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जयंती विशेष: बहुगुणा पर अंग्रेजों ने रखा था 5000 का इनाम, इस वजह से कहलाये 'हिमालय पुत्र'

हेमवती नंदन बहुगुणा की 100वीं जयंती के दिन हम आपको बताएंगे हिमालय पुत्र से जुड़ी कई खास बातें. पढ़ें उनके प्रारंभिक जीवन से लेकर राजनीतिक सन्यास तक के सफर के बारे में.

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Published : Apr 25, 2019, 8:49 AM IST

Updated : Apr 25, 2019, 2:17 PM IST

हेमवती नंदन बहुगुणा

देहरादून: हिमालय पुत्र के नाम से मशहूर स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की आज 100वीं जयंती है. उत्तर प्रदेश के 8वें मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के बुघाणी में 25 अप्रैल 1919 को हुआ था. इसके बाद उनका परिवार इलाहाबाद में रहने लगा. हेमवती नंदन बहुगुणा होने के साथ ही समाजसेवी भी रहे. 17 मार्च 1989 में ओहियो, अमेरिका में हेमवती नंदन बहुगुणा की बाइपास सर्जरी फेल होने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी. बहुगुणा का जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा. आइये डालते हैं एक नज़र-

बहुगुणा का प्रारंभिक जीवन

  • बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी गढ़वाल में हुई. आगे की पढ़ाई उन्होंने देहरादून स्थित डीएवी कॉलेज और राजकीय विद्यालय इलाहाबाद से की.
  • साल 1946 में बहुगुणा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की.
  • स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के पिता का नाम रेवती नंदन बहुगुणा और माता का नाम दीपा देवी था.
  • हेमवती नंदन बहुगुणा ने दो शादियां की थी. पहली पत्नी का नाम धनेश्वरी देवी और दूसरी पत्नी का नाम कमलादेवी था. उनके दो बेटे और एक बेटी है.

पढ़ें- उत्तराखंड के तीन प्रत्याशियों के ठेंगे पर चुनाव आयोग के नियम, क्या होगी इन पर कोई कार्रवाई?

बहुगुणा का राजनीतिक जीवन

  • हेमंती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक जीवन सन् 1942 से शुरू हुआ. इस दौरान बहुगुणा ने विद्यार्थी आंदोलन में खुलकर भाग लिया. हिमालय पुत्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्टूडेंट यूनियन वॉकिंग कमेटी के सदस्य और फेडरेशन में सेक्रेटरी बने. साथ ही कई ट्रेड यूनियन का गठन भी किया.
  • साल 1960-69 में बहुगुणा जिला और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और महासचिव रहे. साल 1971 में हेमवती नंदन पहली बार सांसद बने और उन्हें जूनियर मिस्टर का पद दिया गया. 8 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और उनका कार्यकाल 4 मार्च 1974 को समाप्त हो गया.
  • बहुगुणा की ग्रामीणों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों, अल्पसंख्यकों और नौकरी पेशा लोगों के बीच अच्छी पैठ थी. इसी वजह से साल 1974 की चुनाव में उन्हें दोबारा मौका मिला. विपक्षी चंद्रभानु गुप्ता की जमानत जब्त कर दी थी.
  • हिमालय पुत्र साल 1977 में केंद्रीय मंत्री भी रहे. फिर साल 1977 में इमरजेंसी के दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी से नाराज होकर अपनी अलग पार्टी बनायी. पार्टी का नाम उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी रखा. उस दौरान चुनाव में उनकी पार्टी को 28 सीटें मिली. इसके बाद बहुगुणा ने जनता दल में अपनी पार्टी का विलय किया.
  • साल 1980 में जनता दल पार्टी के बिखराव के बाद बहुगुणा दोबारा कांग्रेस में शामिल हो हुए. फिर लोकसभा चुनाव 1980 में बहुगुणा गढ़वाल संसदीय सीट से जीते लेकिन कैबिनेट में जगह न मिलने की वजह से उन्होंने 6 महीने में ही कांग्रेस और लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी. साल 1982 में उपचुनाव हुए, जिसमें बहुगुणा ने फिर से जीत दर्ज की.

अमिताभ बच्चन की वजह से लिया संन्यास
हेमवंती नंदन बहुगुणा ने साल 1984 में राजनीतिक कैरियर से सन्यास लिया. बहुगुणा के इस कदम के पीछे की एक बड़ी वजह अमिताभ बच्चन को माना जाता है. दरअसल, साल 1984 में चुनाव के दौरान इलाहाबाद सीट पर बहुगुणा के खिलाफ, राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी से अमिताभ बच्चन को खड़ा किया था. उस समय बहुगुणा का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था और अमिताभ बच्चन सिर्फ एक फिल्मी हीरो थे. माना जा रहा था कि अमिताभ बच्चन हार जाएंगे, लेकिन अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को करीब एक लाख 87 हजार वोटों से हराया. इतनी ज्यादा अंतर से हारने के बाद बहुगुणा ने राजनीति से सन्यास ले लिया.

पढ़ें- 11वें पंचेन लामा का मसूरी में मनाया गया 30वां जन्मदिन, दिल्ली तक निकाला जाएगा शांति मार्च

बहुगुणा पर अंग्रेजों ने रखा था 5 हजार का इनाम
साल 1936 से 1942 तक बहुगुणा छात्र आंदोलन में शामिल रहे. उस दौरान बहुगुणा अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ही कर रहे थे. साल 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में शामिल होकर काम करने की वजह से बहुगुणा को बहुत लोकप्रियता मिली. इस वजह से अंग्रेजों ने हेमवती नंदन बहुगुणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को 5 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की. फिर 1 फरवरी 1943 को दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के पास बहुगुणा को गिरफ्तार किया गया. साल 1945 तक बहुगुणा जेल में रहे.

इस वजह से कहलाये हिमालय पुत्र
साल 1980 में गढ़वाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए बहुगुणा को जीत तो मिली, लेकिन पहाड़ की आन-बान-शान के लिए बहुगुणा ने 6 महीने में ही कांग्रेस और सांसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इस दौरान बहुगुणा चाहते थे कि केंद्र में पहाड़ को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस्तीफा देने के बाद साल 1982 में हुये उपचुनाव के दौरान जहां कांग्रेस पूरे दमखम से प्रचार-प्रसार कर रही थी, तो वहीं बहुगुणा ने कहा था 'पहाड़ टूटता है झुकता नहीं'.उपचुनाव को पहाड़ के सम्मान से जोड़ते हुए उपचुनाव को जीता और उन्हें हिमालय पुत्र के नाम से जाना जाने लगा.

पिता के राजनीतिक विरासत संजोय हुए हैं बच्चे

बहुगुणा के बाद उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी और विजय बहुगुणा राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. रीता बहुगुणा जोशी ने साल 1995 में समाजवादी पार्टी से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. वहीं, हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा ने साल 1997 में कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. और, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे.

देहरादून: हिमालय पुत्र के नाम से मशहूर स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की आज 100वीं जयंती है. उत्तर प्रदेश के 8वें मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के बुघाणी में 25 अप्रैल 1919 को हुआ था. इसके बाद उनका परिवार इलाहाबाद में रहने लगा. हेमवती नंदन बहुगुणा होने के साथ ही समाजसेवी भी रहे. 17 मार्च 1989 में ओहियो, अमेरिका में हेमवती नंदन बहुगुणा की बाइपास सर्जरी फेल होने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी. बहुगुणा का जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा. आइये डालते हैं एक नज़र-

बहुगुणा का प्रारंभिक जीवन

  • बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी गढ़वाल में हुई. आगे की पढ़ाई उन्होंने देहरादून स्थित डीएवी कॉलेज और राजकीय विद्यालय इलाहाबाद से की.
  • साल 1946 में बहुगुणा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की.
  • स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के पिता का नाम रेवती नंदन बहुगुणा और माता का नाम दीपा देवी था.
  • हेमवती नंदन बहुगुणा ने दो शादियां की थी. पहली पत्नी का नाम धनेश्वरी देवी और दूसरी पत्नी का नाम कमलादेवी था. उनके दो बेटे और एक बेटी है.

पढ़ें- उत्तराखंड के तीन प्रत्याशियों के ठेंगे पर चुनाव आयोग के नियम, क्या होगी इन पर कोई कार्रवाई?

