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जीरो टॉलरेंसः यहां ईमानदारी के बदले मिलती है सजा, 9 महीने से नहीं दिया जा रहा वेतन

चिकित्सा शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति पर सहायक अभियंता के तौर पर चंद्रभान को नियुक्ति किया गया था. चंद्रभान की नियुक्ति गलत तथ्यों के आधार पर नियम विरुद्ध किए जाने का मामला सामने आया था. इतना ही नहीं मामले पर आपत्ति दर्ज कराने वाले सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट को बीते 9 महीने से वेतन नहीं दिया जा रहा है. वो बिना वेतन के ही काम कर रहे हैं. मामले पर वेतन ना दिए जाने का कारण भी नहीं बताया जा रहा है.

चिकित्सा शिक्षा विभाग
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Published : Aug 21, 2019, 5:55 PM IST

Updated : Aug 21, 2019, 6:13 PM IST

देहरादूनः राज्य सरकार जीरो टॉलरेंस को लेकर काफी हो हल्ला करती है. इतना ही नहीं सूबे के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी भ्रष्टाचारी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करते हैं, लेकिन यहां चिकित्सा शिक्षा विभाग में तैनात सहायक लेखा अधिकारी को नियम विरुद्ध नियुक्ति पर सवाल उठाने पर सजा मिली है. उन्हें बीते 9 महीने से वेतन नहीं दिया जा रहा है. ना ही वेतन भुगतान ना होने का कोई कारण बताया गया है.

चिकित्सा शिक्षा विभाग में तैनात सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट बीते 9 महीने से नहीं मिला वेतन.

दरअसल, चिकित्सा शिक्षा विभाग में तैनात सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट के लिए मुश्किलें उस वक्त से बढ़नी शुरू हो गई थी, जब साल 2017 में मिर्जापुर के ग्राम्य विकास विभाग में तैनात चंद्रभान को देहरादून चिकित्सा शिक्षा विभाग में सहायक अभियंता के तौर पर प्रतिनियुक्ति पर लाया गया था.

इस दौरान चिकित्सा शिक्षा विभाग में ही तैनात सहायक लेखाधिकारी जेपी भट्ट ने इस मामले पर चंद्रभान की नियुक्ति को गलत तथ्यों के आधार पर नियम विरुद्ध किए जाने का मामला पकड़ा और एक जूनियर अधिकारी को सीनियर पद पर नियुक्ति दिए जाने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड: 2013 से अब तक 6 हेलीकॉप्टर हो चुके हैं क्रैश, 25 लोगों की गई जान

जिसके बाद मामले पर जांच को लेकर शासन स्तर से लिखित आदेश हुए तो चंद्रभान को नियुक्ति देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने के बजाए आनन-फानन में 27 दिसंबर 2018 को चंद्रभान को उत्तराखंड से रिलीव कर दिया.
चंद्रभान को रिलीव करने के साथ ही मामला पकड़ने वाले ईमानदार अधिकारी जेपी भट्ट का भी पिथौरागढ़ ट्रांसफर कर दिया गया. जिसके बाद जेपी भट्ट ने हाई कोर्ट की शरण ली. जिसपर हाई कोर्ट ने तबादले पर स्टे लगा दिया. अभीतक चंद्रभान के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई.

बदले में ईमानदार अधिकारी का वेतन रोक दिया गया है. ऐसे में भट्ट को बीते 9 महीने से वेतन नहीं मिल पाया है. बताया जा रहा है कि शासन में बैठे बड़े अधिकारियों की शह पर लाए गए चंद्रभान को बचाया जा रहा है.

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हालांकि, मामले पर विभाग के अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. उधर, हाई कोर्ट के आदेशानुसार चिकित्सा शिक्षा विभाग से वेतन रिलीज करने का पत्र लिखने वाले वित्त सचिव अमित नेगी मामले को विभाग का बताकर संबंधित विभाग द्वारा ही वेतन रिलीज ना होने का कारण बता रहे हैं.

