मसूरी: इन दिनों अफगानिस्तान में तालिबानियों ने कहर बरपा रखा है. तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. जिसके कारण पूरे अफगानियों में भय का माहौल है. वहीं, तालिबानियों की इस हरकत से पूरा विश्व चिंतित है. इतिहास पर नजर डालें तो अफगानिस्तान में पहले भी इस तरह सत्ता हथियाने के लिए अफगान राजाओं के आपस में युद्ध होते रहे हैं.
ब्रिटिश काल में भी वहां पर इस तरह सत्ता हथियाने के लिए आपस में लड़ाई हुई थी. तब 1842 में अग्रेजों ने वहां के बादशाह दोस्त मोहम्मद आमिर खान को कैद कर पहले लुधियाना लाए और उसके बाद मसूरी में राजनीतिक बंदी के रूप में रखा. अंग्रेजों ने मोहम्मद आमिर खान को मसूरी के बाला हिसार में रखा, जहां वर्तमान में वाइनबर्ग ऐलन स्कूल है. पहले वहां पर राजा की एक कोठी होती थी, जिसकी सुरक्षा अंग्रेजों के हाथों में थी.
ये भी पढ़ें: अफगानिस्तान में फंसे उत्तराखंडियों की मदद करेगी धामी सरकार, ईटीवी भारत से मांगी जानकारी
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि बाला हिसार अफगान शब्द है, जिसका मतलब महल होता है. उन्हीं के नाम पर उस क्षेत्र का नाम बाला हिसार रखा गया. इसके बाद फिर अफगानिस्तान में आपसी लड़ाई हुई. जिसके बाद दूसरे बादशाह याकूब खान को 1880 में मसूरी लाया गया था और उन्हें वैली व्यू कोठी में रखा गया, जिसे राधा भवन से जाना जाता हैं.
राजनीतिक कैदी होने के कारण उनकी पूरी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी, वे कहीं भी आ जा सकते थे. वह करीब चालीस सालों तक मसूरी और देहरादून में रहे. देहरादून में भी वे डालनवाला क्षेत्र में रहे. वहां पर भी बाला हिसार नामक स्थान है, जहां उन्हें रखा गया था. पहला बादशाह दोस्त मोहम्मद आमिर खान 1842 में भारत आया था. अफगानिस्तान में सिविल वार होने के कारण अंग्रेज उन्हें राजनीतिक बंदी के रूप में भारत लेकर आए थे. उसकी सुरक्षा में उस समय लगभग 1000 गोरखा पलटन को लगाया गया था.
1920 में ब्रिटिश सरकार की अफगान सरकार के साथ संधि हो गई. उसकी याद में लाइब्रेरी क्षेत्र में अफगान बादशाह ने रहमानिया मस्जिद का निर्माण करवाया. जिसे बाद में अमानिया मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा.