रुद्रप्रयाग/चमोली: 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान ने भारतीय सेना के आगे हार मान ली थी. तब से हर साल 16 दिसंबर को वीरता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध देश के जांबाजों ने वीरता की मिसाल पेश की थी. उत्तराखंड के 255 वीरों ने इस युद्ध में अपनी कुर्बानी दी थी. इस युद्ध में दुश्मन सेना से लोहा लेने वाले 74 जवानों को वीरता पदक से नवाजा गया था. जबकि छह जांबाजों को वीरता का दूसरा सर्वोच्च पदक, महावीर चक्र प्रदान किया गया था. इन्ही जवानों की शहादत को याद करते हुए सोमवार को प्रदेश के अलग-अलग जिलों में विजय दिवस मनाया गया.
रुद्रप्रयाग में जम्मू कश्मीर लाईट इन्फेन्ट्री रेजीमेंट के प्रांगण में विजय दिवय का कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस दौरान मुख्य अतिथि जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि यह दिन शहीदों की भूमिका और राष्ट्रीय एकता के स्मरण का दिन है. उन्होंने शहीदों को नमन करते हुए कहा कि यह दिन हमारे लिये प्रतीकात्मक है, क्योंकि इस दिन हमने मुक्ति वाहनी सेना के साथ मिलकर पूर्वी बांग्लादेश को मुक्त करवाया था.
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समारोह से पहले आर्मी कैंपस में जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, सैनिक अधिकारियों, सैनिकों एवं जिलास्तरीय अधिकारियों, पूर्व सैनिकों ने शहीदों को श्रद्धांजलि एवं श्रद्धासुमन अर्पित किए. इससे पहले सुबह दस बजे जिलाधिकारी ने जिला कार्यालय में ध्वजारोहण भी किया.
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चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर में भी विजय दिवस को धूमधाम से मनाया गया. यहां आयोजित कार्यक्रम में 1971 में शहीद हुए सिपाही बिशन सिंह तोपाल की पत्नी सोबती देवी और युद्ध में शामिल पूर्व सैनिक अब्बल सिंह, राजेंद्र सिंह भोला सिंह ,तामवर सिंह भंडारी ,शिवराज सिंह के साथ ही वीर नारियां कमला देवी, ओखा देवी, को जिलाधिकारी ने शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया.
इस दौरान जिलाधिकारी और अन्य जनपद के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के द्वारा शहीदों के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की. स्कूली छात्र-छात्राओं ने गोपेश्वर में प्रभातफेरी निकालने के साथ ही देशभक्ति और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए.