ETV Bharat / state

Tunnels in Uttarakhand: भारत का सबसे ज्यादा टनल वाला राज्य बनेगा उत्तराखंड, विशेषज्ञ क्यों हैं चिंतित - उत्तराखंड टनल

अगले दस साल में उत्तराखंड देश में सर्वाधिक रेल, रोड सुरंगों वाला प्रदेश होगा. यहां फिलहाल 18 सुरंग संचालित हैं. 66 सुरंग बनाए जाने की योजना है. सुरंगों के जाल से हिमालयी राज्य उत्तराखंड में कनेक्टिविटी बढ़ेगी तो जोशीमठ की तरह भूकंप और लैंडस्लाइड का खतरा भी बढ़ेगा.

uttarakhand tunnel news
उत्तराखंड टनल समाचार
author img

By

Published : Jan 13, 2023, 11:09 AM IST

Updated : Jan 13, 2023, 6:52 PM IST

उत्तराखंड में टनल को लेकर विशेषज्ञों की राय.

देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ में घरों में आई दरारें और उनका दर्द आज पूरी दुनिया देख रही है. यह सबक न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा क्या हो सकता है. जानकार कह रहे हैं कि यह गनीमत है कि अभी आफत जोशीमठ के कुछ घरों में ही आई है. जबकि भविष्य में उत्तराखंड में चल रही जल विद्युत समेत अन्य परियोजनाओं में अगर इसी तरह से प्रकृति का दोहन किया गया, तो हालात बेहद खतरनाक होंगे. उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलमार्ग हो या फिर अन्य दूसरी परियोजनाएं जिनको इंसानों की सहूलियत के लिए केंद्र और राज्य सरकारें बना रही हैं, कहीं सहूलियत की जगह टेंशन ना बन जाएं.

18 साल से दस्तक दे रहा था खतरा: चमोली में अचानक से यह सब नहीं हुआ. चमोली बचाओ संघर्ष समिति बीते 18 सालों से इस लड़ाई को लड़ रही है. घरों में आई दरारें कोई आज की नहीं हैं, बल्कि सालों से इस क्षेत्र में घरों में दरारें आती रही हैं. लेकिन आप सोचिए कि शहर के नीचे से जा रही सुरंग और दुर्गम पहाड़ों पर बन रहे बहु मंजिले घर, होटल का दबाव इतना बढ़ गया कि जिसको हिमालय के पर्वत भी सहन नहीं कर पा रहे हैं.

टनल स्टेट बनेगा उत्तराखंड: इसके साथ ही ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन हो या फिर ऑल वेदर रोड के तहत बन रही उत्तराखंड में तमाम सड़कें जिनके लिए आने वाले समय में और भी पहाड़ों का सीना चीरा जाएगा खतरा बढ़ा सकती हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आने वाले 5 सालों में उत्तराखंड देश का ऐसा पहला पर्वतीय राज्य होगा, जहां पर सबसे अधिक टनल होंगी. यही टनल अब उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को बेहतर तरीके से जानने वाले और वैज्ञानिकों के लिए टेंशन बन रही हैं. वैज्ञानिक चिंतित हैं कि जिस तरह से पर्वतों को खोद करके उनमें निर्माण हो रहे हैं, वह भविष्य के लिए ठीक नहीं है.

Uttarakhand will become a tunnel state
उत्तराखंड में टनल की भरमार

रेल लाइन का 70 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ों से गुजरेगा: उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल मार्ग में ऋषिकेश से लेकर कर्णप्रयाग तक लगभग 12 स्टेशन बनाए जा रहे हैं. इनमें 17 सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि केंद्र सरकार की योजना उत्तराखंड के लिए पर्यटन के लिहाज से आर्थिकी में मील का पत्थर साबित होगी. लेकिन भविष्य में इसके परिणाम क्या होंगे, इस बात की चिंता अब सभी को सताने लगी है. मौजूदा रेल परियोजना में आप इसी से खतरे का अंदाजा लगा सकते हैं कि लगभग 126 किलोमीटर का सफर तय करने वाली ट्रेन 70% पहाड़ों के नीचे से होती हुई अपनी मंजिल पर पहुंचा करेगी. उत्तराखंड में ही देश की दूसरे नंबर की सबसे लंबी टनल बनाई जा रही है, जिसकी लंबाई लगभग 14 किलोमीटर होगी. इसका निर्माण देवप्रयाग से शुरू होकर जनासू तक होगा.

