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बगावती रहा है हरक का इतिहास, उत्तराखंड में कई विवादों से जुड़ा है नाम

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Published : Oct 24, 2020, 10:49 AM IST

Updated : Oct 24, 2020, 5:32 PM IST

भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद हरक सिंह रावत बनाम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लड़ाई शुरू होने वाली है. क्योंकि हरक सिंह रावत विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान कर दिया है तो वहीं सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मामले में चुप्पी साध रखी है.

Chairman Harak Singh Rawat
हरक सिंह रावत

देहरादून: उत्तराखंड में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत बनाम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह की लड़ाई अब मानों शुरू होने ही वाली है. ऐसा सीएम त्रिवेंद्र सिंह के फैसले के बाद हरक सिंह की चुप्पी बयां कर रही है. वैसे हरक सिंह रावत के लिए मुख्यमंत्री से टकराना या किसी विवाद में पड़ना कोई नई बात नहीं है. उनके राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो वह हर सरकार में किसी न किसी बात को लेकर अपनी ही पार्टी के दिग्गजों से टकराते रहे हैं और तमाम विवादों की वजह भी बने हैं.

उत्तराखंड की राजनीति में हरक सिंह रावत अपना एक बड़ा कद रखते हैं. उनके राजनीतिक रसूख को इस बात से समझा जा सकता है कि वह चाहे जिस पार्टी में रहें या विधानसभा से लड़ें हर बार उन्हें जीत हासिल होती है.

पहली सरकार से ही विवादों में हरक

राज्य स्थापना के बाद पहली निर्वाचित सरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी. तब वो तिवारी सरकार में मंत्री बने लेकिन सरकार के एक साल बीतने के बाद ही वो जैनी प्रकरण में फंस गए. इस मामले में हरक सिंह रावत ऐसे उलझे कि उन्हें अपने मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा. यहीं नहीं, मामले की सीबीआई जांच तक हुई. हालांकि, इसके बाद हरक सिंह इस मामले से पाक साफ बाहर निकल आए.

पढ़ें- कर्मकार कल्याण बोर्ड से हटाए गए हरक सिंह, मामले में CM त्रिवेंद्र ने साधी चुप्पी

2012 में मंत्री पद पर दिए तीखे तेवर को लेकर विवाद

मंत्री हरक सिंह रावत एक बार फिर विवादों में आए जब 2012 में दोबारा कांग्रेस की सरकार आई और उन्होंने मंत्री बनने से साफ इंकार कर दिया. दरअसल, हरक सिंह रावत इस सरकार में मुख्यमंत्री की दौड़ में थे. इस दौरान उसके एक बयान ने भी सुर्खियां बटोरी थीं, जिनमें वो ये कहते दिख रहे थे कि मंत्री पद को वो जूते की नोंक पर रखते हैं. यही नहीं, धारी देवी की कसम लेकर मंत्री न बनने की बात भी उन्होंने दोहराई थी, जिसके बाद हरक का ये बयान उत्तराखंड ही नहीं, दिल्ली तक सुर्खियों में रहा. हालांकि, बाद में हरक सिंह मंत्री बनने को तैयार हो गए थे.

उत्तराखंड में कई विवादों से जुड़ा है हरक सिंह रावत का नाम.

दोहरे लाभ के पद को लेकर हुआ विवाद

साल 2013 में सरकार बनने के एक साल बाद ही हरक सिंह रावत फिर विवादों में आ गए. इस बार उनके विवाद का कारण मंत्री पद के साथ बीज एवं तराई विकास निगम के अध्यक्ष पद पर भी आसीन होना था. इस बार भाजपा ने आरोप लगाते हुए कहा कि हरक सिंह रावत नियमों के विरुद्ध दोहरे लाभ के पद पर आसीन हुए हैं. कांग्रेस सरकार में मंत्री हरक सिंह रावत ने इसके बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दिया था. हालांकि, इसके बाद हाई कोर्ट में दायर याचिका में हरक सिंह रावत को राहत मिल गई थी.

