चमोली: बैसाखी के त्योहार को खुशहाली और समृद्धि का पर्व माना जाता है. ऐसे में हेमकुंड साहिब के मुख्य पड़ाव गोविंदघाट गुरूद्वारे में बैसाखी का पर्व सिख श्रद्धालुओं द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. वहीं, इस साल की पहली अरदास गोविंदघाट में पढ़ने के साथ ही हेमकुंड साहिब के कपाट खुलने की तैयारियों में हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा ट्रस्ट जुट चुका है.
बता दें, कोरोना संक्रमण के दो वर्षों बाद गोविंदघाट में बैसाखी का पर्व मनाया गया. ऐसे में यहां बैसाखी का पर्व मनाने दिल्ली, असम, पंजाब, देहरादून और यूएसए से भी सिख श्रद्धालु पहुंचे थे. सिख श्रद्धालुओं ने उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि 2013 के आपदा के बाद हेमकुंड साहिब में काफी बदलाव हो चुका है और अब एक अच्छी यात्रा के लिए हेमकुंड साहिब तैयार है.
मुख्य तौर पर सिख समुदाय के लोग बैसाखी को नए साल के रूप में मनाते हैं. बैसाखी तक रबी की फसलें पक जाती हैं और उनकी कटाई होती है, उसकी खुशी में भी ये त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बैसाखी मनाने के पीछे की एक वजह ये भी है कि 13 अप्रैल, 1699 को सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था. बैसाखी के दिन से ही पंजाबियों के नए साल की शुरुआत भी होती है.
कैसे मनाते हैं बैसाखी का उत्सव: बैसाखी के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है. लोग तड़के सुबह उठकर गुरूद्वारे में जाकर प्रार्थना करते हैं. गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है. उसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है.
वहीं, बैसाखी पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन सिख समुदाय में आस्था रखने वाले लोग गुरु वाणी सुनते हैं. श्रद्धालुओं के लिए खीर, शरबत आदि बनाया जाता है. बैसाखी के दिन किसान प्रचुर मात्रा में उपजी फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं और अपनी समृद्धि की प्रार्थना करते हैं.