बहुगुणा का राजनीतिक जीवन

  • हेमंती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक जीवन सन् 1942 से शुरू हुआ. इस दौरान बहुगुणा ने विद्यार्थी आंदोलन में खुलकर भाग लिया. हिमालय पुत्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्टूडेंट यूनियन वॉकिंग कमेटी के सदस्य और फेडरेशन में सेक्रेटरी बने. साथ ही कई ट्रेड यूनियन का गठन भी किया.
  • साल 1960-69 में बहुगुणा जिला और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और महासचिव रहे. साल 1971 में हेमवती नंदन पहली बार सांसद बने और उन्हें जूनियर मिस्टर का पद दिया गया. 8 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और उनका कार्यकाल 4 मार्च 1974 को समाप्त हो गया.
  • बहुगुणा की ग्रामीणों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों, अल्पसंख्यकों और नौकरी पेशा लोगों के बीच अच्छी पैठ थी. इसी वजह से साल 1974 की चुनाव में उन्हें दोबारा मौका मिला. विपक्षी चंद्रभानु गुप्ता की जमानत जब्त कर दी थी.
  • हिमालय पुत्र साल 1977 में केंद्रीय मंत्री भी रहे. फिर साल 1977 में इमरजेंसी के दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी से नाराज होकर अपनी अलग पार्टी बनायी. पार्टी का नाम उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी रखा. उस दौरान चुनाव में उनकी पार्टी को 28 सीटें मिली. इसके बाद बहुगुणा ने जनता दल में अपनी पार्टी का विलय किया.
  • साल 1980 में जनता दल पार्टी के बिखराव के बाद बहुगुणा दोबारा कांग्रेस में शामिल हो हुए. फिर लोकसभा चुनाव 1980 में बहुगुणा गढ़वाल संसदीय सीट से जीते लेकिन कैबिनेट में जगह न मिलने की वजह से उन्होंने 6 महीने में ही कांग्रेस और लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी. साल 1982 में उपचुनाव हुए, जिसमें बहुगुणा ने फिर से जीत दर्ज की.

अमिताभ बच्चन की वजह से लिया संन्यास
हेमवंती नंदन बहुगुणा ने साल 1984 में राजनीतिक कैरियर से सन्यास लिया. बहुगुणा के इस कदम के पीछे की एक बड़ी वजह अमिताभ बच्चन को माना जाता है. दरअसल, साल 1984 में चुनाव के दौरान इलाहाबाद सीट पर बहुगुणा के खिलाफ, राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी से अमिताभ बच्चन को खड़ा किया था. उस समय बहुगुणा का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था और अमिताभ बच्चन सिर्फ एक फिल्मी हीरो थे. माना जा रहा था कि अमिताभ बच्चन हार जाएंगे, लेकिन अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को करीब एक लाख 87 हजार वोटों से हराया. इतनी ज्यादा अंतर से हारने के बाद बहुगुणा ने राजनीति से सन्यास ले लिया.

पढ़ें- 11वें पंचेन लामा का मसूरी में मनाया गया 30वां जन्मदिन, दिल्ली तक निकाला जाएगा शांति मार्च

बहुगुणा पर अंग्रेजों ने रखा था 5 हजार का इनाम
साल 1936 से 1942 तक बहुगुणा छात्र आंदोलन में शामिल रहे. उस दौरान बहुगुणा अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ही कर रहे थे. साल 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में शामिल होकर काम करने की वजह से बहुगुणा को बहुत लोकप्रियता मिली. इस वजह से अंग्रेजों ने हेमवती नंदन बहुगुणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को 5 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की. फिर 1 फरवरी 1943 को दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के पास बहुगुणा को गिरफ्तार किया गया. साल 1945 तक बहुगुणा जेल में रहे.

इस वजह से कहलाये हिमालय पुत्र
साल 1980 में गढ़वाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए बहुगुणा को जीत तो मिली, लेकिन पहाड़ की आन-बान-शान के लिए बहुगुणा ने 6 महीने में ही कांग्रेस और सांसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इस दौरान बहुगुणा चाहते थे कि केंद्र में पहाड़ को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस्तीफा देने के बाद साल 1982 में हुये उपचुनाव के दौरान जहां कांग्रेस पूरे दमखम से प्रचार-प्रसार कर रही थी, तो वहीं बहुगुणा ने कहा था 'पहाड़ टूटता है झुकता नहीं'.उपचुनाव को पहाड़ के सम्मान से जोड़ते हुए उपचुनाव को जीता और उन्हें हिमालय पुत्र के नाम से जाना जाने लगा.

