए चारों चुनाव में जीत दर्ज विधानसभा पहुंचते रहे हैं. हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में बिशन सिंंह चुफाल के सामने बीजेपी के बागी किशन सिंंह मजबूत उम्मीदवार साबित हुए थेे. चुफाल ने किशन भंडारी को 2368 मतों के अंतर से हराया था.
इससे पहले उत्तराखंड गठन के बाद डीडीहाट विधानसभा सीट पर पहली बार 2002 में हुए चुनाव से चुफाल की जीत का सिलसिला शुरू हुआ. उत्तराखंड क्रांति दल के घनश्याम जोशी इस सीट पर दूसरे स्थान पर रहे थे. 2007 में बिशन सिंह चुफाल ने फिर जीत दर्ज की और कांग्रेस के हेम पंत को हराया. 2012 में कांग्रेस की रेवती जोशी को हराकर चुफाल ने तीसरी बार जीत दर्ज की.
डीडीहाट विधानसभा से विधायक बिशन सिंह चुफाल प्रदेश के दिग्गज नेता हैं. खंडूड़ी और निशंक सरकार में मंत्री रहे हैं. 2017 में त्रिवेंद्र सरकार कैबिनेट में उन्हें जगह नहीं मिल पाई, लेकिन पुष्कर धामी सरकार में वह फिर कैबिनेट मंत्री बने. चुफाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. इस चुनाव में बिशन सिंह चुफाल के खिलाफ इस बार कांग्रेस ने प्रदीप सिंह पाल को उतारा है. हालांकि, बीते चुनाव को देखें तो लगता है कि इस बार बिशन सिंह चुफाल डीडीहाट से बीजेपी का परचम लहराएंगे.
गोविंद सिंह कुंजवाल: दूसरे दिग्गज हैं कांग्रेस नेता गोविंद सिंह कुंजवाल, जो अल्मोड़ा जिले की जागेश्वर विधानसभा से चुनाव लड़ते आए हैं. राज्यगठन से ही जागेश्वर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल पिछले चार विधानसभा चुनाव में जागेश्वर विधानसभा से जीतते आ रहे हैं. हालांकि, 2017 के चुनाव में मोदी लहर में गोविंद सिंह कुंजवाल को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था और वो मात्र 399 मतों के अंतर से जीत दर्ज करने में सफल हुए थे. इस चुनाव में उन्होंने बीजेपी के सुभाष पांडेय को हराया था.
2012 के चुनाव में कुंजवाल ने बीजेपी के बच्ची सिंह को 3800 से अधिक मतों से हराया था. 2007 के चुनावों में कुंजवाल ने बीजेपी के रघुनाथ सिंह चौहान को 1127 मतों से पराजित किया था. वहीं प्रदेश बनने के बाद हुए 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में कुंजवाल ने भाजपा के रघुनाथ सिंह चौहान को 2322 मतों से पराजित किया था. वहीं, इस बार के चुनाव में कुंजवाल के खिलाफ बीजेपी के प्रत्याशी मोहन सिंह चुनाव मैदान में है. अब देखना होगा कि क्या मोहन सिंह कुंजवाल की इस विजय यात्रा पर ब्रेक लगा पाएंगे?
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प्रीतम सिंह: इन अजेय प्रत्याशियों में तीसरा नाम है कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का, जो देहरादून जिले की चकराता विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते आए हैं. चकराता ब्रिटिशकालीन शहर होने के साथ ही मशहूर पर्यटन स्थल भी है. चकराता अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही नृत्य कला, अपने पर्व और अनूठी संस्कृति के लिये भी देश-दुनिया में अलग पहचान रखता है. चकराता विधानसभा सीट को 2022 के चुनाव में हॉट सीट माना जा रही है. क्योंकि नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह इस सीट से विधायक हैं. इस सीट पर हमेशा कांग्रेस का दबदबा रहा है.