पढ़ें- कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का ऐलान- अब नहीं लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

यौन शोषण के आरोप में साल 2014 रहा परेशानी भरा

अभी लाभ के पदों को लेकर हरक सिंह रावत विपक्ष के हमलों से जूझ ही रहे थे कि साल 2014 में मेरठ की युवती ने उन पर दिल्ली के सफदरगंज थाने में दुष्कर्म को लेकर मामला दर्ज करवा दिया. हालांकि, चर्चा में रहे इस मामले में राजनीति खूब गर्म रही, लेकिन कुछ ही समय बाद यह मामला धुंधला होता चला गया. माना गया कि इस मामले में युवती ने अपने आरोपो को वापस ले लिया था.

पढ़ें- एसिड अटैक सर्वाइवर रेखा की सुनो 'सरकार', दर-दर भटक कर लगा रही मदद की गुहार

साल 2016 कांग्रेस में हरक की बगावत

कांग्रेस सरकार में साल 2016 किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा. तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व को हरक सिंह रावत ने बगावती तेवरों के साथ अपनाने से मना कर दिया. फिर क्या था चुनाव के लिए एक साल से भी कम का वक्त होने के बावजूद हरक सिंह रावत ने हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और विजय बहुगुणा और तमाम दूसरे विधायकों के साथ मिलकर पार्टी तोड़ दी. इसके साथ ही हरक सिंह रावत ने भाजपा का भी दामन थाम लिया था.

तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग प्रकरण

हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते उनके खिलाफ बगावती रुख अपनाने वाले हरक सिंह रावत तब फिर चर्चाओं में आ गए थे जब हरीश रावत का एक स्टिंग सामने आ गया. इस दौरान स्टिंग में हरक सिंह रावत फोन पर हरीश रावत से बात करते हुए भी दिखाए गए थे. यही नहीं, कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट के स्टिंग के दौरान हरक सिंह रावत विधायक के साथ बैठकर बात करते नजर आए. यह वीडियो भी खासा चर्चा में रहा और इसके बाद हरक सिंह रावत काफी विवादों में रहे.

अब कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद को लेकर विवाद

हरक सिंह रावत भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने को लेकर इन दिनों चर्चाओं में हैं, लेकिन इस चर्चा को हरक सिंह रावत ने तब और हवा दे दी जब उन्होंने ईटीवी भारत संवादाता नवीन उनियाल के ही सवाल पर आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव को लड़ने से मना कर दिया. हरक सिंह रावत अब विधानसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहते यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है. हालांकि, उनके मौजूदा तेवरों को देखकर लगता है कि वह एक बार फिर अपने बगावती रुख को अपनाने के मूड में हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत बनाम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह की लड़ाई अब मानों शुरू होने ही वाली है. ऐसा सीएम त्रिवेंद्र सिंह के फैसले के बाद हरक सिंह की चुप्पी बयां कर रही है. वैसे हरक सिंह रावत के लिए मुख्यमंत्री से टकराना या किसी विवाद में पड़ना कोई नई बात नहीं है. उनके राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो वह हर सरकार में किसी न किसी बात को लेकर अपनी ही पार्टी के दिग्गजों से टकराते रहे हैं और तमाम विवादों की वजह भी बने हैं.

उत्तराखंड की राजनीति में हरक सिंह रावत अपना एक बड़ा कद रखते हैं. उनके राजनीतिक रसूख को इस बात से समझा जा सकता है कि वह चाहे जिस पार्टी में रहें या विधानसभा से लड़ें हर बार उन्हें जीत हासिल होती है.

पहली सरकार से ही विवादों में हरक

राज्य स्थापना के बाद पहली निर्वाचित सरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी. तब वो तिवारी सरकार में मंत्री बने लेकिन सरकार के एक साल बीतने के बाद ही वो जैनी प्रकरण में फंस गए. इस मामले में हरक सिंह रावत ऐसे उलझे कि उन्हें अपने मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा. यहीं नहीं, मामले की सीबीआई जांच तक हुई. हालांकि, इसके बाद हरक सिंह इस मामले से पाक साफ बाहर निकल आए.