पिता के राजनीतिक विरासत संजोय हुए हैं बच्चे

बहुगुणा के बाद उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी और विजय बहुगुणा राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. रीता बहुगुणा जोशी ने साल 1995 में समाजवादी पार्टी से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. वहीं, हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा ने साल 1997 में कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. और, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे.

Intro:हिमालय पुत्र के नाम से जाने जाने वाले स्व हेमवती नंदन बहुगुणा का आज 100वी जयंती है। उत्तरप्रदेश के 8वे मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के बुघाणी में 25 अप्रैल 1919 को हुआ था। जिसके बाद उनका परिवार उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में रहने लगा। हालांकि हेमवती नंदन बहुगुणा एक राजनेता के साथ-साथ बहुत अच्छे समाज सेवी भी थे। और 17 मार्च 1989 में ओहियो, अमेरिका में हेमवती नंदन बहुगुणा की बाईपास सर्जरी फेल होने के चलते उनकी मृत्यु हो गई थी।


Body:बहुगुणा की प्रारंभिक जीवनी.........

स्व हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म 25 अप्रैल 1919 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के गांव बुधाणी में हुआ था। इनके पिता का नाम रेवती नंदन बहुगुणा और माता का नाम दीपा देवी था। हेमवती नंदन बहुगुणा को हिमालय पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। हेमवती नंदन बहुगुणा ने दो शादियां को थी। पहली पत्नी का नाम धनेश्वरी देवी और दूसरी पत्नी का नाम कमलादेवी है हालांकि उनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं। बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी गढ़वाल में हुई और आगे की शिक्षा देहरादून स्थित डीएवी कॉलेज और राजकीय विद्यालय इलाहाबाद में संपन्न हुई जिसके बाद साल 1946 में बहुगुणा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की थी। और हेमवती नंदन बहुगुणा की मृत्यु 17 मार्च 1989 को बाईपास सर्जरी फेल होने की वजह से अमेरिका में हुई थी।


बहुगुणा का राजनीतिक जीवनकाल..........

हेमंती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक जीवन सन 1942 से शुरू हो गया था हालांकि इस दौरान बहुगुणा ने विद्यार्थी आंदोलन में खुलकर भाग लिया था। और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्टूडेंट यूनियन वाकिंग कमेटी के सदस्य और फेडरेशन में सेक्रेटरी बने। साथ ही कई ट्रेड यूनियन का गठन भी किया। साल 1960-69 में जिला और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और महासचिव रहे। और फिर 1971 में हेमवती नंदन पहली बार सांसद बने और उन्हें जूनियर मिस्टर का पद दिया गया था। और 8 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इनका कार्यकाल 4 मार्च 1974 को समाप्त हो गया। बहुगुणा की ग्रामीणों, मजदूरों, बुद्धजीवो, अल्पसंख्यको और नौकरी पेशा लोगों के बीच गहरी पैठ थी। जिस वजह से फिर 1974 की चुनाव मैं मौका मिला और विपक्षी चंद्रभानु गुप्ता की जमानत जप्त कर दी जिसके बाद 1977 में केंद्रीय मंत्री रहे। और फ़िर 1977 में देश में इमरजेंसी लगाने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी से नाराज होकर अपने अलग पार्टी बनाया, जिसका नाम कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी रखा और उस दौरान चुनाव में इस पार्टी को 28 सीटें मिली थी जिसके बाद बहुगुणा ने जनता दल पार्टी में अपना विलय कर लिया था। और फिर साल 1980 में जनता दल पार्टी में बिखरा होने के बाद बहुगुणा दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए थे। और फिर लोकसभा चुनाव 1980 में बहुगुणा गढ़वाल संसदीय सीट से जीते लेकिन कैबिनेट में जगह ना मिलने की वजह से उन्होंने 6 महीने में ही कांग्रेस और लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी, और साल 1982 में उपचुनाव में हुए फिर से जीत दर्ज की।


बहुगुणा ने 1984 में राजनीतिक कैरियर से लिया संन्यास.........

