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आधुनिकता की चकाचौंध में डूबा शहर, पुराने लम्हों को याद कर रहे लोग

सोशल मीडिया पर इन दिनों उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के 90 के दशक वाली तस्वीर वायरल हो रही हैं जो लोगों को खूब भा रही हैं. ये तस्वीरें 2019 के देहरादून से बिल्कुल जुदा हैं. इतने वर्षों में यहां बड़े पैमाने पर परिवर्तन आया है. इन तस्वीरों में घंटाघर से चकराता जाने वाले मार्ग का दृश्य है.

90 के तस्वीरें सोशल मीडिया पर
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Published : Aug 30, 2019, 2:38 PM IST

Updated : Aug 31, 2019, 7:13 AM IST

देहरादूनः बदलते दौर के साथ पिछले तीन दशकों में देहरादून की सूरत 90 के दशक से आज बिल्कुल जुदा नजर आती है लेकिन विकास के दौर में आज भी लोग 90 के दशक वाली देहरादून की तस्वीर को सोशल मीडिया पर इन दिनों खूब पसंद कर रहे हैं. जहां सोशल मीडिया पर देहरादून के घंटाघर से जाने वाले चकराता रोड के मुख्य मार्ग की तस्वीर सुकून भरे अंदाज में देख खूब ट्रोल हो रही हैं.

90 के दशक का देहरादून लोगों को खूब भा रहा.

पिछले तीन दशकों में देहरादून की तस्वीर भले ही सुविधाओं से भरे विकास के पहिये में दौड़ रही है, लेकिन आज सड़कों पर बेइंतहा वाहनों के बोझ के साथ बढ़ती जनसंख्या को देख लोग 1990 के दशक वाला देहरादून याद कर रहे हैं. वे इन तस्वीरों को नए सोशल मीडिया में देख सराहना करते हुए हैरानी भरी निगाहों देख रहे हैं.

ईटीवी भारत ने जाना उन स्थानों का हाल

सोशल मीडिया में खूब ट्रोल हो रहीं नब्बे दशक वाली इन स्थानों की तस्वीरों को आज के समय से तुलना कर ईटीवी भारत ने उन सभी स्थानों में जाकर वर्तमान हाल जाना, जो 90 के दशक में बिल्कुल अलग नजर आते थे. इतना ही नहीं इन जगहों में व्यापार करने वाले लोगों से जानने का प्रयास किया कि उस दौर से अब तक का समय में क्या परिवर्तन है, क्या बदला, कितना सुधार और कितनी राहत मिली.

घंटाघर

सबसे पहले 90 के दशक में दिखने वाले वीडियो की बात करें तो इसकी तस्वीरों में घंटाघर का चकराता रोड मुख्य द्वार नजर आता है. जहां उस जमाने से लेकर वर्तमान समय तक देश दुनिया में अपनी बड़ी पहचान बना चुका "कुमार मिष्ठान भंडार" मौजूद था.

इस मशहूर मिष्ठान के नाम से ही घंटाघर के आसपास की पहचान थी. समय के साथ इस नामी व्यापारिक प्रतिष्ठान को समय की जरूरत के अनुसार सड़क पर आने के कारण 2008 में पूरी तरह ध्वस्त कर हटाया गया.

आज यह प्रतिष्ठान घंटाघर से थोड़े आगे एक बड़े कांपलेक्स में भव्य रूप में नजर आता है. इस नामी मिष्ठान प्रतिष्ठान के संचालक रमेश कुमार बताते हैं कि उनकी चौथी पीढ़ी आज उनका कारोबार संभाल रही है जबकि पहली पीढ़ी में उनके पिता आजादी से पहले पाकिस्तान में इसी नाम से मिष्ठान भंडार चलाते थे.

भारत पाकिस्तान अलग होने के बाद 1950 में वह देहरादून पहुंचे तब से आज तक यह प्रतिष्ठान हर एक ग्राहकों की जुबान पर टिका हुआ है.

देहरादून में एक पीढ़ी ने 90 के दशक वाले शहर के घंटाघर से जाने वाले मुख्य मार्ग चकराता रोड की वह सूरत प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखी जिसमें सिंगल लेन वाली सड़क में छोटे बड़े वाहनों के चलने के बावजूद लोग पैदल चलने वाले को प्राथमिकता देते थे

वर्तमान की सूरत 90 के दशक से बिल्कुल जुदा है. अब यह घंटाघर की चकराता रोड वर्ष 2008 में चौड़ी होकर डबल लेन की हो चुकी है उसके बावजूद पैदल चलने वालों के लिए जगह नहीं है. घंटाघर के बॉटल नेक के दायरे में आने वाली दर्जनों दुकानें कुमार स्वीट शॉप से लेकर कनॉट प्लेस से पहले तक टूट चुकी हैं.

उसके बाद भी आज दिनों दिन बढ़ने वाली जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों को राहत नहीं मिल रही है. 90 के दशक वाली संकरी रोड को चौड़ा तो कर दिया गया, लेकिन सरकारी मशीनरी द्वारा व्यवस्थित तरीके से विकास न होने के कारण लोग क्या बोलते हैं जरा सुनिए.

90 के दशक वाले दूसरा वीडियो चकराता रोड के प्रभात सिनेमा टॉकीज और कृष्णा पैलेस सिनेमा के सामने तंग सड़क का नजारा है. जहां उस जमाने में दोनों सिनेमाघरों में इस बात की होड़ लगी रहती थी कि कौन बड़ी हिट्स फिल्म का संचालन करता है.

आमने-सामने बने इन सिनेमाघरों के आसपास पर्याप्त जगह न होने के कारण भी दर्शकों में फिल्म देखने के लिए वह जबरदस्त उत्साह रहता था कि लोग कीमत से ज्यादा रकम चुका कर सिनेमा देखना चाहते थे, लेकिन आज यह दोनों सिनेमाघर दर्शकों की भारी कमी के चलते हैं दम तोड़ते नजर आ रहे हैं.
वर्तमान में दोनों सिनेमा की तरफ डबल लेन की रोड पर सरपट वाहन दौड़ रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः पीएम मोदी के भाई गंगा आरती में हुए शामिल, बोले- तीर्थनगरी से बेहतर आध्यात्मिक स्थान कोई नहीं

प्रभात सिनेमा टॉकीज आज भी अपनी पुरानी याद को ताजा रख आम लोगों के लिए बदस्तूर मनोरंजन का साधन बना हुआ है, लेकिन किसी जमाने में सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मों के लिए धमाल मचाने वाला सड़क के दूसरे हिस्से में स्थित "कृष्णा पैलेस टॉकीज" मल्टीप्लेक्स के जमाने में दम तोड़ चुका है. आधुनिक दौर से कदमताल न मिलाने के चलते आज कृष्णा पैलेस सिनेमाघर भवन को ध्वस्त किया जा रहा है.

90 के दशक वाले तीसरे वीडियो में उस स्थान के चकराता रोड का नजर आता है जहां 1950 के दशक से हरियाणा हैंडलूम जैसी कई पुरानी दुकानें नजर आती हैं. उस दौर में इस स्थान में व्यवसाय करने वालों को सड़क वक्री होने के चलते व्यापारिक दृष्टि से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.

इस स्थान के व्यापारियों की मानें तो उस समय इस मार्केट में खरीदारी करना बड़े घरानों के लोगों के लिए छोटा माना जाता था. ऐसे में इस स्थान के व्यापारी सिर्फ प्रेम नगर से आने वाले कुछ खरीदारों के भरोसे अपनी दुकानदारी चलाते थे लेकिन व्यापारियों के मुताबिक आज वर्तमान में हालत पहले से बिल्कुल जुदा हैं.

बड़ी-बड़ी रोड चौड़ी होने के कारण आज राजपुर रोड से लेकर अन्य बड़े रिहायशी इलाकों के ग्राहक उनकी नए रंग रूप में निखरने वाली दुकानों में खरीदारी के लिए आते हैं.

देहरादूनः बदलते दौर के साथ पिछले तीन दशकों में देहरादून की सूरत 90 के दशक से आज बिल्कुल जुदा नजर आती है लेकिन विकास के दौर में आज भी लोग 90 के दशक वाली देहरादून की तस्वीर को सोशल मीडिया पर इन दिनों खूब पसंद कर रहे हैं. जहां सोशल मीडिया पर देहरादून के घंटाघर से जाने वाले चकराता रोड के मुख्य मार्ग की तस्वीर सुकून भरे अंदाज में देख खूब ट्रोल हो रही हैं.

90 के दशक का देहरादून लोगों को खूब भा रहा.

पिछले तीन दशकों में देहरादून की तस्वीर भले ही सुविधाओं से भरे विकास के पहिये में दौड़ रही है, लेकिन आज सड़कों पर बेइंतहा वाहनों के बोझ के साथ बढ़ती जनसंख्या को देख लोग 1990 के दशक वाला देहरादून याद कर रहे हैं. वे इन तस्वीरों को नए सोशल मीडिया में देख सराहना करते हुए हैरानी भरी निगाहों देख रहे हैं.

ईटीवी भारत ने जाना उन स्थानों का हाल

सोशल मीडिया में खूब ट्रोल हो रहीं नब्बे दशक वाली इन स्थानों की तस्वीरों को आज के समय से तुलना कर ईटीवी भारत ने उन सभी स्थानों में जाकर वर्तमान हाल जाना, जो 90 के दशक में बिल्कुल अलग नजर आते थे. इतना ही नहीं इन जगहों में व्यापार करने वाले लोगों से जानने का प्रयास किया कि उस दौर से अब तक का समय में क्या परिवर्तन है, क्या बदला, कितना सुधार और कितनी राहत मिली.

घंटाघर

सबसे पहले 90 के दशक में दिखने वाले वीडियो की बात करें तो इसकी तस्वीरों में घंटाघर का चकराता रोड मुख्य द्वार नजर आता है. जहां उस जमाने से लेकर वर्तमान समय तक देश दुनिया में अपनी बड़ी पहचान बना चुका "कुमार मिष्ठान भंडार" मौजूद था.

इस मशहूर मिष्ठान के नाम से ही घंटाघर के आसपास की पहचान थी. समय के साथ इस नामी व्यापारिक प्रतिष्ठान को समय की जरूरत के अनुसार सड़क पर आने के कारण 2008 में पूरी तरह ध्वस्त कर हटाया गया.

आज यह प्रतिष्ठान घंटाघर से थोड़े आगे एक बड़े कांपलेक्स में भव्य रूप में नजर आता है. इस नामी मिष्ठान प्रतिष्ठान के संचालक रमेश कुमार बताते हैं कि उनकी चौथी पीढ़ी आज उनका कारोबार संभाल रही है जबकि पहली पीढ़ी में उनके पिता आजादी से पहले पाकिस्तान में इसी नाम से मिष्ठान भंडार चलाते थे.

भारत पाकिस्तान अलग होने के बाद 1950 में वह देहरादून पहुंचे तब से आज तक यह प्रतिष्ठान हर एक ग्राहकों की जुबान पर टिका हुआ है.

देहरादून में एक पीढ़ी ने 90 के दशक वाले शहर के घंटाघर से जाने वाले मुख्य मार्ग चकराता रोड की वह सूरत प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखी जिसमें सिंगल लेन वाली सड़क में छोटे बड़े वाहनों के चलने के बावजूद लोग पैदल चलने वाले को प्राथमिकता देते थे

वर्तमान की सूरत 90 के दशक से बिल्कुल जुदा है. अब यह घंटाघर की चकराता रोड वर्ष 2008 में चौड़ी होकर डबल लेन की हो चुकी है उसके बावजूद पैदल चलने वालों के लिए जगह नहीं है. घंटाघर के बॉटल नेक के दायरे में आने वाली दर्जनों दुकानें कुमार स्वीट शॉप से लेकर कनॉट प्लेस से पहले तक टूट चुकी हैं.

उसके बाद भी आज दिनों दिन बढ़ने वाली जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों को राहत नहीं मिल रही है. 90 के दशक वाली संकरी रोड को चौड़ा तो कर दिया गया, लेकिन सरकारी मशीनरी द्वारा व्यवस्थित तरीके से विकास न होने के कारण लोग क्या बोलते हैं जरा सुनिए.

90 के दशक वाले दूसरा वीडियो चकराता रोड के प्रभात सिनेमा टॉकीज और कृष्णा पैलेस सिनेमा के सामने तंग सड़क का नजारा है. जहां उस जमाने में दोनों सिनेमाघरों में इस बात की होड़ लगी रहती थी कि कौन बड़ी हिट्स फिल्म का संचालन करता है.

आमने-सामने बने इन सिनेमाघरों के आसपास पर्याप्त जगह न होने के कारण भी दर्शकों में फिल्म देखने के लिए वह जबरदस्त उत्साह रहता था कि लोग कीमत से ज्यादा रकम चुका कर सिनेमा देखना चाहते थे, लेकिन आज यह दोनों सिनेमाघर दर्शकों की भारी कमी के चलते हैं दम तोड़ते नजर आ रहे हैं.
वर्तमान में दोनों सिनेमा की तरफ डबल लेन की रोड पर सरपट वाहन दौड़ रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः पीएम मोदी के भाई गंगा आरती में हुए शामिल, बोले- तीर्थनगरी से बेहतर आध्यात्मिक स्थान कोई नहीं

प्रभात सिनेमा टॉकीज आज भी अपनी पुरानी याद को ताजा रख आम लोगों के लिए बदस्तूर मनोरंजन का साधन बना हुआ है, लेकिन किसी जमाने में सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मों के लिए धमाल मचाने वाला सड़क के दूसरे हिस्से में स्थित "कृष्णा पैलेस टॉकीज" मल्टीप्लेक्स के जमाने में दम तोड़ चुका है. आधुनिक दौर से कदमताल न मिलाने के चलते आज कृष्णा पैलेस सिनेमाघर भवन को ध्वस्त किया जा रहा है.

90 के दशक वाले तीसरे वीडियो में उस स्थान के चकराता रोड का नजर आता है जहां 1950 के दशक से हरियाणा हैंडलूम जैसी कई पुरानी दुकानें नजर आती हैं. उस दौर में इस स्थान में व्यवसाय करने वालों को सड़क वक्री होने के चलते व्यापारिक दृष्टि से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.

इस स्थान के व्यापारियों की मानें तो उस समय इस मार्केट में खरीदारी करना बड़े घरानों के लोगों के लिए छोटा माना जाता था. ऐसे में इस स्थान के व्यापारी सिर्फ प्रेम नगर से आने वाले कुछ खरीदारों के भरोसे अपनी दुकानदारी चलाते थे लेकिन व्यापारियों के मुताबिक आज वर्तमान में हालत पहले से बिल्कुल जुदा हैं.

बड़ी-बड़ी रोड चौड़ी होने के कारण आज राजपुर रोड से लेकर अन्य बड़े रिहायशी इलाकों के ग्राहक उनकी नए रंग रूप में निखरने वाली दुकानों में खरीदारी के लिए आते हैं.

Intro:pls- डेस्क महोदय यह spl स्टोरी हैं, इसके विसुअल, one to one, walkthrough---लाइव u से "1990 to 2019 dehradun" नाम से भेजा गया हैं। और कुछ विसुअल edit कर इसी मोजो से भी भेजे गए हैं।
नोट-email से देहरादून के 90 के दशक के वीडियो भेज गए है- स्टोरी से सम्बंधित



summary-नब्बे के दशक वाली देहरादून की तस्वीर 2019 से बिल्कुल जुदा,सोशल मीडिया खूब पंसद की जा रही इन दिनों नब्बे दशक वाली तस्वीरे, बदलते दौर में कितना बदल गया घंटाघर से चकराता जाने वाला मार्ग, व्यपारियों की नज़र में विकास हुआ लेकिन व्यवस्थित ढंग से नहीं..क्या हैं नब्बे के दशक और 2019 वाली देहरादून मुख्य मार्ग वाली तस्वीर??


बदलते दौर के साथ पिछले तीन दशकों में देहरादून की सूरत 90 के दशक से आज बिल्कुल जुदा नजर आती है लेकिन विकास के दौर में आज भी लोग 90 के दशक वाली देहरादून की तस्वीर को इन दिनों खूब पसंद कर रहे हैं...जिहां सोशल मीडिया पर देहरादून के घंटाघर से जाने वाले चकराता रोड के मुख्य मार्ग की तस्वीर सकून भरे अंदाज में देख खूब ट्रोल हो रही हैं। पिछले तीन दशकों में देहरादून की तस्वीर भले ही सुविधाओं से भरे विकास के पहिये में दौड़ रही हैं,लेकिन आज सड़कों पर बेइंतहा वाहनों का बोझ के साथ भारी तादाद में बढ़ने वाले जनसंख्या को देख लोग 1990 के दशक वाली तस्वीरों को नई सोशल मीडिया में देख सराहना करते हुए हैरानी भरी निगाहों देख रही हैं।

ईटीवी भारत ने जाना उस स्थानों का हाल 90 की दशक तस्वीरों में बिल्कुल अलग नजर आता था

सोशल मीडिया में खूब ट्रोल कर रही नब्बे दशक वाली इन स्थानों की तस्वीरों को आज के समय से तुलना कर ईटीवी भारत ने उन सभी स्थानों में जाकर वर्तमान हाल जाना जो 90 के दशक में बिल्कुल अलग नजर आते थे ..इतना ही नही इन जगहों में व्यापार करने वाले लोगों जानने का प्रयास किया कि, उस दौर से अब तक का समय में क्या परिवर्तन है..क्या बदला,कितना सुधार और राहत मिला...

walk through 1st घंटाघर

सबसे पहले 90 के दशक में देखने वाले वीडियो की बात करें तो इसकी तस्वीरें में घंटाघर के चकराता रोड मुख द्वार नजर आता है जहां उस जमाने से लेकर वर्तमान के समय तक देश -दुनिया मे अपनी बड़ी पहचान बना चुका "कुमार मिष्ठान भंडार"मौजूद था। इस मशहूर मिष्ठान के नाम से ही घंटाघर के आसपास की पहचान थी.. समय के साथ इस नामी व्यापारिक प्रतिष्ठान को समय की जरूरत के अनुसार सड़क के मुख्य होटल नेट में आने के कारण 2008 में पूरी तरह ध्वस्त कर हटाया गया.. आज यह प्रतिष्ठान घंटाघर से थोड़े आगे एक बड़े कांपलेक्स में भव्य रूप में नजर आता है। इस नामी मिष्ठान प्रतिष्ठान के संचालक रमेश कुमार बताते हैं कि उनकी चौथी पीढ़ी आज उनका कारोबार संभाल रही है जबकि पहली पीढ़ी उनके पिता देश आजादी से पहले पाकिस्तान में इसी नाम से मिष्ठान भंडार चलाते थे भारत पाकिस्तान अलग होने के बाद 1950 में वह देहरादून पहुंचे तब से आज तक के प्रतिष्ठान हर एक ग्राहकों के जुबान पर टिका हुआ है।

one to one (वन टू वन- रमेश कुमार, कुमार मिष्ठान भंडार





Body:देहरादून में एक पीढ़ी ने 90 के दशक वाले शहर के घंटाघर से जाने वाले मुख्य मार्ग चकराता रोड़ की वह सूरत प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखी जिसमें सिंगल लेन वाली सड़क में छोटे बड़े वाहनों के चलने के बावजूद लोग पैदल चलने वाले को प्राथमिकता देते थे लेकिन वर्तमान की सूरत 90 के दशक से बिल्कुल जुदा है अब यह घंटाघर की चकराता रोड वर्ष 2008 में चौड़ी होकर डबल लेन की हो चुकी है उसके बावजूद पैदल चलने वालों के लिए जगह नहीं हैं। घंटाघर के बॉटल नेक के दायरे में आने वाली दर्जनों दुकानें कुमार स्वीट शॉप से लेकर कनॉट प्लेस से पहले तक टूट चुकी हैं। उसके बाद भी आज दिनों दिन बढ़ने वाले जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों राहत नहीं मिल रही हैं। नब्बे दशक वाली सकरी रोड को चौड़ा तो कर दिया गया लेकिन सरकारी मशीनरी द्वारा व्यवस्थित तरीके से विकास ना होने के कारण लोग क्या बोलते जरा सुनिए..

बाईट-नीलांभर बड़ूनी, बंगाली स्वीट शॉप घंटाघर
बाईट-2-विक्रम कालरा, कृष्णा मेडिकल चकराता रोड


90 के दशक वाले दूसरा वीडियो चकराता रोड के प्रभात सिनेमा टॉकीज और कृष्णा पैलेस सिनेमा घर सामने तंग सड़क का नजारा है जहां उस जमाने में दोनों सिनेमाघरों में इस बात की होड़ लगी रहती थी कि कौन बड़ी हिट्स फ़िल्म का संचालन करता हैं... आमने सामने बने इन सिनेमाघरों के आसपास पर्याप्त जगह ना होने के कारण भी दर्शकों में फिल्म देखने के लिए वह जबरदस्त उत्साह रहता था कि लोग कीमत से ज्यादा रकम चुका कर सिनेमा देखना चाहते थे लेकिन आज यह दोनों सिनेमाघर दर्शकों की भारी कमी के चलते हैं दम तोड़ती नजर आ रहे हैं। आज वर्तमान में दोनों सिनेमा तरफ डबल लेन की रोड पर सरपट वाहन दौड़ रहे हैं। प्रभात सिनेमा टॉकीज आज भी अपनी पुरानी याद को ताज़ा रख आम लोगों के लिए बदस्तूर मनोरंजन का साधन बना हुआ है लेकिन किसी जमाने में सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मों के लिए धमाल मचाने वाला सड़क के दूसरे हिस्से में स्थित "कृष्णा पैलेस टॉकीज" मल्टीप्लेक्स के जमाने में दम तोड़ चुका है आधुनिक दौर से कदमताल ना मिलाने के चलते आज कृष्णा पैलेस सिनेमाघर भवन को ध्वस्त किया जा रहा है।

walk through ( 2nd)







Conclusion:90 के दशक वाले तीसरे वीडियो में वह स्थान चकराता रोड का नजर आता है जहां 1950 के दशक से हरियाणा हैंडलूम जैसी कई पुरानी दुकाने नजर आती है। उस दौर में इस स्थान में व्यवसाय करने वालों को सड़क तन वक्री होने के चलते व्यापारिक दृष्टि से काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। इस स्थान के व्यापारियों की मानें तो उस समय इस मार्केट में खरीदारी करना बड़े घरानों के लोगों के लिए छोटा माना जाता था ऐसे में इस स्थान के व्यापारी सिर्फ प्रेम नगर आइए में से आने वाले कुछ खरीदारों के भरोसे अपनी दुकानदारी चलाते थे लेकिन व्यापारियों के मुताबिक आज वर्तमान में हालत पहले से बिल्कुल जुदा है बड़ी-बड़ी रोड चौड़ी होने के कारण आज राजपुर रोड से लेकर अन्य बड़े रिहायशी इलाकों के ग्राहक उनकी नई रंग रूप में निखरने वाली दुकानों में खरीदारी के लिए आते हैं।

बाइट- दीपक आहूजा, हरियाणा हैंडलूम

walk through ( 3rd फाइनल)
Last Updated : Aug 31, 2019, 7:13 AM IST
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