पढ़ें- कर्मकार कल्याण बोर्ड से हटाए गए हरक सिंह, मामले में CM त्रिवेंद्र ने साधी चुप्पी

2012 में मंत्री पद पर दिए तीखे तेवर को लेकर विवाद

मंत्री हरक सिंह रावत एक बार फिर विवादों में आए जब 2012 में दोबारा कांग्रेस की सरकार आई और उन्होंने मंत्री बनने से साफ इंकार कर दिया. दरअसल, हरक सिंह रावत इस सरकार में मुख्यमंत्री की दौड़ में थे. इस दौरान उसके एक बयान ने भी सुर्खियां बटोरी थीं, जिनमें वो ये कहते दिख रहे थे कि मंत्री पद को वो जूते की नोंक पर रखते हैं. यही नहीं, धारी देवी की कसम लेकर मंत्री न बनने की बात भी उन्होंने दोहराई थी, जिसके बाद हरक का ये बयान उत्तराखंड ही नहीं, दिल्ली तक सुर्खियों में रहा. हालांकि, बाद में हरक सिंह मंत्री बनने को तैयार हो गए थे.

उत्तराखंड में कई विवादों से जुड़ा है हरक सिंह रावत का नाम.

दोहरे लाभ के पद को लेकर हुआ विवाद

साल 2013 में सरकार बनने के एक साल बाद ही हरक सिंह रावत फिर विवादों में आ गए. इस बार उनके विवाद का कारण मंत्री पद के साथ बीज एवं तराई विकास निगम के अध्यक्ष पद पर भी आसीन होना था. इस बार भाजपा ने आरोप लगाते हुए कहा कि हरक सिंह रावत नियमों के विरुद्ध दोहरे लाभ के पद पर आसीन हुए हैं. कांग्रेस सरकार में मंत्री हरक सिंह रावत ने इसके बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दिया था. हालांकि, इसके बाद हाई कोर्ट में दायर याचिका में हरक सिंह रावत को राहत मिल गई थी.

पढ़ें- कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का ऐलान- अब नहीं लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

यौन शोषण के आरोप में साल 2014 रहा परेशानी भरा

अभी लाभ के पदों को लेकर हरक सिंह रावत विपक्ष के हमलों से जूझ ही रहे थे कि साल 2014 में मेरठ की युवती ने उन पर दिल्ली के सफदरगंज थाने में दुष्कर्म को लेकर मामला दर्ज करवा दिया. हालांकि, चर्चा में रहे इस मामले में राजनीति खूब गर्म रही, लेकिन कुछ ही समय बाद यह मामला धुंधला होता चला गया. माना गया कि इस मामले में युवती ने अपने आरोपो को वापस ले लिया था.

पढ़ें- एसिड अटैक सर्वाइवर रेखा की सुनो 'सरकार', दर-दर भटक कर लगा रही मदद की गुहार

साल 2016 कांग्रेस में हरक की बगावत

कांग्रेस सरकार में साल 2016 किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा. तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व को हरक सिंह रावत ने बगावती तेवरों के साथ अपनाने से मना कर दिया. फिर क्या था चुनाव के लिए एक साल से भी कम का वक्त होने के बावजूद हरक सिंह रावत ने हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और विजय बहुगुणा और तमाम दूसरे विधायकों के साथ मिलकर पार्टी तोड़ दी. इसके साथ ही हरक सिंह रावत ने भाजपा का भी दामन थाम लिया था.

तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग प्रकरण

हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते उनके खिलाफ बगावती रुख अपनाने वाले हरक सिंह रावत तब फिर चर्चाओं में आ गए थे जब हरीश रावत का एक स्टिंग सामने आ गया. इस दौरान स्टिंग में हरक सिंह रावत फोन पर हरीश रावत से बात करते हुए भी दिखाए गए थे. यही नहीं, कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट के स्टिंग के दौरान हरक सिंह रावत विधायक के साथ बैठकर बात करते नजर आए. यह वीडियो भी खासा चर्चा में रहा और इसके बाद हरक सिंह रावत काफी विवादों में रहे.

अब कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद को लेकर विवाद

हरक सिंह रावत भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने को लेकर इन दिनों चर्चाओं में हैं, लेकिन इस चर्चा को हरक सिंह रावत ने तब और हवा दे दी जब उन्होंने ईटीवी भारत संवादाता नवीन उनियाल के ही सवाल पर आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव को लड़ने से मना कर दिया. हरक सिंह रावत अब विधानसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहते यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है. हालांकि, उनके मौजूदा तेवरों को देखकर लगता है कि वह एक बार फिर अपने बगावती रुख को अपनाने के मूड में हैं.

Last Updated : Oct 24, 2020, 5:32 PM IST
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