बहुगुणा का 1984 में राजनीतिक कैरियर से सन्यास लेने का एक बड़ा वजह अमिताभ बच्चन को माना जाता है। क्योंकि 1984 में चुनाव के दौरान इलाहाबाद सीट पर बहुगुणा के खिलाफ, राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी से अमिताभ बच्चन को खड़ा कर दिया था। लेकिन उस समय बहुगुणा का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था और अमिताभ बच्चन सिर्फ एक फिल्मी हीरो थे, जिस वजह से उस दौरान कहा जा रहा था कि अमिताभ बच्चन हार जाएंगे। लेकिन इसके उलट चुनाव परिणाम में अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को करीब एक लाख 87 हजार वोटो से हरा दिया था। इतनी भारी वोट से हारने के बाद बहुगुणा ने राजनीति से ही सन्यास ले लिया था।


बहुगुणा पर अंग्रेजो ने रखा था 5 हज़ार का इनाम........

साल 1936 से 1942 तक बहुगुणा छात्र आंदोलन में शामिल रहे, उस दौरान बहुगुणा अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ही कर रहे थे, और साल 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में शामिल होकर काम करने की वजह से बहुगुणा को बहुत लोकप्रियता मिली। जिस वजह से अंग्रेजों ने हेमवती नंदन बहुगुणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को 5 हज़ार रुपये इनाम देने की घोषणा कर दी थी। और आखिरकार 1 फरवरी 1943 को दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के पास बहुगुणा को गिरफ्तार कर लिया गया। और साल 1945 तक बहुगुणा जेल में रहे थे।


बहुगुणा इस वजह से कहलाये हिमालय पुत्र..........

साल 1980 में लोकसभा चुनाव में गढ़वाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए बहुगुणा को जीत तो मिली, लेकिन पहाड़ की आन-बान-शान की वजह से बहुगुणा ने 6 महीने में ही कांग्रेस पार्टी और सांसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस दौरान गढ़वाल लोकसभा सीट से सांसद बने बहुगुणा चाहते थे कि केंद्र में पहाड़ को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले लेकिन ऐसा नहीं हो पाया जिस वजह से इस्तीफा दे दिया। और फिर 1982 में उपचुनाव के दौरान जहां कांग्रेस दमखम से प्रचार-प्रसार कर रही थी, तो वहीं बहुगुणा ने "पहाड़ टूटता है झुकता नहीं" की बात कहकर उपचुनाव को पहाड़ के सम्मान से जोड़ते हुए उपचुनाव को जीत लिया था।


बहुगुणा के बाद उनके बच्चे संभाल रहे हैं उनकी राजनीतिक विरासत...........

रीता बहुगुणा जोशी ------- हेमवती नंदन बहुगुणा का 17 मार्च 1989 के कुछ सालों बाद ही उनके बच्चों ने उनकी राजनीति विरासत को संभालने लगे। बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा जोशी ने साल 1995 में समाजवादी पार्टी से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की और साल 1995 से 2000 तक इलाहाबाद की मेयर रही। और कुछ सालों बाद ही रीता बहुगुणा जोशी ने अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का दामन थाम लिया और फिर साल 2007 से 2012 तक यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रही। और साल 2012 में लखनऊ कैंट से विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बनी। और फिर साल 2016 में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा ज्वाइन कर लिया। और साल 2017 विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट सीट से विधायक बनकर योगी कैबिनेट में शामिल हो गयी।

विजय बहुगुणा ------- हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा ने साल 1997 में कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। और साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी सरकार में उत्तराखंड योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। और फिर लोकसभा चुनाव 2004 और लोकसभा चुनाव 2009 में सांसद चुने गए। जिसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी के बाद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। और लोकसभा चुनाव 2014 से पहले ही विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। और फिर साल 2016 में कांग्रेस से बगावत कर विजय बहुगुणा ने भाजपा ज्वाइन कर लिया था।






Conclusion:
Last Updated : Apr 25, 2019, 2:17 PM IST
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