ETV Bharat / state

उत्तराखंड त्रासदी से जानिए क्या सबक लिया सरकार ने, आपदा प्रबंधन तंत्र में कितना किया सुधार

उत्तराखंड त्रासदी के बाद सरकार ने कितना बदलाव किया आपदा प्रबंधन तंत्र में जानने के लिए पढ़े ये खबर.

आपदा प्रबंधन तंत्र में कितना किया सुधार
author img

By

Published : Jun 16, 2019, 6:43 AM IST

Updated : Jun 17, 2019, 2:05 AM IST

देहरादून: केदारनाथ त्रासदी को 6 साल पूरे हो गए हैं. केदारनाथ में 16 जून 2013 को आई आपदा की पीड़ा लोगों के जहन में आज भी ताजा है. उस दौरान के तबाही के मंजर को भले ही देश-दुनिया भूल गई हो पर यहां के स्थानीय लोगों के दिलों में त्रासदी के घाव अभी भी हरे हैं. उस मंजर को सोचते ही लोग सिहर उठते हैं. केदारपुरी की तस्वीर अब पुनर्निर्माण रूपी मरहम से भले ही केंद्र और राज्य सरकार बदलने की कोशिश में हैं, लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि सरकार ने उत्तराखंड त्रासदी से क्या सबक सीखा है.

उत्तराखंड त्रासदी को 6 साल पूरे.

छह साल पहले जून माह में केदारनाथ में सुबह तो हुई, लेकिन शाम होते-होते अत्याधिक बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से घाटी में मातम छा गया. हजारों लोगों की मौत और रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जिलों में मची भारी तबाही से देश-विदेश के लोग और सरकारें व्यथित थीं. अब 6 साल बाद भले ही इलाके की तस्वीर बदल गई हो, लेकिन पर्यावरण को जिस तरह से ताक पर रखकर काम किया जा रहा है इससे तो लगता है, सरकार ने उत्तराखंड की इस भीषण त्रासदी से कुछ सबक ही नहीं लिया. हालांकि आपदा से जुझने के लिए आपदा प्रबंधन तंत्र को लगातार मजूबत करने की कोशिश की जा रही है.

पढ़ें- केदार घाटी में लौटी चमक, कुछ ऐसा रहा विनाश से विकास तक का सफर

साल 2013 में कुछ ऐसा था हाल
आपदा प्रबंधन विभाग उस दौरान बचाव कार्य तो छोड़िये कितना नुकासान हुआ इसका भी आंकलन नहीं कर पाया था. आपदा के करीब तीन दिन बाद घाटी में हुए नुकसान का आंकलन किया गया था. उस दौरान एनडीआरएफ और सेना के कंधों पर ही आपदा से लोगों को रेस्क्यू करने की जिम्मेदारी थी. संसाधनों और कनेक्टिविटी के हाल ऐसे थे की मीडिया रिपोर्ट ही सूचनाओं का एक मात्र जरिया थी. महज 13 साल के उत्तराखंड राज्य के सामने ये चुनौती कोई सामान्य नहीं थी. सरकार और अधिकारियों ने ऐसी आपदा के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था.

लेकिन, उत्तराखंड विशेष परिस्थितियों वाला हिमालयी राज्य है. यहां सरकार और विभागों को ऐसी तबाही के लिए हर वक्त तैयार रहने की जरूरत है. प्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन के बेहतर समन्वयन और क्रियान्वन के लिए तमाम तरह की पहल की, जिस वजह से अब विभाग कुछ हद तक आपदा के लिए तैयार है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण ने 6 सालों में दैवीय आपदाओं से निपटने के लिए क्या कुछ नया किया ये बताया आपदा सचिव अमित नेगी ने. आइये डालते हैं इसपर एक नजर-

एसडीआरएफ का गठन
2013 की आपदा के बाद हालात से नियंत्रण से बाहर हो गए थे. उस दौरान राज्य सरकार के पास इस बिगड़े हुए हालात से निपटने के लिए कुछ मजबूत रणनीती और तंत्र नहीं था. इस वजह से राज्य सरकार ने साल 2014 में स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स का गठन किया.