तेज़ी से हो रहा है पहाड़ों के अंदर निर्माण: 126 किलोमीटर की ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना का काम बहुत तेजी से चल रहा है. 50 किलोमीटर की सुरंग अब तक तैयार कर ली गई हैं. हालांकि रेल मंत्रालय से जुड़े अधिकारी तमाम बार यही बात कहते रहे हैं कि उत्तराखंड में बन रही इस परियोजना में सभी वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन करके ही काम किया जा रहा है.

टनल निर्माण में ब्लास्टिंग है खतरे का कारण: नॉर्वे जैसे देश में भी पहाड़ियों से ही रेल और सड़क मार्ग की कनेक्टिविटी सालों से चल रही है. लिहाजा उत्तराखंड में बन रही इस महत्वपूर्ण परियोजना में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो उसका भी ध्यान रखा जा रहा है. लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि जिस तरह से जोशीमठ में हालात बन रहे हैं, इस योजना के तहत भी पहाड़ों के नीचे ब्लास्टिंग करके कई तरह के कामों को पूरा किया जा रहा है. भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

जानकार बोले टनल बनेंगी टेंशन: उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और टिहरी बांध आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगुणा भी इस परियोजना को बेहद घातक बता रहे हैं. राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि उत्तराखंड में सड़क और रेल मार्ग की आपाधापी में जिस तरह से काम किए जा रहे हैं, वह एक अदृश्य खतरा है. ये खतरे अभी शायद किसी को दिखाई नहीं दे रहे हैं. लेकिन आने वाले समय में इनके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे.

क्या कहते हैं राजीव नयन बहुगुणा: राजीव नयन बहुगुणा का कहना है कि रेल मार्ग का काम जिस तरह से अंदर ही अंदर चल रहा है तो लोगों को यह लग रहा है कि बाहर से सब कुछ ठीक है. जबकि ऐसा नहीं है. उनका कहना है कि इस परियोजना के तहत जल्दबाजी के चक्कर में अंधाधुंध विस्फोट पहाड़ों के अंदर किए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि पहाड़ी में अगर ऋषिकेश में विस्फोट किया जाएगा तो उसका असर सिर्फ उसी जगह पर होगा. इन तीव्र गति के विस्फोट का असर 40 से 50 किलोमीटर दूर भी होता है. राजीव कहते हैं कि विस्फोट की जगह और भी दूसरे उपाय हो सकते हैं.

600 साल पहले माधो सिंह भंडारी की बनाई सुरंग अभी भी सुरक्षित: बहुगुणा बताते हैं कि उत्तराखंड के मलेथा में ही माधो सिंह भंडारी ने जो सुरंग बनाई थी, उसमें आज तक किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आई. वह इसलिए क्योंकि उस सुरंग में किसी तरह का विस्फोट नहीं किया गया था. बल्कि पूरी सुरंग को मैनुअली ही बनाया गया था. गौरतलब है कि करीब 600 साल पहले महान योद्धा माधो सिंह भंडारी पहाड़ का सीना चीर दो किमी लंबी सुरंग बनाकर अपने गांव तक नदी का पानी लाए थे. यह सुरंग अपने आप में आधुनिकतम इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है. आज तक ये सुरंग सुरक्षित है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक: वहीं भू वैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ों में जो परियोजनाएं चल रही हैं, हो सकता है कि वो बेहद जरूरी हों. लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि ये सब होने के बाद अगर कुछ ना रहा तो क्या होगा. जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में माइक्रो प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं, जो उत्तराखंड के पहाड़ों और पर्यावरण के लिए सही हैं. ऐसा नहीं है कि पहाड़ों में आप कुछ भी गतिविधि कर लो और कह दो कि ये तो पहाड़ हैं. ये पहाड़ वैसे पहाड़ नहीं हैं, जैसा इनको सोच कर बोझ लादा जा रहा है. हमें सभी बातों का ध्यान और खास कर उत्तराखंड में घटी पूर्व की घटनाओं का भी ध्यान रखना होगा. नहीं तो ये विकास हमें विनाश की तरफ ले जायेगा और हमें उन हालातों से फिर शायद ही कोई तकनीक बचा पाए.

