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Oath To Save Forest: चमोली के भदुदा गांव वालों ने ली जंगल बचाने की शपथ, नहीं लगने देंगे आग - चमोली हिंदी समाचार

उत्तराखंड का चमोली जिला आंदोलन के लिए उर्वर जमीन है. जिले के भदुदा के लोगों ने इस बार जंगल बचाने की शपथ ली है. दरअसल हर साल गर्मियों में उत्तराखंड के जंगल सुलग उठते हैं. कहीं पर प्राकृतिक कारणों से आग लगती थी. कहीं पर शरारती तत्व जंगलों में आग लगा देते हैं. कई बार लोग नासमझी से खुद जंगल में आग लगाते हैं. लेकिन भदुदा के लोगों ने जंगलों को आग से बचाने के लिए बाकायदा शपथ ली है.

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चमोली हिंदी समाचार
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Published : Feb 7, 2023, 9:32 AM IST

Updated : Feb 7, 2023, 11:02 AM IST

चमोली: उत्तराखंड में समय-समय पर जल जंगल जमीन बचाने के लिए आंदोलन होते रहे हैं. सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी, जगत सिंह जंगली और कल्याण सिंह रावत जैसे पर्यावरणविद भी उत्तराखंड में हुए हैं. एक बार फिर उत्तराखंड में जंगल बचाने की कवायद शुरू हुई है. इस बार फिर चमोली जिले के लोगों ने जंगलों को आग से बचाने की शपथ ली है.

जंगलों को आग से बचाने के लिए ली शपथ: उत्तराखंड के चमोली जिले के भदुदा गांव में सोमवार को जंगल की आग पर काबू पाने के लिए जागरूकता अभियान शुरू हुआ. इसमें निवासियों ने अपने पूज्य देवताओं की शपथ ली कि वे जंगलों में आग नहीं लगने देंगे. ग्राम प्रधान सुनीता देवी के नेतृत्व में, निवासियों ने भदुदा से गुडम गांव तक यात्रा की. यात्रा के दौरान जंगल की आग को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय लोगों से संवाद किया गया.

गांव वासियों ने चिपको आंदोलन का अपडेटेड स्लोगन बनाया: 'चिपको के बाद यही पुकार, जंगल नहीं जलेंगे अबकी बार' के नारे के साथ यात्रा पर निकलने से पहले, उन्होंने सामूहिक रूप से सर्वशक्तिमान द्वारा जंगलों को आग नहीं लगने देने की शपथ ली. इससे पहले अभियान के तहत आयोजित संगोष्ठी में केदारनाथ डीएफओ इंद्र सिंह नेगी ने जंगल की आग से होने वाले नुकसान पर विस्तार से बात की.

क्या था चिपको आंदोलन: उत्तराखंड में चिपको आंदोलन बहुत प्रसिद्ध हुआ था. 70 के दशक में इस आंदोलन की धमक पूरी दुनिया ने सुनी थी. चिपको आंदोलन पर्यावरण की सुरक्षा का आंदोलन था. यह आंदोलन भारत के उत्तराखंड (तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का भाग था) में ग्रामीणों द्वारा ने पेड़ों की कटाई के विरोध में शुरू किया गया था. ग्रामीण राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे. ग्रामीणों का कहना था कि इन वनों पर हमारा जन्मसिद्ध और परंपरागत अधिकार है. इस आंदोलन में गौरा देवी के नेतृत्व में खासतौर से महिलाएं एकजुट हुई थीं.
ये भी पढ़ें: Baby Deer Rescue: गुलदार ने हिरन के बच्चे पर किया अटैक, बुजुर्ग महिला ने ऐसे बचाया

चिपको आंदोलन में ये पर्यावरणविद थे शामिल: यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में 1973 में शुरू हुआ था. एक दशक में चिपको आंदोलन पूरे उत्तराखंड में फैल गया था. देश के जाने माने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट और गौरा देवी के नेतृत्व में चिपको आंदोलन सफल रहा था.

(स्रोत- पीटीआई)

चमोली: उत्तराखंड में समय-समय पर जल जंगल जमीन बचाने के लिए आंदोलन होते रहे हैं. सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी, जगत सिंह जंगली और कल्याण सिंह रावत जैसे पर्यावरणविद भी उत्तराखंड में हुए हैं. एक बार फिर उत्तराखंड में जंगल बचाने की कवायद शुरू हुई है. इस बार फिर चमोली जिले के लोगों ने जंगलों को आग से बचाने की शपथ ली है.

जंगलों को आग से बचाने के लिए ली शपथ: उत्तराखंड के चमोली जिले के भदुदा गांव में सोमवार को जंगल की आग पर काबू पाने के लिए जागरूकता अभियान शुरू हुआ. इसमें निवासियों ने अपने पूज्य देवताओं की शपथ ली कि वे जंगलों में आग नहीं लगने देंगे. ग्राम प्रधान सुनीता देवी के नेतृत्व में, निवासियों ने भदुदा से गुडम गांव तक यात्रा की. यात्रा के दौरान जंगल की आग को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय लोगों से संवाद किया गया.

गांव वासियों ने चिपको आंदोलन का अपडेटेड स्लोगन बनाया: 'चिपको के बाद यही पुकार, जंगल नहीं जलेंगे अबकी बार' के नारे के साथ यात्रा पर निकलने से पहले, उन्होंने सामूहिक रूप से सर्वशक्तिमान द्वारा जंगलों को आग नहीं लगने देने की शपथ ली. इससे पहले अभियान के तहत आयोजित संगोष्ठी में केदारनाथ डीएफओ इंद्र सिंह नेगी ने जंगल की आग से होने वाले नुकसान पर विस्तार से बात की.

क्या था चिपको आंदोलन: उत्तराखंड में चिपको आंदोलन बहुत प्रसिद्ध हुआ था. 70 के दशक में इस आंदोलन की धमक पूरी दुनिया ने सुनी थी. चिपको आंदोलन पर्यावरण की सुरक्षा का आंदोलन था. यह आंदोलन भारत के उत्तराखंड (तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का भाग था) में ग्रामीणों द्वारा ने पेड़ों की कटाई के विरोध में शुरू किया गया था. ग्रामीण राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे. ग्रामीणों का कहना था कि इन वनों पर हमारा जन्मसिद्ध और परंपरागत अधिकार है. इस आंदोलन में गौरा देवी के नेतृत्व में खासतौर से महिलाएं एकजुट हुई थीं.
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चिपको आंदोलन में ये पर्यावरणविद थे शामिल: यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में 1973 में शुरू हुआ था. एक दशक में चिपको आंदोलन पूरे उत्तराखंड में फैल गया था. देश के जाने माने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट और गौरा देवी के नेतृत्व में चिपको आंदोलन सफल रहा था.

(स्रोत- पीटीआई)

Last Updated : Feb 7, 2023, 11:02 AM IST
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