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देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड, जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत से लेकर बॉलीवुड तक को अपनी धुनों पर नचाया

देहरादून के अल्ताफ जनता बैंड को 100 साल पूरे होने वाले है. इस बैंड ने भारत-पाक युद्ध से लेकर कई ऐतिहासिक मौकों पर अपनी प्रस्तुति दी है. अंग्रेज़ी हुकूमत भी इस बैंड की दिवानी थी. साथ ही ये भारत का पहला रजिस्टर्ड बैंड था.

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Published : Aug 1, 2019, 11:45 PM IST

Updated : Aug 2, 2019, 11:03 AM IST

देहरादून का अल्ताफ जनता बैंड

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक ऐसा बैंड है जो न सिर्फ हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. बल्कि ये बैंड अंग्रेजी हुकूमत को भी अपनी धुनों पर नचा चुका है. यहीं नहीं इस बैंड ने 1972 भारत-पाक युद्ध के समय भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी. ये बैंड नेपाल राजा की शाही शादी से लेकर फ्रांस फेस्टिवल और हॉलीवुड की फिल्म में अपना जलवा बिखेर चुका है. ब्रिटिश शासन काल में शुरू हुए इस बैंड की विरासत को चौथी पीढ़ी आगे बढ़ा रही है. हम बात कर रहे हैं देहरादून के 99 साल पुराने अल्ताफ जनता बैंड की.

देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड.

देहरादून के बैंड बाजार में अंग्रेजों के शासनकाल से अपनी एक अलग पहचान रखने वाला अल्ताफ़ जनता बैंड को 100 साल पुरे होने वाले हैं. 1920 में शुरू हुए अल्ताफ जनता बैंड की कमान अब चौथी पीढ़ी के हाथों में है. इस बैंड ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत को भी अपनी सुरीली धुनों पर नचाया, बल्कि शादी-ब्याह के कार्यक्रमों से लेकर हिंदू-मुस्लिम धार्मिक पर्वों में भी हिस्सा लिया है.

देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड
अल्ताफ जनता बैंड का संचालन इस समय अब्दुल रहमान उर्फ राजा कर रहे हैं. रहमान के मुताबिक उनके परदादा मास्टर सेनी ने 1920 में 5 लोगों के साथ मिलकर अपना काम शुरू किया था. सन 1925 यह बैंड देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड बना.

मंदिरों के लिए की भूमि दान
मुस्लिम घराने से जुड़े होने के बावजूद इस बैंड परिवार ने देहरादून के धमावाला सहित शहर के कई हिस्सों में अपनी जमीन मंदिरों को दान की है. जिन पर आज भव्य मंदिर बने हुए हैं.

1972 में भारतीय सेना के लिए किया था चंदा एकत्र
रहमान बताते हैं कि 1972 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके दादा अल्ताफ मास्टर ने गली मोहल्ले से लेकर शहर के सभी चौराहों पर बैंड बजा कर चंदा इकट्ठा किया था. चंदे में उन्हें उस समय 68 हजार रुपए और सोने-चांदी के आभूषण मिले थे. ये सारा चंदा उन्होंने भारतीय सेना को आर्थिक अनुदान स्वरूप भेंट किया था. इस काम के लिए देहरादून के तत्कालीन डीएम ने अल्ताफ मास्टर को विशेष पत्र जारी किया था, जिसमें उनके द्वारा दिए गए आर्थिक योगदान को दर्शाया गया है. इसके बाद से इस बैंड का नाम जनता बैंड से बदलकर अल्ताफ जनता बैंड रखा गया.

विदेशों में दिखाई धमक
अल्ताफ जनता बैंड के दिवाने देहरादून में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं. इस बैंड ने नेपाल के काठमांडू में तत्कालीन राजा महेंद्र सिंह की शाही शादी से लेकर फ्रांस फेस्टिवल में अपनी प्रस्तुति दी है. बॉलीवुड की फिल्मों में भी ये बैंड छाया रहा. इसमें राज कपूर की फिल्म पोंगा पंडित और संन्यासी जैसी फिल्में शामिल हैं. इसके अलावा अमिताभ बच्चन की शराब फ़िल्म से लेकर आज के दौर की मेरे ब्रदर की दुल्हन में इस बैंड ने धूम मचाई हैं.

बैंड संचालक रहमान ने बताया कि वो अपनी 100 सदस्यों की टीम के साथ एक महीने तक इलाहाबाद अर्ध कुंभ में प्रस्तुति दे कर आए हैं. 2021 में होने वाले हरिद्वार महाकुंभ में भी अल्ताफ जनता बैंड पूरी धार्मिक भावना के साथ अपना प्रदर्शन करेगा.