चकराता विधानसभा सीट पर उत्तराखंड राज्य गठन के बाद कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. 2002 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के प्रीतम सिंह विधायक बने. 2002 से लेकर अब तक लगातार प्रीतम सिंह ही विधायक हैं. प्रीतम सिंह ने 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों को चुनावी रणभूमि में पटखनी दी. कांग्रेस का ये मजबूत किला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कभी भेद नहीं पाई.
चकराता विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रीतम सिंह उम्मीदवार थे. कांग्रेस के प्रीतम सिंह के सामने बीजेपी ने मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी मधु चौहान को उम्मीदवार बनाया. प्रीतम सिंह ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी की मधु को 1543 वोट के अंतर से हरा दिया था. प्रीतम सिंह 2017 की चुनावी बाजी जीतकर चौथी बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए.
उत्तराखंड कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखते वाले नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के पिता पूर्व मंत्री स्व. गुलाब सिंह खुद एक बड़े राजनेता रहे थे. वो चार बार मसूरी और चार बार चकराता से विधायक रहे थे. ऐसे में राजनीति उनको विरासत में मिली है. प्रीतम सिंह ने अपना राजनीतिक सफर 1988 में शुरू किया था, तब उन्हें चकराता का ब्लॉक प्रमुख बनाया गया था. सिर्फ तीन साल के अंदर प्रीतम सिंह ने राजनीति की मुख्य धारा में कदम रखा. अपने राजनीतिक जीवन में प्रीतम ने अबतक सात विधानसभा चुनाव लड़े हैं, सिर्फ दो बार 1991 और 1996 में ही हार का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस की सरकार के दौरान दो बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं. उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरुस्कार भी मिल चुका है. प्रीतम सिंह कानून की भी अच्छी खासी समझ रखते हैं. उन्होंने कानून की पढ़ाई देहरादून के डीएवी कॉलेज से पूरी की है. वो उत्तराखंड बार काउंसिल के सदस्य भी रहे हैं.
हरभजन सिंह चीमा: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में लगातार जीत का परचम लहराने वाले दिग्गजों में चौथा नाम आता है बीजेपी नेता हरभजन सिंह चीमा का, जो उधमसिंह नगर जिले की काशीपुर विधानसभा सीट से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. देवभूमि उत्तराखंड का मिनी पंजाब कहे जाने वाले काशीपुर में अभी भी बीजेपी शिरोमणि अकाली दल को समर्थन दे रही है.
दरअसल, हरभजन सिंह चीमा अकाली दल के नेता रहे हैं और उत्तराखंड में अकाली दल का चेहरा भी रहे हैं. गठबंधन के तहत वो 2002 के पहले चुनाव में अकाली दल के कोटे से ही बीजेपी में आए थे. इसके बाद वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतते रहे और भाजपाई हो गए. 2022 के पहले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस ने केसी बाबा को 195 वोटों से हराया था. 2017 के चुनाव में चीमा ने सपा के मोहम्मद जुबैर को 15 हजार से अधिक मतों से हराया. वहीं 2012 के चुनाव में कांग्रेस के मनोज जोशी को 2300 वोटों के अंतर से मात दी. वहीं 2017 के चुनाव में एक बार फिर मनोज जोशी को तकरीबन 20 हजार वोटों के अंतर से हराया.
काशीपुर विधानसभा सीट वह चार बार विधायक के रूप में चुनकर आए हैं. ऐसे में अब हरभजन सिंह चीमा ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे त्रिलोक सिंह चीमा को सौंप दी है. इस बार त्रिलोक सिंह चीमा बीजेपी के टिकट से काशीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में इस सीट से 'अजेय' चीमा की राजनीतिक विरासत और प्रतिष्ठा भी इस बार चुनाव में दांव पर लगी है.