पढ़ें- केदारनाथ आपदा: 16 जून 2013 की खौफनाक रात की याद से सिहर उठती है आत्मा, आज भी हरे हैं जख्म

कनेक्टिविटी में सुधार
आपातकालीन संचार तत्र को मजबूत किये जाने के लिए परिचालन केन्द्रों तथा प्रत्येक तहसील स्तर पर कुल 180 सेटलाइट फोन उपलब्ध कराये गये हैं. राज्य के सभी जनपदों में जीआईएस सेल की स्थापना भी की गयी है. इसके अलावा हर जिले में ड्रोन और वेदर स्टेशन की स्थापना की गई. राज्य सरकार ने 107 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, 25 सर्फेश फिल्ड ऑबजरवेटरी, 28 ऑटोमेटिक रेन गेज और 16 स्नो गेज की स्थापना की. इसकी मदद से अब ब्लॉक स्तर के मौसम की जानकारी भी मिल सकती है.

घातकता का आंकलन
डिजास्टर रिस्पोंस सिस्टम को मजबूत करने के लिए राज्य में भारतीय राजस्व सेवा लागू की गई. हर तहसील ब्लॉक स्तर पर इसका प्रशिक्षण दिया गया. इसके अलावा राज्य के प्रमुख विभागों हेतु विभागीय डिजास्टर मैनेजमेंट स्कीम्स और एस.ओ.पी. का विकास किया गया है और जनपद स्तरीय आपदा प्रबन्धन कार्ययोजना का लगातार अपडेट किया जा रहा है. राज्य का भूकम्प, भूस्खलन, बाढ़, त्वरित बाढ़ तथा औद्योगिक घातकता व जोखिम का भी आंकलन किया गया है.

नये शोध और संसाधनों में इजाफा
राज्य के प्रमुख नदियों मंदाकिनी, भागीरथी, अलकनंदा और काली का रिवर मॉरर्फोलॉजी का अध्ययन हुआ. उत्तराखंड रिवर मैनेजमेन्ट इन्फॉरमेशन सिस्टम (URMIS) क्रियान्वित किया गया. भारत मौसम विज्ञान विभाग, कर्नाटक राज्य आपदा प्रबन्धन केन्द्र और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र (इसरो) के साथ समझौता किया. भूस्खलन सम्भावित स्थानों पर मलबा हटाने के लिए उपकरणों की व्यवस्था की गई है. चमोली व रुद्रप्रयाग का विस्तृत भूगर्भीय अध्ययन किया गया है.

जन सहभागिता और जन जागरुकता
राज्य के समस्त महिला एवं युवक मंगल दलों के लिए 05 दिवसीय आपदा प्रबन्धन सम्बन्धित प्रशिक्षणों की व्यवस्था की जा रही है.

देहरादून: केदारनाथ त्रासदी को 6 साल पूरे हो गए हैं. केदारनाथ में 16 जून 2013 को आई आपदा की पीड़ा लोगों के जहन में आज भी ताजा है. उस दौरान के तबाही के मंजर को भले ही देश-दुनिया भूल गई हो पर यहां के स्थानीय लोगों के दिलों में त्रासदी के घाव अभी भी हरे हैं. उस मंजर को सोचते ही लोग सिहर उठते हैं. केदारपुरी की तस्वीर अब पुनर्निर्माण रूपी मरहम से भले ही केंद्र और राज्य सरकार बदलने की कोशिश में हैं, लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि सरकार ने उत्तराखंड त्रासदी से क्या सबक सीखा है.

उत्तराखंड त्रासदी को 6 साल पूरे.

छह साल पहले जून माह में केदारनाथ में सुबह तो हुई, लेकिन शाम होते-होते अत्याधिक बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से घाटी में मातम छा गया. हजारों लोगों की मौत और रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जिलों में मची भारी तबाही से देश-विदेश के लोग और सरकारें व्यथित थीं. अब 6 साल बाद भले ही इलाके की तस्वीर बदल गई हो, लेकिन पर्यावरण को जिस तरह से ताक पर रखकर काम किया जा रहा है इससे तो लगता है, सरकार ने उत्तराखंड की इस भीषण त्रासदी से कुछ सबक ही नहीं लिया. हालांकि आपदा से जुझने के लिए आपदा प्रबंधन तंत्र को लगातार मजूबत करने की कोशिश की जा रही है.

पढ़ें- केदार घाटी में लौटी चमक, कुछ ऐसा रहा विनाश से विकास तक का सफर

साल 2013 में कुछ ऐसा था हाल
आपदा प्रबंधन विभाग उस दौरान बचाव कार्य तो छोड़िये कितना नुकासान हुआ इसका भी आंकलन नहीं कर पाया था. आपदा के करीब तीन दिन बाद घाटी में हुए नुकसान का आंकलन किया गया था. उस दौरान एनडीआरएफ और सेना के कंधों पर ही आपदा से लोगों को रेस्क्यू करने की जिम्मेदारी थी. संसाधनों और कनेक्टिविटी के हाल ऐसे थे की मीडिया रिपोर्ट ही सूचनाओं का एक मात्र जरिया थी. महज 13 साल के उत्तराखंड राज्य के सामने ये चुनौती कोई सामान्य नहीं थी. सरकार और अधिकारियों ने ऐसी आपदा के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था.

