देहरादून: उत्तराखंड मंत्रिमंडल के युवा चेहरे के रूप में सौरभ बहुगुणा कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ले चुके हैं. सौरभ बहुगुणा ने लगातार दूसरी बार सितारगंज विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है. वैसे तो सौरभ बहुगुणा के पास खुद को साबित करने के लिए यह एक बेहतरीन मौका है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सौरभ बहुगुणा बचपन से ही राजनीतिक दांव पेच को बेहद करीब से देखते रहे हैं. उनका ताल्लुक देश के ऐसे प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से है जिसने न केवल उत्तराखंड बल्कि उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
पहली बार बने कैबिनेट मंत्री: सौरभ बहुगुणा भले ही कैबिनेट में पहली बार पहुंचे हो पर उनके परिवार का सत्ता, कैबिनेट और मुख्यमंत्री और मंत्री पद से पुराना रिश्ता रहा है. यही कारण है कि ईटीवी भारत से बात करते हुए सौरव बहुगुणा ने उसी विरासत को बखूबी आगे बढ़ाने को ही अपनी सबसे बड़ी चुनौती माना है. ईटीवी भारत से सौरभ बहुगुणा ने पारिवारिक पृष्ठभूमि से लेकर भविष्य की राजनीतिक योजनाओं तक पर बेबाकी से बात की.
विरासत में मिली सियासत: बता दें कि, सौरभ ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार विधायक चुने गए थे, इस बार भी बीजेपी ने उन पर भरोसा जताया और वह जीतने में भी कामयाब हुए और मंत्रिमडल पहुंचने में भी कामयाब हुए. दरअसल, सौरभ बहुगुणा उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा (Vijay Bahuguna) के बेटे हैं. 13 नवंबर 1978 को इनका जन्म इलाहाबाद में हुआ था. इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद से और हायर एजुकेशन दिल्ली यूनिवर्सिटी से की है. खेल के प्रति इनमें काफी लगाव रहा है और कई खेलों में प्रतिभाग कर चुके हैं. सौरभ ने लगातार दूसरी बार सितारगंज विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है. सौरभ और विजय बहुगुणा को सियासत विरासत में मिली है.
राजनीति रही है पृष्ठभूमि: विजय बहुगुणा के पिता और सौरभ के दादा हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे. वहीं सौरभ की दादी का नाम कमला बहुगुणा था. सौरभ की बुआ यानी हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी डॉ. रीता बहुगुणा जोशी भी उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ा चेहरा हैं. रीता जोशी यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी है, इसके बाद योगी सरकार में मंत्री भी रहीं. अब वह प्रयागराज से भाजपा की सांसद हैं.
दादा ने दी थी इंदिरा गांधी को चुनौती: बता दें कि, हेमवती नंदन बहुगुणा जिन्होंने न केवल उत्तर प्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री बन कर अपना लोहा मनवाया, बल्कि देश की राजनीति में भी इंदिरा गांधी तक को चुनौती देने का काम किया. यही नहीं केंद्र में भी कई महत्वपूर्ण विभागों के साथ केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी निभाई. यह सब बातें यह समझने के लिए काफी है कि सौरभ बहुगुणा राजनीति को कितना समझते होंगे, वैसे तो सौरभ बहुगुणा ने कानून की पढ़ाई कर उसी को अपना पेशा बनाया. लेकिन 2007 में अपने पिता विजय बहुगुणा के टिहरी लोकसभा सीट से सांसद बनने के बाद उन्होंने उनके साथ लगातार क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. बस यही से ही सौरभ बहुगुणा के राजनीति में आने की शुरूआत हुई.
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राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाना चुनौती: कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा यह मानते हैं कि उन्हें विरासत में राजनीति तो मिली है और इसका उन्हें फायदा भी हुआ है. लेकिन इसके साथ ही यह विरासत कई चुनौतियां लेकर आती है, चुनौती इस विरासत को बखूबी आगे बढ़ाने की है. सौरभ बहुगुणा के लिए दूसरी बड़ी चुनौती 2017 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने के बाद उसे जीतने की थी. दरअसल, इसी सीट पर विजय बहुगुणा ने उपचुनाव में जीत हासिल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी को बरकरार रखा था. सौरभ बहुगुणा ने भी उसी सीट को चुना और जनता के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करवा कर अपनी पहली लड़ाई को मजबूती के साथ जीत लिया. इसी का नतीजा था कि पार्टी ने 2022 में भी उन्हें दोबारा टिकट दिया और वह अपनी सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे. यह सब वह तब भी कर पाए जब सितारगंज में उन्हें बाहरी होने का राजनीतिक आरोप लगाकर उनकी घेराबंदी करने की कोशिश की गई. लेकिन इन सब राजनीतिक पैतरों से हटकर उन्होंने जीत दर्ज कर ली.
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कांग्रेस और भाजपा में अंतर: सौरभ बहुगुणा ने अपनी राजनीति की शुरूआत भाजपा से की है, जबकि उनके दादा और पिता ने कांग्रेस को चुना. ऐसे में जब उनसे इस संदर्भ में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस में एक बहुत बड़ा अंतर है और यह अंतर उत्तराखंड की राजनीति में दिखाई दे रहा है. कांग्रेस में किस तरह खींचतान चल रही है और हरीश रावत मुख्यमंत्री बनने के लिए राजनीति करते रहे हैं. जबकि पार्टी के नेताओं में अंदुरुनी द्वंद मचा हुआ है, उधर भाजपा में संगठन बेहद मजबूत है और पार्टी हाईकमान जो पैसा लेता है सब उसी दिशा में काम करते हैं.
खेल विभाग की चाहत: सौरभ बहुगुणा ने यह भी साफ किया कि पार्टी हाईकमान की तरफ से जो भी विभाग उन्हें दिया जाएगा, वह उस पर काम करने को तैयार हैं. लेकिन वह खिलाड़ी रहे हैं और ऐसे में सबसे ज्यादा काम करने का मन उनका खेल विभाग में ही है. पौड़ी जिले का बघाणी बहुगुणा परिवार का पैतृक गांव है. सौरभ बहुगुणा कहते हैं कि वह अपने गांव जाते रहते हैं और वहां की समस्याओं से भी अवगत हैं, पहाड़ों में एक जैसी समस्याएं हैं और उन पर अभी बहुत ज्यादा काम होना बाकी है.
पिता से सीखा राजनीति का पाठ: पिता से राजनीति का पाठ सीखने वाले विजय बहुगुणा सीधे राजनीति में आए. उन्होंने 1997 में पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट से टिहरी लोकसभा से लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने 1998, 99 और 2004 का लोकसभा चुनाव भी टिहरी से लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. वहीं 2007 में टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की और पहली बार लोकसभा पहुंचे. इसके बाद वह 2009 में दूसरी बार इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 2012 में बहुगुणा को उत्तराखंड का सीएम बनाया गया. इसके बाद विजय बहुगुणा ने सितारगंज विधानसभा सीट पर 2012 में हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी. विजय बहुगुणा 31 जनवरी 2014 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे.