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132 साल पुरानी है चंपावत की रामलीला, जानिए मशाल से एलईडी तक का सफर

132 सालों से रामलीला चंपावत के मल्लीहाट में होती आ रही है. जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों का भी योगदान रहता है. अब एलईडी बल्ब साउंड सिस्टम के साथ रामलीला का मंचन किया जा रहा है.

रामलीला का मंचन.
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Published : Oct 7, 2019, 5:59 PM IST

Updated : Oct 7, 2019, 7:06 PM IST

चंपावत: जिला मुख्यालय से लगे क्षेत्र मल्लीहाट में पिछले 132 सालों से रामलीला होती आ रही है. यहां के स्थानीय कलाकार आज भी रामलीला की परंपरा को जीवित किये हुए हैं. जिसमें दोहा, चौपाई, छंदों के सुर, लय-ताल के साथ पात्रों का गायन हर एक को आकर्षित करता है.

132 साल पुरानी है चंपावत की रामलीला.

जानकारी के अनुसार आज से 100 साल पहले जहां मशाल जलाकर रामलीला का मंचन किया जाता था. वहीं अब एलईडी बल्ब साउंड सिस्टम के साथ रामलीला का मंचन किया जा रहा है. 1913 में रामलीला नाटक की किताब आने के बाद से रामलीला का आयोजन किया जाने लगा था.

पढ़ें- RTO कर्मचारी डकैती मामला: किसे सही माने पुलिस, कोई तो कर रहा गुमराह?

रामलीला के पात्रों का आज भी खान पान में परहेज रहता है. यहां कलाकार स्वयं गायन करते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस रामलीला में अपना सहयोग देते आ रहे हैं. इमाम बक्श सालों से रामलीला में तबला वादन करते आ रहे हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चंपावत की इस ऐतिहासिक रामलीला के मंच निर्माण के लिए 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी गई थी.

रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भगवत शरण रायर ने बताया कि पहले एक दौर था, जब संसाधनों की कमी थी. उस समय रामलीला कमेटी के लोग छीलके की मशाल बनाकर रामलीला कराते थे. उसके बाद पंचलाइट और अब एलईडी बल्ब, कॉलर माइक से रामलीला का मंचन किया जाता है.

चंपावत: जिला मुख्यालय से लगे क्षेत्र मल्लीहाट में पिछले 132 सालों से रामलीला होती आ रही है. यहां के स्थानीय कलाकार आज भी रामलीला की परंपरा को जीवित किये हुए हैं. जिसमें दोहा, चौपाई, छंदों के सुर, लय-ताल के साथ पात्रों का गायन हर एक को आकर्षित करता है.

132 साल पुरानी है चंपावत की रामलीला.

जानकारी के अनुसार आज से 100 साल पहले जहां मशाल जलाकर रामलीला का मंचन किया जाता था. वहीं अब एलईडी बल्ब साउंड सिस्टम के साथ रामलीला का मंचन किया जा रहा है. 1913 में रामलीला नाटक की किताब आने के बाद से रामलीला का आयोजन किया जाने लगा था.

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रामलीला के पात्रों का आज भी खान पान में परहेज रहता है. यहां कलाकार स्वयं गायन करते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस रामलीला में अपना सहयोग देते आ रहे हैं. इमाम बक्श सालों से रामलीला में तबला वादन करते आ रहे हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चंपावत की इस ऐतिहासिक रामलीला के मंच निर्माण के लिए 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी गई थी.

रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भगवत शरण रायर ने बताया कि पहले एक दौर था, जब संसाधनों की कमी थी. उस समय रामलीला कमेटी के लोग छीलके की मशाल बनाकर रामलीला कराते थे. उसके बाद पंचलाइट और अब एलईडी बल्ब, कॉलर माइक से रामलीला का मंचन किया जाता है.

Intro:feed name_ 132 years ramlilaस्लग- रामलीला
- 132 साल पुरानी है चम्पावत की रामलीला
- मशाल से एलईडी तक का सफर तय किया है चम्पावत की रामलीला ने
एंकर-चम्पावत। जिला मुख्यालय से लगे क्षेत्र मल्लीहाट की रामलीला का इतिहास 132 साल पुराना है। यहां के स्थानीय कलाकार आज भी रामलीला के स्वरूप को जींदा किए हैं। यह रामलीला आज भी सांप्रदायिक सदभाव का संदेश देती है। समय के साथ व्यवस्थाओं में परिवर्तन जरूर हुवा है आज से 100 साल पहले जहां मशाल जला कर रामलीला का मंचन किया जाता था वहीं अब एलईडी बल्ब साउन्ड सिस्टम के साथ रामलीला का मंचन किया जा रहा है। 1913 में रामलीला नाटक की किताब आने के बाद रामलीला का आयोजन किया जाने लगा था।
 Body:दोहा, चैपाई छंदों के सुर लय ताल के साथ पात्रों का गायन हर एक को आकर्षित करता है।
रामलीला के पात्रों का आज भी खान पान में परहेज रहता है यहां कलाकार स्वयं गायन करते हैं। मुसलिम समु्रदाय के लोग भी रामलीला में अपना सहयोग देते आए हैं। इमाम बक्श वर्षो से रामलीला में तबला वादन करते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चम्पावत की एतिहासिक रामलीला के मंच निर्माण के 5 लाख रूपये की आर्थिक मदद भी प्रदान की थी।

Conclusion:रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भगवत शरण रायर बताते हैं एक दौर था जब संसाधनों की कमी थी उस समय रामलीला कमेटी के लोग छीलके की मशाल बना कर रामलीला कराते थे उसके बाद पंचलाइट और अब एलईडी बल्ब काॅलर माइक से रामलीला का मंचन कि जाता है।
बाइट 1- भगवत शरण राय अध्यक्ष रामलीला कमेटी
Last Updated : Oct 7, 2019, 7:06 PM IST
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