चमोली: जिले में जोशीमठ के नृसिंह मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले एक दिवसीय तिमुण्डिया मेले शनिवार शाम 6 बजे सम्पन्न हुआ. बदरीनाथ धाम की यात्रा से ठीक पहले आयोजित होने वाले आस्था, चमत्कार, अविश्वसनीय के प्रतीक तिमुण्डिया मेले को देखने हजारों मेलार्थी जोशीमठ के नरसिंग मंदिर प्रांगण में जुटे. मेले में तिमुण्डिया के पश्वा को एक बकरी, 20 किलो कच्चा चावल, 10 किलो गुड़, दो घड़े पानी पीते देख सब दंग रह गये. तिमुण्डिया पूजा में बदरीनाथ धाम की सुगम यात्रा की भी कामना की गई. हर साल तिमुण्डिया मेला बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से एक हफ्ते पहले शनिवार या मंगलवार को आयोजित किया जाता है.
शनिवार शाम 4 बजे से नरसिंग मंदिर जोशीमठ के प्रांगण में पारंपरिक बाद्य यंत्र ढोल, दमाऊ के साथ तिमुण्डिया पूजा शुरू की गई. पूजा शुरू होने से पहले ही नरसिंग मंदिर परिसर लोगों से खचाखच भर गया था. पूजा की शुरुआत में देव पुजाई समिति के कार्यलय से समिति के पदाधिकारियों और देवता के पश्वा को ढोल दमाऊ के साथ नरसिंह मंदिर के प्रांगण में लाया गया. इसके बाद मंदिर प्रांगण में मां दुर्गा का पवित्र आवाम लाठ लाया गया, जिसमें मां दुर्गा की शक्ति विद्यमान रहती है. मां दुर्गा के लाठ को प्रांगण में पहुंचाने के बाद नवदुर्गा, चंडिका, भुनेश्वरी, धाणी देवता और तिमुण्डिया के पश्वा नाचते हैं. इस दौरान सभी देवी-देवताओं को घड़ों में भरे जल से स्नान कराया जाता है.
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क्या है मान्यता
पौराणिक मान्यता है कि तिमुण्डिया नामक तीन सिरों वाला राक्षस हुआ करता था. ह्यूना के जंगलों में इस राक्षस ने बड़ा आतंक मचा रखा था. हर दिन तिमुण्डिया राक्षस एक मनुष्य का भक्षण करता था. गांव वालों के फैसले के अनुसार प्रतिदिन एक व्यक्ति को राक्षस का शिकार बनने के लिए जंगल जाना पड़ता था. एक दिन मां दुर्गा देवयात्रा पर थी, लेकिन राक्षस के डर से कोई भी ग्रामीण मां के स्वागत के लिए नहीं आया. जब मां दुर्गा को यह बात पता चली तो उन्होंने गांव वालों को राक्षस का निवाला बनने के लिए जाने से मना कर दिया. इससे क्रोधित होकर तिमुण्डिया राक्षस गांव आ धमका.
राक्षस के गांव पहुंचते ही वहां मौजूद मां दुर्गा और तिमुण्डिया राक्षस के बीच भयंकर युद्ध हुआ. मां दुर्गा ने तिमुण्डिया राक्षस के तीन सिरों में से दो सिर काट दिए. इसके बाद जैसे ही मां दुर्गा तिमुण्डिया राक्षस का तीसरा सिर काटने लगी तो राक्षस ने मां दुर्गा के समक्ष आत्मसमपर्ण कर दिया. मां दुर्गा तिमुण्डिया राक्षस पर प्रसन्न हुईं और उसे अपना वीर बना लिया. साथ ही तिमुण्डिया राक्षस से वचन लिया कि वो मनुष्य का भक्षण नहीं करेगा. इसी वजह से ग्रामीणों के द्वारा प्रतिवर्ष राक्षस को एक बकरा, चावल, गुड़, पानी दिया जाता है.