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हरबंस कपूर: पांचवां नाम है अविभाजित उत्तरप्रदेश में विधायक बनते आ रहे दिवंगत हरबंस कपूर का. हरबंस कपूर बीजेपी की पहली निर्वाचित सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे. उनकी देहरादून विधानसभा में मजबूत पकड़ थी. अपने राजनीतिक जीवन में विधायक हरबंस कपूर ने लगातार आठ बार चुनाव जीता. एक क्षेत्र से आठ बार विधायक रहने का अनूठा रिकॉर्ड उनके नाम है. उनके साथ ही उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और गुलाब सिंह भी आठ बार विधायक रहे हैं. हरबंस कपूर केवल एक बार 1985 में विधानसभा चुनाव हारे हैं, इस चुनाव में हीरा सिंह बिष्ट ने उन्हें शिकस्त दी थी. इसके बाद से कपूर कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे.
वरिष्ठ विधायक और जनता से जुड़ाव होने के कारण हरबंस कपूर काफी लोकप्रिय थे. साल 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में बीजेपी की पहली निर्वाचित सरकार बनी तो हरबंस विधानसभा अध्यक्ष चुने गए. प्रदेश में भाजपा को स्थापित करने में उनका बेहद अहम योगदान रहा है. वो यूपी सरकार के समय शहरी विकास मंत्री भी रहे.
75 वर्ष की आयु में हरबंस कपूर का निधन के बाद उत्तराखंड की राजनीति और पार्टी में ऐसी शून्यता आ गई है जिसे शायद ही कभी भरा जा सकेगा. इस चुनाव में हरबंस कपूर के निधन के बाद बीजेपी ने इस सीट से उनकी पत्नी सविता कूपर को चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना देहरादून कैंट सीट से उम्मीदवार हैं.
मदन कौशिक: अजेय प्रत्याशियों में छठा नाम है बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का. जो हरिद्वार सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं. इस सीट पर चारों विधानसभा चुनाव में बीजेपी का कब्जा रहा है. मदन कौशिक जो अभी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं वह लगातार साल 2002, 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में इस सीट से अजेय रहे हैं. 2017 के चुनाव में कौशिक ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सतपाल ब्रह्मचारी को 35 हजार से अधिक के मार्जिन से हराया था और इस चुनाव में कुल मत प्रतिशत 65.18 रहा था. ऐसे में इस बार भी कौशिक हरिद्वार सीट से मैदान में हैं और उनके खिलाफ कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी चुनाव लड़ रहे हैं.
2007 से 2012 तक पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार में विद्यालयी शिक्षा, गन्ना विकास, चीनी उद्योग, आबकारी, नगर विकास, पर्यटन, संस्कृति समेत कई विभागों के कैबिनेट मंत्री रहे. वर्ष 2012 में वह बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे. जबकि वर्ष 2012 से 2017 तक वह विधानमंडल के उप नेता प्रतिपक्ष रहे. वहीं 2017 में जब बीजेपी की दोबारा सरकार बनी तो उन्हें फिर से कैबिनेट मंत्री बनाया गया. 2021 में उन्हें उत्तराखंड बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. 2022 का चुनाव बीजेपी ने उनके नेतृत्व में ही लड़ा है. मदन कौशिक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं.
उत्तराखंड की राजनीति में हरिद्वार जिला हार-जीत का अंतर तय करता है. विधानसभा की 70 सीटों में से अकेले 11 हरिद्वार जिले में हैं. ऐसे में यह जिला किसी भी सरकार को बहुमत तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाता रहा है. 2017 के चुनाव में भी हरिद्वार से 8 सीटें बीजेपी ने जीती थी. इसी जिले की राजनीति का मदन कौशिक को चाणक्य कहा जाता है.
प्रेमचंद अग्रवाल: लगातार विधानसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने वाले दिग्गजों में एक और नाम है बीजेपी के प्रेमचंद अग्रवाल का, जो योगनगरी ऋषिकेश में बीजेपी का परचम लहराते आ रहे हैं. योगा कैपिटल के रूप में देश दुनिया में ऋषिकेश शहर अपनी विशेष पहचान रखता है. धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी यह शहर काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे में उत्तराखंड की राजनीति में ऋषिकेश विधानसभा सीट बहुत महत्व रखती है.
