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WORLD CANCER DAY: जिंदादिली की अनोखी मिसाल, कैंसर पीड़ित बेजुबानों का बना मसीहा

आज वर्ल्ड कैंसर डे है. अक्सर लोग कैंसर का नाम सुनकर भयभीत हो जाते हैं. उनमें जीने का हौसला खत्म हो जाता है, लेकिन उत्तराखण्ड फॉरेस्ट फोर्स की रेस्क्यू टीम के सदस्य रवि जोशी से प्रेरणा ली जा सकती है. कैंसर के मरीज रवि बेजुबानों के लिए मसीहा बनकर जीवन दे रहे हैं.

जिंदादिली की अनोखी मिसाल
जिंदादिली की अनोखी मिसाल
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Published : Feb 4, 2020, 1:36 PM IST

Updated : Feb 4, 2020, 1:48 PM IST

देहरादूनः जीने का जज्बा और जिंदादिली क्या होती है यह कोई उत्तराखण्ड फॉरेस्ट फोर्स की रेस्क्यू टीम के सदस्य रवि जोशी से सीखे. रवि की कहानी आज आपको बतानी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि, वर्ल्ड कैंसर डे पर शायद ही इससे अच्छी कोई मिसाल पेश करने लायक हो. दरअसल, रवि खुद कैंसर से जूझ रहा है, लेकिन रवि बेजुबान जानवरों का जीवनदाता है.

बेजुबानों
कैंसर पीड़ित रवि बेजुबानों के बने मसीहा.

रवि अब तक न जाने कितने सांप, बंदर, टाइगर लेपर्ड के अलावा परिंदों की मुसीबत में फंसी जिंदगी को आजाद कर चुका है. रवि अक्सर बेजुबान मुसीबत में फंसे जानवरों को रेस्क्यू कर उनको दोबारा जीवन देने में लगा रहता हैं और इसी में उनको सुकून भी मिलता है भले ही खुद कैंसर से जूझ रहा हैं.

इस वक्त रवि मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन वह जिंदगी की कीमत बहुत अच्छे से समझते हैं और शायद यही वजह है कि वह मुसीबत में फंसे हर बेजुबान को जिंदगी देने का काम करते हैं. रवि ने कभी अपने जीवन में पान, जर्दा, तंबाकू गुटका को हाथ तक नहीं लगाया है लेकिन फिर भी उसे मुंह का कैंसर है हालांकि एक बार सर्जरी कराने के बाद कैंसर ठीक भी हुआ था , लेकिन एक बार फिर से कैंसर ने रवि को घेर लिया.

इन हालातों के बाद भी रवि जिंदादिली से कैंसर के साथ जीते हैं और खुलकर कैंसर पर बात भी करते हैं. अब रवि की एक बार फिर से सर्जरी होनी है और जितनी जिंदगी रवि ने आज तक बचाई हैं उनकी दुआओं का असर रवि के इलाज में जरूर होगा.रवि से जब हमने उनके इस काम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा की उन्हें इस काम से तसल्ली मिलती है. रवि का कहना है कि जिंदगी की कीमत उनसे बेहतर शायद ही कोई समझता है.

यही वजह है कि वह किसी को जिंदगी देते हैं. रवि का कहना है कि उन्हें बेजुबान जानवरों से इतना लगाव है कि दिन हो या रात वो हर वक्त जानवरों को रेस्क्यू करने के लिए तैयार रहते हैं. फॉरेस्ट हेडक्वाटर की रेस्क्यू टीम में रवि एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं और आज तक न जाने कितने सांपों और अन्य जानवरों को रवि ने पकड़ कर जंगल में छोड़ा है.

हजारों बेजुबानों के लिए बने मसीहा
इसका अंदाजा आप इस से लगा सकते हो कि रवि ने पिछले साल 365 दिनों में 413 सांपों को रेस्क्यू किया है. यही नहीं इसके अलावा 35 पायथन, 4 लेपर्ड, 17 मंकी, 19 ईगल के अलावा 40 अन्य और पक्षियों को रवि ने रेस्क्यू किया है. रवि का यह काम काफी मुश्किलों भरा भी है क्योंकि वह सांप जिनसे कोई जिंदगी में नहीं मिलना चाहता है उसको रेस्क्यू करने के लिए रवि हरदम तैयार रहता है और इस काम के दौरान कई बार रवि को जोखिम भी उठाना पड़ता है.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड में एक्टिंग इंस्टीट्यूट खोलेंगे तिग्मांशु धूलिया, 38 लोगों को यंग तर्क अवॉर्ड से किया सम्मानित

इसी के चलते रवि को तीन बार सांप भी काट चुका है. ऐसे में आज वर्ल्ड कैंसर डे पर रवि की ये कहानी अपने आप में एक बड़ी प्रेरणा है और रवि की कहानी से हमें भी सीख लेनी चाहिए कि जानवरों के प्रति हमें संवेदनशील होना चाहिए और केवल यही नहीं हमे जिंदगी की कीमत समझते हुए कैंसर जैसी बीमारियों के प्रति खुद को और समाज को जागरूक करना होगा.

