देहरादून: उत्तर प्रदेश के हाथरस में जिस तरह दरिंदगी से नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म किया गया उससे देश भर में आक्रोश है. आज हर कोई उस बच्ची के इंसाफ के लिए आवाज बुलंद कर रहा है. वहीं, दूसरी तरफ आज देश की हर एक मां के जहन में बस एक ही सवाल है कि कहीं उसकी बच्ची भी इस तरह की दरिंदगी का शिकार न हो जाए. ईटीवी भारत आज आपको इस खास रिपोर्ट में प्रदेश में बच्चों से जुड़े अपराध के आंकड़ों से रूबरू कराने जा रहा हैं, जो कि वाकई में चौंकाने वाले हैं.
प्रदेश में बच्चों के साथ बढ़ रहे अपराधों के मामले में सबसे पहले पायदान पर उधम सिंह नगर जिले का नाम आता है. दूसरे स्थान पर हरिद्वार और तीसरे स्थान पर राजधानी देहरादून का नाम इस कड़ी में शामिल है. प्रदेश भर में पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत साल 2019 में 620 मामले दर्ज किए गए. वहीं, इस साल मार्च महीने तक इसमें 360 मामले दर्ज किए जा चुके हैं. जिनमें सबसे अधिक मामले उधम सिंह नगर जनपद में दर्ज किए गए हैं.
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क्या है पॉक्सो अधिनियम
बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों की रोकथाम के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से साल 2012 में पॉक्सो एक्ट बनाया गया था. बता दें पॉक्सो एक्ट का पूरा नाम protection of children from sexual offences act है. अधिनियम के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है. जिसमें 5 साल से ऊपर की सजा, आजीवन कारावास और मौत की सजा तक का प्रावधान है.
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कौन से मामले पॉक्सो अधिनियम के दायरे में आते हैं ?
बता दें कि भारतीय दंड संहिता 1860 के तहत भारत में सहमति से सैक्स करने की आयु सीमा 18 वर्ष है. ऐसे में यदि कोई व्यक्ति किसी 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे या बच्ची का यौन शोषण करता हैं तो उस पर पॉक्सो अधिनियम के अनुसार मुकदमा चलाया जाता है.
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देश में बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाने के लिए पॉक्सो अधिनियम 2012 जैसा मजबूत कानून है. मगर इसके बाद भी देश के अलग-अलग राज्यों से अक्सर बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म से जुड़े मामले सामने आते रहते हैं. देश में बढ़ रहे बच्चों से जुड़े अपराधों के विषय में उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी ने भी अपनी चिंता जाहिर की है. साथ ही उन्होंने हाथरस दुष्कर्म का शिकार हुई नाबालिग बच्ची के निधन पर भी अफसोस जताया है.
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ईटीवी भारत से बात करते हुए ऊषा नेगी ने बताया कि प्रदेश में इस तरह के किसी भी मामले में आयोग की ओर से त्वरित कार्रवाई करने का प्रयास रहता है. साथ ही पीड़ित पक्ष को समय पर मुआवजा राशि दिए जाने का भी प्रयास किया जाता है.
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वहीं, दूसरी तरफ बच्चों के साथ बढ़ रहे अपराधों की रोकथाम को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक घिल्डियाल कहते हैं कि सरकार की ओर से कानून तो सख्त बना दिए गए हैं, लेकिन इन कानून के तहत त्वरित कार्रवाई होने का प्रावधान नहीं है. जब तक त्वरित कार्रवाई शुरू नहीं होगी तब तक देश से अपराध खत्म नहीं हो सकेंगे.