देहरादून: राजस्थान में 'राइट टू हेल्थ' बिल पर बवाल मचा हुआ है. वहीं बिल के विरोध में आंदोलनरत राजस्थान के चिकित्सकों को अब प्रदेश के डॉक्टरों ने समर्थन दिया है. उत्तराखंड के प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ से जुड़े चिकित्सकों ने समर्थन दिए जाने का ऐलान किया है. संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉक्टर मनोज वर्मा की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया.
संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि सरकारी स्वास्थ्य का अधिकार देना चाहती है तो सबसे पहले स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना चाहिए. ना कि निजी चिकित्सकों के ऊपर ऐसे बिल थोपकर उन्हें प्रताड़ित किया जाना चाहिए. संघ के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार वर्मा ने उत्तराखंड के सरकारी चिकित्सकों की समस्याओं को उठाते हुए कहा कि विगत 3 वर्षों से चिकित्सकों के ऊपर शून्य स्थानांतरण सत्र थोपा जा रहा है. ऐसे में उनकी मांग है कि डॉक्टरों के स्थानांतरण इसी सत्र में ट्रांसफर एक्ट का पालन करते हुए किये जाए. उन्होंने कहा कि यदि सरकार चिकित्सकों के लिए पृथक स्थानांतरण नीति लाना चाहती है तो नीति बनने तक डॉक्टरों के ट्रांसफर एक्ट को पारदर्शी और न्यायोचित तरीके से लागू करते हुए किए जाए.
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उन्होंने कहा कि पीजी करने जा रहे चिकित्सकों को हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर पूर्ण वेतन दिया जाए. आगे कहा कि स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बावजूद संविदा चिकित्सकों की धड़ल्ले से सुगम क्षेत्रों में तैनाती दी जा रही है. स्वास्थ्य मंत्री यदि चाहें तो निदेशालय से पूरी सूची प्राप्त कर सकते हैं. देहरादून, उधमसिंह नगर,नैनीताल,हरिद्वार जैसी सुगम जगहों पर स्वास्थ्य मंत्री के मना करने के बावजूद संविदा चिकित्सकों को नियुक्ति दी जा रही है. उनका कहना है कि यदि नियुक्तियों को निरस्त नहीं किया गया तो वो मजबूरन उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे. इसके अलावा चिकित्सा शिक्षा में तैनात विशेषज्ञ चिकित्सकों को पर्वतीय क्षेत्रों में वेतन का 50 प्रतिशत अतिरिक्त भत्ता दिया जा रहा है. उन्होंने मांग उठाई कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा के विशेषज्ञ चिकित्सकों को भी वेतन का 50 प्रतिशत भत्ता और एमबीबीएस व बीडीएस चिकित्सकों को 25 प्रतिशत पर पर्वतीय भत्ता दिया जाए.