देहरादूनः जीने का जज्बा और जिंदादिली क्या होती है यह कोई उत्तराखण्ड फॉरेस्ट फोर्स की रेस्क्यू टीम के सदस्य रवि जोशी से सीखे. रवि की कहानी आज आपको बतानी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि, वर्ल्ड कैंसर डे पर शायद ही इससे अच्छी कोई मिसाल पेश करने लायक हो. दरअसल, रवि खुद कैंसर से जूझ रहा है, लेकिन रवि बेजुबान जानवरों का जीवनदाता है.

बेजुबानों
कैंसर पीड़ित रवि बेजुबानों के बने मसीहा.

रवि अब तक न जाने कितने सांप, बंदर, टाइगर लेपर्ड के अलावा परिंदों की मुसीबत में फंसी जिंदगी को आजाद कर चुका है. रवि अक्सर बेजुबान मुसीबत में फंसे जानवरों को रेस्क्यू कर उनको दोबारा जीवन देने में लगा रहता हैं और इसी में उनको सुकून भी मिलता है भले ही खुद कैंसर से जूझ रहा हैं.

इस वक्त रवि मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन वह जिंदगी की कीमत बहुत अच्छे से समझते हैं और शायद यही वजह है कि वह मुसीबत में फंसे हर बेजुबान को जिंदगी देने का काम करते हैं. रवि ने कभी अपने जीवन में पान, जर्दा, तंबाकू गुटका को हाथ तक नहीं लगाया है लेकिन फिर भी उसे मुंह का कैंसर है हालांकि एक बार सर्जरी कराने के बाद कैंसर ठीक भी हुआ था , लेकिन एक बार फिर से कैंसर ने रवि को घेर लिया.

इन हालातों के बाद भी रवि जिंदादिली से कैंसर के साथ जीते हैं और खुलकर कैंसर पर बात भी करते हैं. अब रवि की एक बार फिर से सर्जरी होनी है और जितनी जिंदगी रवि ने आज तक बचाई हैं उनकी दुआओं का असर रवि के इलाज में जरूर होगा.रवि से जब हमने उनके इस काम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा की उन्हें इस काम से तसल्ली मिलती है. रवि का कहना है कि जिंदगी की कीमत उनसे बेहतर शायद ही कोई समझता है.

यही वजह है कि वह किसी को जिंदगी देते हैं. रवि का कहना है कि उन्हें बेजुबान जानवरों से इतना लगाव है कि दिन हो या रात वो हर वक्त जानवरों को रेस्क्यू करने के लिए तैयार रहते हैं. फॉरेस्ट हेडक्वाटर की रेस्क्यू टीम में रवि एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं और आज तक न जाने कितने सांपों और अन्य जानवरों को रवि ने पकड़ कर जंगल में छोड़ा है.

हजारों बेजुबानों के लिए बने मसीहा
इसका अंदाजा आप इस से लगा सकते हो कि रवि ने पिछले साल 365 दिनों में 413 सांपों को रेस्क्यू किया है. यही नहीं इसके अलावा 35 पायथन, 4 लेपर्ड, 17 मंकी, 19 ईगल के अलावा 40 अन्य और पक्षियों को रवि ने रेस्क्यू किया है. रवि का यह काम काफी मुश्किलों भरा भी है क्योंकि वह सांप जिनसे कोई जिंदगी में नहीं मिलना चाहता है उसको रेस्क्यू करने के लिए रवि हरदम तैयार रहता है और इस काम के दौरान कई बार रवि को जोखिम भी उठाना पड़ता है.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड में एक्टिंग इंस्टीट्यूट खोलेंगे तिग्मांशु धूलिया, 38 लोगों को यंग तर्क अवॉर्ड से किया सम्मानित

इसी के चलते रवि को तीन बार सांप भी काट चुका है. ऐसे में आज वर्ल्ड कैंसर डे पर रवि की ये कहानी अपने आप में एक बड़ी प्रेरणा है और रवि की कहानी से हमें भी सीख लेनी चाहिए कि जानवरों के प्रति हमें संवेदनशील होना चाहिए और केवल यही नहीं हमे जिंदगी की कीमत समझते हुए कैंसर जैसी बीमारियों के प्रति खुद को और समाज को जागरूक करना होगा.