डाट काली मंदिर के कोषाध्यक्ष थे रहमान के वालिद
अब्दुल रहमान बताते हैं कि उनके वालिद गुलाम साबिर उर्फ भैया जी देहरादून के डाट काली मंदिर में 20 साल तक कोषाध्यक्ष रहे. उनके दादा अल्ताफ मास्टर उत्तराखंड के सभी मंदिरों में सदस्य के रूप में अपना योगदान देते रहे हैं. उनके परदादा सैनी मास्टर अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश को एक धागे में पिरोने की बात कहकर अपना बैंड चलाते थे.

आज उन्हीं के पूर्वजों द्वारा सिखाई गई सीख को वह आगे बढ़ते हुए और धर्म व जात-पात से ऊपर उठकर अपनी सुरीली धुनों से सभी को एक धागे में पिरोने का काम कर रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक ऐसा बैंड है जो न सिर्फ हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. बल्कि ये बैंड अंग्रेजी हुकूमत को भी अपनी धुनों पर नचा चुका है. यहीं नहीं इस बैंड ने 1972 भारत-पाक युद्ध के समय भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी. ये बैंड नेपाल राजा की शाही शादी से लेकर फ्रांस फेस्टिवल और हॉलीवुड की फिल्म में अपना जलवा बिखेर चुका है. ब्रिटिश शासन काल में शुरू हुए इस बैंड की विरासत को चौथी पीढ़ी आगे बढ़ा रही है. हम बात कर रहे हैं देहरादून के 99 साल पुराने अल्ताफ जनता बैंड की.

देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड.

देहरादून के बैंड बाजार में अंग्रेजों के शासनकाल से अपनी एक अलग पहचान रखने वाला अल्ताफ़ जनता बैंड को 100 साल पुरे होने वाले हैं. 1920 में शुरू हुए अल्ताफ जनता बैंड की कमान अब चौथी पीढ़ी के हाथों में है. इस बैंड ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत को भी अपनी सुरीली धुनों पर नचाया, बल्कि शादी-ब्याह के कार्यक्रमों से लेकर हिंदू-मुस्लिम धार्मिक पर्वों में भी हिस्सा लिया है.

देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड
अल्ताफ जनता बैंड का संचालन इस समय अब्दुल रहमान उर्फ राजा कर रहे हैं. रहमान के मुताबिक उनके परदादा मास्टर सेनी ने 1920 में 5 लोगों के साथ मिलकर अपना काम शुरू किया था. सन 1925 यह बैंड देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड बना.

मंदिरों के लिए की भूमि दान
मुस्लिम घराने से जुड़े होने के बावजूद इस बैंड परिवार ने देहरादून के धमावाला सहित शहर के कई हिस्सों में अपनी जमीन मंदिरों को दान की है. जिन पर आज भव्य मंदिर बने हुए हैं.

1972 में भारतीय सेना के लिए किया था चंदा एकत्र
रहमान बताते हैं कि 1972 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके दादा अल्ताफ मास्टर ने गली मोहल्ले से लेकर शहर के सभी चौराहों पर बैंड बजा कर चंदा इकट्ठा किया था. चंदे में उन्हें उस समय 68 हजार रुपए और सोने-चांदी के आभूषण मिले थे. ये सारा चंदा उन्होंने भारतीय सेना को आर्थिक अनुदान स्वरूप भेंट किया था. इस काम के लिए देहरादून के तत्कालीन डीएम ने अल्ताफ मास्टर को विशेष पत्र जारी किया था, जिसमें उनके द्वारा दिए गए आर्थिक योगदान को दर्शाया गया है. इसके बाद से इस बैंड का नाम जनता बैंड से बदलकर अल्ताफ जनता बैंड रखा गया.

विदेशों में दिखाई धमक
अल्ताफ जनता बैंड के दिवाने देहरादून में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं. इस बैंड ने नेपाल के काठमांडू में तत्कालीन राजा महेंद्र सिंह की शाही शादी से लेकर फ्रांस फेस्टिवल में अपनी प्रस्तुति दी है. बॉलीवुड की फिल्मों में भी ये बैंड छाया रहा. इसमें राज कपूर की फिल्म पोंगा पंडित और संन्यासी जैसी फिल्में शामिल हैं. इसके अलावा अमिताभ बच्चन की शराब फ़िल्म से लेकर आज के दौर की मेरे ब्रदर की दुल्हन में इस बैंड ने धूम मचाई हैं.

बैंड संचालक रहमान ने बताया कि वो अपनी 100 सदस्यों की टीम के साथ एक महीने तक इलाहाबाद अर्ध कुंभ में प्रस्तुति दे कर आए हैं. 2021 में होने वाले हरिद्वार महाकुंभ में भी अल्ताफ जनता बैंड पूरी धार्मिक भावना के साथ अपना प्रदर्शन करेगा.

