ETV Bharat / state

राज्य स्थापना दिवस: पहाड़ के सामने 'पहाड़' सी चुनौतियां, अब भी सफर आसान नहीं

20 साल पहले जब राज्य का गठन हुआ था तो लोगों में काफी उम्मीदें थी. लोगों को अपेक्षाएं थी कि हर गांव में बिजली और साफ पानी होगा, हर युवा को रोजगार मिलेगा और शिक्षा के स्तर में सुधार भी होगी. उत्तराखंड को बने हुए एक लंबा अरसा बीत गया, लेकिन क्या लोगों की उम्मीदें पूरी हुई हैं?

Uttarakhand State Establishment Day
पहाड़ के सामने 'पहाड़' सी चुनौतियां
author img

By

Published : Nov 8, 2020, 6:01 AM IST

देहरादून: 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड की स्थापना हुई. अलग राज्य के लिए लंबे वक्त से संघर्षरत आंदोलनकारियों का सपना पूरा हुआ. अलग राज्य को लेकर सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी, जिसके बाद उत्तराखंड भारत के मानचित्र पर उभरकर सामने आया. 20 साल के सफर में उत्तराखंड ने सफलता के कई मुकाम हासिल किए. कई चुनौतियों का सामना किया. इस दौरान प्रदेश को कुछ में सफलता हाथ लगी और कुछ में जूझने, संघर्ष करने, नई राह तलाश करने का दौर जारी है.

डबल इंजन सरकार के सामने मुख्य चुनौतियां

9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन राज्य आदोलनकारियों का सपने आज भी अधूरे हैं. उत्तराखंड राज्य की स्थापना जल, जंगल और जमीन की मांग के साथ हुई थी. एक अलग राज्य बनने के बाद प्रदेश के लोगों ने सोचा था कि अब उनका समुचित विकास होगा. लेकिन क्या यह संभव हो पाया है इस विषय पर आज गंभीरता से सोचने की जरूरत है. क्योंकि वर्तमान सरकार को जनता ने विकास के ही मुख्य मुद्दे पर चुना है.

पहाड़ को विकास की आस

गांव में स्कूल हैं, लेकिन अध्यापक नहीं. अस्पताल हैं, मगर डॉक्टर नहीं. बिजली के खंभे हैं, लेकिन बिजली नहीं. पहाड़ से पलायन बढ़ा ही है, कम नहीं हुआ है. राज्य के लगभग पांच हजार गांव सड़कों से काफी दूर हैं. जंगल कटते जा रहे हैं, नदियां सूखती जा रही हैं और पहाड़ की जमीन को हर साल और बंजर होते जाने से बचाया नहीं जा रहा है. इन 20 सालों में नौ मुख्यमंत्रियों के हाथों में सत्ता रही और अनगिनत लुभावने नारे आए. लेकिन ये नारे सिर्फ छलावा साबित हुए और इन्हें अमल में लाने की इच्छाशक्ति नहीं बनी है.

ये प्रोजेक्ट नहीं उतरे धरातल पर

दून-मसूरी रोपवे

मसूरी आने वाले पर्यटकों को जाम से न जूझना पड़े, इसके लिए 450 करोड़ लागत के रोपवे को तैयार करने की प्लानिंग पिछले 15 सालों से चली आ रही है. लेकिन यह योजना अभी तक धरातल पर नहीं उतरी है.

अधर में जल विद्युत परियोजना

लखवाड़ जल विद्युत परियोजना के लिए पिछली सरकार में टेंडर तक हो गए थे. लेकिन केंद्र स्तर से वित्तीय स्वीकृति का मसला लटकने से टेंडर रद्द करना पड़ा. योजना को तमाम स्तर से मंजूरी मिल चुकी है. सिर्फ वित्तीय स्वीकृति जारी न होने से काम शुरू नहीं हो पा रहा है.