लेकिन, उत्तराखंड विशेष परिस्थितियों वाला हिमालयी राज्य है. यहां सरकार और विभागों को ऐसी तबाही के लिए हर वक्त तैयार रहने की जरूरत है. प्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन के बेहतर समन्वयन और क्रियान्वन के लिए तमाम तरह की पहल की, जिस वजह से अब विभाग कुछ हद तक आपदा के लिए तैयार है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण ने 6 सालों में दैवीय आपदाओं से निपटने के लिए क्या कुछ नया किया ये बताया आपदा सचिव अमित नेगी ने. आइये डालते हैं इसपर एक नजर-

एसडीआरएफ का गठन
2013 की आपदा के बाद हालात से नियंत्रण से बाहर हो गए थे. उस दौरान राज्य सरकार के पास इस बिगड़े हुए हालात से निपटने के लिए कुछ मजबूत रणनीती और तंत्र नहीं था. इस वजह से राज्य सरकार ने साल 2014 में स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स का गठन किया.

पढ़ें- केदारनाथ आपदा: 16 जून 2013 की खौफनाक रात की याद से सिहर उठती है आत्मा, आज भी हरे हैं जख्म

कनेक्टिविटी में सुधार
आपातकालीन संचार तत्र को मजबूत किये जाने के लिए परिचालन केन्द्रों तथा प्रत्येक तहसील स्तर पर कुल 180 सेटलाइट फोन उपलब्ध कराये गये हैं. राज्य के सभी जनपदों में जीआईएस सेल की स्थापना भी की गयी है. इसके अलावा हर जिले में ड्रोन और वेदर स्टेशन की स्थापना की गई. राज्य सरकार ने 107 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, 25 सर्फेश फिल्ड ऑबजरवेटरी, 28 ऑटोमेटिक रेन गेज और 16 स्नो गेज की स्थापना की. इसकी मदद से अब ब्लॉक स्तर के मौसम की जानकारी भी मिल सकती है.

घातकता का आंकलन
डिजास्टर रिस्पोंस सिस्टम को मजबूत करने के लिए राज्य में भारतीय राजस्व सेवा लागू की गई. हर तहसील ब्लॉक स्तर पर इसका प्रशिक्षण दिया गया. इसके अलावा राज्य के प्रमुख विभागों हेतु विभागीय डिजास्टर मैनेजमेंट स्कीम्स और एस.ओ.पी. का विकास किया गया है और जनपद स्तरीय आपदा प्रबन्धन कार्ययोजना का लगातार अपडेट किया जा रहा है. राज्य का भूकम्प, भूस्खलन, बाढ़, त्वरित बाढ़ तथा औद्योगिक घातकता व जोखिम का भी आंकलन किया गया है.

नये शोध और संसाधनों में इजाफा
राज्य के प्रमुख नदियों मंदाकिनी, भागीरथी, अलकनंदा और काली का रिवर मॉरर्फोलॉजी का अध्ययन हुआ. उत्तराखंड रिवर मैनेजमेन्ट इन्फॉरमेशन सिस्टम (URMIS) क्रियान्वित किया गया. भारत मौसम विज्ञान विभाग, कर्नाटक राज्य आपदा प्रबन्धन केन्द्र और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र (इसरो) के साथ समझौता किया. भूस्खलन सम्भावित स्थानों पर मलबा हटाने के लिए उपकरणों की व्यवस्था की गई है. चमोली व रुद्रप्रयाग का विस्तृत भूगर्भीय अध्ययन किया गया है.

जन सहभागिता और जन जागरुकता
राज्य के समस्त महिला एवं युवक मंगल दलों के लिए 05 दिवसीय आपदा प्रबन्धन सम्बन्धित प्रशिक्षणों की व्यवस्था की जा रही है.

Intro:Special Story- आपदा के 6 साल, कितना सीखे

Note- स्क्रिप्ट Mail से भेजी गई है। विसुअल, बाइट और PTC मोजो से भेजें गए हैं। 2 विसुअल मेल पर भी अटैच हैं।


Body:आपदा के 6 साल, कितना सीखे


Conclusion:
Last Updated : Jun 17, 2019, 2:05 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.