ETV Bharat / state

उत्तराखंड में वृक्ष संरक्षण एक्ट में संशोधन, क्या होंगे फायदे और नुकसान, पढ़िए पूरी खबर - देहरादून की खबरें

उत्तराखंड में वृक्ष संरक्षण एक्ट में संशोधन की जा रही है. ऐसे में आने वाले समय में लोग अपनी निजी भूमि पर खड़े पेड़ों (कुछ प्रजातियों को छोड़कर) को काट सकेंगे. इसके लिए वन विभाग की अनुमति भी नहीं लेनी पड़ेगी. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या यह संशोधन फायदेमंद साबित होगा या नुकसानदायक. साथ ही यह एक्ट क्या है और क्यों संशोधन जरूरी है? इसकी पूरी जानकारी आपको देते हैं...

tree protection act Amendment
वृक्ष संरक्षण एक्ट में संशोधन
author img

By

Published : Jul 7, 2022, 11:57 AM IST

Updated : Jul 7, 2022, 12:57 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड की वादियों में ऊंचे-ऊंचे पहाड़, कलकल बहती नदियां, झरने, चारों ओर फैली हरियाली और हरे भरे पेड़ों का महत्वपूर्ण योगदान है. जो यहां की खूबसूरती को चार चांद लगा देती है. उत्तराखंड ऐसा पहाड़ी राज्य है, जो अपने साथ अन्य राज्यों को भी साफ हवा और पानी देता है. हालांकि, अपनी भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से उत्तराखंड को आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन उन आपदाओं को कम करने के लिए यहां के जंगल हमेशा से योगदान देते रहे हैं, लेकिन अब उत्तराखंड सरकार के वन मंत्रालय ने वृक्ष संरक्षण एक्ट में एक संशोधन किया है. जिस पर जल्द ही कैबिनेट से भी मंजूरी मिल जाएगी.

दरअसल, उत्तराखंड सरकार में वन मंत्रालय संभाल रहे सुबोध उनियाल ने दो दिन पहले ही अधिकारियों की बैठक ली थी. जिसमें उन्होंने वृक्ष संरक्षण एक्ट में संशोधन करने का निर्णय लिया था. हालांकि, सरकार का उद्देश्य इस निर्णय को लेने का यही है कि उत्तर प्रदेश सरकार के समय से जो एक्ट चला आ रहा था, उसमें संशोधन होना बेहद जरूरी था. यूपी के समय यानी साल 1976 से लागू इस एक्ट को अब संशोधित किया जा रहा है. हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस एक्ट में संशोधन साल 2017 में ही कर दिया था. उत्तर प्रदेश की तरह ही उत्तराखंड सरकार ने एक्ट में संशोधन करने की वजह राज्य की जनता को फायदा देने के साथ किसानों की आय बढ़ाना बताया है.

ये भी पढ़ेंः धर्मनगरी में प्राणवायु देने वाले पेड़ कर दिए जख्मी! व्यापारियों ने बना डाले फ्लैक्स बोर्ड के 'खंभे'

सरकार को क्यों करना पड़ा संशोधन? उत्तराखंड सरकार ने जो बात संशोधन की बताई है, वो ये है कि इस संशोधन के बाद अपनी निजी भूमि पर खड़े पेड़ों को काटने के लिए अधिकारियों या दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. मतलब किसी व्यक्ति ने अपने खेत में पेड़ लगाएं हैं और उन्हें काटना जरूरी है तो पेड़ काटने से उन्हें कोई नहीं रोकेगा, ना ही उन्हें किसी से इसकी परमिशन लेनी होगी. सूबे के वन मंत्री सुबोध उनियाल (Forest Minister Subodh Uniyal) का कहना है कि यह फैसला लोगों की भलाई के लिए लिया जा रहा है, लेकिन हमें और पेड़ भी लगाने होंगे.

अगर हम एक पेड़ काट रहे हैं तो उसकी जगह और पेड़ लगाएं, तभी पर्यावरण बचेगा. सरकार के मंत्री कहते हैं कि हम अब आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, इसलिए इस संशोधन के बाद हमारी जिम्मेदारी पर्यावरण बचाने को लेकर बढ़ गई है. ऐसे में प्रति व्यक्ति कम से कम 75 पेड़ जरूर लगाएं. उन्होंने कहा कि लोगों की आजीविका के लिए यह संशोधन किया जा जा रहा है और ये लंबे समय से लोगों की मांग भी थी.

काट सकेंगे ये पेड़ः सरकार ने जो संशोधन किया है, उनमें कुछ पेड़ों को काटने की छूट दी गई है. जिसमें करीब 28 प्रकार के पेड़ शामिल हैं, जिसमें विलायती बबूल, यूकेलिप्टस, सिरिस, रोबिनिया, कैजूरिना, जंगल जलेबी, खटिक, जामुन याजमोना, ढाक, पलास, पेपर मलबरी जैसे पेड़ों की प्रजाति शामिल हैं, इन पेड़ों से कहीं न कहीं किसान भी लाभान्वित होते हैं. सरकार अपने संशोधन में ये भी शामिल करेगी कि जहां से ये पेड़ काटे जा रहे हैं, वहां और पेड़ तो लगाए ही जाएंगे. साथ ही आसपास के क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत हरियाली भी जरूरी है.

ये भी पढ़ेंः मिशन जिंदगी: बचानी होगी 200 साल पुरानी ये विरासत, आज इस वृक्ष को 'रक्षा' की जरूरत

इनके लिए नहीं मिलेगी अनुमतिः सरकार ने जिन प्रजाति के पेड़ों पर पाबंदी नहीं हटाई है, वो देवदार के साथ आम, नीम, साल, महुआ और खैर सागौन के पेड़ हैं. जिन्हें काटने के लिए इजाजत लेनी होगी. इन पेड़ों की कटाई के लिए भी विभाग के बड़े नियम और कानून बने हुए हैं, लेकिन कई बार इनकी तस्करी भी प्रदेश में अन्य जगह पर देखी जाती है. हालांकि, मंत्री सुबोध उनियाल साफ कह चुके हैं कि संशोधन का मतलब पेड़ों को बचाना और लोगों को रहत देना है. साथ ही पेड़ लगाने के प्रति लोगों को जागरूक करना भी है, ताकि अगर कोई दो पेड़ काट रहा है तो वो 10 पेड़ भी लगाएं.

पर्यावरणविदों ने जताई चिंताः सरकार के इस फैसले से पर्यावरणविद चिंतित नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि ये कहीं न कहीं उत्तराखंड के जंगलों के लिए ठीक नहीं है. पर्यावरणविद पद्मभूषण अनिल जोशी (Environmentalist Anil Joshi) कहते हैं कि यह बात उनके संज्ञान में भी आई है, लेकिन सरकार को यह ध्यान में रखना होगा कि क्या ये संशोधन करने भर से पेड़ों का कटान जो अवैध तरीके से हो रहा है, वो रूक जाएगा. उत्तराखंड में पेड़ और पर्वत के साथ नदियां भी हैं, सभी का समागम है, इससे ही ठंडी आवोहवा जीवित है.

ये भी पढ़ेंः पेड़ काटने के लिए नहीं लेनी होगी परमिशन, वृक्ष संरक्षण नीति में संशोधन की तैयारी

लिहाजा, सरकार इस बात के लिए भी काम करें कि इसकी आड़ में वो पेड़ ना काटे जाएं, जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना है कि कि पापुलर हो या यूकेलिप्टस की खेती होती है. इसको काटने के बाद भी और पहले भी काफी कागजी कार्रवाई होती है. अब लोगों को इसके लिए अधिकारियों के चक्कर नहीं काटने होंगे, लेकिन हमें इन सभी के बीच पर्यावरण का बेहद ध्यान रखना होगा.

शपथ पत्र लें, उसके बाद ही काटने दें पेड़ः बृहद स्तर पर पेड़ों को लगाने और हर साल बरसात के दिनों में पेड़ों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था नई उड़ान की सदस्य विनीता गौनियाल (Nayi Udaan Foundation member Vinita Gouniyal) कहती हैं कि सरकार ने जो भी इजाजत दी है, उसको सही से जनता तक पहुंचाना होगा. नहीं तो आज कल सरकार कोई भी फैसला जनता के हित में लेती है, लेकिन कई बार देखा गया है कि उसका दुरुपयोग होने लगता है. लोग बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करने के लिए पेड़ों पर रोज आरी चला रहे हैं.