अटकी हैं फाइलें

हल्द्वानी के ही दूसरे रिंग रोड प्रोजेक्ट की फाइल शासन में एक साल से अटकी हुई है. वन भूमि हस्तांतरण और यूटिलिटी शिफ्टिंग को लेकर प्रथम चरण में करीब 1120 करोड़ का प्रस्ताव भेजा था. प्रोजेक्ट से जुड़े सहायक अभियंता पंकज राय ने बताया लामाचौड़ से 50.43 किलोमीटर लंबी रिंग रोड बननी है.

पर्यावरण के फेर में अदालत में मामला

नैनीताल में हनुमानगढ़ से रानीबाग तक लगभग 8 किमी का रोपवे बनना है. इस योजना में पर्यावरण का पेंच फंस गया और मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. कोर्ट ने अधिकारियों को आपस में बातचीत कर समस्या के निस्तारण का आदेश दिया है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड आंदोलन की एक झलक

आपदा की मार

2010 के बाद राज्य में लगातार मौसम का कहर लगातार बरप रहा है. जून 2013 की केदारनाथ आपदा ने पिछले सारे रिकार्ड ही तोड़ डाले. 2005 में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू होने के बाद भी प्रदेश का आपदा प्रबंधन तंत्र ठीक नहीं हो पाया.

हासिल करनी हैं कई मंजिलें

स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी प्रदेश को अभी कई मंजिलें हासिल करनी हैं. नीति आयोग की हाल ही आई रिपोर्ट में उत्तराखंड 17वें स्थान पर पहुंच गया. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 700 डाक्टरों की कमी है. इनमें से कोरोना काल में ही प्रदेश सरकार ने करीब 483 डॉक्टरों की तैनाती दी है. इसके बाद भी पर्वतीय और दूर दराज के इलाकों में डाक्टरों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी अभी मौजूद है.

कुछ चुनौतियां का सामना राज्य ने जीवटता के साथ किया और कुछ की अनदेखी भी हुई. 2013 की केदारनाथ आपदा ने एक ऐसा ही घाव दिया. यह घाव अभी पूरी तरह से भरा नहीं है. अब 2020 में राज्य के सामने कोरोना संक्रमण एक और चुनौती लेकर आया है. कोरोना से उबरने का संकेत राज्य दे रहा है. लेकिन इन सबके बीच राज्य सरकार को स्वास्थ्य और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है.

देहरादून: 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड की स्थापना हुई. अलग राज्य के लिए लंबे वक्त से संघर्षरत आंदोलनकारियों का सपना पूरा हुआ. अलग राज्य को लेकर सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी, जिसके बाद उत्तराखंड भारत के मानचित्र पर उभरकर सामने आया. 20 साल के सफर में उत्तराखंड ने सफलता के कई मुकाम हासिल किए. कई चुनौतियों का सामना किया. इस दौरान प्रदेश को कुछ में सफलता हाथ लगी और कुछ में जूझने, संघर्ष करने, नई राह तलाश करने का दौर जारी है.

डबल इंजन सरकार के सामने मुख्य चुनौतियां

9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन राज्य आदोलनकारियों का सपने आज भी अधूरे हैं. उत्तराखंड राज्य की स्थापना जल, जंगल और जमीन की मांग के साथ हुई थी. एक अलग राज्य बनने के बाद प्रदेश के लोगों ने सोचा था कि अब उनका समुचित विकास होगा. लेकिन क्या यह संभव हो पाया है इस विषय पर आज गंभीरता से सोचने की जरूरत है. क्योंकि वर्तमान सरकार को जनता ने विकास के ही मुख्य मुद्दे पर चुना है.