जेपी भट्ट कई बार वेतन भुगतान को लेकर पत्र लिख चुके हैं, लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग की ओर से वेतन रिलीज नहीं किया जा रहा है. मामले पर वित्त सचिव अमित नेगी चिकित्सा शिक्षा विभाग को वेतन रिलीज करने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं.

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इतना ही नहीं विभागीय लेखा के डायरेक्टर भी चिकित्सा शिक्षा को मामले पर कार्रवाई करते हुए वेतन रिलीज करने की बात पत्र के माध्यम से लिख चुके हैं. मुख्यमंत्री के विभाग में गड़बड़ी रोकने वाले अधिकारी के खिलाफ किए जा रहे इस बर्ताव पर संबंधित विभाग और सचिव मौन हैं. जो कई सवाल खड़े कर रहा है. वहीं जेपी भट्ट की पत्नी ने भी सीएम पोर्टल पर इस मामले की शिकायत भी की है.

उधर, चंद्रभान को गलत तरीके से नियुक्ति देने का मामला केंद्र सरकार तक भी पहुंच गया है. केंद्र सरकार की ओर से मुख्य सचिव को पत्र लिखकर संबंधित मामले पर संज्ञान लेने को कहा गया है. बावजूद कोई जांच नहीं करवाई गई है. ऐसे में साफ है कि अधिकारी सीएम त्रिवेंद्र की जीरो टॉलरेंस की नीति को भी चुनौती दे रहे हैं और उनकी भी खूब किरकिरी करा रहे हैं.

देहरादूनः राज्य सरकार जीरो टॉलरेंस को लेकर काफी हो हल्ला करती है. इतना ही नहीं सूबे के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी भ्रष्टाचारी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करते हैं, लेकिन यहां चिकित्सा शिक्षा विभाग में तैनात सहायक लेखा अधिकारी को नियम विरुद्ध नियुक्ति पर सवाल उठाने पर सजा मिली है. उन्हें बीते 9 महीने से वेतन नहीं दिया जा रहा है. ना ही वेतन भुगतान ना होने का कोई कारण बताया गया है.

चिकित्सा शिक्षा विभाग में तैनात सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट बीते 9 महीने से नहीं मिला वेतन.

दरअसल, चिकित्सा शिक्षा विभाग में तैनात सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट के लिए मुश्किलें उस वक्त से बढ़नी शुरू हो गई थी, जब साल 2017 में मिर्जापुर के ग्राम्य विकास विभाग में तैनात चंद्रभान को देहरादून चिकित्सा शिक्षा विभाग में सहायक अभियंता के तौर पर प्रतिनियुक्ति पर लाया गया था.

इस दौरान चिकित्सा शिक्षा विभाग में ही तैनात सहायक लेखाधिकारी जेपी भट्ट ने इस मामले पर चंद्रभान की नियुक्ति को गलत तथ्यों के आधार पर नियम विरुद्ध किए जाने का मामला पकड़ा और एक जूनियर अधिकारी को सीनियर पद पर नियुक्ति दिए जाने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई.

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जिसके बाद मामले पर जांच को लेकर शासन स्तर से लिखित आदेश हुए तो चंद्रभान को नियुक्ति देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने के बजाए आनन-फानन में 27 दिसंबर 2018 को चंद्रभान को उत्तराखंड से रिलीव कर दिया.
चंद्रभान को रिलीव करने के साथ ही मामला पकड़ने वाले ईमानदार अधिकारी जेपी भट्ट का भी पिथौरागढ़ ट्रांसफर कर दिया गया. जिसके बाद जेपी भट्ट ने हाई कोर्ट की शरण ली. जिसपर हाई कोर्ट ने तबादले पर स्टे लगा दिया. अभीतक चंद्रभान के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई.