इस संशोधन (Tree Protection Act in Uttarakhand) के बाद इसमें और भी इजाफा आ सकता है. इसलिए वन मंत्रालय को अपने छोटे-छोटे दफ्तरों में कर्मचारियों को सजग रहने के लिए अधिक प्रेरित करना होगा. क्योंकि हम आज और पिछले 5 साल पुराने शहर को अपनी आंखों या गूगल मैप से देखते तो हर साल हरियाली बेहद कम होने लगी है. इसलिए लोगों को जागरूक करना होगा कि अगर जरुरत पड़ने पर वो पेड़ काट रहे हैं तो पहले वो विभाग को शपथ पत्र जरूर दें. जिसमें वो उस पेड़ की जगह 10 पेड़ जरूर लगाएं.

देहरादूनः उत्तराखंड की वादियों में ऊंचे-ऊंचे पहाड़, कलकल बहती नदियां, झरने, चारों ओर फैली हरियाली और हरे भरे पेड़ों का महत्वपूर्ण योगदान है. जो यहां की खूबसूरती को चार चांद लगा देती है. उत्तराखंड ऐसा पहाड़ी राज्य है, जो अपने साथ अन्य राज्यों को भी साफ हवा और पानी देता है. हालांकि, अपनी भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से उत्तराखंड को आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन उन आपदाओं को कम करने के लिए यहां के जंगल हमेशा से योगदान देते रहे हैं, लेकिन अब उत्तराखंड सरकार के वन मंत्रालय ने वृक्ष संरक्षण एक्ट में एक संशोधन किया है. जिस पर जल्द ही कैबिनेट से भी मंजूरी मिल जाएगी.

दरअसल, उत्तराखंड सरकार में वन मंत्रालय संभाल रहे सुबोध उनियाल ने दो दिन पहले ही अधिकारियों की बैठक ली थी. जिसमें उन्होंने वृक्ष संरक्षण एक्ट में संशोधन करने का निर्णय लिया था. हालांकि, सरकार का उद्देश्य इस निर्णय को लेने का यही है कि उत्तर प्रदेश सरकार के समय से जो एक्ट चला आ रहा था, उसमें संशोधन होना बेहद जरूरी था. यूपी के समय यानी साल 1976 से लागू इस एक्ट को अब संशोधित किया जा रहा है. हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस एक्ट में संशोधन साल 2017 में ही कर दिया था. उत्तर प्रदेश की तरह ही उत्तराखंड सरकार ने एक्ट में संशोधन करने की वजह राज्य की जनता को फायदा देने के साथ किसानों की आय बढ़ाना बताया है.

ये भी पढ़ेंः धर्मनगरी में प्राणवायु देने वाले पेड़ कर दिए जख्मी! व्यापारियों ने बना डाले फ्लैक्स बोर्ड के 'खंभे'

सरकार को क्यों करना पड़ा संशोधन? उत्तराखंड सरकार ने जो बात संशोधन की बताई है, वो ये है कि इस संशोधन के बाद अपनी निजी भूमि पर खड़े पेड़ों को काटने के लिए अधिकारियों या दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. मतलब किसी व्यक्ति ने अपने खेत में पेड़ लगाएं हैं और उन्हें काटना जरूरी है तो पेड़ काटने से उन्हें कोई नहीं रोकेगा, ना ही उन्हें किसी से इसकी परमिशन लेनी होगी. सूबे के वन मंत्री सुबोध उनियाल (Forest Minister Subodh Uniyal) का कहना है कि यह फैसला लोगों की भलाई के लिए लिया जा रहा है, लेकिन हमें और पेड़ भी लगाने होंगे.

अगर हम एक पेड़ काट रहे हैं तो उसकी जगह और पेड़ लगाएं, तभी पर्यावरण बचेगा. सरकार के मंत्री कहते हैं कि हम अब आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, इसलिए इस संशोधन के बाद हमारी जिम्मेदारी पर्यावरण बचाने को लेकर बढ़ गई है. ऐसे में प्रति व्यक्ति कम से कम 75 पेड़ जरूर लगाएं. उन्होंने कहा कि लोगों की आजीविका के लिए यह संशोधन किया जा जा रहा है और ये लंबे समय से लोगों की मांग भी थी.

काट सकेंगे ये पेड़ः सरकार ने जो संशोधन किया है, उनमें कुछ पेड़ों को काटने की छूट दी गई है. जिसमें करीब 28 प्रकार के पेड़ शामिल हैं, जिसमें विलायती बबूल, यूकेलिप्टस, सिरिस, रोबिनिया, कैजूरिना, जंगल जलेबी, खटिक, जामुन याजमोना, ढाक, पलास, पेपर मलबरी जैसे पेड़ों की प्रजाति शामिल हैं, इन पेड़ों से कहीं न कहीं किसान भी लाभान्वित होते हैं. सरकार अपने संशोधन में ये भी शामिल करेगी कि जहां से ये पेड़ काटे जा रहे हैं, वहां और पेड़ तो लगाए ही जाएंगे. साथ ही आसपास के क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत हरियाली भी जरूरी है.