डाट काली मंदिर के कोषाध्यक्ष थे रहमान के वालिद
अब्दुल रहमान बताते हैं कि उनके वालिद गुलाम साबिर उर्फ भैया जी देहरादून के डाट काली मंदिर में 20 साल तक कोषाध्यक्ष रहे. उनके दादा अल्ताफ मास्टर उत्तराखंड के सभी मंदिरों में सदस्य के रूप में अपना योगदान देते रहे हैं. उनके परदादा सैनी मास्टर अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश को एक धागे में पिरोने की बात कहकर अपना बैंड चलाते थे.

आज उन्हीं के पूर्वजों द्वारा सिखाई गई सीख को वह आगे बढ़ते हुए और धर्म व जात-पात से ऊपर उठकर अपनी सुरीली धुनों से सभी को एक धागे में पिरोने का काम कर रहा है.

Intro:pls नोट desk.
---spl स्टोरी -"Special band" नाम से live u 08 से feed भेजी गई हैं।


summary_हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक देहरादून का ऐतिहासिक बैंड, अंग्रेजी हुकूमत को भी अपनी धुनों पर नचा 99 साल पुराना यह बैंड,1972 भारत-पाक युद्व हिंदुस्तानी सेना के मनोबल बढाने इसकी भूमिका भी थी अहम...नेपाल राजा शाही शादी से लेकर फ्रांस फेस्टिवल और हॉलीवुड की फिल्म तक बैंड का धमाल,आज भी चौथी पीढ़ी विरासत के रूप आगे बढ़ा रही हैं।


देश में ब्रिटिश हुकूमत के समय से कई ऐसे पुराने कारोबार हैं जो एकता का पैगाम देकर आज भी विरासत के रूप बख़ूबी चल रहे हैं.. ऐसा ही एक बैंड व्यापार से जुड़ा घराना हैं..जो देहरादून में सन 1920 अंग्रेजी शासनकाल समय से हिंदू-मुस्लिम एकता के संदेश को देकर आपसी भाईचारे का देश-विदेश में सबको पैगाम देता आया हैं। पेश हैं ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...


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अंग्रेजी हुकूमत भी खूब ही रखती थी अल्ताफ बैंड की धुनों पर

देहरादून के बैंड बाजार में अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान देश-दुनियां अपनी एक अलग ही पहचान रहने वाला "अल्ताफ़ जनता बैंड" आज अपनी चौथी पीढ़ी के हाथों से 100 इतिहास बनाने के एक साल पीछे हैं। सन 1920 में शुरू हुए इस बैंड ने अंग्रेजी हुकूमत को भी अपनी सुरीली धुनों पर ख़ूब नचाया,लाखों शादी -ब्याह सगुन के पलों से लेकर हिंदू-मुस्लिम धार्मिक पर्व सहित देश में होने वाले हर बड़े कार्यक्रमों के साथ अर्द्ध कुंभ व महाकुंभ में इस बैंड की भूमिका देश को सौहार्दपूर्ण माहौल में अपना एक अलग योगदान देता आया हैं।

स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद तक अपनी अहम भूमिका निभाता है यह बैंड

अंग्रेजों के समय का "अल्ताफ जनता बैंड" को आज विरासत के रूप में चौथी पीढ़ी के अब्दुल रहमान उर्फ राजा संचालित करने का काम करते हैं, अब्दुल रहमान की माने तो उनके परदादा मास्टर सेनी ने अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान सन 1920 में "जनता बैंड" नाम से अपने साथ 5 लोगों को जोड़कर अपना काम शुरू किया.. हालांकि सन 1925 यह बैंड देश का पहला रजिस्टर्ड बैंड बना जो ना सिर्फ अपना रोजगार चलाता था बल्कि देश आजादी की लड़ाई से लेकर स्वतंत्र भारत होने के बाद भी आज तक हिंदू मुस्लिम भाईचारा को लेकर अपने हर कार्यक्रम में संदेश देता आया हैं।
मुस्लिम घराने से जुड़े होने के बावजूद इस बैंड परिवार ने देहरादून के धमावाला सहित शहर के कई हिस्सों में अपनी जमीन मंदिरों को दान की हैं जिनमें आज भव्य मंदिर संचालित हो रहा है।

1972 के भारत पाकिस्तान युद्ध में इस बैंड ने भी दिया अपना आर्थिक योगदान

अल्ताफ जनता बैंड को आज अपनी विरासत के रूप में आगे ले जाने अब्दुल रहमान ने की माने तो वर्ष 1972 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके दादा अल्ताफ मास्टर ने अपनी देशभक्ति को भावना को ज़ाहिर करते हुए हर गली-मोहल्ले से लेकर शहर के सभी चौराहों में बैंड बजा कर चंदा इकट्ठा किया. जिसके बाद लगभग उस दौरान 68 हजार नगद रुपए और चंदे के रूप में उठने वाले सोने व चांदी के आभूषण हिंदुस्तानी सेना के मनोबल के बढ़ाने के लिए भारतीय सेना को आर्थिक अनुदान स्वरूप भेंट किया गया। जनता बैंड के मास्टर अल्ताफ द्वारा किए गए इस अनूठे कार्य के लिए उस दौरान देहरादून के कलेक्टर द्वारा उनको विशेष पत्र जारी किया गया जिसमें उनके द्वारा दिए गए आर्थिक योगदान को दर्शाया गया है। इसके बाद से इस बैंड का नाम जनता बैंड से अल्ताफ जनता बैंड रखा गया।


नेपाल राजा के शाही शादी से लेकर फ़्रांस फेस्टिवल और बॉलीवुड फिल्म तक अल्ताफ जनता बैंड का विशेष कारनामा

अपने बैंड की सुरीली धुनों में देश की एकता को पिरोता अल्ताफ जनता बैंड देश के हर हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धार्मिक कार्यक्रम में कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता आया हैं। इतना ही नहीं इस बैंड द्वारा नेपाल के तत्कालीन राजा महेंद्र सिंह की काठमांडू में शाही शादी से लेकर फ्रांस फेस्टिवल में अपनी धुनों से सबको थिरकने में मजबूत कर दिया।
अल्ताफ जनता बैंड का सिक्का बॉलीवुड की फिल्मों में खूब रहा हैं ,फिर चाहे वह राज कपूर की फिल्म "पोंगा पंडित" हो या फिर फिल्म -सन्यासी.. इसके साथ ही अमिताभ बच्चन की "शराबी" फ़िल्म से लेकर आज के दौर की फ़िल्म -"मेरे ब्रदर की दुल्हन" भूमि सहित कई गढ़वाली फिल्मों में इस बैंड ने खूब धूम मचाई हैं।


one to one-अब्दुल रहमान उर्फ राजा, अल्ताफ जनता बैंड संचालक


Conclusion:जाति धर्म से उठकर देश में आपसी सौहार्द बनाना हमारे बैंड घराने का धर्म :अब्दुल रहमान

उधर इस बैंड को देश जोड़ने वाली विरासत के रूप में आगे बढ़ाने वाले चौथी पीढ़ी के अब्दुल रहमान उर्फ़ राजा बताते हैं कि कुछ दिनों पहले इलाहाबाद में हुए अर्ध कुंभ में पूरा बैंड 100 टीमों के साथ 1 महीने तक अपना बेहतरीन प्रदर्शन देता वह आया है साथ 2021 में हरिद्वार में होने वाले महाकुंभ में भी बैंड पूरी धार्मिक भावना का सम्मान कर अपना प्रदर्शन हमेशा से करता आया हैं। अब्दुल रहमान बताते हैं कि उनके वालिद गुलाम साबिर पुर भैया जी देहरादून के डाट काली मंदिर में 20 साल तक कोषाध्यक्ष बने उनके दादा अल्ताफ मास्टर उत्तराखंड के सभी मंदिरों ने सदस्य के रूप में अपना योगदान देते रहे उनके परदादा सैनी मास्टर अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश को एक धागे में पिरोने की बात कहकर अपना बैंड चलाते थे।
आज उन्हीं के पूर्वजों द्वारा सिखाई गई सीख को वह आगे बढ़ते हुए हो धर्म जात को एक तरफ रख इंसानियत का धर्म निभा कर अपने बैंड के सुरीले धुनों आपसी सौहार्द माहौल को बनाकर अपने खानदानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

one to one-अब्दुल रहमान उर्फ राजा, अल्ताफ जनता बैंड संचालक

देश के जाने माने बैंड में शुमार देहरादून के "अल्ताफ जनता बैंड" को अगले साल 2020 में 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं ऐसे में यह कहा जा सकता है कि बहन ने ना सिर्फ देश दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है बल्कि देश में हिंदू मुस्लिम सिख इसाई जैसी भाईचारे की भावना को अपनी सुरीली बैंड की धुनों कायम रखते हुए अपने ओर से देश में एकता का पैग़ाम देना काम भी बखूबी निभाया हैं।

PTC



pls note_input_महोदय, यह किरण कांत शर्मा का मोजो मोबाइल हैं,जिसे मैं (परमजीत सिंह )इसे इस्तेमाल कर रहा हूं। मेरा मोजो मोबाइल खराब हो गया हैं, ऐसे मेरी स्टोरी इस मोजो से भेजी जा रही हैं.. ID 7200628


Last Updated : Aug 2, 2019, 11:03 AM IST
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