उत्तराखंड में क्या हैं ये परियोजनाएं: आपको बता दें उत्तराखंड में हाल ही में देहरादून दिल्ली मार्ग पर एक बड़ी टनल का निर्माण किया गया है. इसके साथ ही टिहरी जिले में भी पहाड़ों को खोद कर सड़क के लिए टनल बनाई गई. जिसके बाद वहां भी उस वक्त भू धंसाव की घटना हुई थी. साथ ही उत्तरकाशी में एक टनल के साथ साथ मौजूदा समय में उत्तराखंड में रेल मार्ग के लिए 17 सुरंग बनाई जा रही हैं. ये रेल मार्ग 126 किलोमीटर का होगा जिसमें 12 स्टेशन, 17 सुरंग और 35 पुल बनाए जा रहे हैं. इसके साथ ही चमोली जिले में गौचर भट्ट नगर और सिवाई में रेलवे स्टेशन भी बनने हैं. यहां अप्रोच रोड, रेल और रोड ब्रिज बनाने का काम चल रहा है.
ये भी पढ़ें: Marriage in Joshimath: मकान पर लाल निशान ने तोड़े जोशीमठ की ज्योति के सपने, शादी पर दरारों का ग्रहण

16,216 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में 10 स्टेशन सुरंग के अंदर होंगे. 12 में सिर्फ दो स्टेशन शिवपुरी और व्यासी जमीन के ऊपर होंगे. इस 126 किलोमीटर की रेल लाइन में लगभग 105 किलोमीटर हिस्सा अंडरग्राउंड होगा. जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में आने वाले समय में दर्जनों सुरंग बनाई जानी हैं. जिनके प्रस्ताव पर भी मोहर लग चुकी है. आपको बता दें कि उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से हमेशा से ही संवेदनशील रहा है. यहां आए दिन भूकंप के झटके महसूस किये जाते हैं.

उत्तराखंड में टनल को लेकर विशेषज्ञों की राय.

देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ में घरों में आई दरारें और उनका दर्द आज पूरी दुनिया देख रही है. यह सबक न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा क्या हो सकता है. जानकार कह रहे हैं कि यह गनीमत है कि अभी आफत जोशीमठ के कुछ घरों में ही आई है. जबकि भविष्य में उत्तराखंड में चल रही जल विद्युत समेत अन्य परियोजनाओं में अगर इसी तरह से प्रकृति का दोहन किया गया, तो हालात बेहद खतरनाक होंगे. उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलमार्ग हो या फिर अन्य दूसरी परियोजनाएं जिनको इंसानों की सहूलियत के लिए केंद्र और राज्य सरकारें बना रही हैं, कहीं सहूलियत की जगह टेंशन ना बन जाएं.

18 साल से दस्तक दे रहा था खतरा: चमोली में अचानक से यह सब नहीं हुआ. चमोली बचाओ संघर्ष समिति बीते 18 सालों से इस लड़ाई को लड़ रही है. घरों में आई दरारें कोई आज की नहीं हैं, बल्कि सालों से इस क्षेत्र में घरों में दरारें आती रही हैं. लेकिन आप सोचिए कि शहर के नीचे से जा रही सुरंग और दुर्गम पहाड़ों पर बन रहे बहु मंजिले घर, होटल का दबाव इतना बढ़ गया कि जिसको हिमालय के पर्वत भी सहन नहीं कर पा रहे हैं.

