मसूरी: लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास 'टॉम्ब ऑफ सैंड' को अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज मिला है. इसे डेजी रॉकवेल ने ट्रांसलेट किया है. डेजी रॉकवेल का उत्तराखंड के पुराना कनेक्शन है. डेजी रॉकवेल मसूरी लैंग्वेज स्कूल से पढ़ी हैं. अमेरिकी अनुवादक डेजी रॉकवेल ने 90 के दशक में लंढौर छावनी परिषद स्थित लैंग्वेज स्कूल में तीन महीने का हिंदी पाठ्यक्रम कोर्स किया था.
मसूरी लैंग्वेज स्कूल के प्राचार्य चितरंजन दत्त ने बताया कि डेजी रॉकवेल एक होनहार छात्रा थीं. मसूरी में तीन महीने की पढ़ाई के बाद आगे के शोध कार्यों के लिए इलाहाबाद चली गई थीं. चितरंजन दत्त ने बताया कि डेजी रॉकवेल बहुत ही सरल स्वभाव की हैं.
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मसूरी का लैंग्वेज स्कूल 1903 में स्थापित हुआ था. यहां भारत और विदेशों के शोधार्थी और छात्रों को उर्दू, पंजाबी, हिंदी में पढ़ाया जाता है. स्थापना से लेकर अब तक करीब सोलह हजार से अधिक छात्र यहां से पढ़ चुके हैं. डेजी रॉकवेल मैसाचुसेट्स से ताल्लुक रखती हैं. अब वरमोंट में रहती हैं. उन्होंने कई हिंदी और उर्दू क्लासिक्स का अनुवाद किया है. इनमें उपेंद्रनाथ अश्क की फॉलिंग वॉल्स, खदीजा मस्तूर की द वूमेन कोर्टयार्ड, भीष्म साहनी की तमस आदि शामिल हैं. डेजी रॉकवेल द्वारा किये गए अनुवाद कई पुरस्कार जीत चुके हैं. टॉम्ब ऑफ सैंड मूल रूप से हिंदी में रिट समाधि के रूप में लिखा गया था.
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लंढौर बाजार की संकरी गलियों में साबरी बॉट एंड सोल्डश के मालिक अयूब ने बताया डेजी रॉकवेल जब मसूरी लैंग्वेज स्कूल में पढ़ रही थीं तो वह कई बार उनकी दुकान पर अपने दोस्तों के साथ आती थीं. इस दौरान वे हिन्दी में बात करने की कोशिश करती थीं. कई बार गलती होने पर उनके पिता ने उन्हें सही उच्चारण की जानकारी देते थे. उन्होंने बताया डेजी रॉकवेल को किशार अवस्था में आखिरी बार अपनी दुकान में देखा था.
क्या है बुकर प्राइज: यह पुरस्कार हर साल अंग्रेजी में लिखे गए और UK या आयरलैंड में प्रकाशित होने वाले सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के लिए दिया जाता है. 2022 के पुरस्कार के लिए चयनित पुस्तक की घोषणा सात अप्रैल को लंदन बुक फेयर में की गई थी. जबकि विजेता का ऐलान अब किया गया है. जिसमें लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास 'टॉम्ब ऑफ सैंड' को अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज मिला है. इसे डेजी रॉकवेल ने ट्रांसलेट किया है