बदले में ईमानदार अधिकारी का वेतन रोक दिया गया है. ऐसे में भट्ट को बीते 9 महीने से वेतन नहीं मिल पाया है. बताया जा रहा है कि शासन में बैठे बड़े अधिकारियों की शह पर लाए गए चंद्रभान को बचाया जा रहा है.

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हालांकि, मामले पर विभाग के अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. उधर, हाई कोर्ट के आदेशानुसार चिकित्सा शिक्षा विभाग से वेतन रिलीज करने का पत्र लिखने वाले वित्त सचिव अमित नेगी मामले को विभाग का बताकर संबंधित विभाग द्वारा ही वेतन रिलीज ना होने का कारण बता रहे हैं.

जेपी भट्ट कई बार वेतन भुगतान को लेकर पत्र लिख चुके हैं, लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग की ओर से वेतन रिलीज नहीं किया जा रहा है. मामले पर वित्त सचिव अमित नेगी चिकित्सा शिक्षा विभाग को वेतन रिलीज करने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं.

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इतना ही नहीं विभागीय लेखा के डायरेक्टर भी चिकित्सा शिक्षा को मामले पर कार्रवाई करते हुए वेतन रिलीज करने की बात पत्र के माध्यम से लिख चुके हैं. मुख्यमंत्री के विभाग में गड़बड़ी रोकने वाले अधिकारी के खिलाफ किए जा रहे इस बर्ताव पर संबंधित विभाग और सचिव मौन हैं. जो कई सवाल खड़े कर रहा है. वहीं जेपी भट्ट की पत्नी ने भी सीएम पोर्टल पर इस मामले की शिकायत भी की है.

उधर, चंद्रभान को गलत तरीके से नियुक्ति देने का मामला केंद्र सरकार तक भी पहुंच गया है. केंद्र सरकार की ओर से मुख्य सचिव को पत्र लिखकर संबंधित मामले पर संज्ञान लेने को कहा गया है. बावजूद कोई जांच नहीं करवाई गई है. ऐसे में साफ है कि अधिकारी सीएम त्रिवेंद्र की जीरो टॉलरेंस की नीति को भी चुनौती दे रहे हैं और उनकी भी खूब किरकिरी करा रहे हैं.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट......


Summary- भ्रष्टाचार पर कड़ा संदेश देने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के विभाग में ही अधिकारी जीरो टॉलरेंस के नारे को झुठला देना चाहते हैं... गड़बड़ी रोकने वाले को शाबासी की जगह सजा देना तो कुछ यही बयां कर रहा है। देखिये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.....


यकीन नहीं होता कि त्रिवेंद्र सरकार में ईमानदार अधिकारी को प्रताड़ित किया जा रहा हो और नॉकरशाहों समेत पूरी सरकार इसपर आंखे बंद किये हो..वो भी ऐसे विभाग में जो खुद मुख्यमंत्री के ही पास हो। 