राज्य गठन के बाद पहले आम चुनाव यानी साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी शूरवीर सिंह सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी. जिसके बाद 2007, 2012 और 2017 से यहां से लगातार बीजेपी के प्रेमचंद अग्रवाल जीतते आ रहे हैं. 2017 के चुनाव में प्रेमचंद अग्रवाल ने कांग्रेस के राजपाल खरोला को करीब 14 हजार वोट के मार्जिन से हराया था. इस चुनाव को कुल मत प्रतिशत 64.70 रहा. वहीं, हाल में ऋषिकेश के नगर निगम बनने बाद यहां मेयर के चुनाव में भी बीजेपी ने अपना परचम लहराया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि ऋषिकेश विधानसभा में बीजेपी का ही दबदबा है. ऐसे इस बार भी प्रेमचंद अग्रवाल चुनाव मैदान में हैं और उनके खिलाफ कांग्रेस के जयेंद्र रमोला चुनाव लड़ रहे हैं.
ऋषिकेश से लगातार तीन बार के विधायक अग्रवाल 2015 में उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ विधायक भी चुने गए थे. वो पढ़ाई और खेल में हमेशा अव्वल रहे. खेल में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिनिधित्व किया. अग्रवाल डीएवी पीजी कालेज देहरादून के महासचिव भी रहे हैं. वर्ष 2007 में ऋषिकेश विधानसभा से पहली बार जीतने के बाद सरकार ने उन्हें संसदीय सचिव की जिम्मेदारी भी दी. अग्रवाल वर्ष 1995 में बीजेपी देहरादून के अध्यक्ष बने. बीजेप सरकार के समय वह गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष भी रहे.
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यशपाल आर्य: प्रधान से अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यशपाल आर्य भी राज्य गठन से अबतक हर विधानसभा चुनाव में जीतते आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने यशपाल आर्या की प्रतिभा को पहचाना था और यशपाल ने ग्राम प्रधान के पद पर निर्वाचित होकर अपना सियासी सफर शुरु किया. राज्यगठन के बाद से यशपाल आर्या लगातार विधानसभा चुनाव जीतते आ रहे हैं. वो 6 बार विधायक रह चुके हैं और एक बार उत्तराखंड कांग्रेस के विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं.
साल 2002 और 2007 के चुनाव में कांग्रेस नेता यशपाल आर्य मुक्तेश्वर विधानसभा से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, साल 2012 में यशपाल आर्य ने बाजपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीता. वहीं, 2017 में दल बदल के बाद यशपाल आर्या ने बाजपुर सीट से ही बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और अपनी टिकटम प्रतिद्वंदी कांग्रेस प्रत्याशी सुनीता टम्टा को 12 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर विधानसभा पहुंचे.
उत्तराखंड की राजनीति में दलित वोट निर्णायक साबित होते हैं. उत्तराखंड में अनुसूचित जाति की आबादी 18.50 फीसदी के करीब है. ऐसे में इस पहाड़ी राज्य में एक मजबूत दलित समुदाय के नेता की जरूरत को यशपाल आर्य पूरा करते हैं. उनका सियासी सफर साल 1977 में तब शुरू हुआ था जब कांग्रेस के दिग्गज नेता एनडी तिवारी ने 25 वर्षीय यशपाल आर्य को एक खास जिम्मेदारी दी. 1977 के आम चुनावों के दौरान एनडी तिवारी ने यशपाल को नैनीताल जिले के देवलचौर केंद्र में कांग्रेस का पोलिंग एजेंट बना दिया था. जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल चल रहा था तब उस विरोध की लहर के बीच भी यशपाल आर्य ने देवलचौर केंद्र में बतौर पोलिंग एजेंट शानदार काम किया और वहां से एनडी तिवारी को सर्वधिक वोट मिले.
