चमोली: कोरोना से बचने के लिए लागू किए लॉकडाउन की वजह से कई लोगों का रोजगार छीन गया है. ऐसी परिस्थितियों में बाहरी राज्यों में फंसे हुए प्रवासी उत्तराखंड में अपने गांव की ओर लौट रहे हैं. ऐसे प्रवासियों के लिए राज्य सरकार भी रोजगार के अवसर तलाश रही है, ताकि वे दोबारा बाहर न जाएं. इसी में से एक है खेती. उत्तराखंड की अधिकांश जनता खेती पर निर्भर है, लेकिन जंगलों के भय और बंदरों द्वारा फसल बर्बाद करने के कारण ग्रामीणों का खेती से मोह भंग हो गया है, लेकिन अब फसलों को जंगली जानवरों और बंदरों से बचाने के लिए सरकार नाबार्ड नाम से एक योजना लाई है, ताकि लोग दोबारा खेती की तरफ रुख करें और अपने घर पर ही रोजगार के साधन तलाश सकें.
जंगली जानवर जिस तरह से पहाड़ों में फसल की बर्बाद करते है उस वजह से कई किसानों से खेती छोड़कर गांवों से पलायन कर लिया था. खेती छोड़कर युवा ने तो रोजगार की तलाश में महानगरों को रुख कर दिया और गांव के बुजुर्ग आसपास के शहरों और कस्बों में बस गए थे. जिस कारण कई हजार हेक्टेयर भूमि बंजर हो गई थी.
पढ़ें- कोरोना महामारी से लड़ने के लिये ऋषिकेश AIIMS कितना तैयार, निदेशक से खास बात
लेकिन अब दोबारा इस बजर भूमि को हरा-भरा करने और जानवरों के आतंक से लोगों को मुक्त करने के लिए नाबार्ड किसानों के लिये खुशखबरी ले कर आया है. नाबार्ड यानी राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक ने अब खेती में बंदरों और सुअरों से निजात पाने के लिए फैंसिंग तार बाड़ का पायलट प्रोजेक्ट जमीन पर उतार दिया है. जिसकी शुरुआत चमोली जिले के जोशीमठ और दशोली ब्लॉक से हो चुकी है. इसके अंतर्गत अभी छह एकड़ भूमि पर ये प्रोजेक्ट सात किसानों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गतिमान है. जिसकी लागत लगभग 15 लाख है. जिसमे 80 प्रतिशत सब्सिडी नाबार्ड द्वारा किसानों को दी जा रही है.
नाबार्ड के डीडीएम अभिनव कुमार के मुताबिक, बंदरों और सुअरों से बचाव के लिए वे हारबोलिक प्लस नामक एक हर्बल दवाई पर भी कार्य कर रहे हैं. जिसके खेतो में छिड़कने से जानवर उस फसल को नहीं खाते है, क्योंकि उसकी गन्ध उन्हें अच्छी नहीं लगती. ये लिक्विड सर्टिफाइड है और इसका उपयोग खाद के रूप में भी किया जाता है. इस प्रोजेक्ट के सफल प्रयोग के बाद अगले ही वर्ष से इसे पूरे उत्तराखंड में नाबार्ड द्वारा संचालित करवाया जाएगा, जिससे पहाड़ों में लोग अच्छा खासा उत्पादन भी कर पाएंगे.