Body:शासन में बैठे अधिकारियों में नियम कानूनों से इतर जाने की हिम्मत कहाँ से आती है.. वो भी तब जब प्रदेश के मुखिया भ्रष्टाचार को लेकर सख्त हो..और नियम कानूनों के तहत काम करने की मॉनिटरिंग का जिम्मा भी खुद संभाले हुए हों..राज्य में चिकित्सा शिक्षा विभाग से जुड़ा मामला कुछ ऐसे ही सवालों को जन्म देता है...दरअसल चिकित्सा शिक्षा में तैनात सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट पिछले 9 महीने से बिना तनख्वाह के काम कर रहे हैं... नातो जेपी भट्ट को महीनों से वेतन मिला है ना ही वेतन न दिए जाने का कारण बताया गया है। अब समझिए यह पूरा माजरा क्या है जिसके बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग में सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट के लिए मुश्किलें बढ़ना शुरू हो गया था। साल 2017 में मिर्जापुर के ग्राम्य विकास विभाग में तैनात चंद्रभान को देहरादून चिकित्सा शिक्षा विभाग में सहायक अभियन्ता के तौर पर प्रतिनियुक्ति पर लाया गया.. इस दौरान चिकित्सा शिक्षा विभाग में ही तैनात सहायक लेखाधिकारी जेपी भट्ट ने इस मामले पर चंद्रभान की नियुक्ति को गलत तथ्यों के आधार पर नियम विरुद्ध किए जाने का मामला पकड़ा और एक जूनियर अधिकारी को सीनियर पद पर नियुक्ति दिए जाने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई। जिसके बाद मामले पर जांच को लेकर शासन स्तर से लिखित आदेश हुए तो चंद्रभान को प्रकृति देने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही करने के बजाए आनन-फानन में 27 दिसंबर 2018 को चंद्रभान को उत्तराखंड से रिलीव कर दिया गया... चंद्रभान को रिलीव करने के साथ ही मामला पकड़ने वाले ईमानदार अधिकारी जेपी भट्ट भी पिथौरागढ़ ट्रांसफर कर दिया गया। जिसके बाद ईमानदार अधिकारी जेपी भट्ट ने हाईकोर्ट की शरण ली और हाईकोर्ट ने भी तबादले पर स्टे दे दिया... तब से अबतक चंद्रभान के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई तो नही की गई.. उल्टा ईमानदार अधिकारी का वेतन 9 महीने से रोक कर रखा गया है। बताया जा रहा है कि शासन में बैठे बड़े अधिकारियों की शह पर लाए गए चंद्रभान को बचाया जा रहा है तो इन्हीं अधिकारियों ने एक ईमानदार अधिकारी को परेशान कर वेतन रोककर रखा है। हालांकि मामले पर विभाग के अधिकारी कुछ भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं दिखाई दे रहे। उधर हाईकोर्ट के आदेशानुसार चिकित्सा शिक्षा विभाग से वेतन रिलीज करने का पत्र लिखने वाले वित्त सचिव अमित नेगी मामले को विभाग विशेष का बताकर संबंधित विभाग द्वारा ही वेतन रिलीज ना होने का कारण बताएं जाने की बात कह रहे हैं...


बाइट अमित नेगी वित्त सचिव उत्तराखंड


मामले पर जेपी भट्ट के साथ इस कदर मजाक किया जा रहा है कि वेतन भुगतान किए जाने को लेकर कई पत्र जारी होने के बाद भी चिकित्सा शिक्षा विभाग लेखाधिकारी का वेतन रिलीज नहीं कर रहा है। इसी मामले में वित्त सचिव अमित नेगी चिकित्सा शिक्षा विभाग को वेतन रिलीज करने के लिए पत्र लिख चुके हैं यही नहीं विभागीय लेखा के डायरेक्टर भी चिकित्सा शिक्षा को मामले पर फौरन कार्रवाई करते हुए वेतन रिलीज करने की बात पत्र के माध्यम से लिख चुके हैं। मुख्यमंत्री के विभाग में गड़बड़ी रोकने वाले अधिकारी के खिलाफ हो रही ज्यादती पर चिकित्सा शिक्षा विभाग के निदेशक और सचिव का मौन रहना कई सवाल भी खड़े कर रहा है। 




Conclusion:चंद्रभान को गलत तरीके से नियुक्ति देने का मामला केंद्र सरकार तक भी पहुंचा है... भारत सरकार की तरफ से मुख्य सचिव को पत्र लिखकर संबंधित मामले पर संज्ञान लेने के लिए भी कहा गया है हालांकि अब तक इस पर कोई जांच नहीं करवाई गई है। ऐसे में साफ है कि अधिकारी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जीरो टॉलरेंस की नीति को भी चुनौती दे रहे हैं और उनकी भी खूब किरकिरी करा रहे हैं।
Last Updated : Aug 21, 2019, 6:13 PM IST
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