देहरादून: उत्तराखंड में मानसून ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है. मानसून की बारिश में कहीं भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं, तो कहीं जलभराव और दूसरी परेशानियों से भी लोगों को भी दो चार होना पड़ रहा है. बारिश के अलर्ट को देखते हुए कई जिलों में स्कूलों की छट्टियां भी घोषित कर दी हैं. छात्रों की सुरक्षा को देखते हुए ये फैसला लिया गया है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में 2,785 जर्जर स्कूल भवन हैं. ये जर्जर स्कूल भवन कभी भी गिर सकते हैं. मानसून सीजन में इनके गिरने का सबसे ज्यादा डर होता है.
मानसून सीजन के बीच उत्तराखंड में नए शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए स्कूल खोल दिए गए हैं. राज्य में पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में सैकड़ों स्कूलों में भवनों के हालात बदतर हैं. प्रदेश में तकरीब ढाई हजार से ज्यादा स्कूलों में भवन जर्जर हैं. ये जर्जर भवन कभी भी भरभरा कर गिर सकते हैं. दयनीय हो चुके स्कूल के कमरों की मरम्मत को लेकर पिछले 3 महीने से शिक्षा विभाग के अधिकारी केवल कोशिश ही कर पाएं हैं. इसके बाद भी हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है. इन जर्जर स्कूलों में लगातार हो रही बारिश के चलते बच्चों की जान को खतरा बना हुआ है.
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यह हालत तब हैं जब मानसून की पहली बरसात ने ही सारी पोल खोल कर रख दी है. छोटे शहर छोड़िए राजधानी देहरादून में ही जगह जगह जल भराव जैसी समस्या लोगों के लिए परेशानी बनती नजर आ रही है. ऐसे में इनकार नहीं किया जा सकता कि जर्जर हो चुके स्कूलों में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. खतरा एक या दो नहीं बल्कि हजारों छात्रों की जिंदगियों पर मंडरा रहा है. आलम यह है कि छोटे छोटे बच्चे पढ़ने के लिए जर्जर हालत में पड़ी बिल्डिंगों में बैठने को मजबूर हैं.
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इस पूरे मामले पर महानिदेशक शिक्षा बंशीधर तिवारी का कहना है कि फिलहाल जर्जर भवनों में बच्चों को न बैठाने के लिए कहा गया है. पिछले दो-तीन महीनो में 500 ऐसे स्कूलों को आइडेंटिफाई किया है जहां मरम्मत की जानी है. वहीं, इसके अलावा बंशीधर तिवारी का कहना है कि पूरे राज्य में तकरीबन शासकीय अशासकीय मिलाकर 16,500 स्कूल हैं. इन स्कूलों को इनकी कंडीशन के हिसाब से A,B,C,D कैटेगरी में बांटा गया है. इन में से CD केटेगिरी वाले स्कूलों की मरम्मत का काम चल रहा है.
किस जिले में कितने जर्जर स्कूल: शिक्षा विभाग की ही अपनी विभागीय रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 1,437 प्राथमिक, 303 जूनियर हाईस्कूल और 1,045 माध्यमिक विद्यालय भवन जर्जर हैं.
वहीं, इस पूरे मामले पर आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा का कहना है कि आपदा प्रबंधन विभाग हर साल प्राथमिक विद्यालयों की मरम्मत के लिए प्रति प्राथमिक विद्यालय 2 लाख रुपये देता है. आपदा प्रबंधन विभाग, जिलाधिकारी के माध्यम से इसे स्कूलों को देता है. शिक्षा विभाग के तहत आने वाले स्कूलों के जर्जर हालात पर आपदा प्रबंधन सचिव का कहना है कि यह शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है. उन्हें या तो ऐसे स्कूलों को बंद कर देना चाहिए या फिर बच्चों को कहीं और बैठाने की व्यवस्था करनी चाहिए.