देहरादून: भाजपा नेताओं की दायित्व पाने की इच्छा शायद अब अधूरी ही रह जाएगी. राज्य में चुनाव को लेकर तैयारियों में उलझी पार्टी को ना तो कार्यकर्ताओं के दायित्व की चिंता है और ना ही सरकार इसके मद्देनजर कुछ खास करने जा रही है. शायद यही कारण है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की दायित्व पाने की लालसा अब खत्म होती जा रही है.
भाजपा सरकार में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ जिस तरह का मजाक हुआ है. शायद ही किसी पार्टी नेता को उसकी उम्मीद होगी. अपनी ही सरकार में दायित्व धारियों को ऐसे हटाया. जैसे मानो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से जिम्मेदारियां वापस ली गई हो. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 साल उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया. इस दौरान उन्होंने अपने कई करीबियों को दायित्व दिए.
माना गया कि भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एडजस्ट करने का काम किया था. लेकिन 4 साल गुजरते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी हिली तो राज्य के दायित्वधारी भी निपट गए. तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनते ही त्रिवेंद्र सिंह के कार्यकाल में बने दायित्व धारियों को ऐसे हटाया गया, मानो कांग्रेस के नेताओं को सरकार ने दायित्व दिए थे. उसके बाद तीरथ भी हट गए और पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने.
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पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की याद सरकार को नहीं आई. तभी तो कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि मलाई तो विधायक-मंत्री और मुख्यमंत्री चट कर जाते हैं. लेकिन झंडा उठाने वाले कार्यकर्ताओं को भाजपा में पूछा ही नहीं जाता.
ऐसा नहीं कि यह दर्द पार्टी के कार्यकर्ताओं को नहीं है. इसका सबसे ज्यादा दर्द तो उन नेताओं को हैं, जिनको त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री हटने के बाद दायित्वों से हटाया गया था और उसके बाद वह पैदल हो गए. इन पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए चिंता की बात यह है कि आप पार्टी संगठन उन्हें चुनाव के लिए तैयारी करने के लिए तो कह रहा है. लेकिन कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दी जा रही है.
आखिरकार पूरे मन से यह कार्यकर्ता कैसे पार्टी के लिए जुटें. क्योंकि पार्टी में अनुशासन का डंडा है. लिहाजा, भाजपा के ऐसे नेता खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं. लेकिन इतना तय है कि पार्टी में कई नेताओं को इस बात की टीस है कि सरकार होते हुए भी उन्हें दायित्व नहीं दिए गए. हालांकि भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स कहते हैं कि ये मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और सरकार जरूरत पड़ने पर दायित्व का भी बंटवारा करती है. जरूरत पड़ी तो पार्टी के नेताओं को दायित्व दिए भी जाएंगे, लेकिन इसका फैसला मुख्यमंत्री करेंगे.