टनल स्टेट बनेगा उत्तराखंड: इसके साथ ही ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन हो या फिर ऑल वेदर रोड के तहत बन रही उत्तराखंड में तमाम सड़कें जिनके लिए आने वाले समय में और भी पहाड़ों का सीना चीरा जाएगा खतरा बढ़ा सकती हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आने वाले 5 सालों में उत्तराखंड देश का ऐसा पहला पर्वतीय राज्य होगा, जहां पर सबसे अधिक टनल होंगी. यही टनल अब उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को बेहतर तरीके से जानने वाले और वैज्ञानिकों के लिए टेंशन बन रही हैं. वैज्ञानिक चिंतित हैं कि जिस तरह से पर्वतों को खोद करके उनमें निर्माण हो रहे हैं, वह भविष्य के लिए ठीक नहीं है.

Uttarakhand will become a tunnel state
उत्तराखंड में टनल की भरमार

रेल लाइन का 70 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ों से गुजरेगा: उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल मार्ग में ऋषिकेश से लेकर कर्णप्रयाग तक लगभग 12 स्टेशन बनाए जा रहे हैं. इनमें 17 सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि केंद्र सरकार की योजना उत्तराखंड के लिए पर्यटन के लिहाज से आर्थिकी में मील का पत्थर साबित होगी. लेकिन भविष्य में इसके परिणाम क्या होंगे, इस बात की चिंता अब सभी को सताने लगी है. मौजूदा रेल परियोजना में आप इसी से खतरे का अंदाजा लगा सकते हैं कि लगभग 126 किलोमीटर का सफर तय करने वाली ट्रेन 70% पहाड़ों के नीचे से होती हुई अपनी मंजिल पर पहुंचा करेगी. उत्तराखंड में ही देश की दूसरे नंबर की सबसे लंबी टनल बनाई जा रही है, जिसकी लंबाई लगभग 14 किलोमीटर होगी. इसका निर्माण देवप्रयाग से शुरू होकर जनासू तक होगा.

तेज़ी से हो रहा है पहाड़ों के अंदर निर्माण: 126 किलोमीटर की ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना का काम बहुत तेजी से चल रहा है. 50 किलोमीटर की सुरंग अब तक तैयार कर ली गई हैं. हालांकि रेल मंत्रालय से जुड़े अधिकारी तमाम बार यही बात कहते रहे हैं कि उत्तराखंड में बन रही इस परियोजना में सभी वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन करके ही काम किया जा रहा है.

टनल निर्माण में ब्लास्टिंग है खतरे का कारण: नॉर्वे जैसे देश में भी पहाड़ियों से ही रेल और सड़क मार्ग की कनेक्टिविटी सालों से चल रही है. लिहाजा उत्तराखंड में बन रही इस महत्वपूर्ण परियोजना में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो उसका भी ध्यान रखा जा रहा है. लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि जिस तरह से जोशीमठ में हालात बन रहे हैं, इस योजना के तहत भी पहाड़ों के नीचे ब्लास्टिंग करके कई तरह के कामों को पूरा किया जा रहा है. भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

जानकार बोले टनल बनेंगी टेंशन: उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और टिहरी बांध आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगुणा भी इस परियोजना को बेहद घातक बता रहे हैं. राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि उत्तराखंड में सड़क और रेल मार्ग की आपाधापी में जिस तरह से काम किए जा रहे हैं, वह एक अदृश्य खतरा है. ये खतरे अभी शायद किसी को दिखाई नहीं दे रहे हैं. लेकिन आने वाले समय में इनके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे.

क्या कहते हैं राजीव नयन बहुगुणा: राजीव नयन बहुगुणा का कहना है कि रेल मार्ग का काम जिस तरह से अंदर ही अंदर चल रहा है तो लोगों को यह लग रहा है कि बाहर से सब कुछ ठीक है. जबकि ऐसा नहीं है. उनका कहना है कि इस परियोजना के तहत जल्दबाजी के चक्कर में अंधाधुंध विस्फोट पहाड़ों के अंदर किए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि पहाड़ी में अगर ऋषिकेश में विस्फोट किया जाएगा तो उसका असर सिर्फ उसी जगह पर होगा. इन तीव्र गति के विस्फोट का असर 40 से 50 किलोमीटर दूर भी होता है. राजीव कहते हैं कि विस्फोट की जगह और भी दूसरे उपाय हो सकते हैं.