Intro:जिंदादिली की गजब मिशाल- खुद केंसर से पीड़ित लेकिन दूसरों को दे रहा है जिंदगी।

जीने का जज्बा और जिंदादिली क्या होती है यह कोई उत्तराखण्ड फॉरेस्ट फोर्स की रेस्क्यू टीम के सदस्य रवि जोशी से सीखे। रवि की कहानी आज आपको बतानी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वर्ल्ड कैंसर डे पर शायद ही इससे अच्छी कोई मिसाल पेश करने लायक हो।

दरअसल रवि खुद कैंसर से जूझ रहा हैं लेकिन रवि बेजुबान जानवरों का जीवन दाता है। रवी अब तक न जाने कितने सांप, बंदर, टाइगर लेपर्ड के अलावा परिंदों की मुसीबत में फंसी जिंदगी को आजाद कर चुका है। रवि अक्सर बेजुबान मुसीबत में फंसे जानवरों को रेस्क्यू कर उनको दोबारा जीवन देने में लगा रहता हैं और इसी में उनको सुकून भी मिलता है भले ही खुद कैंसर से जूझ रहा हैं।

इस वक्त मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन लेकिन रवि जिंदगी कीमत बहुत अच्छे से समझते हैं और शायद यही वजह है कि वह मुसीबत में फंसे हर बेजुबान को जिंदगी देने का काम करते हैं। रवि ने कभी अपने जीवन में पान, जर्दा, तंबाकू गुटका को हाथ तक नहीं लगाया है लेकिन फिर भी उसे मुंह का कैंसर है हालांकि एक बार सर्जरी कराने के बाद कैंसर ठीक भी हुआ था , लेकिन एक बार फिर से कैंसर ने रवि को घेर लिया। इन हालातों के बाद भी रवि जिंदादिली से कैंसर के साथ जीते हैं और खुलकर कैंसर पर बात भी करते हैं। अब रवि की एक बार फिर से सर्जरी होनी है और जितनी जिंदगीयां रवि ने आज तक बचाई है उनकी दुआओं का असर रवि के इलाज में जरूर होगा।
Body:रवि से जब हमने उनके इस काम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा की उन्हें इस काम से तसल्ली मिलती है। रवि का कहना है कि जिंदगी की कीमत उनसे बेहतर शायद ही कोई समझता है यही वजह है कि वह किसी को जिंदगी देते हैं। रवि का कहना है कि उन्हें बेजुबान जानवरों से इतना लगाव है कि दिन हो या रात वो हर वक्त जानवरों को रेस्क्यू करने के लिए तैयार रहते हैं। फॉरेस्ट हैडक्वाटर की रेस्क्यू टीम में रवि एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं और आज तक न जाने कितने सांपों और अन्य जानवरों को रवि ने पकड़ कर जंगल में छोड़ा है। इसका अंदाजा आप इस से लगा सकते हो कि रवि ने पिछले साल 365 दिनों में 413 सांपों को रेस्क्यू किया है। यही नही इसके अलावा 35 पायथन, 4 लेपर्ड, 17 मंकी, 19 ईगल के अलावा 40 अन्य और पक्षीयों को रवि ने रेस्क्यू किया है। रवि का यह काम काफी मुश्किलों भरा भी है क्योंकि वह सांप जिनसे कोई जिंदगी में नहीं मिलना चाहता है उनको रेस्क्यू करने के लिए रवि हरदम तैयार रहता है, और इस काम के दौरान कई बार रवि को जोखिम भी उठाना पड़ता है। इसी के चलते रवि को तीन बार सांप भी काट चुका है।Conclusion: ऐसे में आज वर्ल्ड कैंसर डे पर रवि की ये कहानी अपने आप में एक बड़ी प्रेरणा है। और रवि की कहानी से हमें भी सीख लेनी चाहिए कि जानवरों के प्रति हमें संवेदनशील होना चाहिए और केवल यही नही हमे जिंदगी की कीमत समझते हुए कैंसर जैसी बीमारियों के प्रति खुद को और समाज को जागरूक करना होगा।
Last Updated : Feb 4, 2020, 1:48 PM IST
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