देहरादून: उत्तराखंड में चुनाव बेहद नजदीक हैं. लिहाजा चुनावी तैयारियों में प्रत्याशियों के साथ ही राजनीतिक दल भी जुट गए हैं. यूं तो प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी सत्ता पर काबिज होते रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी सीटों पर इन दोनों का ही पूरी तरह से वर्चस्व रहा हो. स्थिति यह है कि चुनाव में इन दलों के प्रत्याशियों की भी कई बार जमानत जब्त हुई है.
राज्य में भले ही कांग्रेस और भाजपा का वर्चस्व राजनीतिक रूप से दिखाई देता रहा हो, लेकिन कई सीटें ऐसी हैं जहां यह दोनों पार्टियां भी फिसड्डी साबित हुई हैं. रिकॉर्ड बताते हैं कि कुछ सीटों पर तो इन दोनों दलों के प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये. राज्य स्थापना के बाद हुए तमाम विधानसभा चुनाव में चुनाव परिणाम कुछ यही इशारा कर रहे हैं. सबसे पहले जानिए की साल 2002 से 2017 तक हुए 4 विधानसभा चुनाव में परिणाम क्या रहे.
साल 2002 से 2017 तक हुए 4 विधानसभा चुनाव में परिणाम
साल 2007 में क्या रहे आंकड़े
साल 2012 के आंकड़े
साल 2017 में सुधरी भाजपा की स्थिति
पढ़ें- बीजेपी में भी ALL IS NOT WELL, काऊ के इस बयान से मची हलचल
राज्य में पहले विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के ज्यादा प्रत्याशी ऐसे रहे हैं जो अपनी जमानत जब्त करवाते रहे हैं. कांग्रेस मानती है कि 2022 में वह बेहतर प्रदर्शन करेगी. आने वाले चुनाव में भाजपा की खराब नीतियों और भ्रष्टाचार के साथ बेरोजगारी जैसे मुद्दे भाजपा की स्थिति को खराब कर देंगे. जिसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा.
पढ़ें-BJP में रहते हुए भी कांग्रेस को यादों में संजोए थे यशपाल आर्य, सामने आई सच्चाई!
क्या होती है जमानत राशि: चुनाव में जमानत जब्त उस स्थिति में होती हैं जब कोई उम्मीदवार कुल वैध मतों का 1/6 हिस्सा प्राप्त करने में नाकाम रहता है. ऐसी स्थिति में उम्मीदवार के द्वारा चुनाव आयोग के पास जमा की गयी जमानत राशि जब्त कर ली जाती है. ‘संसदीय निर्वाचन क्षेत्र’ के लिए चुनाव लड़ने के लिए 25 हजार रुपये की सिक्योरिटी राशि और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव लड़ने के लिए 10 हजार रुपये की राशि जमा करनी होती है. जमानत जब्त होने पर ये धनराशि भी जब्त हो जाती है.