1984 में यशपाल आर्य ग्राम प्रधान बने. कुछ ही समय में उन्हें नैनीताल का जिला युवा अध्यक्ष नियुक्त किया गया. यशपाल आर्य ने 1989 में खटीमा से पहला चुनाव लड़ा और उसमें जीत हासिल कर ली. 1993 के उत्तर प्रदेश चुनाव में वो दूसरी बार खटीमा से विधायक बने. इसके बाद जब उत्तराखंड अलग राज्य बना, तब 2002 और 2007 में वो मुक्तेश्वर सीट से जीते. 2012 में कांग्रेस ने उन्हें बाजपुर से चुनाव लड़वाया और वो विजयी रहे.
हालांकि, 2017 का चुनाव में यशपाल आर्य ने बीजेपी की ओर से लड़ा और जीत भी हासिल की लेकिन वर्तमान में यशपाल आर्य ने चुनाव से ठीक पहले घर वापसी की है और वह दोबारा कांग्रेस में शामिल होकर बाजपुर विधानसभा से चुनाव मैदान में हैं. जबकि, 2017 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में इस सीट से चुनाव लड़ चुकी सुनीता टम्टा ने आप का दामन थाम लिया है और वह आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव मैदान में हैं. वहीं, बीजेपी ने इस सीट पर राजेश कुमार को चुनाव में खड़ा किया है.
गणेश जोशी: अजेय दिग्गजों में एक और नाम जो उत्तराखंड की राजनीति में अपनी जगह बना चुका है, वो है बीजेपी के वरिष्ठ नेता गणेश जोशी. जो लगातार तीन विधानसभा चुनाव में जीतते आ रहे हैं. गणेश जोशी के पिता स्वर्गीय श्याम दत्त जोशी भारतीय सेना के जवान के रूप में तैनात थे. उन्हीं से देश सेवा का जज्बा लेकर गणेश जोशी ने भी गढ़वाल राइफल रेजीमेंट में एक सैनिक के रूप में काम किया. 1983 में उन्होंने अस्वस्थता के कारण स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी.
गणेश जोशी 1984 में बीजेपी में शामिल हुए. 1985 में वह देहरादून भारतीय जनता युवा मोर्चा के सचिव और 1989 में उपाध्यक्ष बने. 1994 में गणेश जोशी को देहरादून शहर का भारतीय जनता युवा मोर्चा अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. इसके बाद 1996 से 1998 तक वह गढ़वाल मंडल भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रभारी रहे. वहीं 1998 से 2000 तक देहरादून भाजपा के सचिव और साल 2000 से 2002 तक जिला महासचिव रहे.
गणेश जोशी पहली बार 2007 के विधानसभा चुनाव में राजपुर सीट से विधायक चुने गए. 2009 में उत्तराखंड विधानसभा की आवास समिति के नामित अध्यक्ष बने. इसके बाद 2012 और 2017 में देहरादून की मसूरी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के गणेश जोशी विधायक चुने गए. उन्होंने कांग्रेस के दो बार के विधायक रहे जोत सिंह को करीब 9 हजार वोटों के अंतर से हराया था. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार गणेश जोशी दूसरी बार इस सीट से विधायक चुने गए थे. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार गोदावरी थापा को 19 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था.इस बार भी गणेश जोशी मसूरी विधानसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हैं और इनके खिलाफ कांग्रेस की गोदावरी थापली चुनाव मैदान में है.
बहरहाल, राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है. जनता जब चाहे किसी को भी अर्श से फर्श पर ला पटकती है. ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में इन सभी दिग्गजों की अजेय यात्रा आगे भी जारी रहेगी कुछ कहा नहीं जा सकता. फिलहाल, कुछ समय बाद आप और हम लोगों के सामने नतीजे होंगे.