पहाड़ को विकास की आस

गांव में स्कूल हैं, लेकिन अध्यापक नहीं. अस्पताल हैं, मगर डॉक्टर नहीं. बिजली के खंभे हैं, लेकिन बिजली नहीं. पहाड़ से पलायन बढ़ा ही है, कम नहीं हुआ है. राज्य के लगभग पांच हजार गांव सड़कों से काफी दूर हैं. जंगल कटते जा रहे हैं, नदियां सूखती जा रही हैं और पहाड़ की जमीन को हर साल और बंजर होते जाने से बचाया नहीं जा रहा है. इन 20 सालों में नौ मुख्यमंत्रियों के हाथों में सत्ता रही और अनगिनत लुभावने नारे आए. लेकिन ये नारे सिर्फ छलावा साबित हुए और इन्हें अमल में लाने की इच्छाशक्ति नहीं बनी है.

ये प्रोजेक्ट नहीं उतरे धरातल पर

दून-मसूरी रोपवे

मसूरी आने वाले पर्यटकों को जाम से न जूझना पड़े, इसके लिए 450 करोड़ लागत के रोपवे को तैयार करने की प्लानिंग पिछले 15 सालों से चली आ रही है. लेकिन यह योजना अभी तक धरातल पर नहीं उतरी है.

अधर में जल विद्युत परियोजना

लखवाड़ जल विद्युत परियोजना के लिए पिछली सरकार में टेंडर तक हो गए थे. लेकिन केंद्र स्तर से वित्तीय स्वीकृति का मसला लटकने से टेंडर रद्द करना पड़ा. योजना को तमाम स्तर से मंजूरी मिल चुकी है. सिर्फ वित्तीय स्वीकृति जारी न होने से काम शुरू नहीं हो पा रहा है.

अटकी हैं फाइलें

हल्द्वानी के ही दूसरे रिंग रोड प्रोजेक्ट की फाइल शासन में एक साल से अटकी हुई है. वन भूमि हस्तांतरण और यूटिलिटी शिफ्टिंग को लेकर प्रथम चरण में करीब 1120 करोड़ का प्रस्ताव भेजा था. प्रोजेक्ट से जुड़े सहायक अभियंता पंकज राय ने बताया लामाचौड़ से 50.43 किलोमीटर लंबी रिंग रोड बननी है.

पर्यावरण के फेर में अदालत में मामला

नैनीताल में हनुमानगढ़ से रानीबाग तक लगभग 8 किमी का रोपवे बनना है. इस योजना में पर्यावरण का पेंच फंस गया और मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. कोर्ट ने अधिकारियों को आपस में बातचीत कर समस्या के निस्तारण का आदेश दिया है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड आंदोलन की एक झलक

आपदा की मार

2010 के बाद राज्य में लगातार मौसम का कहर लगातार बरप रहा है. जून 2013 की केदारनाथ आपदा ने पिछले सारे रिकार्ड ही तोड़ डाले. 2005 में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू होने के बाद भी प्रदेश का आपदा प्रबंधन तंत्र ठीक नहीं हो पाया.

हासिल करनी हैं कई मंजिलें

स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी प्रदेश को अभी कई मंजिलें हासिल करनी हैं. नीति आयोग की हाल ही आई रिपोर्ट में उत्तराखंड 17वें स्थान पर पहुंच गया. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 700 डाक्टरों की कमी है. इनमें से कोरोना काल में ही प्रदेश सरकार ने करीब 483 डॉक्टरों की तैनाती दी है. इसके बाद भी पर्वतीय और दूर दराज के इलाकों में डाक्टरों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी अभी मौजूद है.

कुछ चुनौतियां का सामना राज्य ने जीवटता के साथ किया और कुछ की अनदेखी भी हुई. 2013 की केदारनाथ आपदा ने एक ऐसा ही घाव दिया. यह घाव अभी पूरी तरह से भरा नहीं है. अब 2020 में राज्य के सामने कोरोना संक्रमण एक और चुनौती लेकर आया है. कोरोना से उबरने का संकेत राज्य दे रहा है. लेकिन इन सबके बीच राज्य सरकार को स्वास्थ्य और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.