चंपावतः टनकपुर नगर से 30 किलोमीटर दूर स्थित मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ मंदिर है. यह मंदिर मां के 52 शक्तिपीठों में से एक है. कहा जाता है कि पौराणिक काल में जब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 52 टुकड़े कर दिए थे. उस समय सती की नाभि इस स्थान पर गिरी थी. तब से इस स्थान को मां पूर्णागिरि के नाम से पूजा जाता है.
कहा जाता है कि इस शक्तिपीठ में पांडवों ने भी अपने कष्टों के निवारण हेतु मां पूर्णागिरि की पूजा की थी. यहां की लोक कथाओं में कहा जाता है कि माता का यह मंदिर समय की परतों में खो गया था. वर्तमान में जो मंदिर है, इसका निर्माण कुमाऊं के चंद्रवंशी राजाओं ने अपने पंडित श्रीचंद्र तिवारी के कहने पर करवाया था, जिन्हें माता ने सपने में दर्शन देकर इस स्थान का राज बताया था. तभी से इस स्थान पर हर साल चैत्र नवरात्रों में मेला लगता है जिसमें देश के कोने-कोने से तीर्थ यात्री माता के दर्शन हेतु यहां आते हैं.
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इस शक्तिपीठ की यह मान्यता है कि अगर कोई भक्त सच्चे मन से माता के दरबार में अपनी मन्नत मांग कर चुन्नी से गांठ बांधता है, तो उसकी मुराद जरूर पूरी होती है.
ऐसे पहुंचें पूर्णागिरि मंदिर: समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर, ये मंदिर चंपावत जिले के टनकपुर में है. पिथौरागढ़ से इस मंदिर की दूरी 171 किलोमीटर दूर है. पूर्णागिरी मंदिर में पूरे देश के सभी भागों के भक्तों द्वारा यात्रा की जाती है, जो यहां बड़ी संख्या में आते हैं. मां का शक्तिपीठ होने के कारण नवरात्रों में यहां श्रद्धालु विशेष रूप से आते हैं.
पूर्णागिरी जिसे पुण्यगिरि भी कहा जाता है, से काली नदी मैदानों में उतरती है और इसे शारदा नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की यात्रा के लिए एक वाहन द्वारा ठुलिगाड़ तक जाया जा सकता है. इस जगह से ‘पुण्य पर्वत’ का दक्षिण-पश्चिमी भाग देखा जा सकता. पूर्णागिरी पहाड़ी के उच्चतम बिंदु (मंदिर) से तीर्थयात्री काली का विस्तार, उसके द्वीप, टनकपुर का टाउनशिप और कुछ नेपाली गांव देख सकते हैं.