चंपावत: जिला मुख्यालय से लगे क्षेत्र मल्लीहाट में पिछले 132 सालों से रामलीला होती आ रही है. यहां के स्थानीय कलाकार आज भी रामलीला की परंपरा को जीवित किये हुए हैं. जिसमें दोहा, चौपाई, छंदों के सुर, लय-ताल के साथ पात्रों का गायन हर एक को आकर्षित करता है.
जानकारी के अनुसार आज से 100 साल पहले जहां मशाल जलाकर रामलीला का मंचन किया जाता था. वहीं अब एलईडी बल्ब साउंड सिस्टम के साथ रामलीला का मंचन किया जा रहा है. 1913 में रामलीला नाटक की किताब आने के बाद से रामलीला का आयोजन किया जाने लगा था.
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रामलीला के पात्रों का आज भी खान पान में परहेज रहता है. यहां कलाकार स्वयं गायन करते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस रामलीला में अपना सहयोग देते आ रहे हैं. इमाम बक्श सालों से रामलीला में तबला वादन करते आ रहे हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चंपावत की इस ऐतिहासिक रामलीला के मंच निर्माण के लिए 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी गई थी.
रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भगवत शरण रायर ने बताया कि पहले एक दौर था, जब संसाधनों की कमी थी. उस समय रामलीला कमेटी के लोग छीलके की मशाल बनाकर रामलीला कराते थे. उसके बाद पंचलाइट और अब एलईडी बल्ब, कॉलर माइक से रामलीला का मंचन किया जाता है.