600 साल पहले माधो सिंह भंडारी की बनाई सुरंग अभी भी सुरक्षित: बहुगुणा बताते हैं कि उत्तराखंड के मलेथा में ही माधो सिंह भंडारी ने जो सुरंग बनाई थी, उसमें आज तक किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आई. वह इसलिए क्योंकि उस सुरंग में किसी तरह का विस्फोट नहीं किया गया था. बल्कि पूरी सुरंग को मैनुअली ही बनाया गया था. गौरतलब है कि करीब 600 साल पहले महान योद्धा माधो सिंह भंडारी पहाड़ का सीना चीर दो किमी लंबी सुरंग बनाकर अपने गांव तक नदी का पानी लाए थे. यह सुरंग अपने आप में आधुनिकतम इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है. आज तक ये सुरंग सुरक्षित है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक: वहीं भू वैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ों में जो परियोजनाएं चल रही हैं, हो सकता है कि वो बेहद जरूरी हों. लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि ये सब होने के बाद अगर कुछ ना रहा तो क्या होगा. जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में माइक्रो प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं, जो उत्तराखंड के पहाड़ों और पर्यावरण के लिए सही हैं. ऐसा नहीं है कि पहाड़ों में आप कुछ भी गतिविधि कर लो और कह दो कि ये तो पहाड़ हैं. ये पहाड़ वैसे पहाड़ नहीं हैं, जैसा इनको सोच कर बोझ लादा जा रहा है. हमें सभी बातों का ध्यान और खास कर उत्तराखंड में घटी पूर्व की घटनाओं का भी ध्यान रखना होगा. नहीं तो ये विकास हमें विनाश की तरफ ले जायेगा और हमें उन हालातों से फिर शायद ही कोई तकनीक बचा पाए.

उत्तराखंड में क्या हैं ये परियोजनाएं: आपको बता दें उत्तराखंड में हाल ही में देहरादून दिल्ली मार्ग पर एक बड़ी टनल का निर्माण किया गया है. इसके साथ ही टिहरी जिले में भी पहाड़ों को खोद कर सड़क के लिए टनल बनाई गई. जिसके बाद वहां भी उस वक्त भू धंसाव की घटना हुई थी. साथ ही उत्तरकाशी में एक टनल के साथ साथ मौजूदा समय में उत्तराखंड में रेल मार्ग के लिए 17 सुरंग बनाई जा रही हैं. ये रेल मार्ग 126 किलोमीटर का होगा जिसमें 12 स्टेशन, 17 सुरंग और 35 पुल बनाए जा रहे हैं. इसके साथ ही चमोली जिले में गौचर भट्ट नगर और सिवाई में रेलवे स्टेशन भी बनने हैं. यहां अप्रोच रोड, रेल और रोड ब्रिज बनाने का काम चल रहा है.
ये भी पढ़ें: Marriage in Joshimath: मकान पर लाल निशान ने तोड़े जोशीमठ की ज्योति के सपने, शादी पर दरारों का ग्रहण

16,216 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में 10 स्टेशन सुरंग के अंदर होंगे. 12 में सिर्फ दो स्टेशन शिवपुरी और व्यासी जमीन के ऊपर होंगे. इस 126 किलोमीटर की रेल लाइन में लगभग 105 किलोमीटर हिस्सा अंडरग्राउंड होगा. जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में आने वाले समय में दर्जनों सुरंग बनाई जानी हैं. जिनके प्रस्ताव पर भी मोहर लग चुकी है. आपको बता दें कि उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से हमेशा से ही संवेदनशील रहा है. यहां आए दिन भूकंप के झटके महसूस किये जाते हैं.

Last Updated : Jan 13, 2023, 6:52 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.