ये भी पढ़ेंः मिशन जिंदगी: बचानी होगी 200 साल पुरानी ये विरासत, आज इस वृक्ष को 'रक्षा' की जरूरत

इनके लिए नहीं मिलेगी अनुमतिः सरकार ने जिन प्रजाति के पेड़ों पर पाबंदी नहीं हटाई है, वो देवदार के साथ आम, नीम, साल, महुआ और खैर सागौन के पेड़ हैं. जिन्हें काटने के लिए इजाजत लेनी होगी. इन पेड़ों की कटाई के लिए भी विभाग के बड़े नियम और कानून बने हुए हैं, लेकिन कई बार इनकी तस्करी भी प्रदेश में अन्य जगह पर देखी जाती है. हालांकि, मंत्री सुबोध उनियाल साफ कह चुके हैं कि संशोधन का मतलब पेड़ों को बचाना और लोगों को रहत देना है. साथ ही पेड़ लगाने के प्रति लोगों को जागरूक करना भी है, ताकि अगर कोई दो पेड़ काट रहा है तो वो 10 पेड़ भी लगाएं.

पर्यावरणविदों ने जताई चिंताः सरकार के इस फैसले से पर्यावरणविद चिंतित नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि ये कहीं न कहीं उत्तराखंड के जंगलों के लिए ठीक नहीं है. पर्यावरणविद पद्मभूषण अनिल जोशी (Environmentalist Anil Joshi) कहते हैं कि यह बात उनके संज्ञान में भी आई है, लेकिन सरकार को यह ध्यान में रखना होगा कि क्या ये संशोधन करने भर से पेड़ों का कटान जो अवैध तरीके से हो रहा है, वो रूक जाएगा. उत्तराखंड में पेड़ और पर्वत के साथ नदियां भी हैं, सभी का समागम है, इससे ही ठंडी आवोहवा जीवित है.

ये भी पढ़ेंः पेड़ काटने के लिए नहीं लेनी होगी परमिशन, वृक्ष संरक्षण नीति में संशोधन की तैयारी

लिहाजा, सरकार इस बात के लिए भी काम करें कि इसकी आड़ में वो पेड़ ना काटे जाएं, जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना है कि कि पापुलर हो या यूकेलिप्टस की खेती होती है. इसको काटने के बाद भी और पहले भी काफी कागजी कार्रवाई होती है. अब लोगों को इसके लिए अधिकारियों के चक्कर नहीं काटने होंगे, लेकिन हमें इन सभी के बीच पर्यावरण का बेहद ध्यान रखना होगा.

शपथ पत्र लें, उसके बाद ही काटने दें पेड़ः बृहद स्तर पर पेड़ों को लगाने और हर साल बरसात के दिनों में पेड़ों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था नई उड़ान की सदस्य विनीता गौनियाल (Nayi Udaan Foundation member Vinita Gouniyal) कहती हैं कि सरकार ने जो भी इजाजत दी है, उसको सही से जनता तक पहुंचाना होगा. नहीं तो आज कल सरकार कोई भी फैसला जनता के हित में लेती है, लेकिन कई बार देखा गया है कि उसका दुरुपयोग होने लगता है. लोग बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करने के लिए पेड़ों पर रोज आरी चला रहे हैं.

इस संशोधन (Tree Protection Act in Uttarakhand) के बाद इसमें और भी इजाफा आ सकता है. इसलिए वन मंत्रालय को अपने छोटे-छोटे दफ्तरों में कर्मचारियों को सजग रहने के लिए अधिक प्रेरित करना होगा. क्योंकि हम आज और पिछले 5 साल पुराने शहर को अपनी आंखों या गूगल मैप से देखते तो हर साल हरियाली बेहद कम होने लगी है. इसलिए लोगों को जागरूक करना होगा कि अगर जरुरत पड़ने पर वो पेड़ काट रहे हैं तो पहले वो विभाग को शपथ पत्र जरूर दें. जिसमें वो उस पेड़ की जगह 10 पेड़ जरूर लगाएं.

Last Updated : Jul 7, 2022, 12:57 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.